एक बेटी का माँ को पत्र

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 "माँ आज मैं बहुत खुश हूँ , खुशी इस बात की भी है कि आप अब माँ से एक सास बन गयी हैं। यूँ तो मेरी शादी के बाद ही आप सास बन गयी थी लेकिन तब आपके पास बहू नही थी और फिर सास बहू के रिश्ते की अलग बात है। मैं जानती हूँ कि आप एक अच्छी माँ होने के साथ - साथ एक अच्छी सास भी बनेंगी । पर फिर भी कुछ बातें है जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ , जो मैंने खुद देखी , सही और महसूस की है । बहुत कोशिश की कि आपसे खुद कहूँ , पर हिम्मत नही जुटा पायी तो इस चिठ्ठी में लिख दिया ।"

मैं जानती हूँ कि मैं आपकी एकलौती बेटी हूँ , जिसके कारण आप मुझसे  बहुत प्यार करती है। आपकी हर चीज मेरी पसन्द से ही होती है । चाहे वो घर के पर्दे ,चादर , पेंट हो या आपकी साड़ियां, ज्वैलरी कुछ भी , आज तक आपने मेरे बिना कुछ भी नही लिया । शादी के बाद भी हम हमेशा साथ - साथ ही बाजार गए । 

लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि आप ये मौका भाभी को दें , उनकी पसन्द न पसन्द का मान एवं सम्मान रखे । आप चाहे तो मैं उनके साथ हर समय मौजूद रहूँगी । पर उनके साथ या उनके पीछे, उनसे पहले या उनके विरोध में कभी नही । जब तक उनकी कोई बहुत बड़ी गलती न हो । क्योंकि अब यह घर उनका है , इस घर पर उनका हक है।  मैं जानती हूँ आपको ये सब जानकर तकलीफ होगी और शायद आश्चर्य भी लेकिन यही सत्य है ।

माँ , मैं पिछले 5 सालों से ये सब देखती आ रही हूँ , मेरे अपने ही ससुराल में मेरी बातों , मेरी भावनाओं , या मेरी पसन्द का कोई महत्व नही है, कोई कद्र नहीं है । वंहा पर सिर्फ और सिर्फ मेरी दोनो ननदों को इसका हक़ है । मैं वहां तो कुछ नही कर पाती हूँ ,  पर मैंने ये सोच लिया है कि अपनी भाभी के साथ ये सब नही होने दूंगी ।

मैं कभी भी उनके जैसी ननद नही बनूंगी न ही खुद जैसी अपनी भाभी को बनने दूंगी । शादी से पहले यह घर मेरा था लेकिन अब यह घर उनका है , इसलिए इस घर से जुड़े हर छोटे बड़े फैसले लेने का हक़ भी उनका ही होना चाहिए । चाहे वो छोटी बातें हो या बड़ी पर उनकी सहमति सर्वोपरि है । 

माँ मैं भुगत चुकी हूँ या भुगत रही हूं। आप जानती है , माँ मैं जब अपने ही कमरे में कुछ बदलाव करती हूँ , तो दीदी ( मेरी ननद) मुझसे कैसे बात करती है । या घर में मैं कोई भी नई चीज ले आऊं तो उसके लिए मुझे कैसे सुनाया जाता है ।

"हमारे यहां ये सब नही चलता , आपके मायके में होगा" !!! ये शब्द तो हर दिन लगभग मैं 3-4 बार सुनती हूँ , जब मैं उन्हें अपने साथ चलने को बोलती हूँ, तब भी उनके अलग अलग नखरे होते है । साथ न ले जाने के कई बहाने होते हैं उनके पास। इसीलिए अब मैं खुद सब करने लगी हूँ , किसी की परवाह किये बिना ।

आप जानती है , जब भैया मुझसे मिलने आते है न तो घर में सबका मुंह देखने लायक होता है । अगर उसके हाथ में कोई बड़ा सा गिफ्ट या सामान देख ले तो सब खुश हो जाते है और  यदि भैया खाली हाथ आते हैं तो सब मुंह बिचकाते हैं ।

मुझे यकीन है कि भैया ने ये बात आपको नही बताई होगी । इसीलिए आप प्लीज भाभी के मायके से किसी के आने पर तानाकशी न करिएगा । क्योंकि मैं इसका दर्द जानती हूँ , और घर वालों से मिलने की खुशी भी । 

भाभी को कभी भी किसी चीज के लिए ताने बाने न मारना या कभी उन्हें ये मत कहिएगा कि घर से क्या सीख कर आई है ? जो भी नही आता प्यार से सिखाइयेगा , जैसे आपने मुझे सिखाया था । भाभी को अपनी ही बेटी समझना।

बस यही कहना था आपसे कि माँ !! अब मैं पराई होना चाहती हूँ  !!  आपकी नेहा।

चिट्ठी पढ़ते पढ़ते सुजाता  की आंखें भर आयी , गला रुंध गया, मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था । उनकी छोटी सी नेहा आज इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी माँ को ही उसने इतनी सारी सीख दे डाली । और खुद सालों से क्या क्या सहन कर रही है, इसकी भनक भी कभी नही लगने दी ।

त्याग की सूरत है बेटी, ममता की मूरत है बेटी..

सस्कारों की जान है बेटी, हर घर की तो शान है बेटी..

खुशियों का संसार है बेटी, प्रेम का आधार है बेटी..

शीतल सी एक हवा है बेटी, सब रोगों की दवा है बेटी..

ममता का सम्मान है बेटी, मात-पिता का मान है बेटी..

आँगन की तुलसी है बेटी, पूजा की कलसी है बेटी..

सृष्टि है, शक्ति है बेटी, दृष्टि है, भक्ति है बेटी..

श्रद्धा है, विश्वास है बेटी, जीवन की एक आस है बेटी..

बिटिया दिवस की बहुत शुभकामनाएं



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