ये कहानी संतोष की है, जो अपने दोस्त रितेश के बच्चो के लिए , सोनाक्षी बना गया और फिर , अपने ही दोस्त रितेश की पत्नी बना , बहुत ही इमोशनल क्रॉसड्रेसिंग कहानी है।
जाने जैसे कल ही की बात है जब मेरे दोस्त रितेश का देर रात मेरे पास फोन आया था। बेचारा ठीक ढंग से मुझसे अपनी बात भी न कह पा रहा था। उसकी पत्नी सुलोचना उसे और उसके बच्चों को छोड़कर अपने आशिक के साथ नया जीवन बीताने घर से भाग गई थी। ये बात से उसे इतनी शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था कि वो अपनी मदद के लिए अपने किसी रिश्तेदार से भी न कह सका। ३ साल का छोटा बेटा और ६ साल की छोटी बेटी को छोड़कर न जाने कैसे उसकी पत्नी चली गई थी। लोग तो रितेश को ही दोष देते कि वो अपनी पत्नी को खुश न रख सका।
“रितेश यार, बच्चे अपनी माँ के बगैर खाना भी नहीं खा रहे है।”, उसने रोते हुए मुझसे बस इतना ही कहा था। इसके आगे उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं थी। मैं समझ गया था कि बच्चों को इस समय एक स्त्री की जरूरत थी जो उन्हे माँ का प्यार दे सके। रितेश मेरी क्रॉसड्रेसिंग के बारे में जानता था। शायद इसलिए उसने मुझे फोन किया था। मैंने भी तुरंत ही उस समय रात को एक सिम्पल सी साड़ी पहनकर बच्चों के पास जाना उचित समझा। रास्ते में मैंने उन सभी के खाने के लिए कुछ खरीद लिया था।
घर में सभी उदास थे और भूखे भी। एक नई आंटी को घर में देख बच्चों ने मुझे गले लगा लिया था। उस समय मैंने अपने भविष्य की न सोचकर बस उस समय बच्चों को खाना खिलाने पर ध्यान दिया था। एक – दो दिन बच्चों का ध्यान रखने के बाद भी मुझे लगा कि इन्हे मेरी जरूरत है। तभी तो मैं उनकी आंटी बनकर रुक गया। और करीब एक हफ्ते बाद न जाने कब और कैसे मैं उनकी आंटी से माँ बन गई ये पता भी न चला। शायद “मम्मी” ये शब्द पहले नितीक्षा बेटी ने कहे थे। वो शब्द सुनकर मैं भाव विभोर हो गई थी। शायद इसलिए तो उन्हे छोड़कर वापस अपनी लड़के वाली ज़िंदगी में जाने का तब खयाल ही कहीं पीछे छूट गया था। कभी मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे मम्मी होने का सुख मिलेगा। दोनों बच्चों के प्यार के सहारे मैं भी उन्हे खूब प्यार देती। कितना अच्छा लगता था जब वो मेरे पास आकर मेरी साड़ी का पल्लू खींचकर मुझसे कुछ मांगते और मैं भी उन्हे प्यार से अपनी गोद में बीठा लेती।
बच्चों के साथ रहते रहते मैं दिल और दिमाग से पूरी तरह से माँ बन चुकी थी और मुझे उनकी हर छोटी छोटी बातों का ध्यान रहता था। मैं रितेश एक लड़का हूँ … ये बात तो जैसे एक सपने की तरह हो गई थी। मेरे मन में शायद वात्सल्य की भावना इतनी भर चुकी थी कि मेरा शरीर भी धीरे धीरे बदलने लगा था और मेरे दुबले पतले शरीर पर लगातार ब्रा की बजह से बक्ष उभर उठे थे। बक्ष का मतलब डिटेल बॉक्स में लिखा है पढ़ लेना अपने बक्ष के बीच बच्चों का सर रखकर उन्हे सुलाने में एक अलग ही सुख मिलता था मुझे।इतने समय में सुलोचना ३-४ महीनों में एक बार अपने बच्चों को देखने आ जाती थी। ऐसा न था कि उसे बच्चों की याद आती थी या उसके दिल में उनके लिए तड़प उठती थी। बस फॉर्मैलिटी के लिए आती थी और जब आती तब मुझे ताना देती कि मैं एक औरत नहीं हूँ। पर मैं उससे कुछ न कहती क्योंकि मेरे बच्चे जब उसकी आँखों के सामने ही मुझे मम्मी मम्मी कहकर मुझसे लिपट पड़ते तो उसकी आँखें जलन से भर उठती।
शायद लगभग एक साल हो गया था जब सुलोचना का आशिक भी उसे छोड़ चुका था। शायद इसलिए वो धीरे धीरे फिर से रितेश और बच्चों की ज़िंदगी में वापस आना चाहती थी पर फिर भी उसके व्यवहार में कोई बदलाव न आया था। वो हर दो महीने में घर में कुछ घंटों के लिए आती थी पर उसे कोई पसंद न करता था। चाहे वो मुझे जो भी कहे पर अब मैं शरीर से भी लगभग बच्चों की माँ बन चुकी थी। मेरे बक्ष बढ़ गए थे और दो सालों में मेरे बाल भी इतने बढ़ गए थे कि मुझे अब विग की जरूरत न थी। अब तो साड़ी ब्लॉउज़ को छोड़कर कुछ और पहनना मुझे असहज लगता था। कभी कभी नितीक्षा की जिद पर मैं सलवार सूट पहन लेती थी फिर भी साड़ी मेरा पसंदीदा थी।
ऐसे ही अपना घर छोड़ने के लगभग ३ साल बाद आज सुलोचना हमारे घर आई थी। और आकर उसने मुझसे कहा कि वो मुझसे बच्चों और रितेश को छीन कर रहेगी। उसने और न जाने क्या क्या बातें कहीं जैसे उसे पहले ही शक था कि रितेश और मेरे बीच पहले से ही कुछ चक्कर था। उसकी बात सुनकर मैं भड़क गई थी क्योंकि रितेश और मेरे बीच कभी कोई शारीरिक संबंध न था। उसके साथ रहते रहते दुनिया की नजर में मैं अब उसकी पत्नी बन चुकी थी। हम दोनों एक पति-पत्नी की तरह ही घर की शॉपिंग और अन्य काम करते थे। बस कभी कभी ऑफिस जाने के पहले वो मुझे गले लगाते थे या फिर कभी कभी सोते समय पर फिर भी हम दोनों के बीच वैसा शारीरिक संबंध नहीं था जैसा सुलोचना मुझ पर आरोप लगा रही थी।
इसलिए मैंने उसे गुस्से में कह दिया कि वो चाहे कितनी भी कोशिश कर ले पर मैं अपने बच्चों और अपने पति को छोड़ूँगी नहीं। हाँ, ये बच्चे मेरे ही तो थे और इन बच्चों की माँ होने के नाते उनके पिता की पत्नी भी थी मैं। शायद मुझे गुस्से में सुनकर मेरे बच्चे भी अपने कमरे से बाहर आ गए और अपनी मम्मी का सहारा बनने के लिए उसकी कमर से लिपट कर खड़े हो गए। मेरे इस रूप को देखकर सुलोचना तुरंत ही उलटे पैर घर से बाहर निकल गई। आज शायद उसे समझ आ गया था कि मैं अपने घर को टूटने न दूँगी। उसने तो बच्चों को सिर्फ जन्म दिया था पर मैं उनकी असली माँ हूँ।
रात में जब रितेश घर आए तो खाना खाने के बाद हम दोनों अपने कमरे में सोने आ गए। “लगता है आज सुलोचना घर आई थी।”, उन्होंने मुझसे कमरे में मेरा हाथ पकड़ कर कहा।
“हाँ, मगर आपको कैसे पता चला?”, मैंने सर झुकाकर पूछा।
“क्योंकि आज तुम्हारा खुश चेहरा उदास दिख रहा है। वो जब भी आती है तब ऐसा ही होता है।”, उन्होंने मेरे चेहरे को उठाकर कहा।
मैं कुछ देर चुप रही और फिर उनसे कहा, “सुनिए …”
“हाँ बोलो सोनाक्षी ”
“मैं आपकी पत्नी हूँ न?”, मैंने पूछा तो वो मुस्कुराकर बोले, “हाँ, सोनाक्षी तुम मेरी पत्नी से भी बढ़कर हो।”
उनकी बात सुन मैं भावुक हो उनसे गले लग गई और उनसे बोली, “आज मैं आपकी पूर्ण रूप से पत्नी बनकर अपना तन मन आपको सौंपना चाहती हूँ।”
शायद वो मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। शायद उन्हे इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था और उन्होंने अपने हाथ से मेरी पीठ पर मेरे ब्लॉउज़ पर सहलाना शुरू कर दिया। और फिर मेरे चेहरे को प्यार से उठाकर उन्होंने मेरे होंठों को चूम लिया।
शायद सुलोचना की उस बात ने मुझे एक पत्नी के रूप में अपने अधिकार का ध्यान दिला दिया था और आज मैं इनके साथ अपना सर्वस्व उन्हे सौंपने जा रही थी। मन की सारी शंकाएँ दूर हो गई थी। हाँ, मैं एक माँ हूँ … मैं एक पत्नी हूँ… मैं मिसेज सोनाक्षी रितेश शर्मा हूँ।