पूरे घर में पोछा लगाते हुए, आराम चाहिए था पर जाति कहा, आराम करने, अब तो मेरे कमरे में लॉक था, तो टीवी के सामने लगे सोफे पर, जहां पर पूरा दिन काटती थी, हिम्मत नही हो रही थी बैठने की, मां कही इसी बात पर कोई ताना न मार दे, और मां ने शायद मेरी आंखों में पढ़ लिया, और बोली खड़ी क्या है, मेरे पास आ, और में जब उनके पास गई, मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे के साइड में नीचे बिठा दिया, और बोली अपनी हालत देख, सोफे पर बैठ कर सोफे को गंदा करेगी क्या, कितनी गंदी साड़ी कर रखी है, और तुझे बोला था ना पल्लू सिर पर होना चाहिए, मुझे अचानक याद आया के आंटी ने हटाया था, मैंने बोला ही था के आंटी ने, तभी मां बोली क्यों तेरे हाथ टूटे है, दुबारा पल्लू डाल नही सकती थी, अच्छा तो तुझे शर्म आ रही होगी ना पल्लू डालने में।
मुझे अब अपने गुस्से से काबू खत्म हों रहा था, मां ने ये बात नोट कर ली, और पता नही, कब वो मेरे सामने से मेरे पीठ के पीछे आई, और मेरे दोनो हाथ मेरी पीठ के पीछे पास ही पड़े एक डुप्पट्टे से बांध दिए, और बोली रस्सी जल गई पर बल नही गया, गुस्सा अभी भी नाक पर ही है, पर में देखती हूं कब तक, और फिर पता नही क्या चैन सी लाई, मेरे गले में पहिना दिया, और मुझे जैसे मैं कोई जानवर होऊं, ऐसे मुझे मेरे कमरे में लेकर गई, और घर की छत पर लगे हैंगर से मेरे गले की सांकड़ को बांध दिया, अब मैं चाह कर भी, ज्यादा दूर नहीं जा सकती, और न बैठ सकती थी, बस खड़े रहे सकती थी, हाथ अब भी पीछे ही बांधे हुए थे, मां मुझे ऐसे ही बांध कर कमरे से बाहर चली गई, और थोड़ी देर बाद एक और चैन लेकर आई, और मेरे हाथो को, मेरी पीठ के पीछे से मेरे गले की साकड़ से जोड़ कर लॉक कर दिया, और फिर मेरा हाथ का दुप्पटा खोल दिया, मेरे कमरे का गेट खुला ही था पर मैं बंधी हुई थी ।
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