📝 Story Preview:
रात के लगभग दस बजे थे। शहर की गलियाँ लगभग सुनसान हो चली थीं। घरों की लाइटें धीमे-धीमे बुझने लगी थीं, लेकिन एक कोठी के ऊपरी माले से अब भी रोशनी झाँक रही थी—के.पी. मार्ग पर स्थित करण का मकान। वहीं जहाँ कुछ साल पहले तक हँसी-खुशी की ज़िंदगी बसती थी।
आज उस घर का हाल किसी वीरान बस्ती जैसा था।
दरवाज़ा खुला था। अंदर कदम रखते ही शराब की तेज़ बदबू से कोई भी नाक सिकोड़ ले। फर्श पर टूटी बोतलों के टुकड़े थे, बिखरी हुई चप्पलें, फेंके हुए तकिए, और दीवार पर टँगी एक तस्वीर—करण और रोशनी की शादी की। तस्वीर पर धूल जमी थी, और नीचे फर्श पर शराब की एक आधी खाली बोतल लेटी थी, मानो खुद ही नशे में हो।
Aashish ने दरवाज़ा धीरे से खोला, "करण... करण तू ठीक तो है?"
सामने सोफ़े पर कोई बैठा था, झुका हुआ, काँपता हुआ। हाथ में ग्लास, आँखों में आँसू, और शरीर पर गंध थी टूटी हुई उम्मीदों की। करण ने सिर उठाया, उसकी आँखें लाल थीं।
"आ गया तू... बहुत देर कर दी भाई," करण बोला, और ग्लास को ज़ोर से ज़मीन पर दे मारा। काँच के टुकड़े फैल गए, और साथ में करण की भावनाएँ भी।
Aashish तेज़ी से पास आया, "क्या कर रहा है यार, ये क्या हाल बना रखा है तूने?"
करण कुछ नहीं बोला। उसकी आँखें अब भी रोशनी की तस्वीर पर टिकी थीं।
Aashish ने उसका कंधा पकड़ा, "बोल ना... ऐसा क्या हो गया कि तू इस हालत में आ गया? रोशनी कहाँ है?"
करण का चेहरा पीला पड़ गया। उसने धीमे से कहा, "वो... चली गई... मुझे छोड़कर... हमेशा के लिए।"
Aashish चौंका, "क्या? पर तुम दोनों तो... एकदम ठीक लगते थे... अचानक ऐसा क्या हुआ?"
करण ने गिलास उठाया और खाली बोतल की ओर देखा, मानो उसमें जवाब छुपा हो। "वो किसी और के साथ भाग गई। मैंने क्या नहीं किया उसके लिए, लेकिन शायद मैं ही काफ़ी नहीं था।"
Aashish ने उसे समझाने की कोशिश की, "भाई, ज़िंदगी यहीं खत्म नहीं हो जाती... चल, ताज़ी हवा में चलते हैं। कुछ खा ले, नहा ले..."
करण ने सिर झुका लिया, और फिर अचानक—पैरों में गिर पड़ा।
"भाई... एक बार... सिर्फ एक बार मेरी मदद कर दे। मैं उसे नहीं रोक सका... लेकिन एक बार उससे बात करना चाहता हूँ। बस एक आख़िरी बार। जानना चाहता हूँ कि मेरी मोहब्बत में क्या कमी रह गई थी..."
Aashish सकपका गया। करण की आँखों में एक अजीब सी दीवानगी थी। वो चाह रहा था कि कुछ ऐसा किया जाए, जो शायद मुमकिन ही न हो।
"बोल, क्या चाहिए तुझे?"
करण ने गहरी साँस ली। "तू मुझसे वादा कर, जो मैं कहूँगा तू करेगा... बिना सवाल पूछे।"
Aashish हँसा, "तू पागल है क्या? पहले बता तो सही, बात क्या है।"
करण ने उसकी आँखों में देखा, और बोला—"बस कुछ देर के लिए... मेरी बीवी के कपड़े पहन ले।"
Aashish जैसे सन्न रह गया।
कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। Aashish की आँखें करण के चेहरे को घूर रही थीं। ऐसा लगा जैसे कोई मज़ाक किया गया हो, मगर करण के चेहरे की गंभीरता ने हर शक को ख़ारिज कर दिया।
"तू मज़ाक कर रहा है, है ना?"
करण ने धीरे से सिर हिला दिया, "नहीं... मैं सच कह रहा हूँ। बस कुछ देर के लिए... वो लाल चनिया-चोली जो रोशनी पहनती थी, वो तू पहन ले... और सामने खड़ा हो जा। मैं तुझे नहीं देखूंगा... तू मुंह पर दुपट्टा बाँध लेना... और आँखों पर भी पट्टी। मैं बस उसे सामने खड़ा देखना चाहता हूँ... आख़िरी बार।"
Aashish कुछ बोल नहीं पाया। उसकी ज़ुबान सूख गई थी। मगर करण की बातों ने उसके अंदर कहीं छुपी एक बहुत पुरानी भावना को छू लिया था... एक ऐसी भावना, जिसे उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।
बचपन में जब वो माँ की साड़ी से खेलता था, आईने के सामने खड़ा होकर चुन्नी ओढ़ता था, तो लगता था जैसे कोई दूसरी दुनिया उसे पुकार रही है। मगर जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, समाज की सीमाओं ने उन ख्वाहिशों को दबा दिया।
एक बार उसने स्कूल फेयर में लड़कियों के डांस में हिस्सा लेने की बात की थी... लेकिन दोस्तों की हँसी और पापा की डांट ने उस इच्छा को हमेशा के लिए भीतर ही दफना दिया। लेकिन वो इच्छा कभी मरी नहीं... वो एक 'अधूरी इच्छा' बनकर उसके भीतर पलती रही। शायद इसी अधूरी इच्छा की वजह से उसने अपने बाल लंबे रखे थे... ताकि आईने में खुद को एक पल के लिए 'कुछ और' होते हुए देख सके।
और आज... करण की गुज़ारिश ने उस अधूरी इच्छा को फिर से हवा दे दी थी।
"ठीक है," Aashish ने कहा, "मैं करूँगा। तेरे लिए।"
करण की आँखों में चमक आ गई। वो उठा, और अलमारी से लाल चनिया-चोली का सेट निकाल लाया। साथ में थी लाल कांच की चूड़ियाँ, भारी झुमके, और एक चमचमाती बिंदी।
Aashish ने एक गहरी साँस ली, और कपड़े बदलने चला गया।
आशीष ने करण के बेडरूम में घुसते ही सांस थाम ली। अलमारी का दरवाज़ा खुला तो रोशनी के कपड़ों की खुशबू ने उसे झकझोर दिया - गुलाब की महक वाला वह पाउडर जो उसकी बहन भी लगाती थी।
उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं जब उसने अपनी शर्ट का पहला बटन खोला। "यह सिर्फ मेरी मदद के लिए..." वह खुद को समझाने की कोशिश कर रहा था। हर बटन के खुलने पर उसकी साँसें तेज हो रही थीं। जब आखिरी बटन खुला तो उसने महसूस किया कि उसकी नंगी छाती पर हवा का ठंडा स्पर्श कितना अलग लग रहा है। आशीष का शरीर और मन को यकीं ही नहीं हो रहा था के ये सब सच में हो रहा है और वो अपनी भाभी यानि रौशनी के कपडे पहनने वाला है उसने रौशनी को इन कपड़ो में देखा था और वो जब भी उसे देखता था आशीष के अंदर कुछ तो अजीब सा होने लगता था आशीष की शर्ट अब उतर चुकी थी और आशीष के सामने बिस्तर पर रौशनी की लाल ब्रा थी आशीष ने कारन को आवाज लगाईं के करन तू सच में चाहता है के मैं रौशनी भाभी की ब्रा पहेनू
करन ने तुरंत रिस्पांस किया हाँ आशीष और तू उस कुलटा को भाभी मत बोल अब वो तेरी भाभी नहीं है साली कुतिया ने मेरा प्यार ठुकराया है दुनिया के किसी भी कोने में साली को चैन नहीं मिलेगा
आशीष को करन की किसी भी बकवास में इंटरेस्ट नहीं था लाल रंग की लेस वाली ब्रा रौशनी की ब्रा आशीष के हाथ में रेशमी साँप जैसी लग रही थी आशीष ने रौशनी की ब्रा को चुम लिया और तभी करन की आवाज आयी कितना टाइम और लगेगा
करन की आवाज सुन कर आशीष जल्दी से ब्रा पहनने की कोशिश करने लगा
काँपती उँगलियाँ हुक लगाने में असफल हो रही थीं
तीसरी कोशिश में जब ब्रा के कप्स उसकी छाती से टकराए, तो उसे एहसास हुआ कि "यह खालीपन... मैं इसे भरना चाहता हूँ..."
नायलॉन के फीते ने उसकी पीठ को चुभती हुई सजा सी दी
लाल रंग की साटन पैंटी उसकी उँगलियों से फिसल गई।
आशीष ने पेंटी तो बहुत देखि थी कई बार अपनी बीबी अनीता के लिए खरीदी भी थी पर उसने इतनी सॉफ्ट ब्रा से एक दम मैचिंग चटक लाल रेशमी पेंटी कभी नहीं देखि थी इसका कपड़ा बहुत मुलायम था और उसमे रौशनी भाभी की बॉडी की खुशबु आ रही थी वही जानी मानी खुशबु इत्र की खुशबु जो रौशनी भाभी लगाती थी और जिसे सूंघते ही आशीष की नज़ारे रौशनी भाभी पर टिक जाती थी
आशीष ने धीमे से अपना पैर पेंटी में डाला फिर दूसरा पैर और अब धीमे धीमे से ऊपर जांध पर एक रेशमी सा अहसास आशीष बहुत ज्यादा एक्ससिटेड हो गया था कर उसका पेनिस भी तन कर खड़ा हो गया था रौशनी की छोटी सी पेंटी में आशीष का पेनिस को एडजस्ट करना एक बड़ा टास्क था पर आशीष ने बड़ी मुश्किल से उसे एडजस्ट किया
Panty पहनते वक्त Aashish का चेहरा शर्म से लाल हो गया।एकदम हल्का, टाइट और skin touch कपड़ा...
करण ने उसे एक दुपट्टा पकड़ा कर कहा, "ये अपने मुंह पर बाँध ले... और ये काली पट्टी अपनी आँखों पर।"
Aashish ने वैसा ही किया। अब वो सिर्फ एक सजी-सँवरी महिला लग रही थी—जो न कुछ बोल सकती थी, न देख सकती थी।
लाल रंग की चनिया-चोली उसे चुनौती दे रही थी। चनिया बांधने में दो बार गलती हुई - पहली बार बहुत ढीली, दूसरी बार इतनी कसकर कि सांस लेने में तकलीफ होने लगी। चोली के पीछे के फीते बांधते समय उसकी उंगलियां बार-बार फिसल रही थीं।
जब वह शीशे के सामने खड़ा हुआ, तो अधूरा रूप देखकर उसकी सांसें तेज हो गईं।
"अभी तो..."
मेकअप टेबल पर बैठकर उसने पहली बार काजल लगाया। आँखों के कोनों में जलन हुई, पर जब उसने देखा कि कैसे काली रेखा ने उसकी आँखों को बदल दिया है, तो वह चकित रह गया। लिपस्टिक लगाते समय उसके हाथ काँप रहे थे। होंठों पर चिपचिपाहट का अहसास उसे विचित्र लगा।
एक-एक कर जेवरात पहनते हुए:
चूड़ियाँ - जब पहली चूड़ी उसकी कलाई पर चढ़ी, तो उसकी आँखें फैल गईं। खनकती हुई काँच की आवाज उसे अजीब सी खुशी दे रही थी।झुमके - कानों में पहनते समय एक झटके सा दर्द, फिर हल्की सी ठंडक।पायल - पैरों की उंगलियों से टकराती ठंडी धातु ने उसे सिहरा दिया। जब वह पूरी तरह तैयार होकर शीशे के सामने खड़ा हुआ, तो सांसें रुक सी गईं।
"ये...ये मैं हूँ?"
उसका हाथ अनायास ही चनिया की सिलवटों को समेटने लगा। कमर पर कपड़े का दबाव, चोली का कसाव, दुपट्टे का रेशमी स्पर्श - हर नई संवेदना उसे एक अजीब सी दुनिया में ले जा रही थी।
तभी करण ने पीछे से उसके कंधे छुए।
"तू..." उसकी आवाज में एक अजीब सी खुशी थी, "बिल्कुल रोशनी जैसी लग रही है।"
आशीष ने शीशे में देखा - उसके सामने एक सुंदर स्त्री खड़ी थी। और वह स्त्री...वह स्वयं था।
"मैं ऐसा भी दिख सकता हूँ?"
उसके मन में उठते इस सवाल का जवाब देने से पहले ही करण ने उसकी आँखों पर काला दुप्पट्टा बाँध दिया।"अब..." करण की आवाज में एक खतरनाक मिठास थी, "तू सचमुच उसकी तरह महसूस करेगा ..."
आशीष की आँखों पर काला दुपट्टा बांधने के बाद करन ने आशीष के मुँह पर भी दुप्पटा बांध दिया जैसे वो कोई स्कूटी धुप में चलाने जाने वाला हो आशीष कुछ भी बोले बगैर चुपचाप खड़े रहा उसे रौशनी भाभी की ब्रा का अहसास एक अलग ही दुनिया में ले जा रहा था पैरो में और पेनिस से टच होती पेंटी का अहसास उसे पागल कर रहा था और आँखे बंद होने के बाद तो जैसे वो रौशनी भाभी की बॉडी को फील कर पा रहा था उसे कोई होश नहीं था के करन क्या बोल रहा है या कर रहा है
पर कुछ देर बाद जब आशीष के हाथो में पड़ी चूड़ी टूट कर निचे गिरी तब उसे अहसास हुआ के करन ने न सिर्फ उसकी आँखे बांध दी है बल्कि करन के दोनों हाथो को भी आशीष की पीठ के पीछे दुप्पट्टे से कस कर बांध दिया है जिसकी बजह से ही चूड़ी टूटी थी फिर आशीष के दोनों पैरो को भी दुप्पट्टे से बांध दिया था
करण ने आशीष की ओर देखा, और उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई...
"बस अब एक आखिरी काम... और सब बदल जाएगा।"
"अब तुम मेरी गुड़िया हो…"
उसकी आवाज़ में अब वो मासूमियत नहीं थी — वो पागलपन था।
Aashish ने महसूस किया कि कुछ तो गड़बड़ है।
"Karan… ये मज़ाक ज्यादा नहीं हो रहा?"
लेकिन Karan अब सुन नहीं रहा था।
अचानक उसने महसूस किया - कोई उसके टखनों को छू रहा है। चनिया के नीचे से उसकी नंगी त्वचा पर एक ठंडी उँगली का स्पर्श।
"नहीं...!"
उसका दिल धड़क रहा था जैसे छाती फाड़कर बाहर आ जाएगा। पैरों के बंधन ने उसे पूरी तरह निश्चल बना दिया।
आशीष अब करन की इस हरकत से डर गया था और खुद को खोलने की नाकामयाब कोशिश में लगा हुआ था पर कोई फायदा नहीं हो रहा था करन ने आशीष के हाथ दुप्पट्टे से बहुत कस कर बांधे जो आशीष की लाख कोशिश के बाद भी खोल पाना मुमकिन नहीं था जिसका अहसास आशीष को हो चूका था उसके दोनों पैर एक दूसरे के साथ एक दुप्पट्टे से कस कर बंधे हुए थे और आँखे भी एक काले दुप्पट्टे में कैद थी आशीष के लिए एक कदम भी चल पाना मुमकिन नहीं था
करन हस्ते हुए बोला आशीष तुम डर क्यों रहे हो चिंता मत करो मैं अभी तुम्हारे साथ कुछ नहीं करूँगा मैं तुम्हारी आँखे भी खोल दूंगा बस तुम्हे मेरा एक आखिरी काम करना होगा
और आशीष कुछ समझ पाता करन ने आशीष की आँखे खोल दी आशीष ने कमरे के साइड में पड़ी एक बड़ी अलमारी में लगे कांच में खुद को देखा उसके आँखों का काजल थोड़ा सा फ़ैल गया था लिपस्टिक भी थोड़ी फ़ैल गयी थी पर ओवरआल आशीष बहुत ही खूबसूरत लड़की लग रहा था जैसे कोई लड़की अपनी पहेली सुहागरात मना कर सो कर उठी हो जिसका मेकअप थोड़ा सा फ़ैल गया है पर चेहरे पर पिछली रात की मस्ती और मजा बहुत साफ़ दिखाई दे रहा हो
करन बोले कांच में क्या देख रहा है ये तो बस ट्रेलर है असली पिक्चर तो देखनी बाकी है और फिर एक टेबलेट को अपने हाथ में लेकर आशीष की और बढ़ने लगा
आशीष ने पूछा भी क्या है ये और तू क्या करना चाहता है इससे क्या होगा किस चीज की दबा है ये
करन बोला ये मेरे दर्द की दबा है इस दबा को खाने के बाद तू पूरी तरह से रौशनी बन जायेगा सिर्फ कपडे ही नहीं तू भी रौशनी बन जायेगा
आशीष डर गया और बोला ये कैसे हो सकता है मैं कुछ समझा नहीं
करन : सब समझ जायेगा ये एक मैजिकल दबा है जो मैंने कई सालो से शैतान की पूजा करके तांत्रिक हवन करके शैतान से पाया है इसे खाने के बाद तूने जिस किसी के कपडे पहने होंगे उसकी बॉडी में चला जायेगा
आशीष हस्ते हुए : अबे तू पागल हो गया है क्या मैं ऐसी बेकार की बाते नहीं मानता हूँ और तू भी मत मान तू बीबी के भागने के सदमे में है तू डॉक्टर को देखा सब ठीक हो जायेगा तू मेरे हाथ खोल दे मैं खुद तुझे पागलो के डॉक्टर के पास ले जाऊंगा वो तेरा इलाज करके तुझ पूरी तरह ठीक कर देंगे
करन : इलाज तो होगा जरूर होगा पर मेरा नहीं तेरा जब तू रौशनी बन जायेगा तब मैं तुझे वो इलाज दूंगा जिसका इलाज ९ महीने बाद डॉक्टर करेगी तुझे खुशखबरी दे कर के तू मेरे बच्चे की माँ बन गया है
ये बोल कर कारन जोर जोर से हसने लगा
और आशीष जो की रौशनी के कपड़ो में था वो डर ने लगा था पर अपने डर को छुपाने के लिए बोला अगर तुझ लगता है के ऐसा पॉसिबल है तो तूने खुद क्यों नहीं खायी ये दबा अब तक क्या तूने पहले कभी इसे try किया है किसी पर
करन हस्ते हुए बोलै क्या लगता है तुझे रौशनी कहा गायब हुयी है और कैसे गायब हुयी है
आशीष के आँखों में डर अब साफ़ दिखाई दे रहा था और करन धीमे धीमे आशीष की और बढ़ा
आशीष ने अपने मुँह को कस कर बंद कर लिया क्यूंकि यही एक रास्ता था जो उसे इस पागल की गोली से बचा सकता था
करन हस्ते हुए आशीष के मुँह के पास गया और अपनी जेब से एक चिमटी निकाल कर आशीष की नाक पर लगा दी जिससे नाक से सास लेना बंद हो गया आशीष अपने मुँह को इधर उधर करके चिमटी निकलने कोशिश करने लगा पर सब बेकार था थोड़ी देर में सांस न ले पाने की बजह से डैम घुटना शुरू हो गया
करन आराम से आशीष को तड़पते हुए देख रहा था और हस रहा था
जब आशीष के लिए और बिना सांस के जी पाना मुश्किल होने लगा उसने अपना मुँह खोल दिया और लम्बी लम्बी साँसे लेने लगा और जब तक के वो कुछ समझ पता करन ने एक झटके से आशीष के मुँह में एक गोली डाल दी और पानी की बोतल मुँह से लगा दी नाक पहले ही बंद थी और अब मुँह में लगातार पानी आ रहा था बोतल से कोई ऑप्शन नहीं था गोली को निगलने के अलावा
और फिर एक झटके में पानी के साथ गोली आशीष की बॉडी में चली गयी
उसके पेट में अचानक आग सी लग गई। शरीर का हर अंग एक अजीब सी गर्मी से भर गया।
"हाहाहा!" करण की हँसी कमरे में गूँजी, "देखो! देखो ये कैसे काम कर रहा है!"
आशीष ने महसूस किया - जैसे कोई उसकी आत्मा को खींचकर बाहर निकाल रहा हो। उसकी आँखों के सामने रंगीन चक्कर घूमने लगे।
"मैं... मर रहा हूँ...?"
आखिरी सचेत पल में उसने महसूस किया - कोई उसके बाल खींच रहा है। एक परिचित आवाज़ कानों में गूँजी:
"उठो... मेरी प्यारी पत्नी..."
और फिर अँधेरा।
एक तीखा दर्द।
जैसे कोई बिजली का झटका पूरे शरीर से गुजर गया हो। आशीष ने आँखें खोलीं - और तुरंत बंद कर लीं। चमकदार रोशनी उसकी आँखों में चुभ रही थी।
"कहाँ हूँ मैं...?"
वो चीख… वो जलन… और फिर अचानक…
हर चीज़ काली पड़ गई।
कोई आवाज़ नहीं, कोई रोशनी नहीं… बस एक गहरा अंधेरा… जैसे किसी ने उसके मन को, उसके वजूद को, किसी सूनी जगह पर फेंक दिया हो।
"मैं मर गया क्या?"
Aashish ने खुद से पूछा।
पर तभी, एक झटका — जैसे कोई करंट पूरे शरीर में दौड़ गया हो।
"झटका?"
पर ये शरीर... उसका नहीं लग रहा था। इतना हल्का, इतना कोमल… इतनी अलग बनावट।
धीरे-धीरे आंखें खुलीं।
पर जो उसने देखा… उसने उसकी रूह हिला दी।
उसके सामने आईना था — और आईने में जो चेहरा था… वो Aashish का नहीं था।
वो चेहरा Roshni का था। उसकी भाभी Roshni!
Aashish का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वो घबराकर उठा — लेकिन उठते ही महसूस हुआ कि बाल उसकी गर्दन से नीचे झूल रहे हैं। शरीर के हर अंग पर अजीब सी झुनझुनी हो रही थी, जैसे नस-नस में कुछ नया बह रहा हो।
"ये मैं... नहीं हूं..."
वो धीरे-धीरे नीचे देखता है — उसके सीने पर Roshni की वही नर्म गोलाइयाँ। उस पर वही गुलाबी साटन की ब्रा। कमर के नीचे उसी की मैचिंग पैंटी… और वो चटक लाल रंग की चूड़ियाँ जो उसकी भाभी अक्सर पहनती थीं… अब उसके हाथों में खनक रही थीं।
"नहीं… ये सपना है…"
अब आशीष की छाती पर सिर्फ ब्लाउज या ब्रा नहीं थी उसमे थे रौशनी के भरे भरे गोल गोल बूब्स जो आशीष के लिए बहुत भारी थी आशीष के अगर हाथ बंधे न होते तो वो अपने नए नए बूब्स को छू कर देखना चाहता था के क्या ये असली है तभी उसे ऐसा लगा जैसे उसे करंट लगा हो और उसे याद आया के अगर उसकी छाती पर रौशनी के बूब्स आ गए है तो उसकी पेंटी से उसका पेनिस भी गायब हो गया है
उसने रौशनी के बड़े बड़े बूब्स के निचे अपनी पेंटी में देखने की कोशिश की पर कुछ दिखाई नहीं दिया उसने रौशनी के बूबस के बारे में गलत बिचार को अपने दिमाग तक पहुंचा का अपने पेनिस को खड़ा करने की और चनिया में तम्बू बनाने की कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ
आशीष डर गया तो क्या रौशनी के बूब्स जैसे मेरी छाती पर लटक रहे है वैसे ही मेरी जांघो के बिच अब मेरा पेनिस नहीं है और उसकी जगह पर रौशनी की सॉफ्ट सॉफ्ट पिंक पिंकी है
पर आशीष को जो सबसे ज्यादा परेशान कर रहे थे वो थे रौशनी के बाल , वैसे तो आशीष के भी बाल लम्बे थे उसके कंधो तक जो वो हर समय पोनी टेल में रबर से बांध कर रखता था पर रौशनी के बहुत बाल लम्बे थे और स्टेप कट में लयेरेड कट में काटे हुए थे जिसमे आगे की लटें छोटी राखी थी जो अब पोनी से निकल कर उसकी आँखों और चेहरे पर घूम रही थी जो आशीष को काफी इर्रिटेट कर रही थी ये कोई सपना नहीं था आशीष पूरी तरह से रौशनी बन चूका था
अभी तो आशीष खुद रौशनी बना था इस सदमे से ठीक बहार भी नहीं निकला था तभी उसने देखा कमरे में वो अकेला नहीं था उसके सामने एक चमकदार सी चीज भी है जिस की कोई परछाई नहीं है और वो कुछ जानी मानी सी है वो एक औरत जैसी है जैसे वो एक आत्मा हो और वो आत्मा कमरे में इधर उधर भटक रही थी आशीष बेचारा बंधा हुआ डर के मारे कांप रहा था वो आत्मा बार बार आशीष के अंदर घुष्ने की कोशिश कर रही थी पर कोई फायदा नहीं हो रहा था
तभी करन भी कमरे में आया आशीष को देख कर बोला कैसा लग रहा है रौशनी बन कर तू हमेशा रौशनी के बूब्स ताकता रहता था न अब देख तेरे खुद के पास है वही बड़े बड़े गोल गोल बूब्स , अब तुझे रौशनी को देखने की जरीरत नहीं पड़ेगी और वो जोर जोर से हसने लगा
तभी रौशनी की आत्मा कारन के शरीर में घुसने की कोशिश करती है पर उसमे भी एंटर नहीं कर पा रही थी तो करन जोर जोर से हस्ता है और कहता है मेरी जान जरा तो शब्र करो मैं दूंगा तुम्हारे लिए क़ुरबानी बस एक मिनट इंतजार करो
फिर अपने मुँह में वही गोली रखता है और अपनी जेब से एक हैंडकफ निकालता है और खुद के दोनों हाथो को कमरे के कोने में बनी लोहे की विंडो से लॉक कर देता है और चाभी को खुद से दूर फेक देता है और फिर मुँह में रखी हुयी वो गोली निगल जाता है
अचानक उसकी आँखें उलट गईं। शरीर झटका खाकर पीछे हुआ… और फिर…
एक चमकदार नीली बिजली पूरे कमरे में फैल गई।
Karan की देह ज़मीन पर गिर पड़ी।
लेकिन उसी पल, Aashish ने महसूस किया कि जैसे कोई अदृश्य लहर उसके भीतर से गुज़र गई हो… और अगले ही पल…
Karan अब Aashish के शरीर में खड़ा था।
वो सीधा हुआ… अपने नए शरीर के हाथों को देखा… और एक गहरी साँस ली, जैसे उसने सालों का सपना पूरा कर लिया हो।
"आख़िरकार…" उसने धीमे से कहा, "अब ये शरीर… मेरा है।"
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी।
Karan — जो अब Aashish बन चुका था — ने अपनी जेब से एक काला ताबीज़ निकाला और अजीब-सी भाषा में मंत्र पढ़ना शुरू किया।
कमरे का तापमान अचानक गिर गया। हवा में धुएँ की लकीरें घूमने लगीं।
Roshni की आत्मा, जो अब तक कमरे में मंडरा रही थी, एक तेज़ खिंचाव महसूस करने लगी।
"नहीं… ये क्या कर रहा है तू?" Roshni चीखी।
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी —
उसकी आत्मा, बिजली के झटके जैसी एक रेखा बनकर, सीधा Karan के पुराने शरीर में जा घुसी… वो शरीर जो अब हैंडकफ़ में जकड़ा हुआ था।
कमरे में अजीब-सी ठंडक थी।
जैसे दीवारों से कोई अदृश्य साया रेंग रहा हो।
तेल का दीया कोने में झिलमिला रहा था, और हर झिलमिलाहट दीवारों पर डरावने साये बना रही थी।
Roshni का चेहरा (जिसमें अब Aashish की आत्मा थी) लाल हो चुका था — गुस्से से, डर से, और उस असहायता से जो उसे तोड़ रही थी।
"करण! तूने ये क्या कर डाला? रौशनी भाभी ने तुझे धोखा दिया है ये तूने झूठ क्यों कहा? और… ये पागलपन क्यों?"
उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर उसमें एक बेसुरा गुस्सा भी था।
Karan (Aashish के शरीर में) खिड़की के पास खड़ा था, पीठ मोड़े।
हवा उसके बालों को हिला रही थी, लेकिन वो बिना हिले, बस दीवार पर अपनी ही परछाई को देख रहा था — जैसे अपनी जीत का आनंद ले रहा हो।
धीरे-धीरे उसने मुड़कर देखा।
अब उसकी आँखों में दोस्ती का कोई रंग नहीं था — वहाँ सिर्फ़ एक शिकारी की ठंडी, भयानक चमक थी।
उसने बेहद धीमी, लेकिन खतरनाक आवाज़ में कहा:
"Anita… तुम्हारी बीबी Anita… जिसे मैंने पहली बार देखा, उसी दिन मेरी रूह में जगह बना ली।"
Aashish (Roshni) की साँसें तेज़ हो गईं।
"तू… पागल है?"
Karan ने होंठों पर हल्की, डरावनी हँसी फैलाई —
"पागल? शायद… लेकिन मैंने उसे तब से चाहा है, जब तुम दोनों की शादी भी नहीं हुई थी। उसकी हँसी… उसकी चाल… उसके कानों के पीछे गिरते बाल… सब मुझे पागल कर देते थे।"
फिर वो अचानक आगे बढ़ा, उसकी परछाई Roshni (Aashish) के चेहरे पर पड़ने लगी।
"लेकिन तेरे कारण… मैं उसे छू भी नहीं सका। और ऊपर से… तेरे पिछले जन्म के कर्म।"
Roshni (Aashish) ने डर और उलझन से उसकी ओर देखा।
Karan की आवाज़ गहरी और ठंडी हो गई:
"हाँ… तेरी आत्मा इतनी पवित्र है कि मेरे हर काले जादू, हर मंत्र, हर टोटके को तोड़ देती थी। तू मेरे लिए एक बंद दरवाज़ा था, Aashish… जिसे अब मैंने तोड़ दिया है।"
उसने अपना हाथ उठाकर अपनी उंगलियों को देखा, मानो उनमें किसी नई ताकत की धड़कन महसूस कर रहा हो।
"अब ये शरीर मेरा है। तेरी बीवी, तेरी ज़िंदगी… सब मेरा।"
Roshni (Karan के पुराने शरीर में), जो खिड़की से हैंडकफ़ में जकड़ी हुई थी, ने चीखने की कोशिश की —
"तू Anita के साथ कुछ करेगा तो—"
Karan ने बीच में ही उसकी बात काट दी, धीरे से फुसफुसाते हुए —
"वो अब मेरे और सिर्फ़ मेरे पास आएगी। और तू…रौशनी मेरे शरीर में ऐसे ही बंधी रहेगी इसी खिड़की से और तू चाहे कितनी भी कोशिश कर ले तू मेरा कुछ नहीं बिगड़ पायेगी तू बस जिन्दा रहेगी मेरी बॉडी में तुझे सब कुछ मेरे शरीर में क़ैद होकर सब देखना होगा , लेकिन कुछ कर नहीं पायेगी ।"
उसकी मुस्कान अब एकदम खून जमी हुई थी।
कमरे में ठंडी हवा का झोंका आया, दीया बुझ गया… और अंधेरे में बस Karan की धीमी, सिहरन पैदा करने वाली हँसी गूँजने लगी।
कमरा अंधेरे और धुंधली पीली रोशनी में डूबा था।
बाहर हल्की-हल्की बारिश की बूँदें खिड़की पर पड़ रही थीं… लेकिन अंदर का माहौल ऐसा था जैसे समय थम गया हो।
Roshni — जो अब Karan की देह में फँसी थी — ज़मीन पर पड़ी थी।
उसके हाथ स्टील की चेन से पीछे की ओर कसकर खिड़की के साथ बँधे थे
हर हलचल के साथ धातु की ठंडी, बेरहम छुअन उसकी हड्डियों में चुभ रही थी।
कमरे के दूसरी तरफ़, Aashish — जो अब Roshni के शरीर में था — आँखों में अविश्वास लिए खड़ा था।
उसके सामने खड़ा था उसका अपना शरीर, लेकिन चेहरे पर वो नज़रे, जो उसने कभी खुद पर नहीं देखी थीं — शिकारी की, पागलपन की, और पूरी जीत की।
Karan, जो अब Aashish के शरीर में था, धीरे-धीरे आईने के सामने गया।
उसने अपनी ठोड़ी को हल्का ऊपर किया, होंठों पर उंगलियाँ फेरीं, और एक धीमी हँसी निकाली —
"कमाल है… अब ये चेहरा, ये आवाज़… सब मेरा है।"
पर आशीष के लम्बे बाल करन को बार बार परेशान कर रहे थे करन को इतने लम्बे बालो को सँभालने का कोई आईडिया नहीं था उसने गुस्से से झुंझलाकर आसपास देखा और पास ही पड़ी रबर बेंड से अपने बालो को पोनी टेल में बाँधा लेकिन उसने ये ध्यान नहीं दिया के ये रौशनी का हेयर बेंड है जो की लड़कियों का है पिंक कलर जबकि आशीष का हेयर बेंड काळा कलर का था
Aashish (Roshni) गुस्से से काँपते हुए बोला,
"Karan, तू Anita के पास नहीं जाएगा… सुन रहा है न?!"
Karan ने उसकी तरफ़ देखा भी नहीं।बस इतना ही बोला —
"रोक सके तो रोक ले। दरवाज़ा बंद है… और चाबी मेरी जेब में।"
Roshni (Karan) बेतहाशा हाथ-पाँव मारने लगी, लेकिन हर कोशिश नाकामयाब रही क्यों के स्टील की चैन में उसके हाथ खिड़की से बंधे थे ।
चेन की ठक-ठक और उसकी हाँफती हुई साँसे — पूरे कमरे में बस यही आवाज़ गूँज रही थी।
Aashish का दिल अंदर ही अंदर चीख रहा था:
"नहीं… Anita को इस जानवर के हाथों नहीं छोड़ सकता… लेकिन कैसे? ये शरीर मेरा नहीं… ये आवाज़ मेरी नहीं…" हे ऊपर वाले मैं कैसे इस जानवर को रोकू कैसे मैं अपनी अनीता को इससे बचाऊ
Karan ने जूते पहने, एक आखिरी बार आईने में खुद को निहारा, और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा।
कमरे से बहार निकलने से पहले एक बार फिर से आशीष जो की रौशनी बन चूका है की और बढ़ा उसके खूबसूरत होठो पर किश किया और बोला मेरी जान तुम अब रौशनी हो खूबसूरत हुशन की परी
फिर अपने दोनों हाथो को बोल पकड़ने के अंदाज में बना कर आशीष के शरीर में बने रौशनी के बड़े बड़े बूब्स को अपने हाथो में पकड़ कर हल्का सा मसाज करने लगा धीरे धीरे दबाने लगा
चाहे आत्मा आशीष की थी पर शरीर तो एक लड़की का ही था कब तक खुद को कण्ट्रोल कर पाता उसकी आँखे बंद हो गयी और उसकी जांधो के बिच कुछ अजीब सा महसूस होने लगा ये एक करंट जो आशीष के पेनिस से नहीं एक लड़की की भूखी और गीली पिंकी से आ रहा था
जिसे कण्ट्रोल कैसे करना है आशीष को जरा भी अहसास नहीं था आशीष का शरीर ढीला पड़ गया मुँह से अजीब सी आवाजे आने लगी जिसकी आत्मा कहे रही थी ये सब गलत है रुक जाओ मैं एक लड़का हूँ और शरीर कहे रहा था मत रुको बस मेरे बूब्स को मसलते रहो मेरे शरीर से ये सारे कपडे उतार कर फेक दो और मुझे अपनी रानी बना लो बिस्तर पर मेरी जवानी लूट लो मुझे ऐसे तड़पा कर अधूरा मत छोडो
तभी करन जो की आशीष बन चूका था ने अपने हाथ आशीष (रौशनी की बॉडी ) के बूब्स हटाकर उसकी कमर पर घूमने लगा आशीष पर नशा सा छाने लगा धीमे धीमे हाथ कमर से फिसलकर जब जांघो के बिच पहुंचा आशीष की आत्मा तड़प उठी उसने अपने शरीर और मन पर काबू पाया और जोर से आवाज आयी रुक जाओ प्लीज रुक जाओ मैं तुम्हारा दोस्त हूँ एक लड़का हूँ मेरे साथ ये सब मत करो और वो फुट फुट कर रोने लगा लेकिन ये सब बाटे जब रौशनी के सुरीले गले से निकली तो रोना भी जैसे मधुर संगीत सा लग रहा था कारन (आशीष) की बॉडी ) को
करन कहा रुकने वाला था उसने अपना हाथ चनिया के निचे से डालना शुरू किया और धीमे धीमे रौशनी के कोमल पैरो और जांधो से होते हुए जब वो जांघो के बिच पहुंचा उसने एक ऊँगली रौशनी की पिंकी के अंदर धीमे से प्रेस की
आशीष (जो की रौशनी के शरीर से ) अपने आत्मा का कण्ट्रोल खो बैठा और शरीर की भूख और पिंकी में जैसे आग लग गयी हो के साथ चिल्लाया मेरी जब बस अब मत रुको मेरी आग को बुझा दो मेरे कमर में बंधी इस चनिया को निकल कर फेक दो और मेरी लाल रेशमी मुलायम पेंटी के साथ मेरी पिंकी को भी चिर फाड़ दो
जब करन (आशीष की बॉडी से) ने ये देखा के आशीष (रौशनी की बॉडी ) अब पूरी तरह से सेक्स के लिए पागल हो गया है तब उसने अपने हाथ पीछे खींच लिए और आशीष को बोला अनीता को तू बाद में बचाना पहले खुद को तो बचा ले मुझसे और जोर जोर से हसने लगा
फिर धीमे से बोलै मेरी जान पहले मैं अनीता की लूंगा फिर तेरी बारी आएगी बस तू थोड़ा इंतजार कर और आशीष को ऐसे ही तड़पता हुआ छोड़कर कमरे से बहार निकल गया
ताले में चाबी घुमाने की क्लिक की आवाज़ आई, फिर लकड़ी का दरवाज़ा धीरे-धीरे बंद हुआ।
अंदर रह गया — एक अँधेरा कमरा, बारिश की बूँदों की टप-टप… और दो आत्माओं की घुटनभरी कैद के साथ ही आशीष को अंदर तक झकझोर डालने वाला डर क्यों के अभी कुछ देर पहले जो भी हुआ था उसे सोच कर अब आशीष को बहुत डर लग रहा था तभी करन यानि की रौशनी बोली आशीष तुम ठीक हो न
तभी आशीष को याद आया के कमरे में आशीष के अलावा रौशनी भी है करन की बॉडी में
रौशनी हस्ते हुए बोली तुम बहुत लकी हो जो करन ने तुम्हे छोड़ दिया क्यों के करन सेक्स नहीं करता शिकार करता है पहले अपने शिकार को उकसाता है तड़पता है थकाता है और फिर जब शिकार खुद मौत की भीख मांगने लगता है तब उस पर टूट पड़ता है तुमने शादी शुदा हो तो सेक्स तो जरूर किया होगा पर एक लड़की के लिए सेक्स क्या होता है वो शायद तुम्हे अंदाजा भी नहीं है तो दुआ करो के करन की नजर तुम पर न पड़े और वो रात जल्दी से न आये क्यों के उसके बाद न तुम खड़े हो पाओगे और न बैठ पाओगे
हर कदम जो तुम चलोगे तुम्हे करन की याद आएगी याद मैं तुम्हे डरा नहीं रही पर बस बता रही हूँ के करन के साथ सेक्स करना एक अलग ही अहसास है पर पहेली बार सेक्स करना जैसे एक सजा है जो हर लड़की हर रात पाना चाहती है उम्मीद करती हूँ अनीता का दिन अच्छा गुजरे और ये जानवर तुम्हारे पास न आये क्यों के तुम्हे दर्द दोगुना होगा एक तो लड़की की तरह पहेली बार किसी का पेनिस तुम्हारे अंदर जायेगा जो तुम्हारे शरीर को दर्द देगा और जब करन तुम्हारे साथ जानवरो की तरह सेक्स कर रहा होगा न सिर्फ आगे बल्कि पीछे से और मुँह से तो तुम्हारी लड़को वाली आत्मा को जो दर्द होगा वो शायद शरीर के दर्द से कही ज्यादा होगा
आशीष ये सब सुन कर लगभग जमीन पर गिर पड़ा और उसकी फूटी किस्मत को कोसते हुए दहाड़े मार मार कर रोने लगा उसे याद आने लगा कैसे अनीता ने आज उसे रोका था कितनी रिक्वेस्ट की थी के आज मत जाओ उसे बहुत अजीब बुरे संकेत हो रहे है जैसे ये सारी कायनात चाहती थी के मैं रुक जाऊं काश मैंने अनीता की बात मान ली होती
जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
पासवर्ड डालिए और जानिए आगे क्या हुआ 🔓
👉 पासवर्ड नहीं पता? Get Password पर क्लिक करो password जानने के लिए।
⭐ ⭐ मेरी कहानी की वेबसाइट पसंद आई हो तो Bookmark करना — भूलना मत!
https://beingfaltu.blogspot.com