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रौशनी हँसते हुए बोली, "अब खड़े ही रहोगे या गैस ऑन करोगे?" मैंने झट से गैस चालू की और पतीला रख दिया। वह निर्देश देती गई, मैं मशीन की तरह पालन करता गया।
चाय गर्म होने तक वह किचन में अपने पुराने दिनों के किस्से सुनाती रही—कैसे वह केएस रहती थी, मम्मी से कैसे बहस करती थी, क्या-क्या बातें करती थी। मैं चुपचाप सुनता रहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मासूमियत थी।
चाय तैयार हुई तो हम दोनों कप लेकर कमरे में आ गए। फिर रौशनी ने मेरे कानों से झुमके उतारे, चूड़ियाँ खोली, पायल निकाल दी। एक-एक करके उसने मुझे सिखाया—ब्रा कैसे पहनते हैं, पेटीकोट कैसे बाँधते हैं। फिर एक नरम, ब्राउन ब्लाउज पहनाया, जो मेरी स्किन पर रेशम की तरह सरक रहा था। मैचिंग पेटीकोट और फिर साड़ी—हर स्टेप वह धैर्य से समझाती गई, जैसे कोई टीचर अपने स्टूडेंट को बारीकियाँ सिखा रही हो। मैंने दो-तीन बार गलत किया, पर आखिरकार उसके ड्रेपिंग के दाँव-पेंच समझ आ गए।
फिर उसने मुझे बालों की केयर सिखाई—कैसे क्लिप लगाते हैं, कैसे स्टाइल करते हैं। फेसपैक, फेशियल, बॉडी हेयर रिमूवल, यहाँ तक कि आइब्रो प्लक करने का सही टाइम भी बता दिया। मैं हैरान था—एक लड़की की दिनचर्या इतनी डिटेल्ड होती है?
अचानक उसने मेरे होंठों पर एक लंबा किस किया। उसकी आँखें नम थीं। "आई एम सॉरी, राकेश... ये सब मेरी ही गलती है। मेरी वजह से तुम्हें ये सब झेलना पड़ रहा है," वह भावुक होकर बोली।
मैंने उसे ढाढस बँधाया, "कोई बात नहीं, यार। मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे एक लड़की की ज़िंदगी और उसके माहौल को समझने का मौका मिला। दुआ करो, सब ठीक हो जाएगा।"
हम दोनों की आँखें भर आईं—शायद मैं अपनी नई फीमेल बॉडी की वजह से, और वह अपने फीमेल दिल की वजह से।
रौशनी ने कमरे के चारों ओर नज़र घुमाई, "कितनी अजीब बात है न... आज मैं अपने ही घर में चोर की तरह घुसी हूँ।" वह धीरे-धीरे पूरे घर में घूमी, अपनी चीज़ों को छुआ, मम्मी के फोटो को दिल से लगाया। फिर अपनी अलमारी से एक फोटो निकाली—मम्मी, पापा और खुद—उसे पेपर में लपेटकर पॉलीथिन में रख लिया।
"पता नहीं, अब कभी यहाँ आ पाऊँगी या नहीं..."
और फिर वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
मैंने रौशनी को पानी दिया, धीरे-से उसकी पीठ थपथपाई और बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया। जब उसकी सिसकियाँ कम हुईं, तो मैंने कहा, "यार, तुम तो कम से कम यहाँ अपने पेरेंट्स को देख पा रही हो। मैं तो इन सब उलझनों में फँसकर अपने माँ-बाप से मिल भी नहीं पा रहा। तुम्हें मुझे सांत्वना देनी चाहिए, उल्टे खुद ही रो पड़ी!"
वह धीमे से मुस्कुराई, "हाँ... तुम्हें सांत्वना की ज़रूरत तो है। वैसे भी, तुम जल्द ही शादी करके बहू बनकर ससुराल चले जाओगे।"
मैं ठहाका लगाकर हँस पड़ा, "बेचारे! कहाँ तुम्हें मेरे लिए एक लड़की ढूँढनी थी, और कहाँ मैं खुद ही दुल्हन बनकर ससुराल जाने वाला हूँ!"
हम दोनों हँसने लगे, पर हँसी के पीछे एक अजीब-सी कड़वाहट थी। फिर मैंने गंभीर होकर पूछा, "कम से कम मुझे उसकी फोटो तो दिखा दो। कौन है ये हमारे प्यार का दुश्मन? कम से कम सामने हो तो पहचान तो सकूँ।"
रौशनी ने अलमारी से फोटो एल्बम निकाला और अपनी सगाई की तस्वीरें दिखाईं। लड़के के बारे में हर डिटेल बताई—उसका नाम, कहाँ काम करता है, कैसा है। मैं चुपचाप सुनता रहा, हर शब्द मेरे दिल में चुभ रहा था।
फिर अचानक वह उठी, "अच्छा चलो, मैं चलती हूँ। मम्मी आने वाली होंगी। कहीं आ गईं तो तुम्हारी खैर नहीं!" उसने मुझे एक लंबा किस किया और जल्दी से घर से निकल गई।
मैं वॉशरूम में गया, मुँह धोया, बाल ठीक किए और शीशे के सामने खड़ा होकर जाँचने लगा—क्या-क्या छिपाने की ज़रूरत है? साड़ी को दुरुस्त किया और बिस्तर पर लेटने ही वाला था कि याद आया—दो कप! मम्मी ज़रूर पूछेंगी कि दूसरा कप किसका है। मैंने फटाफट दोनों कप और चाय के बर्तन धो दिए, बिस्तर सँवारा, घर में झाड़ू लगाई और फिर आखिरकार बिस्तर पर गिर पड़ा।
मेरी पूरी बॉडी में एक मीठा-सा दर्द था। जो कुछ भी अभी थोड़ी देर पहले हुआ था, उसके बारे में सोचते ही मेरे शरीर में एक अजीब-सी लहर दौड़ गई। रौशनी का स्पर्श, उसकी हँसी, उसकी आँखों में छलकते आँसू—सब कुछ मेरे दिमाग में ताज़ा था।
और फिर मैंने आँखें बंद कर लीं। कल क्या होगा, कौन जाने? पर आज... आज ये पल सिर्फ मेरा था।
रौशनी मुझे छोड़कर अपने घर गयी और कुछ देर बाद मम्मी भी आ गयी।
मैंने पानी दिया फिर उन्होंने ही चाय बनायी और हम दोनों ने चाय पी।
फिर मम्मी बोली —
“अरे रौशनी, तूने साड़ी क्यों बदल ली? और इतनी अच्छी तो तुम साड़ी पहन लेती हो।”
मैं कुछ बोला नहीं। हम दोनों ने चाय पी।
फिर रौशनी की मम्मी बोली के उनका सर दुख रहा है।
वो बोली —
“ऐसा लग रहा है जैसे सर दर्द फटा जा रहा है।”
तो मैंने कहा —
“लाओ सर दबा देता हूँ…”
फिर करेक्ट करके बोला —
“दबा देती हूँ।”
दो दिन पहले ही तो उन्होंने मेरे सर में तेल डाला था और मसाज किया था,
तो थोड़ा सा आइडिया तो आ ही गया था।
फिर मैंने उन्हें बिठाया और उनके सर में ठंडा तेल डालकर बालों की जड़ों में
धीमे-धीमे, हल्के हाथों से मसाज करने लगा।
अब वो शांत थीं और आँखें बंद करके शांति से बैठी थीं।
दिनभर की दौड़-धूप और टेंशन में एक अच्छे मसाज से हर इंसान
आँखें बंद कर गहरी नींद में सो ही जाता है।
वैसा ही उनके साथ भी हुआ और वो भी सो गईं।
मैं धीरे से उठा।
फिर मैंने एक कंघी से उनके बालों को धीरे-धीरे काढ़ने लगा।
और पता नहीं क्यों मेरे मन में आया कुछ तूफानी करने का।
मैंने उनके बालों की बीच की माँग निकालकर दो भागों में अलग किया
और उनके सर में दो चोटियाँ बना दीं।
बिस्कुट के नीचे से दो रिबन निकाले और उनके बालों में बाँधकर
उनकी चोटियों को फोल्ड करके बाँध दिया।
फिर आलमारी से एक कैमरा निकाला और उनकी फोटो क्लिक करने लगा।
लेकिन फ्लैश की आवाज़ से उनकी आँख खुल गई
और सबसे पहले उनका हाथ उनकी चोटी पर ही गया।
वो बोलीं —
“ये क्या किया तूने, पागल लड़की!”
और खोलने लगीं।
तो मैंने उन्हें रोक लिया ये कहकर कि —
“कितनी अच्छी लग रही हो आप, रहने दो न प्लीज़!”
तो बोलीं —
“चल ठीक है, रहने देती हूँ।”
फिर मैंने उनके साथ एक सेल्फी ली।
और थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने बाल खोल लिए
और शैम्पू से बाल धो लिए
और नहाकर फ्रेश होकर खाना बनाया।
शाम को पापा भी नया फोन ले आए, खुद के लिए,
और मुझे मेरा फोन लौटा दिया।
फिर शाम को खाना खाकर मैं भी सो गया क्योंकि दिन में जो कुछ
रौशनी और मेरे बीच हुआ था, उसकी वजह से मुझे भी बहुत थकान हो रही थी।
और मैं सो गया।
अगले दिन सुबह, मम्मी ने मुझे उठाया
और उनके जाते ही सबसे पहले मैंने मोबाइल ही चेक किया
पर उसमें कोई कॉल या SMS कुछ नहीं था।
सारा दिन बीत गया, पर रौशनी की तरफ से कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया गया।
फिर मुझे याद आया —
“ओह! शायद मेरा फोन पापा के पास था, इसलिए उसने नहीं किया होगा।”
तो मैंने ही उसे कॉल किया।
रिंग बजती रही, पर रौशनी ने कॉल ही अटेंड नहीं किया।
रात में भी बात नहीं हुई।
ऐसे करते-करते 3 दिन बीत गए।
अब मुझे बहुत डर लग रहा था और बेचैनी भी हो रही थी —
आख़िर बात क्या है? सब ठीक तो है ना?
मेरा कॉल भी नहीं उठा रही, कॉल बैक भी नहीं कर रही।
ऊपर से कहीं आने-जाने के लिए भी मम्मी की परमिशन लो।
ऐसा लग रहा था जैसे के मैं रौशनी के घर में नहीं बल्कि किसी जेल में हूँ।
कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।
किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था।
दिन बीत रहे थे लगातार और मेरी टेंशन भी बढ़ती जा रही थी।
इन्हीं सब टेंशन में मेरी तबीयत भी खराब होने लगी थी।
मम्मी भी परेशान थीं के आखिर मुझे हुआ क्या है।
दवा भी खा रही थी, पर कोई दवा का असर नहीं हो रहा था।
हर दिन के साथ मेरा गुस्सा रौशनी पर बढ़ता ही जा रहा था,
पर चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था।
अच्छी-खासी लाइफ़ चल रही थी…
पता नहीं इसे क्या ज़रूरत थी ऐसी उटपटांग विश मांगने की।
अब खुद तो मस्ती काट रही है और मुझे यहाँ फंसा रखा है।
करीब 7 दिन बाद रौशनी का शाम को कॉल आया।
मेरे कुछ कहने से पहले ही बोली —
“सॉरी, मेरा मोबाइल बिगड़ गया था इसलिए कॉल अटेंड नहीं कर पायी।”
“एक काम करो, कल सुबह 11 बजे घर पर मिलने आ जाओ। और हाँ… साड़ी पहनकर ही आना। मस्त सजधज कर आना। ऐसे ही झल्ले की तरह नहीं के कुछ भी पहन कर आ जाओ।”
मैं कुछ बोलता उससे पहले ही कॉल काट दिया।
मैंने दुबारा ट्राय किया तो मोबाइल स्विच ऑफ था।
एक मन तो किया कि न जाऊँ,
पर रौशनी से बात करके अब मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरी तबीयत भी अब ठीक लग रही थी, और कितने दिन के बाद भूख भी लग रही थी।
मैंने मम्मी से कहा,
“मुझे खाना दो।”
तो मम्मी तो ख़ुशी से झूम ही उठीं।
क्योंकि इतने दिनों से मैं खाना ठीक से नहीं खा रही थी,
जिसकी वजह से मेरी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी।
रौशनी के पापा को भी लग रहा था कि उन्होंने जो मुझे डाँट दिया था,
शायद उसी वजह से मेरी तबीयत खराब हो गई।
इसलिए वो भी मेरे साथ अब नरमी से पेश आ रहे थे
और खुद को अंदर ही अंदर गिल्टी महसूस कर रहे थे।
रात भर नींद नहीं आई —
ये सोचकर कि कल रौशनी से मिलने जाना है।
और इस बात की भी खुशी थी कि उसने खुद घर पर बुलाया है।
कम से कम मैं अपनी मम्मी को देख तो पाऊँगी,
कुछ देर बात तो कर पाऊँगी।
मुझे मम्मी की बहुत याद आ रही थी।
और न चाहते हुए भी मेरी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे।
रात तो करवटों में ही बीत गई।
आज मम्मी को मुझे उठाने की ज़रूरत नहीं पड़ी,
मैं खुद सुबह जल्दी उठ गया।
नहा लिया, सलवार-कमीज़ पहन ली।
फिर पापा, मम्मी और मैंने साथ में ब्रेकफ़ास्ट किया।
पापा के जाने के बाद, मैंने मम्मी से कहा —
“मुझे एक काम से जाना है, तो मुझे साड़ी पहना दो।”
मम्मी बोलीं —
“कहाँ जाना है?”
तो मैंने जवाब दिया —
“किसी से मिलने।”
ओह!
ये क्या मेरे मुँह से निकल गया!
क्योंकि जब मैं लड़का था और मम्मी मुझे बाहर जाते वक़्त रोकती थीं,
तो मैं यही रिप्लाई करता था।
पर आज मामला कुछ और था।
इससे पहले कि कोई और सवालों की बारिश मुझ पर हो,
मैंने खुद को करेक्ट करते हुए कहा —
“आपके जमाई ने बुलाया है… बोले हैं कि घर में किसी को बिना बताए आऊँ।
वो थोड़े शर्मा रहे हैं शादी से पहले घर पर आने में।”
अब मम्मी चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकती थीं।
और न ही क्रॉस-चेक कर सकती थीं।
और चाहे वो चाहें या न चाहें,
वो मुझे अब बिना मेकअप के तो बिलकुल नहीं जाने देने वाली थीं।
रौशनी ने कहा था न — झल्ली बन कर नहीं आना।
तो बस,
जैसा कि मेरा प्लान था — वही हुआ।
मम्मी ने खुद मुझे तैयार किया।
ब्लैक साड़ी पहनाई।
अपने लेवल पर बेस्ट मेकअप किया।
मेरे लाख मना करने पर भी लिपस्टिक लगा ही दी।
फिर मुझे अपने सामने खड़ा किया और बोलीं —
“हाय! मेरी गुड़िया को किसी की नज़र न लगे…”
मैंने घड़ी में देखा —
10:30 हो रहे थे।
मैंने मम्मी से कहा,
“अब हो गया सबका कुछ… अब मैं जाऊं?”
तो बोलीं,
“हाँ, बस एक मिनट रुक जा…”
फिर मेरी ओर देखती हुई बोलीं,
“तेरे हाथ तो बिल्कुल खाली-खाली लग रहे हैं, अच्छे नहीं लग रहे — ला, इसमें कुछ चूड़ियाँ डाल दूं…”
उसी पल मेरे दिमाग में सचिन वाला पिछला सीन घूम गया।
रौशनी ने भी पिछली बार चूड़ियों पर ही हाथ बढ़ाया था…
अब तक उस दिन की उंगलियों की जलन याद है।
कहीं आज भी कुछ ऐसा-वैसा न कर दे मम्मी,
इस डर से मैंने तुरंत सफाई में कह ही दिया —
“मूवी देखने जा रही हूँ मम्मी…
ससुराल, सास के सामने चूड़ियाँ-बूड़ियाँ ओल्ड फैशन लगेंगी…
रहने दो न, और प्लीज़ — अब मुझे जाने दो…
वैसे भी बहुत लेट करवा चुकी हो आप!”
सच कहूं,
मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी।
कहीं कोई छोटी बात भी रौशनी के तानों का बहाना न बन जाए।
मैं फटाफट निकलने ही वाली थी कि मम्मी ने अलमारी खोली
और सिल्वर कलर की हिल वाली सैंडल निकाल लाई।
बोलीं —
“ये पहन कर जा… तेरे ब्लाउज़ से मैच करेगी!”
मैंने हील्स को देखा…
और सीधा बोल ही पड़ी —
“हो गया… अब तो पहुँची गई मैं!”
मम्मी मुस्कुरा कर बोलीं —
“अरे, दामाद जी को अच्छा लगेगा!”
मैंने पलट कर जवाब दिया —
“मैं इनमें चल भी नहीं पाऊँगी…
सॉरी… पाऊँगा… ये रहने दो, प्लीज़!”
मम्मी ने भी ऐटीट्यूड में बोला —
“ठीक है… तो जाना कैंसिल!
कहीं मत जा!
कॉल आएगा तो मैं बोल दूंगी — तबीयत खराब है, नहीं आ सकती!”
अब मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था।
मैंने भी बेमन से कहा —
“ठीक है, लाओ… कर लूंगी मैनेज।
आपकी भी सुई कहीं एक बार रुक जाती है, तो फिर आगे ही नहीं बढ़ती है!”
डरते-डरते ही सही,
मैंने वो सैंडल अपने पैरों में पहनी…
और उसी पल दिल से एक थैंक्स बोला रौशनी को —
जिसने एक बार ज़िद करके अपनी हील्स में चलना सिखाया था…
बैलेंस बनाना, पोज़ लेना… सब कुछ।
अब उसी की ट्रेनिंग का पूरा फायदा उठाते हुए,
मैं हिम्मत बटोर कर घर से निकल पड़ी…
अगले मोड़ से मैंने एक ऑटो पकड़ा,
और सीधा अपने घर, यानी रौशनी के घर की ओर चल पड़ा।
मगर अजीब बात थी —
जिस घर को मैंने कभी अपना माना था,
आज वही मुझे अजनबी लग रहा था।
दिल में एक भारीपन था,
हाथ काँप रहे थे, मन बेचैन था।
"अगर मम्मी ने दरवाज़ा खोला तो क्या कहूँगा?"
"अगर पापा ने खोल लिया तो क्या जवाब दूँगा?"
"अगर कुछ पूछ लिया तो?"
हज़ारों सवाल एक साथ मन में चुभने लगे।
इतना डर तो शायद कभी परीक्षा के रिजल्ट से पहले भी नहीं लगा था।
घर के बाहर खड़ा था —
पर बेल बजाने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
उँगली स्विच तक गई, फिर रुक गई…
सोचा रौशनी को ही मिस कॉल कर दूँ…
लेकिन इससे पहले कि मैं कॉल करता,
गेट अपने आप खुल गया।
और सामने खड़ी थी — वो।
रौशनी।
उसके चेहरे पर वही पुरानी शरारत थी।
तेज़ आवाज में चिढ़ाते हुए बोली —
“हाँ बोलिए, किससे काम है?”
मैं शर्म से लाल हो गया।
चेहरा नीचे, आँखें जमीन में…
इतनी घबराहट थी जैसे किसी ने भीड़ में धक्का दे दिया हो।
मन ही मन डर रहा था —
कहीं कोई देख न ले… कहीं कोई पहचान न ले।
रौशनी हँसते हुए बोली —
“अरे वाह, तुम तो लड़कियों की तरह शर्मा रहे हो…”
फिर उसने मेरा हाथ थामा…
और बिना एक पल रुके, मुझे अंदर खींच लिया।
दरवाज़ा बंद होते ही उसने मुस्कुरा कर कहा —
“डरो मत… कोई नहीं है घर में…
सिर्फ तुम… और मैं।
और आज तो तन्हाइयों को भी अंदर नहीं आने दूंगी हमारे बीच।”
मैं एक पल को उसे देखता रहा…
और फिर अचानक सब कुछ फूट पड़ा।
सारा ग़ुस्सा, सारा दर्द, सारा डर…
मेरे लहज़े में उतर आया।
मैंने आवाज ऊँची करते हुए कहा —
“तुमने इतने दिन तक मुझसे बात क्यों नहीं की रौशनी?”
“तुम्हें पता है, उस दिन के बाद से तुम्हारी कितनी याद आ रही थी?”
“मुझे डर लग रहा था… बुखार तक आ गया था।”
“घर में कैद कर दिया था मम्मी-पापा ने…”
“ना कहीं जा पा रहा था, ना किसी से बात कर पा रहा था…”
“तुम्हें कॉल करता रहा —
पर तुमने एक बार भी कॉल अटेंड नहीं किया।”
अब मेरी आँखें भीगने लगी थीं।
मैं एक ही सांस में बोलता चला गया —
“तुमने उस टूटते तारे से विश मांगी भी थी या नहीं?”
“या अब तुम्हें मज़ा आने लगा है मेरी ज़िंदगी जीने में?”
रौशनी धीरे-धीरे मेरे पास आई।
फिर और पास…
और फिर बिलकुल पास —
इतनी पास के उसकी साँसे मेरी आँखों को छू रही थीं।
मेरी आँखों में आँख डाल कर उसने कहा —
उसका लहजा सख्त था, चेहरा तना हुआ।
"एक बात ध्यान से सुनो…
अगर तुमने अपने मन में कोई भी ख्याली पुलाव बना रखा है कि तुम अब दुबारा कभी राकेश बन पाओगे…
तो भूल जाओ इस बात को।"
उसकी आवाज धीमी थी… लेकिन उतनी ही भारी।
"गांठ बाँध लो अपने दिमाग में…
अब तुम राकेश नहीं हो।
तुम रौशनी हो — एक लड़की।
तो आवाज नीचे कर के चुपचाप बैठो।"
वो अब और भी सख्त हो चुकी थी।
उसकी आँखें आग उगल रही थीं।
"अगर किसी ने तुम्हें यहाँ देख लिया,
या तुम्हारी आवाज सुन ली —
तो तुम्हारी कितनी बदनामी होगी, इसका तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है।
समझे?"
मैं साँस तक लेना भूल गया था।
रौशनी दाँत पीस रही थी… और उसकी आँखें मेरे चेहरे को काट रही थीं।
मेरी आँखों से आँसू बह निकले।
न चाहते हुए भी।
मैं चुप था, बिलकुल चुप।
कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं बची थी।
ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली हो।
कल रात से अभी तक —
मेरे दिल और दिमाग में एक पल को भी ये बात नहीं आई थी कि ये सब हमेशा के लिए हो सकता है।
मुझे तो लगता था —
आज नहीं तो कल,
मैं फिर से राकेश बन जाऊंगा…
अपनी पुरानी जिंदगी में लौट जाऊंगा।
मगर आज…
रौशनी की बातों ने जैसे वो दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद कर दिया।
मैं सिसक रहा था —
और रौशनी…?
वो जैसे बिलकुल इग्नोर कर रही थी।
ना मेरी आँखों के आँसू देख रही थी,
ना मेरी हिचकियों की आवाज़ सुन रही थी।
उसका मुँह दूसरी तरफ था —
और लहज़ा अब भी वही सख्त, वही बेपरवाह।
"हर बार तुम गलती करते थे…
कभी लेट आते, कभी कुछ भूल जाते…
और हमेशा अपनी गलती की जगह मुझे डाँटते थे।"
"और आज…
बिना किसी गलती के भी डाँट सुननी पड़ रही है —
और वो भी तुमसे नहीं, किस्मत से!"
हर शब्द, जैसे मेरे सीने में कील की तरह धँस रहा था।
मैंने रोते-रोते कुछ कहना चाहा,
लेकिन मेरे मुँह से अब सिर्फ हिचकियाँ ही निकल रही थीं।
आँखें भीग चुकी थीं…
और होंठ कांप रहे थे।
थोड़ी देर बाद —
रौशनी ने एक गहरी साँस ली।
फिर पीछे मुड़ी,
और किचन की ओर चली गई।
वहाँ से एक गिलास पानी लाकर मेरे सामने लाकर रखा।
"लो, पानी पियो।"
मैंने धीरे से गिलास हटा दिया —
ना नज़रें मिलाईं, ना कुछ कहा।
रौशनी ने भी ज़िद नहीं की।
बस गिलास टेबल पर रख दिया…
और चुपचाप खड़ी रही।
रौशनी ने मेरी बाह पकड़ कर मुझे धीरे-धीरे उठाया।
मैं कुछ समझ नहीं पाया…
और अगले ही पल —
उसने मुझे कस कर गले से लगा लिया।
मैंने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की…
पर जो भी हो, अब बॉडी तो एक लड़की की ही थी न।
थोड़ी देर में मेरी सारी कोशिशें धीमी पड़ गईं…
और मैं बस,
चुपचाप रोता रहा…
उसकी बाँहों में सिमटा।
वो मुझे और कस कर पकड़ती रही…
मेरे आँसू उसकी गर्दन को भिगोते जा रहे थे।
पर उसने कुछ नहीं कहा —
बस मुझे थामे रखा।
थोड़ी देर में —
जब मेरी हिचकी थोड़ी धीमी हुई,
साँसें काबू में आने लगीं…
तो रौशनी ने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा —
"सॉरी यार…
मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था…
पर क्या करूँ…
मैं भी तो हूँ तुम्हारी ही बॉडी में।
थोड़ा असर तो होगा ही इसका भी।
जैसे तुम…
न चाहते हुए भी लड़कियों की तरह रो रहे थे अभी।"
उसकी आवाज़ अब मुलायम थी…
जैसे उसमें भी पछतावा हो।
फिर वो मुझसे थोड़ा दूर हुई,
मेरी तरफ हल्के से झुक कर
कनपटी के पास माफी माँगते हुए बोली —
"सॉरी..."
मेरे गले में अब भी कुछ अटका हुआ था…
पर मैं भी चुप नहीं रह सका।
ग़ुस्से, दर्द और बेबसी से भीगा हुआ मेरा गला काँपा…
और फिर मेरे होठों से बस इतना निकला —
"सिर्फ सॉरी से काम नहीं चलेगा…
उठा, बैठ तो कर…!"

रौशनी मेरे पास आई,
तो मैंने ऊँगली के इशारे से कहा —
"उठ, बैठ जा पहले..."
वो मुस्कराई — एक हल्की सी शर्म mixed शरारत उसकी आँखों में तैर रही थी —
और चुपचाप बैठ गई।
मैंने पानी का गिलास उठाया —
छोटे-छोटे घूँटों में पिया...
जैसे हर घूँट में कुछ टूटे हुए यकीन,
कुछ थमी हुई साँसें उतर रही हों।
तभी रौशनी ने कहा —
"अच्छा… अगर तुम मुझे माफ़ कर दो,
तो मैं तुम्हें एक ज़बरदस्त गिफ्ट दूँ?"
मैंने हल्की सी नजर डाली और कहा —
"हम्म… ठीक है, किया माफ़ —
अब बताओ क्या है वो?"
रौशनी अलमारी के पास गई…
कुछ पल बाद एक अजीब सी, चमकदार, धातु जैसी चैन वाली चीज़ लेकर लौटी।
मैंने उसे गौर से देखा, कुछ समझ ही नहीं आया।
"ये क्या है?"
मैंने माथा झुका दिया…
"पहली बार देख रहा हूँ…"
वो हँस पड़ी —
"स्पेशली तुम्हारे लिए मंगवाई है ऑनलाइन…"
मैंने कहा —
"ठीक है, पर पहनते कहाँ हैं इसे? और रखा कहाँ जाएगा?"
वो पास आई, और मुस्कराकर बोली —
"जैसे तुम मुझे बेतुकी चीज़ें गिफ्ट करते थे और पूछते नहीं थे,
वैसे ही इसे भी रख लेना — जहाँ मैं रखती थी!"
फिर उसकी आँखें थोड़ी संजीदा हो गईं।
"अब ज़रा अपनी साड़ी और पेटीकोट ऊपर करो…"
मैं घबरा गया —
अपने घुटनों को थोड़ा मोड़ते हुए मैंने अपनी जांघों पर हाथ रख लिया —
"देखो, कोई अजीब हरकत मत करना…
पिछली बार वाला दर्द अब तक याद है…"
रौशनी ने मेरी आँखों में गहराई से देखा —
उसकी नज़रों में एक रहस्य था, एक अधिकार,
और एक हल्की सी मुस्कराहट जो डर से ज्यादा भरोसा देने लगी।
"अगर मैं कुछ करना चाहूँगी न…
तो तुम रोक भी नहीं पाओगे…"
वो धीरे से नीचे बैठी,
मेरे पैरों पर हाथ फिराया — बेहद नरमी से…
जैसे मुझे भरोसे में ले रही हो।
फिर उसने धीरे-धीरे मेरी साड़ी और पेटीकोट को थोड़ा ऊपर किया,
बस उतना…
जितना उसे चाहिए था —
और फिर वो "गिफ्ट" मेरे पैरों में पहनाया।
वो चीज़ अब मेरी देह पर थी —
पर उस वक़्त मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये गिफ्ट है या प्रतीक…
बंधन है या अधिकार…
रौशनी ने मेरे पैरों में वो अजीब सी चैन पहनाते हुए एक हल्की सी मुस्कान दी। दोनों पैरों में वो चीज़ बाँधते वक्त मैं चुपचाप खड़ा रहा, अब सवाल करने की भी हिम्मत नहीं बची थी। फिर भी धीरे से पूछ ही लिया —
"अब इसका क्या करूँ?"
वो बिना मेरी तरफ देखे बोली —
"करोगे क्या? पहने रहो।"
मैंने पूछा —
"घर पर जाऊंगा… मम्मी देखेंगी तो क्या कहेंगी?"
वो हँस कर बोली —
"क्या कहेंगी? डाँटेंगी, और उतरवा के रखवा देंगी बस।"
मैं मन ही मन सोचने लगा —
यहाँ बहस करने से कोई फायदा नहीं है।
जो हो रहा है, अब उसका हिस्सा बनना ही समझदारी है।
तो चुपचाप कहा —
"ठीक है… नहीं उतरूँगा…"
फिर बात बदलने के लिए मैंने उससे पूछा —
"अच्छा… मेरी मम्मी बारे में बताओ, सब घर वाले कहाँ गए हैं?"
वो बोली —
"तुम्हारे गाँव में शायद तुम्हारे चाचा के बेटे की शादी है, तो दो दिन के लिए सब वहीं गए हैं।
और मैंने तबीयत खराबी का बहाना बना लिया… वैसे तुम्हारी मम्मी बहुत प्यारी हैं, मुझे किचन से पानी तक नहीं लेने देतीं।"
मैं हँसते हुए बोला —
"और तुम्हारी मम्मी?
हर वक्त कुछ न कुछ काम करवाती रहती हैं…
मेरी जासूसी करती रहती हैं, मोबाइल तक चेक करती हैं…
हर चीज़ में टोकना — ये मत करो, वो मत करो…
और फिर शादी के बाद ये होगा, वो होगा — कह-कह के डराती रहती हैं।"
मैं जैसे-जैसे बोलता जा रहा था,
रौशनी मेरी बातें सुनकर हँसने लगी।
फिर बोली —
"ये तो मम्मियाँ होती ही ऐसी हैं…
आखिर जवान लड़की की माँ है अब —
थोड़ा तो उनका हक बनता है न।
कोई नहीं, कुछ दिन में तुम्हें आदत पड़ जाएगी,
फिर बुरा नहीं लगेगा।
उन्हें बुरा मत समझो,
वो तुम्हारे भले के लिए ही बोलती हैं।"
मैंने लंबी साँस ली, फिर बोला —
"यार, अब एक कप चाय बना दो ना, प्लीज़।"
वो एकदम सीरियस होकर बोली —
"ओह हेलो… शायद तुम भूल गए हो — अब तुम लड़की हो। मैं नहीं।
अब काम के ऑर्डर देने की आदत छोड़ दो।
खुद काम करना सीखो, समझीं?
तुम्हारे ससुराल में काम आएगा।
और हाँ — अब से अपनी बात स्त्री लिंग में किया करो —
जैसे, 'चाय बनाऊँगी', 'पानी पिऊँगी'… etc."
मैंने थका हुआ सा कहा —
"यार, तुम तो मत बोलो ऐसे…
तुम्हें पता है कि मैं राकेश हूँ।"
वो पास आई, और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा किया।
फिर एक फुल-साइज़ मिरर के सामने ले जाकर बोली —
"आईने में खुद को ठीक से देखो…
अब तुम राकेश नहीं हो…
तुम रौशनी हो।"
मैंने धीरे से आईने में झाँका…
वो चेहरा, वो हावभाव,
वो साड़ी और पैरों की झनझनाती चेनें —
सब कुछ मुझे बता रहा था कि अब…
वापसी आसान नहीं है।
तभी रौशनी ने थोड़ा झुक कर फुसफुसाते हुए पूछा —
"एक बात बताओ —
तुमने मम्मी से ऐसा कौन सा बहाना बनाया था,
जो उन्होंने तुम्हें इतना सज-धज कर यहाँ आने दिया?
और अब तक एक बार भी कॉल नहीं किया?"
मैंने लापरवाही से जवाब दिया,
"कुछ खास नहीं…"
पर रौशनी इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी।
वो आँखें तरेरते हुए बोली —
"बताओ तो सही… छुपा क्या रहे हो?"
मैंने लंबी साँस ली और कहा —
"मुझे पता था जब मैं मम्मी को बोलूँगा कि मुझे बाहर जाना है,
तो वो सवाल ज़रूर करेंगी — कहाँ जा रहे हो?"
रौशनी बीच में ही टोकते हुए बोली —
"‘करूँगी’ नहीं, ‘कहूँगी’ — आदत सुधार लो अपनी। समझीं?"
मैं थोड़ा चिढ़कर बोला —
"एक तुम ही हो जो मुझे जबरन लड़की बनाने में लगी हो।"
वो मुस्कुरा कर बोली —
"तुम्हें किस्मत ने लड़की बनाया है,
मैं तो बस तुम्हें याद दिला रही हूँ कि तुम हो क्या।"
मैंने उसकी बात पकड़ ली —
"‘याद दिला रही हूँ’ से क्या मतलब?"
उसकी आँखों में हलकी सी शरारत थी —
"जो मतलब तुम्हारे लिए है वही मेरे लिए भी —
तुम लड़की हो, तो मैं भी लड़का हूँ।
मुझे भी खुद को याद दिलाना पड़ता है न कभी-कभी…"
मैंने नज़रे चुराते हुए कहा —
"जो जी में आए कहो… मुझे क्या।"
रौशनी हँसते हुए बोली —
"अरे बाबा, सुनो तो सही पूरी बात!"
"हाँ हाँ, बोलो… आगे क्या हुआ?"
"तो जब तुम्हारी मम्मी ने मुझसे पूछा — 'कहाँ जा रही हो?'
तो मैंने थोड़ा शरमा कर कहा —
‘आपके दामाद ने मूवी देखने बुलाया है।’"
मैं चौंक गया —
"सच में ये बोला तुमने?"
वो हँसकर बोली —
"हाँ, और बेचारी कुछ बोल नहीं पायी।
बल्कि खुद ही अपने हाथों से मुझे साड़ी पहनाई,
मेरी चूड़ियाँ पहनाई, हल्का-सा मेकअप भी किया…
जो कुछ किया है, वो सब तुम अभी देख ही रहे हो।"
मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला —
"पर झूठ नहीं बोलना चाहिए था मम्मी से…"
रौशनी गंभीर हो कर बोली —
"कहाँ झूठ बोला मैंने?
मैं तो अपने ही दामाद से मिलने आयी थी —
और अब तो तुम दामाद नहीं, दुल्हन हो।"
मैं मुस्कुरा पड़ा —
"मिलने आया हूँ… सॉरी — मिलने आयी हूँ।"
रौशनी ने सर हिलाया और मेरी कमर पर ऊँगली से गुदगुदी करते हुए बोली —
"तो अब ज़रा मम्मी के दामाद को एक कप चाय तो पिला दो?"
मैं तुरंत पीछे हट गया —
"भूल जाओ… सपने देखती रहो।
मेरे हाथ की चाय तुमसे न होगी पी।"
वो शरारती लहजे में बोली —
"अच्छा जी?"
मैंने बात बदलते हुए कहा —
"यार, ये जो चैन मेरे पैरों में बाँध रखी है…
अब उतार दूँ क्या?"
रौशनी ने सिर थोड़ा झुका कर पूछा —
"क्यों, क्या हुआ?"
"कुछ नहीं… अजीब सी आवाज़ कर रही है,
पैरों में रगड़ती है तो अजीब सी फीलिंग आती है।"
रौशनी मेरी तरफ झुककर धीरे से मेरे गले को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए बोली —
"मेरी जान, इसलिए ही तो पहनाई है…"
मैं थोड़ी घबराई सी आवाज़ में बोला —
"अब चलो?"
वो पलटी, और चलते-चलते बोली —
"जिस काम के लिए तुम्हें बुलाया है,
वो करने…"
मैं रुक गया —
"क्या मतलब?"
रौशनी ने एक नज़र मुझ पर डाली, मुस्कुराई —
लेकिन जवाब नहीं दिया।
रौशनी मुस्कुराते हुए बोली,
"अभी कुछ मत सोचो... सब समझ आ जाएगा।"
और फिर बिना कुछ कहे उसने मेरा हाथ थामा और मुझे मेरे ही कमरे की ओर ले चली।
कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद किया और मुझे धीरे से बिस्तर पर बैठा दिया।
मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था…
और तभी उसने अचानक मेरे गाल पर हल्का सा किस किया।
फिर मेरे कान के पास झुककर फुसफुसाई —
"जो उस दिन अधूरा रह गया था…
उसे पूरा करने के लिए..."
मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
मैं थोड़ा पीछे हट गया, घबरा गया, डर के मारे बोल पड़ा —
"नहीं! कभी नहीं!
मुझे डर लगता है… कहीं कुछ हो गया तो…
मैं कहीं का नहीं रहूंगा..."
रौशनी ने प्यार भरे स्वर में कहा —
"अरे पगले… कुछ नहीं होगा।
डर क्यों रहे हो?
इधर आओ, बस…"
मैं तुरंत बोल पड़ा —
"हरगिज़ नहीं!
मैं घर जा रहा हूँ… यही ठीक रहेगा।"
रौशनी अचानक फिल्मी अंदाज़ में बोली —
"जानिए... ये मेरा इलाका है।
यहाँ तुम अपनी मर्ज़ी से आ तो सकते हो,
लेकिन जा नहीं सकते…"
मैं चौंका —
"क्या मतलब?"
रौशनी ने आँखों में वही शरारत लिए बिस्तर से उठी,
धीरे-धीरे कमरे की ओर चली गई और दरवाज़े की ओर इशारा करते हुए बोली —
"मैंने दरवाज़ा लॉक कर दिया है…
और चाभी?"
उसने मुस्कुराते हुए अपने कमर की ओर इशारा किया।
वहाँ एक काले धागे से बंधी एक छोटी सी चमकदार चेन झूल रही थी,
जिसे वो धीरे-धीरे उठाकर अपने कमर के अंदर —
अपने अंडरवियर में डालते हुए बोली —
"चाभी चाहिए तो… आकर ले लो!"
उसकी आँखों में शरारत थी… और हँसी में चुनौती।
मैं गुस्से और घबराहट में बोल पड़ा —
"यार! ये मजाक मत करो प्लीज़…
मुझे चाभी दे दो!"
रौशनी हँसते हुए बोली —
"मैनें कब मना किया?
आओ… ले लो।
चुनौती तो बस इतनी है —
बिना मुझे हाथ लगाए चाभी लेनी है।
मैं न तुम्हें छुऊँगी… और न तुम मुझे छूना।
डील?"
मैं हकबका गया —
"ये कैसे पॉसिबल है?"
वो थोड़ी और पास आकर बोली —
"वो तुम्हारी problem है, मेरे लिए तो खेल है।
अगर इतना ही दम है… तो आओ, ले लो।
मैं तो यहीं खड़ी हूँ, अपनी जगह से हिलूँगी भी नहीं।"
मैंने थोड़ी देर सोचा, और गहरी साँस ली —
"ठीक है… डील।
बस तुम अपनी जगह खड़ी रहना,
और मुझे हाथ मत लगाना।
मैं कोशिश करता हूँ…"
कमरे में सन्नाटा था…
सिर्फ उसकी आँखों में चुनौती, और मेरे अंदर डर —
और कहीं बहुत भीतर,
एक अजीब सी हलचल…

"ठीक है, जब तक तुम मुझे हाथ नहीं लगाओगे, तब तक मैं भी नहीं लगाऊँगी। और तुम जहाँ कहोगे, वहीं कड़ी रहूँगी," रौशनी ने चुनौती भरे अंदाज में कहा।
मैंने थोड़ा सोचकर जवाब दिया, "हम्म... ठीक है।" फिर मैंने उसे कमरे के बीचों-बीच खड़ा होने को कहा, अपने हाथ पीछे करके।
वह मुस्कुराई, "मैं तुम्हारी बात मान रही हूँ न? तो अब मेरी बात भी मानो।"
"हाँ, बोलो," मैंने कहा, पर जैसे ही वह मेरी तरफ बढ़ी, मैंने दीवार की ओर मुंह कर लिया। मुझे अंदाजा था कि वह क्या करने वाली है।
मेरी इस हरकत पर वह खिलखिलाकर हँस पड़ी, "ये ठीक किया तुमने!" फिर वह मेरी पीठ के पीछे आई और मेरे कंधे पर लगी वह पिन खोल दी, जो मम्मी ने साड़ी के पल्लू को सहारा देने के लिए लगाई थी। पल्लू तुरंत नीचे गिर गया। अब मैं सिर्फ ब्लाउज और कमर में लिपटी साड़ी के साथ खड़ा था।
"ये क्या कर रही हो?" मैंने हैरानी से पूछा।
वह मासूमियत से बोली, "तुम्हारे फायदे की ही चीज कर रही हूँ। बिना साड़ी के तुम्हें ही आसानी रहेगी, समझे?"
मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने मेरी कमर से लिपटी साड़ी भी खोलकर बेड पर रख दी। अब मैं सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में था, दीवार की तरफ मुंह किए, हाथों से दीवार को टेक लगाए खड़ा था।
रौशनी मेरी पीठ के ठीक पीछे आकर सट गई और धीरे से मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगी। मैंने महसूस किया कि वह मेरी पीठ पर बिखरे मेरे बालों को एक तरफ सरका रही है। उसकी सांसें मेरी गर्दन को छू रही थीं, और मेरा दिल धड़क रहा था मानो छाती से बाहर आ जाएगा।
"रुक... रुको," मैंने हल्के से कहा, पर वह नहीं रुकी।
उसने मेरे कान के पास फुसफुसाया, "डरो मत... बस तुम्हारी मदद कर रही हूँ।"
मैं जानता था कि यह सिर्फ मदद नहीं थी, पर कुछ कर भी नहीं सकता था। मेरे हाथ अभी भी दीवार पर टिके थे, और मेरा शरीर उसकी हर छूट पर सिहर उठता था।
रौशनी ने मेरी गर्दन पर एक कोमल चुंबन दिया और हल्का सा लव बाइट किया। मेरी साँसें तेज हो गईं, पर मैंने खुद को संभालते हुए कहा, "तुमने अभी वादा किया था कि हाथ नहीं लगाओगी! तुम चीटिंग कर रही हो!"
वह मुस्कुराई, "चलो ठीक है, नो चीटिंग वाली बात मान लेती हूँ।" फिर वह मेरे पैरों की ओर झुकी और मेरे पैरों में पहनी हुई चेन को खोलने लगी।
"ये क्या कर रही हो? अब इसे क्यों खोल रही हो?" मैंने हैरानी से पूछा।
"तुम दो मिनट चुप क्यों नहीं रह सकते?" उसने हल्के से झिड़कते हुए कहा। मैं चुप हो गया।
उसने मेरे दोनों पैरों से चेन खोल दी और फिर मेरे हाथों की ओर बढ़ी, जो दीवार पर टिके हुए थे। उसने अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़ा और धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाने लगी। जैसे-जैसे मेरे हाथ पीछे जा रहे थे, मेरे और रौशनी के बीच की दूरी कम होती जा रही थी। मेरी पीठ उसके सीने से सट गई, और उसकी गर्म साँसें मेरे कान को छूने लगीं।
फिर अचानक, उसने उसी चेन से मेरे दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध दिए—इतनी कसकर कि मैं छूट भी नहीं सकता था। उसने ये सब इतनी तेजी से किया कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। और फिर, मानो मेरी मुश्किलें कम करने के लिए, उसने चेन में एक छोटा सा ताला लगा दिया और चाबी अपने कमर से बंधे धागे में डालकर अपने अंडरवियर के अंदर छुपा दी।
"ये क्या है, यार? लॉक लगाने की क्या जरूरत थी? प्लीज, मेरे हाथ खोल दो!" मैंने विरोध किया, पर वह सिर्फ मुस्कुराती रही।
मैंने ज़ोर लगाकर अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ। चेन इतनी टाइट थी कि हर हरकत से वह और गहराई से कटने लगी। रौशनी ने मेरे कान के पास फुसफुसाया, "अब तुम्हारी बारी है... बिना हाथों के वो चाबी निकालकर दिखाओ।"
मेरी साँसें फिर से तेज हो गईं। यह कोई गेम नहीं था—यह एक चुनौती थी, और मैं उसमें फँस चुका था...
रौशनी हँसते हुए दूर हट गई और बोली, "कोशिश करने से कोई फायदा नहीं। तुम पूछ रहे थे न कि इस चेन का क्या होता है? अब समझे—इसका ये भी होता है!"
वह उसी जगह जाकर खड़ी हो गई जहाँ मैंने उसे पहले खड़ा किया था, दोनों हाथ पीछे करके। उसकी आँखों में चुनौती थी। "वहीं खड़े रहना है या चाभी भी चाहिए?"
मैं धीरे-धीरे उसके पास गया। रौशनी ने नीले रंग की शर्ट पहन रखी थी, जो जींस में टकी हुई थी, और बेल्ट लगाकर उसे और भी सुरक्षित कर दिया था। मैंने सोचा था कि उसकी जींस को नीचे करके धागे तक पहुँच जाऊँगा, लेकिन बेल्ट और टकी हुई शर्ट ने कोई गैप नहीं छोड़ा था।
"क्या हुआ? अभी से डर गए?" वह मुस्कुराई, "चलो, जल्दी से शुरू करो। मैं यहाँ सारा दिन थोड़े ही खड़ी रहूँगी!"
मैंने हार मानते हुए कहा, "यार, प्लीज... ऐसे मत करो। तुम मेरी जान ले रही हो!"
वह बोली, "मैंने तो ऑप्शन दिया था। तुमने ही बहाना किया था। अब समेटो अपने मायाजाल को!"
मैं उसके चेहरे को देखकर समझ गया—वह अब मानने वाली नहीं थी। अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी, तो पता नहीं वह आज क्या-क्या करवाएगी। लेकिन मैं किसी भी हालत में उसके साथ सेक्स नहीं करना चाहता था। इंटरनेट पर पढ़ी कहानियाँ याद आईं—बॉडी स्वैप के बाद अगर प्रेग्नेंसी हो जाए, तो यह परमानेंट हो सकता है। और मैं ऐसा कभी नहीं चाहता था।
अगला कदम
मैंने गहरी साँस ली और रौशनी की आँखों में देखा। "ठीक है... लेकिन एक शर्त।"
वह आश्चर्य से भरी नज़रों से मेरी तरफ देखने लगी। "क्या शर्त?"
"बिना किसी फिजिकल रिलेशन के। बस... तुम्हारी चाभी लेकर जाऊँगा।"
रौशनी ने सिर हिलाया, मानो मेरी बात समझ गई हो। "डील।"
अब मेरे सामने चुनौती थी—उसकी बेल्ट और टकी हुई शर्ट के बीच से वह चाभी निकालना। मैंने अपने बंधे हाथों को हिलाया, लेकिन चेन ने ज़रा भी ढील नहीं दी। रौशनी की मुस्कान और चौड़ी हो गई—वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा..
रौशनी की शरारत भरी मुस्कान देखकर मेरी हालत और भी बदतर हो रही थी। वह बोली, "क्या सोच रहे हो? चलो शुरू करो!"
मैंने हताश होकर कहा, "तुम खुद सोचो! तुमने बेल्ट पहन रखी है—मैं चाहूँ तो भी कुछ नहीं कर सकता। बेल्ट बिना हाथों के थोड़ी खुलती है?"
रौशनी ने अपनी बेल्ट और फिर मेरी मजबूर शक्ल की ओर देखा। एक पल रुककर बोली, "हाँ... बात तो सही है।" फिर अचानक उसने अपनी बेल्ट खोली और मेरे गले में डाल दी, दूसरा सिरा अपने हाथ में पकड़ लिया। "अब इसका क्या करूँ? तुमने कहा था न कि अपनी जगह से हिलना नहीं है? वैसे भी, तुम भी कहीं जा नहीं सकते!"
मैंने उसे गुस्से से घूरा, तो वह हँसते हुए बोली, "घूरो मत, चलो अपना काम शुरू करो!" और ज़ोर से बेल्ट को झटका दिया। मैं संभलते हुए गिरने से बचा और घुटनों के बल बैठ गया।
अब मुझे अपने मुँह से उसकी जींस का बटन खोलना था। बैलेंस बनाते हुए मैंने कोशिश की, लेकिन हर बार मेरा संतुलन बिगड़ जाता और मैं उस पर गिरते-गिरते बच जाता। जब भी मेरा मुँह उसके पैंट के हुक के पास पहुँचता, उसके प्राइवेट पार्ट के कारण जींस पर एक उभार आ जाता, जिससे बटन और भी टाइट हो जाता। मेरी पकड़ हर बार खिसक जाती, और मैं चिढ़ता जा रहा था।
समय धीरे-धीरे बीत रहा था, और रौशनी को मेरी हालत पर मजा आ रहा था। जैसे ही मैं बटन तक पहुँचने की कोशिश करता, वह जानबूझकर अपनी बॉडी को आगे कर देती, जिससे मेरे सामने फिर से वही "तम्बू" बन जाता। बार-बार की कोशिशों से मैं थक चुका था।
तभी रौशनी बोली, "क्यों परेशान हो रहे हो? अगर चाहो तो मैं जींस उतार दूँ?"
मैंने तुरंत कहा, "तो सोच क्या रही हो? उतार दो और चाभी दे दो! जल्दी से मेरे हाथ खोलो, मैं घर जाना चाहता हूँ!"
रौशनी की आवाज़ में मस्ती घुली हुई थी, "वाह बेटा, बहुत अच्छे! मैं तो यहाँ पागल हूँ न? चुपचाप जींस खोलो!"
मैंने हाँ कहा और फिर से कोशिश शुरू की। कहते हैं न, कोशिश करने से भगवान भी मिल जाते हैं—आखिरकार हुक खुल गया! पैंट थोड़ी ढीली हुई। अब बस ज़िप खोलनी बाकी थी। मैं खुश हो रहा था, लेकिन जैसे ही मैंने घुटनों के बल बैठकर ज़िप की ओर बढ़ने की कोशिश की, रौशनी ने जानबूझकर अपनी कमर हिलाई। मेरे होंठ उसके प्राइवेट के टिप को छू गए। मैं तुरंत पीछे हट गया, लेकिन वह हँसते हुए बोली, "बेटा, लाख कोशिश कर लो, इससे भागने की नहीं। यही तुम्हारा भविष्य है, समझे? यही तुम्हारे जीवन के सुख देगा!"
उसकी बातों से मुझे गुस्सा आ रहा था। अब मैंने मन में ठान लिया—चाहे जो हो, ज़िप खोले बिना नहीं मानूँगा! मैंने गहरी साँस ली, फिर से घुटनों के बल बैठा और ज़िप की ओर बढ़ा। रौशनी ने फिर वही ट्रिक अपनाई, लेकिन इस बार मैं नहीं हटा। मैंने अपना पूरा ध्यान ज़िप पर केंद्रित किया और आखिरकार... ज़िप खुल गई!
मैं खुशी से नीचे बैठ गया। घुटनों के बल इतनी देर तक बैठे रहने से मेरी साँस फूल रही थी, पसीना-पसीना हो गया था। मैंने रौशनी से हाथ जोड़कर कहा, "पानी... प्लीज पानी दे दो!"
वह मुस्कुराई, "चलो, मेरे साथ किचन में।"
मैंने हैरानी से पूछा, "किचन में क्यों?"
"अरे, कहीं मैंने तुम्हारे पानी में कुछ मिला दिया और तुम बेहोश हो गए, फिर मैंने तुम्हारा फायदा उठा लिया तो?" उसने शरारत भरी नज़रों से कहा और मेरे गले में बंधी बेल्ट को खींचते हुए मुझे किचन में ले गई।
किचन में पहुँचकर उसने एक थाली में पानी डालना शुरू किया। मैं अभी भी हाथ बंधे होने की वजह से असहज महसूस कर रहा था, लेकिन रौशनी की हरकतों पर मजबूरन मुस्कुरा दिया। वह बोली, "लो, पियो
थाली में रखे पानी की ओर देखकर मैं हैरान रह गया। "ये क्या है?" मैंने पूछा।
रौशनी ने मासूमियत से कंधे उचकाए, "तुमने कहा था न कि तुम्हें हाथ नहीं लगाना? तो जब मैं हाथ नहीं लगाऊँगी, तो तुम्हारे हाथ खुलेंगे नहीं। गिलास से तो पी नहीं पाओगे न?"
थोड़ी देर में मुझे समझ आया कि वह क्या कहना चाह रही है। मैंने मना कर दिया, "मैं वैसे पानी नहीं पीऊँगा जैसा तुम चाह रही हो!"
वह बोली, "मत पीओ! मैं कब कह रही हूँ पीने को? ये तो बस रखा है। अगर पीने का मन करे तो पी लेना।" फिर वह फिर से अपने हाथ पीछे करके कड़ी हो गई और छत की ओर देखने लगी, मानो उसे कुछ दिलचस्पी ही नहीं है।
मेरा गला सूख रहा था। आखिरकार, मैंने बैलेंस बनाकर थाली से जीभ से पानी पीना शुरू किया। कमर में दर्द हो रहा था, हाथ बंधे हुए थे, और अपनी हालत पर गुस्सा आ रहा था। जैसे-तैसे पानी पीकर मैंने रौशनी के ही जींस से मुँह पोंछ लिया।
फिर मैंने आगे बढ़कर उसकी जींस को मुँह से नीचे खींचा। अब बारी थी उसकी अंडरवियर की। मुझे पता था कि अगर मैं सामने से उतारूँगा, तो वह कोई चाल चलेगी। इसलिए मैंने साइड से उसकी अंडरवियर उतार दी। अब रौशनी पूरी तरह नंगी थी, उसका प्राइवेट पार्ट पूरी तरह दिख रहा था।
मैंने गर्व से कहा, "देखो, मैंने बिना हाथ लगाए तुम्हारे कपड़े उतार दिए। अब मुझे खोल दो!"
वह हँसते हुए बोली, "मैंने कब कहा था कि मैं खोल दूँगी? बात तो चाभी की थी। अपनी चाभी निकाल लो, दरवाज़ा खोल लो—अगर खोल पाओ तो! और जाओ ऐसे ही ब्लाउज-पेटीकोट में... रास्ते में क्या पता तुम्हारे साथ क्या हो?"
मैंने गुस्से से उसकी ओर देखा। वह मुस्कुराती हुई आगे बोली, "या फिर... दूसरा ऑप्शन है। तुम मेरे साथ कोऑपरेट करो, जो मैं कहती हूँ वो करो, मुझे खुश करो... और मैं तुम्हें खुश करूँगी। फिर तुम घर जाओ, और मैं अपने घर में खुश रहूँगी।"
रौशनी ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया। अब मैं उसके ठीक सामने था—उसकी नंगी देह और मेरे बंधे हाथों के बीच कोई दूरी नहीं थी। वह मेरी आँखों में गहराई से देखते हुए धीमे से बोली, "क्या तुम मुझसे प्यार करते हो?"
उस सवाल ने मुझे झकझोर दिया। मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं, गले में कुछ अटक सा गया। मैंने उसकी आँखों में झाँकने की कोशिश की—वहाँ एक अजीब सी उम्मीद थी, डर था, एक सच्चाई थी जिससे मैं भागना चाहता था।
"तुम जवाब क्यों नहीं दे रहे?" उसने मेरी चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, उसकी आवाज़ में एक कंपन था।
मैंने गहरी साँस ली। "रौशनी... ये सवाल पूछने से पहले तुमने मुझे बाँध दिया, मेरी इज्ज़त से खेला, मेरी हालत पर हँसी। अब प्यार की बात?"
उसकी आँखें नम हो गईं। "क्योंकि मैं डरती हूँ... डरती हूँ कि अगर तुम आजाद हो जाओगे, तो सच बोलोगे ही नहीं।"
एक पल के लिए सब कुछ थम सा गया। मैंने महसूस किया कि उसके हाथ मेरी पीठ पर बंधी चेन को छू रहे हैं, जैसे कोई फैसला कर रही हो।
"अगर मैं कहूँ कि हाँ... तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगी?" मैंने धीरे से पूछा।
वह मुस्कुराई, "शायद नहीं। शायद मैं तुम्हें और बाँध लूँ... हमेशा के लिए।"
मैं चुप रहा। रौशनी की बातें सुनकर मुझे उस पर घृणा सी होने लगी—क्या वह सच में मुझे सिर्फ अपनी हवस का खिलौना समझती है? मैं उसका चेहरा एक पल भी और नहीं देखना चाहता था। बस भाग जाना चाहता था।
"मेरे हाथ खोल दो। बस," मैंने गुस्से में कहा।
रौशनी की आँखों में चिंगारी-सी दौड़ गई। "तुम मुझसे प्यार करते हो या नहीं?" उसने दोहराया।
"मेरे हाथ खोल दो और मेरी साड़ी पहना दो," मैंने बिना उसकी बात पर ध्यान दिए वही जवाब दोहराया।
वह बार-बार एक ही सवाल पूछती रही, और मैं बार-बार उसी जवाब को रिपीट करता रहा। अचानक, उसका गुस्सा फूट पड़ा—"थप्प!"
उसका तमाचा इतना जोरदार था कि मेरे होश उड़ गए। संतुलन खोकर मैं नीचे गिर पड़ा। सिर बेड से टकराया, और आँखों से आँसू अपने आप बह निकले। हाथ बंधे होने के कारण मैं उन्हें पोंछ भी नहीं सका।
रौशनी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह तुरंत मेरे पास आई, सहारा देकर उठाया। "सॉरी... सॉरी..." वह बार-बार कहती रही, लेकिन मैंने कंधे को झटककर उसे दूर हटा दिया।
"मेरे हाथ खोल दो। मुझे घर जाना है," मैंने रुक-रुक कर कहा, आँसू अब भी बह रहे थे।
वह घबरा गई। शायद उसने सोचा भी नहीं था कि स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी। उसने मेरे हाथ खोल दिए। मैंने आँसू पोंछे, मुँह धोया और बिना उसकी ओर देखे हुए कहा, "मुझे साड़ी पहनाओ। मुझे घर जाना है।"
रौशनी लगातार माफी माँगती रही, लेकिन मैं उसकी तरफ देखना भी नहीं चाहता था। उसने मुझे साड़ी पहनाई, हील्स दिए। जैसे ही मैं जाने लगा, उसने एक डिब्बे में रखी पैर की चेन मुझे थमाई। "ये ले जाओ... खाली हाथ मत जाओ। वरना तुम्हारी मम्मी को शक होगा," उसने कहा, मेरी अनिच्छा के बावजूद मेरे पर्स में वह चेन रख दी।
जाते-जाते उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। "आई एम सॉरी, यार... माफ कर दो प्लीज!"
लेकिन मेरा दिमाग अभी शांत नहीं था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। आज अगर मैं असली राकेश होता, तो शायद कुछ और ही करता। लेकिन रौशनी के शरीर में होने के कारण मैं उतना आक्रामक नहीं हो पा रहा था—शायद उसकी हार्मोनल भावनाओं का असर था।
मैंने बिना कुछ कहे ऑटो को हाथ दिखाया। रौशनी पीछे से माफी माँगती रही, लेकिन मैं बिना जवाब दिए चला गया...
क्योंकि अभी मैं रौशनी की बॉडी में था, और वह मेरी। शायद यही वजह थी कि आज मैं इतना भावुक हो गया था... और शायद यही वजह थी कि रौशनी—जो अब मेरे शरीर में थी—इतनी आक्रामक हो गई थी।

ऑटो से घर तक का सफर मेरे लिए एक उधेड़बुन था। आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहे थे—न जाने क्यों मैं इतना भावुक हो गया था? रौशनी पर गुस्सा था, पर उससे ज्यादा खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक लड़की की जिंदगी इतनी जटिल हो सकती है...
"मैं इतना सबमिसिव क्यों हो गया हूँ?"
बचपन से लेकर आज तक, मैंने हर चीज़ अपने मन से की थी—जो चाहा, वही पाया। लेकिन आज? आज मैं हर चीज़ दूसरों की खुशी के लिए कर रहा था:
कपड़े मम्मी-पापा की खुशी के लिए पहनने पड़ते थे।
घर से बाहर निकलना रौशनी की मर्जी पर निर्भर था।
और अब... ये बंधन, ये दर्द, ये असहायता।
"लड़कियाँ खुद को इतना कमज़ोर क्यों बना लेती हैं?"
मुझे समझ नहीं आ रहा था। क्या यही उनकी नियति है? हर चीज़ के लिए किसी न किसी पर निर्भर रहना? मुझे खुद पर घिन आ रही थी...
घर पहुँचना: मम्मी की चुपचाप समझदारी
पता नहीं कब घर आ गया। मैंने बेल बजाई, मम्मी ने गेट खोला। आँसू पोंछे, जितना हो सका मुस्कुराने की कोशिश की... पर जब दिल में आग लगी हो, तो हँसना सिर्फ एक बड़ा कलाकार ही कर सकता है।
मैं सीधा अपने कमरे में गया, मुँह धोया और तकिए में मुँह दबाकर लेट गया। आँसू फिर से बह निकले...
थोड़ी देर बाद मम्मी आई। उसने मेरे सिर पर हाथ फेरा, पानी का गिलास दिया। जब मैं पी रहा था, तभी उसकी नज़रें मेरे शरीर को जाँच रही थीं:
बाल बिखरे हुए।
लिपस्टिक गायब।
रो-रोकर काजल फैल चुका था।
गर्दन पर रौशनी के लव बाइट के लाल निशान।
हाथों पर चेन के बंधन के दाग।
मम्मी ने कुछ नहीं कहा। बस मेरे सिर पर हाथ रखा, जैसे कह रही हो—"बेटी, मैं समझती हूँ..."
मम्मी का सरप्राइज वाकई हैरान करने वाला था। उन्होंने मुझसे कोई सवाल नहीं किया - शायद इसलिए कि वे जानती थीं कि उन्होंने ही मुझे रौशनी के पास भेजा था। उन्होंने बस हल्दी वाला दूध और पेन किलर दिया, जिसके बाद मैं गहरी नींद में सो गया।
शाम को जब मम्मी ने मुझे उठाया, तो मेरा सिरदर्द काफी हद तक ठीक हो चुका था। "सोते ही रहोगी क्या? जल्दी से तैयार हो जाओ, श्रुति की शादी में जाना है!" मम्मी ने कहा। मैं तो पूरी तरह भूल ही गया था।
मैंने एक साधारण सलवार कमीज पहनने की कोशिश की, लेकिन मम्मी ने जोर देकर एक लाल लहंगा पहनाया। चूड़ियाँ, भारी मेकअप - मैं लाख मना करता रहा, लेकिन मम्मी ने मेरा मूड ठीक करने के नाम पर कोई समझौता नहीं किया।
शादी में अमित से मुलाकात
शादी के हॉल में जब मैं गिफ्ट देने जा रहा था, तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। पलटकर देखा तो वह अमित था - रौशनी का होने वाला पति।
"आप तो इस ड्रेस में बहुत खूबसूरत लग रही हैं," उसने चापलूसी भरी मुस्कान के साथ कहा। मैंने बस औपचारिकता से धन्यवाद दिया।
फिर उसने अपना कार्ड थमाते हुए कहा, "सगाई में तो बात नहीं हो पाई। कल मूवी देखने चलें?"
मैंने ठंडे स्वर में जवाब दिया, "अगले पांच दिन तो कोई चांस नहीं है। मम्मी से पूछकर बताती हूँ।"
"हर चीज मम्मी से पूछोगी क्या?" उसने मजाक उड़ाया।
"हाँ, बिल्कुल पूछूँगी," मैंने दृढ़ता से कहा।
तभी मैंने देखा - रौशनी हमसे कुछ ही दूरी पर खड़ी थी। मैंने उसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। मेरे मन में एक ही बात घूम रही थी - इस औरत को उसकी औकात दिखानी है।
बदले की आग
घर लौटकर मैंने जाने क्या सोचकर अमित को कॉल कर दिया। शायद यह मेरे अंदर धधक रही बदले की आग थी। रौशनी ने मेरे साथ जो किया, उसका जवाब देना था।
फोन पर अमित की खुशी साफ झलक रही थी। "कल शाम 7 बजे मूवी? मैं आपको पिकअप कर लूँगा," उसने उत्साह से कहा।
मैंने हाँ कह दिया। दिमाग में एक योजना बन रही थी - अमित के साथ जाना, फोटो खिंचवाना, और जानबूझकर उन्हें रौशनी तक पहुँचाना। उसे दिखाना था कि जिस आदमी से उसकी सगाई हुई है, वह उसकी ही सहेली के साथ कैसे पेश आ रहा है।
मम्मी ने जब मेरी इस प्लानिंग के बारे में सुना तो बस मुस्कुरा दीं। शायद वे समझ गईं कि उनकी बेटी (या यूँ कहें कि उनका बेटा जो बेटी के शरीर में है) अब किसी के बुली होने वाला नहीं।
अगले दिन के लिए तैयारी:
सबसे सेक्सी ड्रेस पहनकर जाना
अमित को पूरी तरह अपने जाल में फँसाना
सबूत इकट्ठा कर रौशनी तक पहुँचाना
रौशनी को पता चलना चाहिए कि उसने गलत इंसान से खिलवाड़ किया है। जब तक मैं उसे उसकी औकात नहीं दिखा देता, तब तक चैन नहीं मिलेगा।
अमित ने मेरा कॉल काट दिया... और कुछ ही पलों में खुद ही कॉल किया। मैंने फोन उठाया — शुरुआत में थोड़ी बहुत औपचारिक बातें हुईं, हालचाल, मौसम, काम की बातें। लेकिन फिर अचानक अमित की आवाज़ कुछ गंभीर हो गई।
"मुझे आपसे एक ज़रूरी बात करनी है," वो बोला, "क्यों न हम कहीं मिलें?"
मैंने साफ़ कहा, "नहीं, मैं नहीं आ पाऊँगी।"
पर अमित जैसे मानने को तैयार ही नहीं था। बार-बार विनती करने लगा — आवाज़ में अजीब सी बेचैनी थी। आखिरकार, मैंने झुंझला कर "ठीक है" कह ही दिया।
उसने मुझे अपने घर बुलाया था।
जब मैं वहाँ पहुँची, तो मेरे मन में यही विचार था कि उसके माता-पिता घर पर होंगे, इसलिए एक अजीब सा भरोसा था, एक ढाल-सी सुरक्षा। लेकिन जैसे ही मैं दरवाज़े के भीतर कदम रखी, अमित मुस्कराते हुए बोला,
"रिलैक्स रहो, घर पर कोई नहीं है।"
और फिर बिना मुझे कुछ कहने का मौका दिए, वो मेरे लिए चाय बनाने किचन में चला गया।
थोड़ी देर बाद अमित ट्रे में चाय लेकर लौटा। उसका व्यवहार बेहद शालीन और आदर से भरा हुआ था। उसने मेरे सामने चाय रखी और फिर खुद सामने वाले सोफे पर जाकर बैठ गया।
उसने चाय की एक चुस्की ली और मुझसे भी पीने की दरख्वास्त की। मैंने चाय उठाई और एक घूंट भरते हुए पूछा,
"हाँ, अब बताइए — आप कुछ कहना चाह रहे थे?"
अमित की बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि वो कुछ बोलना चाहता है — बहुत ज़रूरी कुछ — लेकिन शब्द जैसे गले में अटके हुए हों। चेहरा असहज, आँखों में झिझक, और होंठों पर अनकही बातें।
मैंने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा,
"कम्फर्टेबल हो जाइए… बताइए क्या बात है। घबराइए मत।"
अमित ने नजरें चुराते हुए धीमे से कहा,
"मुझे आपसे कुछ कहना है… पर थोड़ी सी झिझक है। पता नहीं आप क्या सोचेंगी मेरे बारे में… मेरी बात जानने के बाद।"
उसने बोलने के लिए मुँह खोला… पर फिर सोच में पड़कर बात अधूरी छोड़ दी।
मैंने हँसते हुए कहा,
"अरे आप तो लड़कियों की तरह शर्मा रहे हैं! प्लीज़ अब पूरी बात बताइए, वरना मैं जा रही हूँ!"
"देखिए… आप प्लीज़ नाराज़ मत होईए," अमित ने धीमी आवाज़ में कहा, जैसे किसी बहुत भारी बोझ को शब्दों में उतारने की कोशिश कर रहा हो। "मैं… मैं कोशिश करता हूँ बताने की।"
मैंने उसकी आँखों में देखा — कुछ डर, कुछ घबराहट, लेकिन सबसे ज़्यादा एक ईमानदारी सी दिख रही थी।
"ओके," मैंने नर्मी से कहा, "बताइए अब… शर्माने की कोई बात नहीं है। वैसे भी हमारी शादी होने वाली है, तो अगर कुछ कहना है तो प्लीज़, कह दीजिए।"
अमित ने गहरी साँस ली और मेरी ओर देखा,
"सही कहा आपने… हमारी शादी होने वाली है। और इसलिए ही मैंने आपको यहाँ बुलाया है। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आपको शादी के बाद कुछ ऐसा पता चले… जिससे आप खुद को ठगा हुआ महसूस करें।"
अब माहौल अचानक गंभीर हो गया था। उस कमरे की हवा तक भारी लगने लगी थी। मैं थोड़ा सतर्क हो गई, लेकिन मैंने खुद को सँभाला।
"अमित," मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "आप निश्चिंत होकर कहिए। जो भी बात है, खुलकर कहिए। मैं सुनने के लिए तैयार हूँ।"
"ठीक है," उसने कहा, "पर उससे पहले… एक सवाल पूछना चाहता हूँ आपसे।"
"पूछो," मैंने सिर हिलाया।
"मैं तो आप पर ट्रस्ट कर रहा हूँ," वो बोला, "अपने दिल की बात आपके सामने रखने जा रहा हूँ… लेकिन क्या आपको मुझ पर भरोसा है?"
मैंने बिना ज्यादा सोचे "हाँ" कह दिया। शायद प्यार में ऐसा ही होता है।
"थैंक गॉड…" अमित ने जैसे राहत की साँस ली। "तो फिर… आपको एक काम करना पड़ेगा।"
"क्या?" मैंने पूछा।
"आप अपनी आँखें बंद करके अपनी जगह पर खड़ी हो जाइए।"
मैं थोड़ी चौंकी, "पर आँखें क्यों बंद कराऊँ?"
"प्लीज़… बस एक बार आँखें बंद करो न," वो लगभग विनती करता-सा बोला।
मेरे भीतर एक जिज्ञासा थी — आखिर वो कहना क्या चाहता है? ये सब किस बारे में है? शायद कुछ रोमांटिक, शायद कोई सरप्राइज़। सोचकर मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं।
लेकिन जैसे ही मैंने आँखें बंद कीं… एक पल में सब कुछ बदल गया।
अमित ने अचानक मेरे दोनों हाथ मेरी पीठ के पीछे से पकड़ कर ज़ोर से बांध दिए। रस्सी जैसे कुछ से।
"अमित!!" मैं चीखी, "ये क्या कर रहे हो तुम? मेरे हाथ… छोड़ो! बहुत दर्द हो रहा है… मम्मी!!"
मैं डर के मारे काँप रही थी। आँखें खोलीं तो खुद को बिलकुल असहाय पाया। मुझे समझ नहीं आ रहा था, ये क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है।
अमित ने मेरी तरफ शांत, लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा,
"प्लीज़… शांत हो जाइए। मैं आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। बस थोड़ी देर… को-ऑपरेट कीजिए।"
अमित की आवाज़ में वो अजीब सी रिक्वेस्टिंग टोन थी — न कमज़ोर, न मज़बूत — पर जो सीधे दिल तक पहुँच रही थी। उसका चेहरा भी वैसा ही था… मासूम, लेकिन बोझिल। शायद सच्चाई का बोझ। उसकी आँखों में कुछ था, जो किसी झूठ की कहानी नहीं कह सकता था।
मैंने अपनी साँस रोकी… और फिर खुद को उसके हवाले कर दिया। जो होना था, हो जाए।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, और खुद को ढीला छोड़ दिया। वो धीरे-धीरे मेरे दोनों हाथों को मेरी पीठ के पीछे बाँधता रहा। उसके हर मूवमेंट में जैसे कोई तसल्ली ढूंढ रहा हो — कि मैं विरोध नहीं कर रही।
जब वो निश्चिंत हो गया कि अब मैं अपने हाथ खोल नहीं सकती, तो उसने रस्सी का दूसरा सिरा कमरे की खिड़की के ग्रिल से बाँध दिया।
उसके बाद उसने मुझे धीरे से पकड़कर बेड पर बैठाया — जैसे किसी नाज़ुक चीज़ को जगह दे रहा हो।
फिर वो खुद सामने वाले बेड पर जाकर बैठ गया। कुछ देर तक वो भी चुप था, और मैं भी।
मैंने थोड़ी हिम्मत जुटाई, और बोली,
"तो… मिल गई तसल्ली? अब बताओगे कि हो क्या रहा है? क्यों बाँध दिया तुमने मुझे?"
अब तक मैं ‘आप’ से ‘तुम’ पर आ चुकी थी — शायद इसलिए नहीं कि वो अब मेरा नहीं था, बल्कि इसलिए कि मुझे उससे हिसाब चाहिए था।
मगर फिर भी… हालात ऐसे थे कि मेरा ही पॉइंट कमज़ोर पड़ता। मैं उसके घर आई थी, जब वो अकेला था। और ऊपर से मेरे हाथ बंधे हुए थे। दुनिया तो उल्टा मुझे ही दोष देती —
"उसने ही उकसाया होगा…" "कपड़े कैसे थे उसके?" "क्यों गई थी अकेली लड़के के घर?"
इन बातों की गूंज मेरे दिल में शोर करने लगी थी। इसलिए मैं चुप रही। उसके जवाब का इंतज़ार करती रही।
अमित उठकर धीरे-धीरे मेरी तरफ आया। मेरे बेहद क़रीब बैठ गया। इतना क़रीब कि मैं उसकी साँसें महसूस कर सकती थी।
फिर उसने धीरे से कहा —
"मैं बस ये कहना चाहता हूँ कि… मैं आपसे शादी नहीं करना चाहता।"
एक सेकंड को तो लगा जैसे किसी ने मेरे कानों में बर्फ़ डाल दी हो।
"पर… घरवालों से साफ़ मना करना मेरे लिए पॉसिबल नहीं है। और आप इतनी अच्छी लड़की हैं कि आप में कोई कमी निकालना भी मुझे अपने ज़मीर पर बोझ जैसा लगता है… इसलिए मैंने आपको यहाँ बुलाया।"
उसकी बात सुनकर मेरे अंदर अजीब सी शांति उतर आई — ख़ुशी के लड्डू फूटे, मगर मैं उन्हें अपने चेहरे पर नहीं आने देना चाहती थी।
मैंने उसकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा —
"चीज़ें इतनी आसान नहीं हैं, जितनी तुम मुझे दिखा रहे हो। तुम शादी नहीं करना चाहते… ठीक है। पर क्यों? क्या कोई और लड़की है तुम्हारी ज़िंदगी में?"
अमित ने तुरंत जवाब दिया —
"नहीं… मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।"
मैंने एक और सवाल दागा —
"तो क्या तुम्हारा कोई सपना है? कोई पढ़ाई, कोई नौकरी, या कोई बिज़नेस का प्लान, जिसकी वजह से तुम शादी नहीं करना चाहते?"
उसने सिर हिला कर जवाब दिया —
"नहीं… ऐसा भी कुछ नहीं है।"
अब मैं चुप हो गई। उसे एक नज़र ऊपर से नीचे तक देखा — हर हावभाव पढ़ने की कोशिश की। फिर कुछ पल रुककर बहुत धीरे से पूछा —
"तो फिर… बात क्या है, अमित?"
अब कमरे की हवा सचमुच बदल चुकी थी।

अमित थोड़े संकोच में लग रहा था। वो अपनी ऊँगलियों को आपस में मसलते हुए जैसे शब्द खोज रहा हो। लेकिन जब मैंने दो-तीन बार नरमी से पूछा, तो आखिरकार बहुत धीमी आवाज़ में बोला:
"मुझे क्रॉसड्रेसिंग पसंद है…"
मैंने चौंकते हुए उसकी तरफ देखा — उसकी शक्ल जैसे कुछ छिपा लेने के बाद राहत की उम्मीद कर रही हो।
"क्या पसंद है? मैं समझी नहीं..." मैंने उलझे हुए स्वर में पूछा।
अमित ने गहरी साँस ली और फिर दोबारा बोला,
"मुझे लड़कियों की तरह कपड़े पहनना अच्छा लगता है… साड़ी, चूड़ियाँ, बिंदी… ये सब।"
मैं एकदम हैरान थी।
"ये कैसा शौक है अमित? कोई लड़का क्यों चाहेगा लड़की की तरह बनना?" मैंने थोड़े व्यंग्य और थोड़ी जिज्ञासा से पूछा।
अमित हल्का सा मुस्कराया, जैसे वो पहले से जानता था कि मेरी यही प्रतिक्रिया होगी।
"मैं जानता हूँ कि ये सुनने में अजीब लगेगा, पर ये सिर्फ शौक नहीं है… ये मेरी पहचान का हिस्सा है।"
फिर उसने मुझे पूरी तरह समझाया — क्रॉसड्रेसिंग क्या होता है, कैसे उसे इसमें सुकून मिलता है, और ये कोई बीमारी या कमजोरी नहीं, बल्कि एक अहसास है, जो उसे पूरा बनाता है।
मैंने थोड़ी शरारत के साथ कहा,
"देखो, मैं तो मानने वाली नहीं हूँ जब तक तुम करके न दिखाओ। अगर सच में इतना पसंद है तो दिखाओ न!"
अमित मेरी आंखों में देखता हुआ बोला,
"ठीक है, लेकिन ये मेरे लिए एक रियल टेस्ट है… तुम्हारा रिएक्शन मेरे लिए बहुत मायने रखता है।"
और फिर… वो उठा। मेरे पास आया और मेरी आँखों पर एक काले रंग का रूमाल बांधते हुए बोला,
"ये तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ पैकेज है। लेकिन एक वादा करो — जब तक मैं न कहूँ, आंखें मत खोलना।"
मैंने हँसते हुए कहा,
"ठीक है बाबा, नहीं खोलूंगी।"
मेरे हाथ पहले से ही बंधे थे। अब आँखें भी बंद थीं। मेरे पास कोई रास्ता नहीं था — सिर्फ इंतज़ार।
मैंने खुद को पीछे कुशन में टेक लिया और अमित के लौटने का इंतज़ार करने लगी।
कुछ देर बाद कमरे में पायल की धीमी-सी छमछम सुनाई दी — बहुत नाजुक सी।
फिर अमित मेरे कान के पास आकर धीरे से बोला,
"अब मैं तुम्हारी आँखें खोल रहा हूँ… लेकिन जब तक कहूँ नहीं, तब तक मत खोलना।"
"ठीक है…" मैंने धीरे से कहा।
रूमाल हटा। उसकी साँसों की हल्की गर्मी अब भी मेरे चेहरे पर थी। फिर कुछ सेकंड बाद वो मेरी आँखों के सामने आकर खड़ा हुआ और बोला:
"अब… खोलो अपनी आँखें।"
मैंने अपनी पलकों को धीरे-धीरे खोला — और सामने का नज़ारा देख कर मेरी साँसें थम गईं।
मेरे सामने कोई लड़का नहीं था।
बल्कि… एक बेहद खूबसूरत लड़की खड़ी थी।
ब्लैक नेट का डिज़ाइनर ब्लाउज़… येलो और पर्पल की डबल टोन साड़ी…
हाथों में रेड और वाइट की चूड़ियाँ…
आँखों में परफेक्ट काजल, होंठों पर डार्क रेड लिपस्टिक…
और बाल — लंबे, सिल्की, शोल्डर तक बिखरे हुए, शाइन करते हुए।
वो अमित नहीं था।
वो कोई और था — "रौशनी"।
मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। अगर मेरे हाथ खुले होते और मैं अभी भी ‘राकेश’ होता, तो शायद बिना सोचे समझे उसे कस कर गले लगा लेता।
वो इतनी सुंदर लग रही थी कि यकीन करना मुश्किल था कि ये वही लड़का है — अमित।
मैंने खुद को सँभाला और कहा,
"क्या… ये अमित है?"
सामने से आवाज़ आई,
"हाँ… ये अमित ही है।"
मैं थोड़ी देर देखता रहा, फिर मुस्कराते हुए कहा,
"वाह अमित… तुम तो लग ही नहीं रहे लड़के। तुम तो लड़कियों से भी ज्यादा खूबसूरत लग रहे हो। सच कहूँ तो अगर मैं लड़का होता और तुम यूँ मिलती… तो तुमसे शादी कर लेता!"
ये वो लाइन थी जो मैं कभी मज़ाक में लड़कियों को पटाने के लिए बोलता था — पर आज… पहली बार किसी को दिल से कहा।
अमित मेरे सामने खड़ा-खड़ा शरमा रहा था… उसकी पलकों में जो चमक थी, वो किसी आईने से ज़्यादा पारदर्शी थी।
मैंने फिर मुस्कराते हुए कहा,
"अच्छा… अब तो मेरे हाथ खोल दो। अब मैं नाराज़ भी नहीं हूँ। और सच बताऊँ… तुम्हारा ये रूप देख कर गला भी सूख गया है। ज़रा पानी तो पिला दो।"
अमित हँसते हुए बोला,
"अभी लाता हूँ।"
जैसे ही वो मुड़ा — उसके कदमों से फिर वही छम-छम-छम की मधुर पायल की आवाज़ उभरी…
उसकी चाल, उसकी साड़ी की लहर, उसकी पायल — सब कुछ जैसे किसी दूसरी दुनिया से आया था।
मैंने उस आवाज़ को महसूस करते हुए आँखें मूँद लीं…
ये सच था — या सपना — मुझे अब फर्क नहीं पड़ रहा था।
अमित पानी लेकर आया, धीरे से उसे टेबल पर रखा। उसके क़दमों की पायल अब भी धीमी-धीमी छनक रही थी। उसने कुछ पल मेरी तरफ देखा और फिर मेरी पीठ की ओर आकर झुका। उसके हाथ मेरे बंधे हुए हाथों की रस्सी पर पहुँचे, मगर उससे पहले उसकी आवाज़ मेरी पीठ में धँसती चली गई—
"आप नाराज़ तो नहीं हैं मुझसे?"
मैंने बिना मुड़े जवाब दिया —
"अरे नहीं… इसमें नाराज़ होने जैसी कोई बात ही नहीं है।"
फिर मैं हँसा, एक हल्की-सी, असली वाली हँसी।
"सच कहूँ तो, तुम अपने फीमेल अवतार में ज़्यादा अच्छे लगते हो अमित… या कहूँ रौशनी?"
उसने रस्सियाँ धीरे-धीरे खोलीं और शरमा गया। उसकी मुस्कराहट में एक बच्चा छिपा था, जिसे किसी ने पहली बार "तुम जैसे हो वैसे ही ठीक हो" कह दिया हो।
जैसे ही मेरे दोनों हाथ आज़ाद हुए, मैंने कलाई को थोड़ा घुमाया, झटका दिया… और टेबल से पानी का ग्लास उठाकर धीरे-धीरे घूंट लिया।
अमित अब भी चुपचाप मेरे सामने खड़ा था, जैसे कुछ कहना चाह रहा हो, मगर शब्द नहीं मिल रहे।
मैंने पूछा, "अब चलूँ? मुझे घर भी तो जाना है…"
इतना सुनते ही उसका चेहरा उतर गया। उसकी आँखों की कोरों में कुछ भीगता हुआ सा चमकने लगा।
"तो अब आप मुझसे कभी नहीं मिलेंगी, है न? और मेरे सच को जानने के बाद… मेरी शादी भी तोड़ देंगी, है न?"
उसकी आँख से एक आँसू लुढ़क कर गाल पर गिर गया। मैं ठहर गया।
मैंने नहीं सोचा था कि उसका सच इतना नाज़ुक होगा। पर सबसे बड़ा सच ये था कि वो अपनी सच्चाई को कबूलते हुए भी डर रहा था — मेरी प्रतिक्रिया से नहीं, मेरी दूरी से।
मुझे पता नहीं क्या हुआ… शायद उसकी मासूमियत, या शायद उसका डर…
मैंने उठकर उसे कस के गले से लगा लिया।
उसके कंधे पर सिर रखा और बस इतना ही बोल पाया —
"नहीं, पागल… मैं तुमसे शादी नहीं तोड़ूँगी।"
वो थोड़ा चौंका। फिर धीमे से बोला,
"पर… एक शर्त पर?"
मैंने आँखों में झाँकते हुए कहा,
"हाँ। शादी मेरी शर्तों पर होगी।"
उसकी आँखों में एक प्रश्न चुपचाप चमका।
मैंने उसकी ठोड़ी ऊपर उठाई और कहा —
"शादी के बाद… घर के सारे काम तुम करोगे। बाहर की ज़िम्मेदारी मेरी होगी — कमाना, लोगों से लड़ना, समाज से जूझना।
लेकिन घर के अंदर… तुम मेरी बीवी बनोगे। मैं तुम्हारा पति बनूँगी।
कपड़े, रसोई, झाड़ू-पोंछा, वॉशिंग मशीन… सब तुम्हारी जिम्मेदारी होगी।
बाहर की दुनिया तुम्हें 'मेरे हस्बैंड' कहेगी — पर घर के अंदर तुम 'मेरी बीवी' बनोगे।
क्या तुम तैयार हो इस समझौते के लिए?"
कुछ पल की चुप्पी के बाद वो सिर झुकाकर बोला —
"मुझे मंज़ूर है। अगर आप मुझे वैसे ही स्वीकार करती हैं जैसे मैं हूँ… तो मैं आपकी हर शर्त मानने को तैयार हूँ।"
उसने मेरे हाथ को दोनों हाथों से पकड़ लिया और कहा —
"मैं वादा करता हूँ।"
मैंने हल्के से मुस्कराते हुए कहा —
"मैं ऐसे वादों पर भरोसा नहीं करती।"
वो थोड़ा चौंका — "तो फिर?"
"अपने मम्मी-पापा की तस्वीर लाओ… और उस पर हाथ रखकर कसम खाओ कि तुम मुझे धोखा नहीं दोगे।"
अमित बिना एक सेकंड गंवाए अलमारी से अपने माता-पिता की तस्वीर निकाल लाया।
उसने हाथ रखा और बोला —
"मैं अमित उर्फ़ रौशनी, कसम खाता हूँ कि कभी भी अपनी पहचान, अपने प्यार और अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटूँगा।"
मैंने उसकी ओर देखा —
"अब मैं तुम पर यकीन कर सकती हूँ। और हाँ… क्या मैं तुम्हारी एक तस्वीर ले सकती हूँ?"
वो थोड़ी देर के लिए चुप रहा… शायद उसके दिमाग में डर था कि मैं उसकी तस्वीर का इस्तेमाल कहीं और न करूँ। लेकिन फिर उसने कहा —
"आप पर मुझे भरोसा है कि आप मेरी तस्वीर का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगी।"
मैंने फुल साइज एक तस्वीर ली — जिसमें रौशनी मुस्कराती हुई खड़ी थी — अपनी साड़ी में, चूड़ियों के साथ, नथ में चमकती एक छोटी सी मोती, और आँखों में सुकून।
मैं वहाँ से निकल गई।
पर इस बार मैं एक अजीब सुकून में थी। अमित अब मेरे लिए खतरा नहीं था। अब असली चुनौती थी — रौशनी।
जिसे लग रहा था कि मैं अब भी कमजोर हूँ… पर असल में उसने मुझे पहचानने में गलती कर दी थी।
मेरे दिमाग में अब एक नया प्लान था — एक फुल प्रूफ गेम, जिसमें अमित और रौशनी दोनों को अपनी असली जगह दिखानी थी।
घर पहुँचते ही, मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया।
शायद राकेश से रौशनी बनने के बाद — ये पहला दिन था जब मुझे डर नहीं था।
न कोई पछतावा, न ही दर्द।
मैं अपने आप से, अपने अस्तित्व से… पहली बार खुश था।
और जब दिल खुश होता है, तो चेहरा अपने आप चमकने लगता है…
और नींद…?
वो तो ऐसी आई जैसे कोई सुकून का दरिया बहता हो।
मैं बिस्तर पर गिरा और गहरी नींद में चला गया…
सब कुछ भूल कर।
सुबह आँख खुलते ही उसने सबसे पहले मोबाइल उठाया। अमित के कई मिस्ड कॉल्स स्क्रीन पर झिलमिला रहे थे। उसकी उंगलियाँ अपने आप ही डायल पैड पर चली गईं। कॉल बैक किया। जैसे ही अमित ने फोन उठाया, आवाज में एक हल्की सी घबराहट साफ झलक रही थी, "तुम नाराज़ तो नहीं हो न? मैंने इतने कॉल किए… तुमने रिसीव नहीं किया।"
वो मुस्कराई, उसकी बेचैनी उसे अच्छी लगी। “अरे नहीं बाबा, नाराज़ क्यों होऊंगी? बस सो रही थी… और वो भी तुम्हारी वजह से। बहुत दिनों बाद चैन की नींद आई है मुझे… सोच सोच कर बहुत परेशान थी के तुम कैसे इंसान निकलोगे। पर अब, तुमसे मिलकर मन एकदम रिलैक्स है।”
अमित की साँसें जैसे हल्की हो गई हों। "शुक्र है तुम नाराज़ नहीं हो।" वो बोला।
बातचीत चल ही रही थी कि रौशनी का कॉल वेटिंग में आ गया। उसने बिना झिझक वेटिंग में डाल दिया — उस वक्त, अमित ज़्यादा ज़रूरी था।
"तुम बहुत अच्छी हो," अमित ने एकदम दिल से कहा।
उसने हँसते हुए जवाब दिया, "वो तो मैं हूँ ही... लेकिन तुम मुझसे भी अच्छे हो — नेचर में भी और मेकअप में भी।"
अमित को कुछ समझ नहीं आया, "मतलब मेकअप में भी?"
वो खिलखिलाकर बोली, "सच बताऊँ तो मुझे मेकअप करना ही नहीं आता। कोई क्रीम-फ्रीम यूज़ नहीं करती। शादी या पार्टी हो तो मम्मी जो लगा दे, चुपचाप लगवा लेती हूँ। खुद से कुछ नहीं करती। लगता है मैं लड़का होना चाहिए थी… गलती से लड़की बन गई। और तुम्हें तो सच में लड़की ही होना चाहिए था!"
अमित हँस पड़ा। उसकी हँसी में ना कोई झिझक थी, ना कोई शर्म।
"तो क्या आज मेरे घर आओगी थोड़ी देर के लिए?" अमित ने सीधे-सीधे पूछा।
"आ तो जाऊँ," वो बोली, "पर मम्मी जबरदस्ती साड़ी पहनाकर ही भेजेंगी। जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं है।"
"तो पहनती क्या हो?" अमित ने पूछा।
"जीन्स और टीशर्ट," उसने तपाक से जवाब दिया।
अमित ने फौरन कहा, "बस इतनी सी बात है? मैं तुम्हारे लिए जीन्स और टीशर्ट लेकर आता हूँ और तुम्हारी मम्मी से कह दूँगा कि अब से तुम सिर्फ वही पहनो। मुझे ऐसी ही लड़कियाँ पसंद हैं।"
वो चुप हो गई। थोड़ी देर बाद बोली, "सच में लाओगे या मुझ पर रौब जमा रहे हो?"
"रौब तो अब तक देखा कहाँ है?" अमित ने हँसते हुए कहा। "बस अपना साइज बताओ।"
वो मुस्कराई, फिर थोड़ी नटखट सी होकर बोली, "साइज तो तुम्हें पता ही है..." और कॉल काट दिया।
उसे पूरा यकीन था — अमित आएगा ज़रूर।
जल्दी से नहाकर तैयार हुई। जानबूझकर मम्मी से बोली, "मुझे साड़ी पहना दो।" मम्मी चौंकीं, "कहीं जा रही है क्या?"
उसने मुस्कराकर कहा, "हाँ... तुम्हारे दामाद आने वाले हैं।"
"चल झूठी!" मम्मी ने हँसते हुए कहा।
पर साड़ी पहनाने में उन्होंने देर नहीं लगाई। उसने ज़्यादा तामझाम नहीं किया, बस एक सिंपल पोनीटेल बना ली और अपने कमरे में जाकर अमित का इंतज़ार करने लगी।
करीब दो घंटे बाद अमित आया — हाथ में एक प्यारा सा गिफ्ट पैक और मिठाई का डिब्बा लिए। मम्मी ने पानी और चाय दी। उसे आवाज़ लगाई।
वो बाहर आई, हल्के से मुस्कराई और अमित के पास बैठते हुए फुसफुसाकर बोली, "तुम तो सच में आ गए?"
"तुमने बुलाया और हम चले आए," अमित ने जवाब दिया।
"आओ तुम्हें अपना कमरा दिखाऊं," उसने कहा और अमित को अंदर ले गई।
कमरे में पहुँचकर बोली, "क्या यार, ऐसे ही चले आए? लड़कियों वाला कुछ भी नहीं पहना!"
अमित हँसा, "वो तो सब अंदर कमरे में करता हूँ, बाहर तो आम लड़कों वाली ही ज़िंदगी जीता हूँ।"
"अब ऐसा नहीं चलेगा," वो मुस्कराकर बोली। "जब भी मुझसे मिलोगे, कुछ न कुछ तो लड़की वाला पहनना ही पड़ेगा।"
"जैसे?" अमित ने पूछा।
उसने कुछ देर सोचा, फिर धीरे से बोली, "बाकी सब तो बाहर से दिख जाएगा, लेकिन... पैंटी तो तुम पहन ही सकते हो। वो तो बाहर से दिखेगी भी नहीं।"
अमित थोड़ी देर चुप रहा, फिर हल्के से मुस्कराकर बोला, "ये बात तो सही है।"
"तो फिर?" वो बोली, "कहते हैं — काल करे सो आज कर, आज करे सो अब!"
उसने अपनी अलमारी से एक प्यारी सी नई पिंक पैंटी निकाली और अमित को पकड़ाते हुए जबरन वॉशरूम में धकेल दिया। "ये मेरी तरफ से गिफ्ट है तुम्हारे लिए। पहन कर जल्दी बाहर आओ!" दरवाज़ा बंद कर दिया।
कुछ मिनटों बाद अमित शरमाते हुए बाहर आया। आँखें झुकी थीं, पर मुस्कराहट बिखरी हुई थी। दोनों खिलखिलाते हुए बाहर निकले और मम्मी के पास आ गए।
अमित ने मिठाई मम्मी को दी और गिफ्ट उसे थमाया। उसने गिफ्ट खोला — ब्लू डेनिम जीन्स और ब्लू लाइनिंग वाली V-नेक टीशर्ट। उसने ऐसा जताया मानो उसे पसंद न आई हो, लेकिन मन ही मन… लड्डू फूट रहे थे।
अमित बोला, "आप पहनकर तो देखिए, बहुत अच्छे लगेंगे आप पर। और अगर पसंद न आए तो वापस करके नए ले आउंगा।"
मम्मी की आँखों में देखा… और वो समझ गईं। कोई शब्द नहीं, बस एक हल्का सा सिर हिलाना — और जैसे दुनिया की सबसे बड़ी इजाज़त मिल गई हो।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और मन ही मन खुद से कहा — "आज फिर से मैं खुद को पहनूंगा..."
कितने दिन बीत गए थे इस एहसास के बिना! साड़ी, ब्लाउज़, पेटीकोट — सब जैसे एक जेल की तरह लगने लगे थे… और आज पहली बार, दरवाज़ा खुला था।
तेज़ी से अपने कमरे की ओर भागा। जैसे ही दरवाज़ा बंद किया, वो पहली सांस ली जो आज़ादी की खुशबू से भरी थी।
साड़ी उतारी — धीरे नहीं, तेज़ी से — जैसे कोई कैदी अपनी जंजीरें उतारता है।
ब्लाउज़ भी उसी जोश में बिस्तर पर फेंक दिया।
पेटीकोट को जैसे कोई पुराना बोझ समझकर उछाल दिया गया।
अब बारी थी उस पल की जिसे वो दिल से जीना चाहता था।
जीन्स...
वो नई, नीली डेनिम जीन्स उसके हाथों में थी। जैसे किसी पुराने दोस्त को गले लगाने जा रहा हो।
पैर अंदर डाले, जीन्स ऊपर खींची, हुक लगाया, ज़िप बंद की…
एक हल्की सी सास ली — जैसे खुद को फिर से महसूस किया।
फिर उसने वो V-नेक ब्लू लाइनिंग टीशर्ट उठाई — पहनते ही जैसे रूह तक ठंडी हवा उतर आई हो।
आईने के सामने खड़ा हुआ, बालों को थोड़ी स्टाइल दी, साइड में झटके से सेट किया।
फिर घड़ी पहनी — बाएं हाथ में, जैसे समय को भी गवाही देनी हो कि अब वो बदल चुका है।
दरवाज़ा खोला।

जैसे ही मैं कमरे से बाहर आया — जीन्स और टीशर्ट में — अमित की आँखें चमक उठीं।
वो मुस्कराया और बोला,
"देखा! मैंने कहा था न — आप पर यही सबसे अच्छा लगता है। मेरी मानिए, अब हमेशा यही पहनिए। यही रौशनी है — बिना बोझ की, आज़ाद।"
मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी, पर अमित ने तो जैसे ठान ही लिया था कि आज मेरा पूरा जीवन बदल देना है।
अचानक वो मम्मी की ओर मुड़ा और उनसे बड़े ही अपनेपन से बोला,
"मम्मीजी, अब रौशनी को उसकी मर्ज़ी के कपड़े पहनने दीजिए। आपकी बेटी जैसी है, वैसे ही सबसे खूबसूरत है।"
फिर तो उसने पापा को भी फोन मिला दिया — और हँसते हुए, बड़े ही आत्मविश्वास से कहा,
"पापा, मैं चाहता हूँ कि रौशनी अब से वही पहने जो उसे अच्छा लगे। उसे अब आपकी कोई बंदिश न झेलनी पड़े — क्योंकि जब दामाद को कोई ऐतराज़ नहीं, तो और किसे होना चाहिए?"
पापा चुप थे, लेकिन उनकी चुप्पी में भी स्वीकृति थी।
मम्मी ने भी मुस्कराते हुए सिर हिला दिया।
मेरे मन में जैसे खुशियों का तूफ़ान आ गया हो।
लड्डू नहीं… पूरा कढ़बोरी फट पड़ा मन के भीतर।
अमित ने मेरी ओर देखा और बोला,
"चलिए, अब बाहर चलते हैं। पास में सेल लगी है। कुछ और अच्छे कपड़े दिलाता हूँ आपको!"
अब मम्मी क्या बोलतीं — जब पापा की बोलती ही अमित ने बंद कर दी थी। उन्होंने भी हाँ कह दिया।
हम दोनों घर से बाहर निकले —
मैं आज जैसे जी रही थी, वैसे पहले कभी महसूस ही नहीं किया था।
जीन्स और टीशर्ट में जो आत्मविश्वास था, वो साड़ी में कभी नहीं था।
हिल्स भी आज हल्की लग रही थीं। जैसे पाँव नहीं, सपनों पर चल रही हूँ।
सेल वाली दुकान पर पहुँचकर अमित ने मुझे एक से बढ़कर एक जीन्स, टॉप्स और टीशर्ट्स दिलाईं।
और मैंने...
मैंने भी बदला चुकाया।
ब्लू सिल्क की साड़ी, चमचमाती रेड चूड़ियाँ, एक प्यारा सा आर्टिफिशल नेकलेस और झुमके।
"ये तुम्हारे लिए…" मैंने कहा —
अमित हँसा, लेकिन उसके आँखों में एक हल्की सी शर्म, एक हल्का सा अपनापन था।
घर लौटने से पहले अमित ने मेरा हाथ थामा और बोला,
"एक बात मानेंगी मेरी?"
मैंने उसकी आँखों में देखा और मुस्कराकर कहा,
"तुमने मुझे इतनी खुशियाँ दी हैं... एक नहीं, हजार बातें मान लूंगी। बोलो।"
वो थोड़ा झिझका, फिर बोला,
"ज़्यादा नहीं... बस ये कि — क्या आप मेहंदी लगवा लेंगी? आज?"
मैं थोड़ा चौंकी —
"मेहंदी? अचानक?"
वो धीमे से बोला,
"मुझे बहुत पसंद है मेहंदी… लेकिन मैं लड़का हूँ न, तो लगवा नहीं सकता।"
मैं उसकी मासूम सी ख्वाहिश पर मुस्करा दी, और बोली —
"बस इतनी सी बात? जब मुझसे शादी करोगे, तब रोज़ तुम्हारे हाथों में मैं खुद अपने हाथ से मेहंदी लगाऊंगी। आज तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए लगवा लेती हूँ।"
हमने पास की दुकान में बैठकर मेहंदी लगवाई — हथेलियों पर फूल, पत्तियाँ और बीच में उसका नाम छुपा हुआ।
मेहंदी सूखने तक अमित ने मेरे साथ कई प्यारी साड़ी और जीन्स वाली सेल्फी खींचीं —
हर तस्वीर में एक कहानी थी।
फिर वो मुझे घर पर छोड़ने आया — और जाते जाते मेरी ओर मुड़कर मुस्कराया।
अमित मुझे स्कूटर पर ड्रॉप करके चला गया, और मैं अपने दोनों हाथों में शॉपिंग के भारी-भरकम पैकेट्स उठाए घर में दाखिल हुई। पैरों में थकावट थी, लेकिन दिल में इतनी हल्की-सी खुशी थी कि जैसे कोई बड़ा सपना आज पहली बार अपने नाम हुआ हो।
मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला, मम्मी की नज़र सीधे पैकेट्स पर पड़ी।
"ये सब क्या है? कैसे-कैसे कपड़े लायी है तू?"
मम्मी के स्वर में थोड़ी हैरानी और थोड़ी चिंता मिली हुई थी।
मैंने कोई सफाई नहीं दी, बस मुस्कराकर कह दिया —
"कुछ भी नहीं मम्मी, ये सब मैं नहीं लाई… तुम्हारे दामाद ने दिलवाया है। मैं तो मना ही कर रही थी, पर वो ही नहीं माने। कह रहे थे, अब से यही पहनना है। अपने घर में भी वो मुझे यही सब पहनाएंगे — तो अभी से आदत डाल लूं… आगे काम आएगी!"
मम्मी थोड़ी देर चुप रहीं, कपड़े एक-एक कर देखती रहीं।
कभी जीन्स को पलटकर देखतीं, तो कभी टीशर्ट की नेकलाइन को।
फिर एक लंबी सांस लेकर बोलीं —
"ठीक है… उनकी बात भी सही है। पर एक बात सुन — पापा के सामने मत पहनना ये सब। नाराज़ हो जाएंगे वो।"
मैंने मुस्कराते हुए कहा,
"ठीक है मम्मी, पापा के सामने सिर्फ वही पहनूंगी जो उन्हें अच्छा लगे… पर आप खुश हैं न?"
मम्मी ने धीरे से सिर हिलाया — वो शब्दों से ज़्यादा आँखों से कह रही थीं।
मैं अपने कमरे में आ गई। दरवाज़ा बंद किया… और जैसे ही पैकेट्स को बेड पर रखा, मेरा मन खुद से ही सवाल पूछने लगा।
"क्या यही ज़िंदगी है जो मैं जीना चाहती थी?
क्या रौशनी अब वो बन सकती है, जो उसने हमेशा महसूस किया?
क्या अमित सचमुच मुझे उस आज़ादी, उस अपनापन और उस पहचान के साथ स्वीकार कर सकता है?"
मैं जानती थी कि अमित ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है — लेकिन मैं भी कोई अधूरी मोहब्बत नहीं चाहती थी।
इस रिश्ते में अगर वो सच में उतरना चाहता है,
तो एक अग्नि परीक्षा देना उसके लिए भी ज़रूरी था।
रौशनी को अब खोना नहीं था — पर खुद को पूरी तरह सौंपने से पहले, ये जानना ज़रूरी था कि अमित उस रौशनी को पूरी तरह स्वीकार कर पाएगा या नहीं।
मैं मन ही मन उस अग्निपरीक्षा की तैयारी कर रही थी…
आगे के कदम, वो कौन सी बात पूछूंगी, क्या कराऊंगी — सब धीरे-धीरे सोच रही थी।
तभी दरवाज़ा खटखटाया गया।
"रौशनी..." मम्मी की आवाज़ थी।
"अमित दामादजी का कॉल है… बात कर ले।"
मैं चौंक गई। अमित इतनी जल्दी?
मैंने धीरे से फोन हाथ में लिया…
साँसों को ज़रा थामा… और फ़ैसले के साथ "हैलो…" कहा।
मैंने फोन उठाया और हल्की मुस्कराहट के साथ "हैलो" कहा।
उधर से पहला सवाल ही तीर सा चला —
"तुम्हारे पास तो मेरा नंबर था… फिर मम्मी के नंबर पर कॉल क्यों किया?"
अमित ने जवाब भी वैसे ही बिंदास अंदाज़ में दिया —
"अरे, कल तुम्हें अपने घर बुलाना था… तो सोचा डायरेक्ट मम्मी से बात कर लूं। तुमसे पूछता तो सौ बहाने बना देतीं। इसलिए सीधी बात, नो बकवास।"
मैं हँसी रोक नहीं पाई —
"लगता है स्प्राइट में वोडका मिक्स कर ली है आज तुमने… होश में तो हो?"
वो हँस पड़ा… लेकिन फिर उसका स्वर एकदम मुलायम हो गया।
"रौशनी जी… मैं बता नहीं सकता आपसे मिलकर मैं कितना खुश हूँ।
आपसे मिलने से पहले लगता था कि शायद मैं कभी अपनी मर्ज़ी से नहीं जी पाऊंगा…
लेकिन अब लगता है — ज़िंदगी पूरी लग रही है।
आपने मुझे मेरी अधूरी पहचान की रौशनी दिखाई है।"
मैं हल्का सा मुस्करा दी —
"ज़्यादा खुश मत हो… नजर लग जाएगी।
खुशियों को छुपाकर रखना चाहिए।"
फिर मैंने पूछा —
"और हाँ, मैंने जो साड़ी, ब्लाउज, झुमके और नेकलेस गिफ्ट किए थे… उन्हें देखा या नहीं?"
अमित ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया —
"नहीं… अब तक तो खोलकर भी नहीं देखा।
सोचा कल तुम खुद आओ, तो साथ में देखेंगे।
तुम्हें ही मुझे तैयार करना है…!"
मैं चौंक गई —
"तैयार करना? मुझे?"
"हाँ!" वो बोला, "कल मैं पूरी तरह तुम्हारे हवाले हूँ — तुम जैसे चाहो, वैसे सजाओ मुझे।"
अब बारी मेरी थी।
मैंने धीरे से कहा —
"ठीक है… लेकिन एक शर्त है।
इसके बदले में जो मैं माँगूंगी, वो तुम्हें देना होगा — बिना किसी सवाल के।"
वो हँसने लगा,
"जान मांग लो… हँसते हुए दे दूँगा!"
मैंने थोड़ा गंभीर होकर कहा —
"मैं जान नहीं… उससे भी बड़ी चीज़ मांगूँगी।
तब देखूँगी कैसे देते हो।"
अमित ने उत्सुकता से कहा,
"ऐसा क्या माँगने वाली हो? कुछ हिंट दो!"
मैंने मुस्करा कर कहा —
"इतनी जल्दी क्या है? कल तक का इंतज़ार करो।"
वो भी मान गया —
"ठीक है। तो बताओ, कल कितने बजे आऊँ लेने?"
मैंने थोड़ा सोचकर कहा,
"कल सुबह 10 बजे पिक करने आ जाना… देर मत करना!"
"Done!"
फिर कुछ फॉर्मल-सी बातें हुईं, कुछ "ठीक है", "चलो फिर", "बाय", "टेक केयर" जैसे शब्द…
और कॉल कट गया।
फोन कटते ही मैं चुप हो गई।
कमरे की दीवारें भी जैसे मेरे मन की खामोशी को सुनने लगीं।
आज अमित से बात हुए 4 दिन हो चुके थे।
उस दिन के बाद से वो हर रोज़ कॉल कर रहा था, मैसेज कर रहा था, माफ़ियाँ मांग रहा था।
पर मैं...
मैंने एक फ़ैसला ले लिया था —
उसे अभी थोड़ा और तड़पने देना है।
थोड़ा और इंतज़ार… थोड़ा और बेचैनी…
तभी शायद वो मेरी उस ‘एक चीज़’ की कीमत समझेगा…
जो मैं कल मांगने वाली हूँ।
अगले दिन ठीक सुबह 10 बजे, जैसे वादा किया था, अमित मेरी गली के नुक्कड़ पर अपनी बाइक लेकर खड़ा था।
मम्मी ने दरवाज़े पर खड़े होकर हल्की नाराज़गी से पूछा —
"इतनी सुबह-सुबह? रोज़ आ जाते हो, अब शादी से पहले ही पूरी दुनिया घूमा लोगे क्या?"
अमित मुस्कराया और हाथ जोड़ते हुए बोला —
"अंटी, बस आज की बात है। फिर जब तक बारात लेकर ना आऊं, नज़र नहीं आऊंगा। वादा रहा!"
मम्मी का दिल तो पिघल ही गया, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे अंदर खींच लिया।
कमरे में ले जाकर अपना वही पुराना महिला-एडिशन शुरू कर दिया —
"शादी से पहले इतना घूमना-फिरना ठीक नहीं होता।
लोग क्या कहेंगे?
औरत की इज़्ज़त उसके घर की देहलीज़ में होती है, बाहर की सड़कों पर नहीं!"
मैं मुस्करा दी।
"माँ, चिंता मत करो।
आज मैं अमित को अच्छे से समझा दूंगी —
कल से ना वो आएगा, ना मैं जाऊंगी…
जब तक बारात सीधा दरवाज़े पर न आ खड़ी हो।"
माँ चौंक गईं।
"धत्त! लड़की, मेरा मतलब वो नहीं था!"
और फिर हँसते हुए मेरे सिर पर हल्की सी चपत मारी।
मैं झटपट कमरे से निकली और अमित के साथ बाहर आ गई।
अब वक्त था… उस योजना को अमल में लाने का, जो मैंने पूरी रात सोच-सोचकर बनाई थी।
मैंने अमित से कहा,
"चलिए, आपको एक खास जगह ले चलती हूँ — वहीं जहाँ कल आपने मुझे मेहंदी लगवाई थी।"
अमित मुस्कराते हुए बोला,
"ओह, वही छोटी सी दुकान? बहुत प्यारी जगह थी!"
मैंने भी मुस्कुरा कर हामी भरी, लेकिन मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
हम दोनों उसी टाइट सी गली में पहुँचे।
हवा में मेंहदी और गुलाबजल की हल्की महक फैली हुई थी।
अमित कुछ समझता, उससे पहले मैंने धीमे स्वर में पूछा —
"एक बात बताओ अमित… क्या तुम्हें डर लगता है?"
अमित ने बिंदास अंदाज़ में कहा,
"बिलकुल नहीं! डर नाम की चीज़ तो मेरे अंदर है ही नहीं।"
मैंने उसकी आँखों में झाँका और शरारत से मुस्कराकर कहा —
"अभी नहीं लगता… लेकिन थोड़ी देर में लगेगा!"
अमित हँस पड़ा —
"क्या मतलब?"
मैंने चेहरे पर एक बनावटी गंभीरता लाते हुए कहा —
"देखो… मुझे तुम्हारे लिए एक खास तोहफा खरीदना है —
एक ऐसा गिफ्ट, जो हमारे उस वादे को मजबूत बनाए
जो तुमने मुझसे किया था —
कि एक दिन हम दोनों शादी करेंगे।"
अमित की आँखों में चमक आ गई —
"वाओ! साउंड्स रोमांटिक!"
मैंने धीरे से कहा,
"हां, रोमांटिक है… लेकिन इसके लिए तुम्हें थोड़ा कुछ करना पड़ेगा।"
वो बोला —
"क्या करना पड़ेगा?"
मैं थोड़ा और पास आ गई।
चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान लाकर धीरे से फुसफुसाई —
"तुम्हें अपने डर से आगे निकलना पड़ेगा… और…"
इतना कह कर मैं अचानक चुप हो गई।
जैसे कोई पेंच वहीं पर अटक जाए।
अमित मेरी तरफ देखता रह गया।
उसके चेहरे पर जिज्ञासा थी, थोड़ी सी घबराहट… और बहुत सारा प्यार।

अमित बेचैन हो गया था।
उसकी आँखों में सवाल तैर रहे थे, और आवाज़ में हल्की घबराहट भी थी —
"आप चुप क्यों हो गईं? प्लीज़ बताइए ना… क्या करना पड़ेगा?"
मैंने गहरी सांस ली, फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए मुस्कराई।
"यार रहने दो… तुम नहीं कर पाओगे।
तुमसे न हो पाएगा!"
उसकी आवाज़ तुरंत आई —
"तुम कहो तो सही!
मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ…"
मैंने सिर झटका, जैसे मान ही लिया हो कि अब समय आ गया है।
"ओके… तुम इतना पूछ रहे हो तो सुनो।
घर पे तुम्हें साड़ी पहननी है, दुल्हन की तरह।
ऑब्वियसली मैं ही तैयार करूँगी तुम्हें।
लेकिन दुल्हन बिना महेंदी के कैसी लगती है?"
मैंने हल्के से उसका हाथ दबाया।
"देखो उधर… जहाँ कल तुमने मुझे मेहंदी लगवाई थी।
आज तुम्हारी बारी है।
तुम्हें अपने दोनों हाथों और पैरों में मेहंदी लगवानी है — खुले में, सबके सामने!"
अमित का चेहरा सफेद पड़ गया।
गला सूख गया, और होंठ फड़फड़ाने लगे —
"ये… ये कैसे पॉसिबल है?
यहाँ सब लोग हैं! लोग क्या सोचेंगे?!"
मैंने उसके होंठों पर अपनी उंगलियाँ रख दीं।
"कल क्या कहा था तुमने?
'डर के आगे जीत है'?
तो आज जीतने का समय है।
चॉइस तुम्हारी है —
या तो मेरी बात मानो…
या मुझे अभी यहीं छोड़ दो और अपने रास्ते निकल जाओ!"
उसने घबराकर कहा —
"यार प्लीज़ ऐसा मत बोलो…
कोई देखेगा… क्या सोचेगा?"
मैंने उसकी आँखों में देखा और मुस्कराई —
"जो भी सोचे, तुम्हें क्या?
वैसे भी किसी को फर्क नहीं पड़ता।
और हाँ… अगर इतना डर लग रहा है तो…
रुमाल दो!"
अमित ने चुपचाप जेब से रुमाल निकाला।
मैंने धीरे से वो रुमाल उसके मुँह पर बाँध दिया —
जैसे कोई नकाब हो… या शायद, साहस की पहली परत।
फिर उसका हाथ पकड़ कर मैं उसे उसी मेंहदी वाले के पास ले आई।
मैंने कहा —
"भैया, मेहंदी वाली बुक दिखाइए।"
उन्हें लगा शायद मेरे हाथों में लगनी है।
उन्होंने बुक खोल कर दी।
मैंने ध्यान से सारे डिज़ाइन देखे,
और एक सुंदर, भारी ब्राइडल डिज़ाइन पर उंगली टिकाई —
"ये वाली…!"
फिर अमित की ओर देखा और इशारे से बैठने को कहा।
मेहंदी वाला भी थोड़ा चौंक गया।
"भैया बैठेंगे?" उसकी नज़र सवालों से भरी थी।
मैंने मुस्कराते हुए कहा —
"जी हाँ… हमारी एक शर्त लगी थी क्रिकेट मैच को लेकर —
मैं जीत गई।
तो अब इन्हें अपने दोनों हाथों और पैरों पर यही डिज़ाइन लगवानी है।"
मेहंदी वाले ने सहमति में सिर हिलाया,
"जैसा आप कहें दीदी!"
और फिर धीरे से अमित का हाथ थामा और मेहंदी लगाना शुरू कर दी।
अमित की आँखें झुकी हुई थीं…
चेहरे पर शर्म, लेकिन दिल में एक अजीब सी ख़ुशी।
मैंने झुक कर उसके कान में धीरे से कहा —
"Enjoy my dear future hubby…
ये वही मेहंदी है जो तुम्हें लड़कियों के हाथों में बहुत पसंद थी,
अब खुद पर महसूस करो…"
अमित कुछ बोल नहीं सका।
मैंने उसका माथा चूमा और बोली —
"अब तुम मेहंदी लगवाओ… मैं ज़रा तुम्हारे लिए एक खास गिफ्ट खरीदने जा रही हूँ।"
करीब एक घंटे बाद,
जब मैं लौटी, तो वही दृश्य सामने था जिसे मैं पहले ही सोच चुकी थी।
अमित बाज़ार के बीच में, चुपचाप एक स्टूल पर बैठा था —
उसके दोनों हाथ और पैर महेंदी से सजे थे,
एकदम उसी डिज़ाइन में जो मैंने पसंद की थी।
वो कुछ नहीं कर सकता था…
क्योंकि पर्स और बाइक की चाबी — दोनों मेरे पास थीं।
मैंने चुपचाप महेंदी वाले को पैसे दिए,
और अमित का हाथ पकड़ कर बाइक के पास ले आई।
"अब तुम्हें एक जादू दिखाती हूँ…"
मैंने कहा, और बाइक की चाबी लगाकर एक ही किक में इंजन स्टार्ट कर दिया।
वो चौंक गया —
"तुम्हें बाइक चलानी आती है?"
मैंने उसकी आँखों में झाँका और मुस्कराई —
"बिलकुल आती है…
लेकिन आज सिर्फ बाइक नहीं,
तुम्हारी झिझक को भी चलाना है —
बिना ब्रेक के, फुल स्पीड में…"
मैं आगे बैठ गयी बाइक पर, और अमित को पीछे बैठने का इशारा किया —
"एक तरफ, लड़की की तरह बैठो वरना तुम्हारे पैर की महेंदी खराब हो जाएगी।"
अमित थोड़ा झिझका, फिर बिना सवाल किए उस पोज़िशन में बैठ गया।
हवा उसके गीले हाथों और पैरों को छू रही थी, और मेरा साथ… उसे थोड़ा सुकून दे रहा था।
मेहंदी खुली हवा में जल्दी सूख गयी थी।
हम घर पहुँचे।
मैंने अमित को बिठाया और प्यार से उसके हाथों और पैरों की महेंदी धुलवायी।
फिर उन पर सरसों का तेल रगड़ दिया —
"कलर गहरा होगा… दुल्हन वाला!"
अमित मुस्कराया… थोड़ी झिझक, थोड़ी शर्म, और थोड़ा अपनापन लेकर।
"अब फटाफट जाओ —
केवल ब्रा और पैंटी पहनकर आओ — जो कल दिलवायी थी!"
अमित ने सिर झुकाया, और बोला —
"जैसा आपका हुक़्म, मैडम!"
थोड़ी देर बाद, वो मेरे सामने खड़ा था —
सिर्फ ब्रा और पैंटी में…
नज़रें झुकी हुईं, साँसें तेज़… लेकिन कोई विरोध नहीं।
मैंने उसके सीने पर हल्का सा पिंक ब्लाउज़ पहनाया।
पीठ से हुक बंद करते वक्त मेरी उंगलियाँ उसके कांपते जिस्म को महसूस कर रही थीं।
फिर उसकी कमर में गहरे नीले रंग की साड़ी लपेट दी —
"आज तुम मेरी दुल्हन हो… पूरी तरह से।"
मैंने उसके हाथों में चूड़ियाँ पहनाईं,
गले में मोती और कुंदन से सजा एक नेकलेस डाल दिया।
भौंहों को उंगलियों से सेट किया,
हल्का काजल लगाया,
और लाइट लिपस्टिक उसके होठों पर हल्के से थपथपाई।
उसका चेहरा… अब आधा मेरा हो चला था।
मैंने देखा उसके कान छिदे हुए हैं।
"ये कब करवाया?"
अमित बोला —
"हमारे यहाँ लड़कों के भी कर्ण छिदवाते हैं…"
"और अच्छा किया… अब ये लो!"
मैंने उसके कानों में दो बड़े झुमके पहनाए।
"ये तो सब वही है जो तुम पहले भी कई बार पहन चुके हो…"
"अब बारी है असली सरप्राइज की!"
अमित थोड़ा उत्सुक हुआ —
"क्या है सरप्राइज? प्लीज़ बताओ…"
मैंने मुस्करा कर कहा —
"बस थोड़ा सा दर्द सहना पड़ेगा।
और पहले अपनी आँखें बंद करो।"
उसने बिना सवाल किए आँखें बंद कर लीं।
मैंने अपने पर्स से एक पतली सी स्टराइल्ड पिन निकाली,
अमित की नाक के बाईं ओर अपनी उंगली रखी,
और एक झटके में नाक छेद दी।
"आह्ह्ह!"
अमित दर्द से चीख पड़ा।
नाक से थोड़ा खून बहा, लेकिन मुझे इसका अंदाज़ा था।
मैंने जल्दी से कॉटन दबाया, फिर आइस क्यूब उसके हाथ में थमाया।
अमित की आँखों से आँसू बह निकले थे,
लेकिन वो मेरे सामने उन्हें छुपाने की कोशिश कर रहा था।
मैंने कहा —
"जाओ, वॉशरूम में थोड़ी देर रो लो।
दर्द कम हो जाएगा…"
"क्या मतलब?"
"कुछ नहीं… अब ठीक हो?"
"हाँ, पर तुमने मेरी नाक ही फोड़ दी! ये कैसा सरप्राइज था?"
मैंने उसकी आँखों में देखा —
"अभी तो ट्रेलर था…
अब असली सरप्राइज देखो!"
मैंने पर्स से एक बड़ी, शानदार महाराष्ट्रियन नथ निकाली।
उसकी आँखें हैरानी से फैल गयीं।
"ये तुम्हारे लिए है… अब चुपचाप खड़े रहो!"
मैंने बड़ी मुश्किल से वो नथ उसकी नाक में पहनाई।
जब फिट हो गयी, मैंने धीरे से कहा —
"अब चाहो भी तो इसे निकाल नहीं सकते।
इसे खोलने की ट्रिक सिर्फ मुझे पता है।
और जब तक मैं ना कहूं,
तब तक ये तुम्हारी पहचान रहेगी — मेरी दुल्हन की पहचान!"
अमित कुछ कहना चाहता था…
लेकिन दर्द, और शायद प्यार…
दोनों ने उसे चुप कर दिया।
वो बार-बार आँसू पोंछ रहा था,
पर अब उनमें विरोध नहीं,
बल्कि स्वीकार का सन्नाटा था।
मैंने पास आकर उसके गाल थपथपाए —
"डर क्यों रहे हो? सिर्फ दो दिन की बात है।
दो दिन बाद खुद ही उतार दूँगी।
वैसे भी…
इतना भरोसा नहीं है मुझ पर?"
वो हँसा… एक थकी हुई, प्यारी सी मुस्कान।
मैं भी हँस दी।
फिर मैं उसे बालकनी में ले गयी,
साड़ी, चूड़ियाँ, नथ, झुमके और सजे मेहंदी वाले हाथों के साथ
एक परफेक्ट फोटो क्लिक की।
अमित थोड़ा मुस्कुराया —
और कैमरे ने वो लम्हा कैद कर लिया।
"अब बताओ…" मैंने कहा,
"तैयार हो अगला सरप्राइज जानने के लिए?"

जिसके बारे में मैंने कल तुमसे फ़ोन पर बात की थी तो बोलै वाओ क्या बात है ये सरप्राइज क्या काम था एक और भी है वाओ मैंने रिप्लाई किया तुम तो बस देखते जाओ तुम्हारे साथ क्या क्या होता है आगे आगे फिर मैंने अमित की आँखे में आँखे दाल कर सीरियस लुक देते हुए एक बात बोलै क्या तुम मुझसे शादी करोगे तो अमित बोलै हाँ जरूर करूँगा तो मैंने कहा ठीक है उसके लिए तुम्हे मेरा एक छोटा सा काम करना होगा तो बोलै क्या करना पड़ेगा बताओ मैंने कहा कुछ नहीं बस अपने दोनों हाथ पीछे करके यहाँ पर खड़े हो जाओ जब तक मैं न कहूं तब तक हाथ आगे मत करना तो बोलै बस इतनी सी बात हो कम फिर मैंने अमित के दोनों हाथो को एक रस्सी से जो की मैं खरीद कर लाया था कास कर बांध दिए जिससे के वो खोल न सके अब मैंने उसे बीएड पर लिटाया फिर उसके पैरो को भी बीएड के कोनो से अमित के बेल्ट से बंधा अब बरी थी सरप्राइज के खुलने की मैं अमित के पेट पर बैठ गया अमित के मुँह की तरफ अपनी पीठ करके जिससे के अमित को कुछ भी दिखाई न दे के मैं क्या कर रहा हूँ फिर मैंने अमित की साड़ी को ऊपर किया और पेटीकोट को भी फिर अमित की पंतय को निचे किया मतलब साड़ी और पेटीकोट घुटने से ऊपर किये और पंतय घुटने के निचे किये और पर्स में एक स्टिल का चेस्टिटी बेल्ट निकल कर अमित के प्रिवट्स को उसमे कास कर लॉक कर दिया और लॉक लगा दिया और लॉक चेक कर लिया के प्रॉपर लॉक है या नहीं और फिर उसकी पंतय फिर से ऊपर और साड़ी और पेटीकोट निचे करके जैसे थे वैसी हालत में किया और चेस्टिटी बेल्ट की चाभी को अपनी ब्रा में रखा और खड़ा हो गया अमित के हाथ खोले लेकिन पेअर अब भी बंधे हुए थे और बीएड से खड़ा हुआ और बोलै सुनो मैं खर जा रही हूँ तुम अपने पेअर बाद में खोल लेना और हाँ तुम्हारी स्कूटी मैं ले जा रही हूँ अगर महेंदी वाले हाथ और पैरो और नोज नाथ के साथ आ सको तो मेरे घर आ कर स्कूटी ले जाना वर्ण स्कूटी मेरे पास है इतना कहे कर मैं अमित को साड़ी में चूड़ी पहने हुए बंधे हुए पैरो में और नोज नाथ और सबसे जरुरी चेस्टिटी बेल्ट में लॉक कर के भाग आया ...मैं जब अमित की स्कूटी लेकर घर पहुंचा तो मम्मी बोली अरे ये तो दामाद जी की स्कूटी है दामाद जी कहा है तो मैंने रिप्लाई किया उन्हें कुछ काम था तो वो ऑटो करके निकल गए थे और मुझसे बोले के ये स्कूटी लेकर मैं घर चली आऊं तो मम्मी बोली पर तुझे कहा चलनी आती है स्कूटी तो मैंने रिप्लाई किया क्या मम्मी अभी तो तुम अपनी बेटी को जानती कहा हो चलो मैं फ्रेश हो जाती हूँ आप मेरे लिए चाय बना दो तो मम्मी बोली यहाँ तो आर्डर चला रही है ससुराल में देखना क्या होता है तेरा हल तो मैंने रिप्लाई किया आप देखना मैं क्यों देखूं क्यों चाय और खाना तुम्हारे दामाद जिहि बनाएंगे. इतना कहे कर मैं अपने कमरे में आ गया फ्रेश हुआ तब तक मम्मी मेरे लिए चाय ले आयी मैंने चाय पि और अमित को कॉल किया अमित बोलै रौशनी जी आपने ये सब क्या किया है मेरे साथ मुझे बहुत दर लग रहा है और अजीब सा फील आ रहा है अपने मेरे प्रिवट्स में ये क्या डिवाइस लगा दिया है मैंने रिप्लाई किया ये इसलिए है जिससे के तुम अब मेरी हर बात मनो और हर हल में मुझसे शादी करो समझे एक बात और अब इस टेल की चाभी तो तुम्हे हमारी शादी के बाद ही मिलेगी जब मैं चाहूंगी समझे अमित बोलै आपने मेरे नक् में भी जो नाथ पहनाई है बहुत दर्द हो रहा है उसमे तो मैंने कहा मैंने तुम्हारे द्वार में पैन किलर की गोली राखी है खाओ और चुपचाप सो जाओ और अब मैं कुछ काम करवा दूँ मम्मी का तो बाई कल बात करती हूँ और कॉल काट दिया .अगले दिन करीब ११ बजे अमित का कॉल आया और बोलै रौशनी जी आप प्लीज मेरे घर आ जाओ और मेरी नाथ और चेस्टिटी बेल्ट उतर दो तो मैंने रिप्लाई किया ये सब चीजे २ दिन से पहले नहीं उतर सकती है तो अब इसके लिए मुझे कॉल मत करना वर्ण दो दिन तीन दिन में बदल जायेंगे समझे और मैंने कॉल फिर से काट दिया इधर रौशनी भी परेशां थी बार बार कॉल पर कॉल करे जा रही थी पर मैंने उसका अब तक एक भी कॉल अटेंड नहीं किया था अब मैंने रौशनी को कॉल किया तो कॉल उठाते ही रौशनी पागलो की तरह सॉरी बोलने लगी माफ़ी मांगने लगी और बोली बस एक बार मैं मिलने आ जॉन तो मैंने कुछ देर सोचा और बोलै आज तो नहीं आ पाउँगा कल मिलता हूँ तुम्हारे घर पर लेकिन मेरी एक शर्त है जब मैं तुम्हारे घर आऊंगा उस समय पर तुम्हारे दोनों हाथ पीठ के पीछे बंधे होंगे अगर मंजूर हो तो बोलै थोड़ी देर रौशनी सोच कर बोली ठीक है जैसा तुम चाहो मैंने मन में एक लम्बी सांस ली और अगले दिन का वेट करने लगा .अगले दिन सुबह सुबह अमित का फिर से कॉल था और बोलै रौशनी जो आप प्लीज मेरे घर आ जाओ मेरा पूरा घर गन्दा पड़ा है दो दिन से नौकरानी आ रही है घर साफ़ करने के लिए उसके लिए दरवाहा भी नहीं खोल प् रहा हूँ तो मैंने कहा क्यों नहीं खोल रहे हो दरवाजा तो बोलै आप भी न मजाक कर रही है महेंदी तो मैंने फिर भी ठीक थक छुड़ा ली है और जो लगी भी है वो मैं जैसे तैसे मैनेज कर लेता पर नक् की नाथ तो सामने ही है वो देख लेगी तो मेरे पेरेंट्स को बता देगी इसलिए .तो मैंने कहा हम्म प्रॉब्लम तो बहुत बड़ी है तो एक काम हो सख्त है तो अमित खुश हुए बोलै क्या उसे लगा शायद मैं उसकी नाथ उतरने की बात करूँगा मैंने कहा अब गेट न खोलना तो तुम्हारी गलती है न तो घर के काम तुम करो मैं तुम्हरेहार आज १ बै आउंगी उसके पहले पूरे घर में झाड़ू लगाओ फिर पोछा लगाओ बिस्तर ठीक करो वाशरूम साफ़ करो फिर नाहा कर वो ग्रीन वाली साड़ी पहनो और हाँ उसकी मैचिंग चूडिया और ेअरिंग पहनना मत भूलना और तुम्हारी मम्मी ने जो हर बनवाया है वो हर पहनो और मेरे लिए खाना बनाओ समझे अब फटाफट वीडियो कॉल करो और अपना पूरा घर दिखाओ अमित ने वीडियो कॉल किया पूरे घर में जो भी गंध फैलाई थी सारा दिखाया मैं साथ साथ में सरे इंस्ट्रक्शन देते गया के क्या क्या करना है फॉर मैंने बोलै के जो जो बताया है सरे काम २ घंटे में ख़त्म करके फोटो भेज दो और २ बजे तक खाना और खुद को रेडी रखना अगर मुझे एक भी काम पेंडिंग मिला या एक्सक्यूज़ दिया तुमने तो पनिशमेंट मिलेगी समझे अभी तो सिर्फ वो लॉक किया है फिर तुम्हे पूरा का पूरा लॉक कर दूंगी और गेट खुल छोड़ दूंगी जिससे के कल जब तुम्हारी नौकरानी आये तो तुम्हे अच्छसे देख सके ऊपर से निचे तक तो अमित बोलै यार डराओ मत ऐसी खतरनाक बाटे करके मैं करता हूँ घर साफ़ और सरे काम बस अब खुश मैंने कहा हाँ बिलकुल खुश. और कॉल काट दिया. अमित का कॉल काटते ही रोशनी का कॉल आ गया और बोली कब तक आओगे यार मैंने रिप्लाई किया १५ मिनट में पहुँचता हूँ तुम्हारे पास. मैं जल्दी से तैयार हुआ स्कूटी ों की और रौशनी के घर वो भी जीन्स और शर्ट में बालो में बन बनाया और उस पर टोपी लागली आँखों पर चस्मा कोई ेअरिंग नोज़रिंग नहीं रिंग नहीं सिंपल हाथ में घडी और संदल की जगह शूज पहने थे मैंने मुझे पता था के रौशनी तो बेचारी मुझे इस गेट उप और स्कूटी पर देख कर ही जल जाएगी क्यों के वो पूरी ज़िन्दगी यही चाहती रही और उसे पेरेंट्स ने कभी उसे ऐसा नहीं करने दिया और मुझे अब पूरी छूट दे राखी थी .और उसे क्या पता के मैंने क्या क्या तिगड़म किये है ये सब पाने के लिए.मैं अपने घर पहुंचा यानि की जहा रौशनी अब राकेश बन कर रहे रही थी दूर बेल्ल बजायी रौशनी ने ही दरवाजा खोला और मुझे ऊपर से निचे तक देखा और बोली ोंग राकेश ये क्या है तुम्हे मम्मी ने ये कपडे पहन दिए कैसे

मैंने रिप्लाई किया अभी तो बस शुरुआत है ये देखो क्या है स्कूटी की चाभी घूमने के लिए स्कूटी भी दिलाई है रौशनी बोली मुझे तो यकीं ही नहीं हो रहा है मैं नहीं मानती तो मैंने कहा मत मनो मुझे क्या फिर रौशनी बोली अंदर आओ तो मैंने कहा नहीं पहले जो मैंने कल कॉल पर कहा था वो करो तो रोशन बोली क्या कहा था मैंने हस्ते हुए कहा लगता है भूल गयी हो चलो मैं याद दिलाता हूँ अपने हाथ पीछे करो और दीवाल की तरफ मुँह कर लो रौशनी बोली अरे यार तुम अंदर तो आओ फिर बांध लेना हाथ मन नहीं करुँगी तो मैंने कहा नहीं डील इस डील तो बोली ठीक है जो मर्जी हो करो और अपने हाथ पीछे किये और मेरी तरफ अपनी पीठ करके कड़ी हो गयी मैंने पर्स से एक स्टील की हाथ कड़ी निकली और उसके दोनों हाथो को एक दूसरे के सह लॉक कर दिया उसकी पीठ के पीछे. रौशनी बोली अब तो अंदर आजाओ और गेट लॉक करो तो मैंने कहा ठीक है फिर रौशनी और मैं उसी कमरे में आये जहा पर लास्ट टाइम मिले थे रौशनी मेरे सामने घुंटने पर बैठ गयी और सॉरी बोलने लगी और बोली के मैं उससे नाराज होऊं तो मैंने कहा चिंता मत करो बिलकुल नाराज नहीं हूँ क्यों के अब नाराज होने की बरी तुम्हारी है फिर मैंने रौशनी से कहा क्यों तुम्हे बहुत शौक चढ़ा था न मुझसे अपना पेंट उतरवाने का अब मैं तुम्हारा पैन उतरती हूँ रुको और फिर उसे खड़ा किया और उसके पैटन की ज़िप खोल दी और फिर पेंट का हुक खोल दिया पेंट ढीला था इसलिए हुक और चैन खुलते ही सीधा रौशनी के पेअर पर पेंट गिर गया अब मैंने उसका अंडरवियर भी निचे किया रौशनी की तो हालत ख़राब हो रही थी एक्सकिटमेंट की बजह से मैंने उसे ठंडा पानी दिया और उसे कूल डाउन किया जब रौशनी का एक्सकिटमेंट ख़त्म हो गया फिर मैंने एक मिनट का भी टाइम गवाए बगैर उसके प्राइवेट पार्ट्स को भी स्टील के केज में लॉक कर दिया. और उसकी अंडरवियर फिर से उसे पहना दी और उसका पेंट भी पहंदा दिया और बोलै अच्छा चलता हूँ अब मैं दुआओ में याद रखना और मैं खड़ा हो गया अपनी जगह से रौशनी बहुत परेशां हो गयी थी के मैंने उसे ये क्या नयी चीज पहना थी है मैंने कहा बता दूंगा पर अभी मुझे कही जाना है और मैं जब जाने लगा तो रौशनी बोली मेरे हाथ तो खोल दो प्लीज तो मैंने कहा तो मैं क्या करूँ कोई आये या जाये और मैंने कहा मैं तुम्हे बहार से लॉक करके जा रहा हूँ जब वापस लौटँगा तो खोलता हुआ जाऊंगा तब तक तुम अपनी बाँडेज एन्जॉय करो. अब मैं बहुत खुश था क्यों के अब अमित और राकेश दोनों मेरे कण्ट्रोल में थे मैं जो चहु वो इनके साथ कर सकता था. में रौशनी को उसी के घर में लॉक करके आ गया क्यों के मैं हरगिज़ नहीं चाहता था के अब रौशनी टूटे टारे से कोई विश करके फिर से बॉडी स्वैप कर ले क्यों के मैं अब रौशनी की बॉडी को पूरी तरह से एन्जॉय करने लगा था रौशनी के घर से निकल कर अमित के पास पहुंचा अमित ने अब तक घर का सारा काम कर लिया था जो साड़ी मैंने बताई थी वो साड़ी भी पहन रखा था चूडिया भी पहन राखी थी उसे देख कर मेरे मन में ख्याल आया के अमित अब बिलकुल रेडी है घर से बहार जाने के लिए लेकिन कुछ तो पनिशमेंट देनी बनती ही है आखिर. मैंने घर में घुसते ही अमित से बोलै वाओ अमित बहुत अच्छे से तैयार हुए हो लेकिन बस एक कमी रहे गयी है जिसकी तुम्हे सजा मिलेगी तो अमित बोलै कैसी कमी जो तुमने कहा था मैंने सब कर दिया है अब तुम मुझ पर ऐसा इल्जाम नहीं लगा सकती हो तुमने जो साड़ी बोली थी मैंने वही पहनी है तुमने जो भी घर के काम कहे थे वो भी सरे किये है अब मुझे इस लॉक से आजाद करो बहुत अजीब सा लग रहा है तो मैंने कहा दे दूंगी आज़ादी इतनी क्या जल्दी है और वैसे भी तुम एक लड़की हो अभी तो तुम्हे अपने प्राइवेट पार्ट का करना भी क्या है चलो अब मुझे बहुत भूख लगी है फटाफट खाना परसो अमित मेरे लिए खाना ले कर आया और टेबल पर रखा दिया थाली भी रख दी तो मैंने कहा परसेगा कौन खाना चलो खाना परषो मेरी थाली में अमित ने मेरी थाली में खाना परशा फिर अपनी खुद की थाली लगायी और मेरे सामने बैठ गया मैं मन में सोच ही रही थी के कैसे इसे परेशां करूँ अब और क्या करूँ और यही सोचते हुए मैंने अपना पहला निवाला मुँह में रकः और ज़रा भी झूठ नहीं बोलूंगी खाना बहुत ही अवेसमे था इतना अच्छा खाना तो मैं खुद भी नहीं बना पता और रौशनी भी शायद नहीं बना पति तो मैंने तारीफ करने में भी कोई कमी नहीं की दिल से अमित के खाने की तारीफ की और बोली आंटी क्या तुम्हे पता है कल क्या दिन है तो अमित बोलै नहीं मुझे तो याद नहीं है तो मैंने उसे बताया के कल करवाचौथ है और मैं चाहती हूँ के तुम मेरे लिए कल करवाचौथ का फ़ास्ट करो और मुझे देख कर कल अपना फ़ास्ट तोड़ो .तो अमित बोलै ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया तो मैंने रिप्लाई किया क्या ज्यादा है इसमें ये बता दो आखिर तुम्हे एक लड़की जैसे बनना था तो मैं तो तुम्हारी मदद ही तो कर रही हूँ न और ये डीडेड हो गया है के तुम ही कल और पूरी जिंदगी करवाचौथ पर फ़ास्ट करोगे समझे तो अमित ने शायद इसे मजाक में लिया और मेरा गुस्सा शांत करने के लिए बोलै ठीक है मेरी जाएं तुम्हारे लिए ये भी सही लेंगे पर करना क्या होता है इसमें वो तो बताओ तो मैंने अमित से कहा कुछ खास नहीं होता है बस दोनों हाथो पर महेंदी लगवानी है और एक खूबसूरत सी गृहिणी की तैयार होना होता है और पूरा दिन कुछ भी न खाना है और न ही पीना है जब तक की शाम को चाँद न दिखाई दे फिर अपने पति की शकल देख कर पहले उसे खिलाना होता है और फिर वो तुम्हे पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर तुम्हारा फ़ास्ट तोड़ेगा फिर दोनों जान मिलकर खाना खाएंगे और क्यों के शाम का खाना साथ में खाया जाता है इसलिए खाना भी तुम्हे ही बनाना पड़ेगा बस सिंपल है न तो बोलै हाँ पर सारा दिन कुछ भी खाये पिए बिना कैसे और तुम भी तो नहीं आ पाओगी न रत में मेरा फ़ास्ट तोड़ने तो मैंने रिप्लाई किया वो मेरी प्रॉब्लम है कैसे आना है सबमझए तुम तो बस कल की तयारी करो तो अमित धीमे से बोलै पर

मैंने तो कई बार टीवी पर देखा है के पति खाना खिलने के बाद पत्नी से रोमांस करते है और उसे कोई गिफ्ट भी देते है तो तुम मुझे क्या गिफ्ट डौगी और तुमने मुझे तो इस अजीब सी चीज में लॉक कर दिया है तो मेरे साथ रोमांस कैसे करोगी. मैंने अमित की बात को बाउट ही ध्यान से सूना और बहुत ही रेस्पेक्ट से कहा बात तो तुम सही कहे रहे हो तो फिर एक काम करो अपना क्रेडिट कार्ड दो कल तुम्हारे लिए ऐसी चीज लाऊंगी जो तुमने कभी सपने में भी नहीं सोची होगी और तुम इस चेस्टिटी बेल्ट से अपने प्रिवट्स को रिलीज़ काना चाहते हो न तो अगर तुमने सब कुछ जैसे आज पर्फेक्ट्ली किया है वैसे ही किया तो मैं तुम्हे इस लॉक से आजजद कर दूंगी तो अमित बोलै प्रॉमिस तो मैंने कहा हाँ अगर सब कुछ मैंने जैसा कहा है वैसे किया तो इस लॉक से आजाद कर दूंगी पक्का वाला प्रॉमिस रौशनी की जबान है ये जान जाये पर बचन न जाये वाली मैंने खाना खाया और अमित से बोली तुम एक काम करो खाना खाओ मैं तुम्हारे लिए कुछ खरीद कर लती हूँ फिर मैंने मार्किट से अमित के लिए वैक्सिंग किट और महेंदी के कोन खरीद कर लायी तब तक अमित ने भी खाना खा लिया अब मैंने अमित से कहा चलो फटाफट कपडे उतरो सरे अमित बोलै पर क्यों तो मैंने रिप्लाई किया थोड़ी देर में पता चल जायेगा और फिर अमित के सरे कपडे उतरवा दिए और उसे वाशरूम में लेजर बाथरूम के शावर के पिने से उसे स्टैंडिंग पोसिंटिओं में कास कर बांध दिया और फिर शुरू हुआ अमित का टार्चर उसकी पूरी बॉडी से एक एक करके सरे बल वैक्सिंग के पत्ते से खींच खींच कर निकल दिया अमित ने इतना टार्चर शायद कभी नहीं झेला था पर बेचारा कुछ नहीं कर सकता था सिवाय दर्द से चिल्लाने के सबसे ज्यादा तो अमित तब चिल्लाया जब मैंने उसके प्राइवेट हेयर पर भी कोई दया नहीं दिखाई और उतनी ही बेरहमी से उसके एक एक बल को जब से उखड कर फेक दिया लेकिन हर रत के बाद सवेरा होता है फिनॉय अमित की बॉडी से सरे अननेसेसरी हेयर गायब थे फिर मैंने अमित को जिस शावर से बंधा था उसे ों कर दिया थोड़ी देर में वैक्स सरे साफ़ हो गयी और उसकी कमर से घुटने तक ी बॉडी को तौलिया से पोछ कर ठीक से साफ़ कर दिया बॉडी लोशन लगा दिया और उसके प्रिवट्स को फिर से अच्छे से लॉक करके चाभी अपने पास रख ली आज उसे लॉक करना आसान था क्यों के दर्द की बजह से उसका सब कुछ सिकुड़ गया था और दर्द से उसके आंसू न चाहते हुए भी बहे जा रहे थे अमित बुरी तरह से रो रहा था और उसके हाथ पेअर तो जैसे कम्प रहे थे और उसकी बॉडी एक्स्ट्रा सेंसटिव हो गयी थी दर की बजह से मैं जहा भी हाथ लगाने को होता उसी जगह पर कम्पन्न सा होने लगता मैंने उसे लॉक किया और कहा के मैंने तुम्हारे हाथ खोल रही हूँ अब फटाफट ठीक से नहाकर बहार आओ करीब ३० मिनट बाद फाइनली अमित बहार निकला तौलिया लपेटकर मैंने उसे बॉडी लौटीं लगाने के लिए दिया और फिर उसे एक चेयर पर बैठने को कहा और उसके ऑय बीआरओ को सेट किया आप सोच रहे होंगे के मैं तो राकेश हूँ तो मुझे ये सब कैसे आता था तो मैं आपको बता दूँ रौशनी ने भी मेरे साथ एक बार ऐसा ही टार्चर किया था और ऑय बीआरओ सेट करना भी उसी ने मुझे सिखाया था क्यों के वो बुटिपार्लौर बोल कर निकला टी और मुझसे मिलती फिर मैंने उसकी एएब्रो हमेशा सेट करता था और उसे घर पहुँचता था इसलिए मुझे ये ही एक काम आता था एएब्रो सेट करना इसके अलावा जिस काम में मेरी महारत थी वो थी महेंदी लगाने में ये भी मुझे रौशनी ने ही कसमे खिला खिला कर शिखाया था क्यों के वो हमेशा मुझे चिढ़ाती थी के एक दिन वो किसी और से शादी कर लेगी और मैं उसे देख भी नहीं पाउँगा अंतिम बार इसलिए वो चाहती थी के मैं महेंदी लगाना सिख लूँ जिससे के जिस भी दिन ऐसा कुछ हो तो एटलीस्ट महेंदी वाला बनकर मैं उसके घर आ जॉन और उसे अपने हाथो से महेंदी लगाऊं और अपना नाम उसकी महेंदी में लिख सकूँ .अमित को ऑय ब्रो सेट करने के बाद मैंने अमित से कहा के चलो फटाफट यहाँ बैठ जाओ टाइम फॉर महेंदी डिअर और अमित बेचारा दर्द से कराह रहा था अब तक मैंने उसके दोनों हाथ और पैरो में महेंदी लगायी और उसे एक पैन किलर की गोली दी खाने के लिए और बोली चलो तुम इसे आधे घंटे बाद खा लेना तब तक महेंदी ठीक थक दुःख जाएगी और बिस्तर पर छूटेगी नहीं इसलिए इसे खा लेना और सो जाना जब सो कर उठोगे सारा दर्द गायब हो जायेगा और तुम अपनी स्मूथ स्किन को फील कर पाओगे मैंने अमित को महनी लगायी उसके दोनों हाथो में आगे और पीछे और पैरो में भी और उसे उसके घर में छोड़ कर वह से निकल आयी पर मुझे उसकी हालत पर बहुत दया आ रही थी के किसी की गलती की सजा कोई और भुगत रहा है तो मैंने उसे उसके गाल पर एक किश दिया फिर दूसरे गाल पर किश किया तो अमित एक्सपेक्ट कर रहा था के मैं उसे लिप तो लिप किश भी दूंगी पर मैं वह से कड़ी हो गयी और बाई करके उसका क्रेडिट कार्ड और उसकी स्कूटी को चाभी लेकर रौशनी के घर के लिए निकल आयी क्यों के असली गुनेहगार तो वही थी .करीब करीब ४ घंटे हो चुके थे अमित के घर पर मुझे और उतना ही टीम इ रौशनी को बंधे हुए भी हो गए थे मैंने रौशनी का गेट खोला रौशनी वही पर बंधी हुयी थी अपने घर में अब मेरी और गुस्से देख रही थी मैंने कहा डार्लिंग अभी से गुस्सा हो गयी अभी तो पार्टी शुरू हुयी है माय फ्रैंड आदत दाल लो और हाँ अब एक बात और सुन लो मैं बस तुम्हारे हाथ खोलने आया था और बताने आया था के कल करवाचौथ है तो मैं चाहता हूँ के कल तुम मेरे लिए फ़ास्ट रखो और महेंदी लगवाकर साड़ी पहन कर फ़ास्ट करो तो रौशनी बोली अच्छा सपना देख रहे हो सच्चाई तो ये है के तुम्हे मेरे लिए ये सब करना चाहिए समझे जब तक मैं लड़की थी तब तक मैं तुम्हारे लिए सब कुछ किया है और अब जब तुम्हारी बरी आयी है मेरे लिए करने की तो मुझे ही आर्डर दे रहे हो अब रख कर देखो न कैसा फील होता है अपनों के लिए दर्द सहने में हमेशा बोलते थे न के क्यों रखती हूँ फ़ास्ट मैं तुम्हारे लिए अब रखो न फ़ास्ट जिंदगी ने एक मौका दिया है अब दर्द सहकर समझो के क्या होता है लड़की होना और हाँ एक बात और तुम नहीं कहते तो भी मैं तुम्हारे लिए फ़ास्ट करती ही पर अब नहीं करुँगी क्यों के तुम्हे मेरे प्यार की कदर ही कभी नहीं हुयी मैंने तुमसे एक बार जरा सी गलती क्या कर दी तुमने मुझे ४ घंटे से यहाँ बांध रखा है एक वीक से ज्यादा हो गया है मेरे एक कॉल तक को नहीं उठाया मुझे सॉरी बोलने तक का मौका नहीं दिया तुम भी तो मुझे परेशां करते थे न जिन चीजों के लिए आज तुम्हे इतना बूरा लगता है मुझे भी लगता था आज तुम्हे दर लग रहा के कही हमारे बिच कुछ हो न जाये और तुम प्रेग्नेंट न हो जाओ और तुम्हे जिंदगी भर इसी बॉडी में स्टक हो कर न रहना पद जाये क्यों मेरे लिए क्या ये चीज़े लागू नहीं होती थी या मुझे दर नहीं लगता था मुझे भी दर लगता था कही तुम कुछ ऐसा वैसा न कर दो जिससे के मैं प्रेग्नेंट हो जाऊ और तुम्हे पता है न मेरे पापा का गुस्सा मम्मी की स्तरीकनेस्स मुझे जान से मर देते और तुम्हे भी समझे और ये सब कहते हुए रौशनी रोने लगी उसके आँशु बहने लगे मैंने उसके अंशु पोछे और उसे गले से लगा लिया और सॉरी बोलै और उसे प्रॉमिस किया के ठीक है कल मैं तुम्हारे लिए फ़ास्ट रखूँगा बस अब खुश तो बोली हाँ बहुत खुश फिर रोशनी बोली अब मेरे हाथ खोलो मैंने उसके हाथ खोल दिया और फिर रौशनी बोली चाभी दो तो मैंने कहा किस चीज की तो बोली अरे जो तुमने मेरे प्रिवट्स में लॉक लगाया है उसकी तो मैंने बोलै अरे यार सॉरी वो तो घर पर ही रहे गयी थी चलो कल जब तुम मेरे घर आओगे मेरा फ़ास्ट रूढ़वाने तब खोल दूंगा या मुझे ही आना पड़ेगा अपना फ़ास्ट तुड़वाने तो रौशनी बोली तुम ही आजाओ मैं कैसे आ पाऊँगी तो मैंने रिप्लाई किया ठीक है मैं ही आ जाउंगी फिर मैंने डरा पूछा लेकिन तुम क्या मेरे लिए कुछ भी नहीं करोगी क्या कल तो बोली मैं क्या कर सकती हूँ तुम्हारे लिए बताओ कोशिश करुँगी तो मैंने कहा कुछ नहीं रहने दो तुम तो कल मैं शाम को आउंगी चाँद निकलने के बाद अब में जॉन राकेश को खोल कर अपने घर आ गया और सोचता रहा क्या करूँ किसे चुनु अमित को या रौशनी को अमित मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार था आज जितना दर्द उसने मेरे लिए सहा था लेकिन एक शब्द भी मुझसे गलत नहीं कहा नाराज नहीं हुआ और एक तरफ रौशनी है जिसने मुझसे पूरी ज़िंदगी प्यार किया है बिना किसी शर्त के ये जानते हुए के मैं आज किसी भी हालत में नहीं था सिर्फ एक स्त्रुग्ग्लेर था पर उसने मुझ पर हमेश विश्वास रखा था मैं खुद को बहुत ही कंफ्यूज सा महसूस कर रहा था फिर मैंने सोचा चलो कल का वेट करते है क्या होता है और यही सोचते हुए में अपने घर आ गया.मैंने सोचा क्यों न घर जाने से पहले अमित और राकेश दोनों के लिए एक ऐसा गिफ्ट ख़रीदा जाये के वो जिंदगी भर इस करवाचौथ को याद करे अब मैंने अपनी गाड़ी एक मॉल में ले गयी वह पर मैंने कई साडी चीज़े देखि लेकिन कुछ खासा पसंद नहीं आया फिर मुझे एक खास इलेक्ट्रॉनिक्स गिफ्ट पसंद आया जिसे मैंने एक ही नजर में पसंद कर लिया फीचर्स देखे पैक कराया और लेकर घर आ गया गिफ्ट को स्कूटी की दिककी में ही रखे रहने दिया बहार नहीं निकला मैं घर पहुंचा और गेट पर ही मम्मी कड़ी थी गुस्से में लाल हो चुकी थी और घर में घुसते ही बोली तू मेरी दी गयी छूट का बहुत गलत फायदा उठा रही है कब से कॉल कर रही हूँ कॉल क्यों नहीं उठा रही थी तो मैंने कहा पता ही नहीं चला सॉरी और फिर मैं गेट के अंदर आ गया मैं मम्मी से पूछा के गुस्से में इतनी लाल क्यों हो रही हो तो बोली गुस्सा न करूँ तो और क्या करूँ कल करवाचौथ है मर्कटे जाना है कब से विकट कर रही हूँ तेरा पता ठिकाना ही नहीं है महेंदी भी लगवानी है क्या करूँ और क्या न करूँ कुछ समझ ही नहीं आ रहा था तो मैंने रिप्लाई किया बस इतनी सी बात चलो फ़टाफ़ट मार्किट चलते है मैं बाद में फ्रेश में हो जाउंगी तो मम्मी बोली ठीक है और हम दोनों घर से बहार निकले मम्मी ऑटो वाले को हाथदिखा रहे थी तो में कहा ये क्या कर रहे हो मेरी स्कूटी पर चलो तो बोली चुप रहे तुझे कहा चलनी आती है खुद भी गिरेगी और मुझे भी गिराएगी तो मैंने कहा तो एक बार बैठो तो सही स्कूटी पर फिर मैंने जबरदस्ती उन्हें स्कूर्ति पर बिठाया कस्मे दे दे कर और आराम से चलते हुए मार्किट पहुंचे उन्होंने करवाचौथ के लिए जो कुछ जरुरी था सामान ख़रीदा और फिर मुझसे महेंदी लगवाने के लिए कहने लगी तो मैंने कहा मैं महेंदी लगवा लुंगी तो स्कूटी क्या आप चलाओगी एक काम करो आप महेंदी लगवा लो और घर चलकर आप मुझे लगा देना महेंदी ठीक है तो बोली हम्म ठीक है फिर मम्मी ने महेंदी लगवाई और तब तक बेऔतिपार्लौर की लड़की से मेरे ऑय ब्रो को सेट करने और फेसिअल और ब्लीच करने के लिए कहे दिया मैंने कहा अरे मुझे कुछ नहीं करवाना है तो मम्मी बोली चुपचाप जो कहा है वो करवाओ समझी दिन भर स्कूटी चला चल कर काली पड़ती जा रही हो कल से स्कूटी चलना बंद और बहार जाना भी समझी.और न चाहते हुए भी फेसमैसज ब्लीच फासिनल फेस पैक लगा लगा कर मेरे चेहरे को चमका ही दिया वह की लड़की ने

फिर मैं मम्मी को लेकर घर आया और पूछा क्यों मुझे स्कूटी ड्राइव करनी आती है न तो बोली हम्म आती है फिर बोली चलो फटाफट घर काफी देर हो गयी है खाना भी बनाना है तो मैंने पूछा खाना कौन बनाएगा तो बोली तू बनाएगी और कौन बनाएगा मैंने रिप्लाई किया ठीक है मेरी माँ बना दूंगी घर पहुँच कर मैंने सोचा अब क्या बनाऊं तो फिर दिमाग में आया के क्यों न खिचड़ी बना दूँ वैसे भी वही एक काम मुझसे हो पाना पॉसिबल था तो मैंने फटाफट खिचड़ी बनने रख दी और जब तक खिचड़ी बानी मम्मी की महेंदी सुख गयी थी और मम्मी ने फिर रोटी सब्जी और दाल बनाली. और तब तक ही पापा भी आ गए और सबने खाना खाया. और फिर मम्मी ने मेरे दोनों हाथो में महेदी लगा कर सोने चली गयी और इधर अमित और रौशनी कॉल पर कॉल कर रहे थे क्यों के परेशां तो दोनों थे आखिर लॉक्ड थे बेचारे. अगले दिन मम्मी ने मेरा फ़ास्ट करवा दिया और अमित और रौशनी ने भी करवाचौथ का फ़ास्ट रखा था और मुझे समझ नहीं आ रहा था के किसके साथ अपना फ़ास्ट तोडूं शाम के करीब ५ बजे मम्मी ने मुझे रेड साड़ी पहनाई और मेकअप किया ज्वेल्लेरी पहनकर घर में गुड़िया बना कर बिठा दिया और उनकी हरकतों से मुझे लग भी नहीं रहा था के मुझे ये कही जाने देने वाली है रात को टाइम से चाँद निकला मम्मी ने चाँद देखा पूजा की मैंने भी पूजा की लेकिन दिमाग तो रौशनी और अमित के बिच फसा हुआ था अब मैंने डीडे कर लिया के मुझे क्या करना है मैंने मम्मी से कहा के मुझे एक फ्रेंड के घर कुछ काम है मैं बस अभी १० मिनट में आती हूँ और स्कूटी लेकर निकल गयी और स्कूटी सीधे रौशनी के घर रौशनी के साथ चाँद देखा फिर रौशनी ने मुझे खिलाया और मैंने इस तरह से हमारा फ़ास्ट टूटा और फिर रौशनी ने मुझे एक पेंडेंड गिफ्ट किया ज्यादा कीमती नहीं था पर बहुत प्यारा था मैंने उसे अपने हाथ में पहन लिया और फिर मैंने रोशनी ने कहा के गिफ्ट देने की बरी मेरी है तो रौशनी बोली कैसा गिफ्ट मैंने कहा बता दूंगी सरप्राइज है पर पहले अपनी आँखे बंद करो मैंने उसकी आँखों में पट्टी बांध दी और फिर उससे कहा के अपने हहत पीछे करो फिर उसके दोनों हाथो को बांध दिया जब उसके हाथ और आँखे सेक्युरिलय बांध चुके थे फिर मैंने रौशनी का पेंट उतरा और उसका चेस्टिटी बेल्ट खोल दिया रौशनी के चहेरे पर ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी आजादी की ख़ुशी मैंने पूछा कैसा लग रहा है तुम्हे तो बोली बहुत अच्छा महसूस हो रहा है तो मैंने कहा लेकिन पार्टी अभी बाकि है मेरे दोस्त तो बोली क्या मतलब फिर मैंने अपने पुसे में से एक इलेक्ट्रॉनिक चेस्टिटी बेल्ट निकला जो की पूरी तरह से ऑटोमेटेड था उसे लॉक करने के लिए के की जरुरत नहीं थी बस उसे ठीक जगह पर पहना कर बटन प्रेस करो और वो अपनी जहाज खुद फिट हो जाया बॉडी के शेप और चौड़ाई के हिसाब से थोड़ी ही देर में रौशनी इस नए चेस्टिटी डिवाइस में लॉक हो गयी और कम्प्युटेरिसेड आवाज आयी डिवाइस इस इन्सटाल्ड एंड एक्टिव नाउ. रौशनी बोली ये क्या है राकेश तुमने मुझे क्या पहनाया है मैंने कहा वेट मेरी जान थोड़ा सा वेट तो करना पड़ेगा तुम्हे सब बताता हूँ फिर मैंने रौशनी का पेंट फिर से पहना दिया और ज़िप और हुक लगा दिया और फिर रौशनी की आँखों से पट्टी हटा दी और हाथ भी खोल दिए और उससे कहा ये लो चार्जर रौशनी बोली कैसा चार्जर मैंने कहा अब अपना पैटन उतरो रौशनी से एक झटके से पेंट उतर दिया और अपने प्रिवट्स को एक सिल्वर कलर की डिवाइस में लॉक देखा मैंने बताया उसे ये बड़ी कमल की चीज है पता है कैसे तो बोली कैसे मैंने कहा ये तुम्हे अब हर समय मेरी याद दिलाएगा क्यों के अब जब भी मुझे तुमसे मिलना होगा तुम्हे आना होगा मुझे तुमसे जो कुछ भी करवाना होगा तुम्हे करना होगा तो बोली क्या मतलब फिर मैंने एक डेमो दिया सूपपोसे मुझे तुमसे बात करनी है और तुम मेरा कॉल नहीं उठा रहे हो तो मैंने अपने मोबाइल से तुम्हारे मोबाइल पर कॉल करने के बजाय तुमहादे डिवाइस पर कॉल करूँगा और फिर मैंने एक कॉल किया और राकेश के कमर में बंधे डिवाइस में वाइब्रेशन शुरू हो गया पहेली रिंग में धीमे से विराट हुआ फिर तेज और तेज और एक समय आया जब रौशनी की पूरी बॉडी विबरते हो राइ थी रौशनी बोली लेकिन मैं इस वाइब्रेशन को रोकूंगी कैसे तो मैंने कहा सिंपल है मुझे कॉल करके जैसे ही तुम मेरे मोबाइल पर कॉल करोगी मेरा ये कॉल कट जायेगा और तुम्हारा वाइब्रेशन भी बंद हो जायेगा फिर रौशनी बोली ये चार्जर क्या करेगा तो मैंने कहा आखिर है तो ये एलेक्ट्रोनि स डिवाइस ही न चार्ज तो करना पड़ेगा न तो रौशनी बोली है है अगर मैं चार्ज नहीं करुँगी तो फिर तो ये अपने आप अनलॉक हो जायेगा तो में कहा हाँ बिलकुल हो जायेगा पर उसके पहले तुम्हारे साथ वो होगा जो तुम्हे मजबूर कर देगा इसे चार्ज करने के लिए तो बोली क्या मतलब मैंने कहा एक मिनट मेरी जान वो भी दिखती हूँ फिर मैंने अपने मोबाइल में एक अप्प खोला और उसमे से १ नो प्रेस किया रौशनी जहा कड़ी थी कूद पड़ी फिर मैंने कहा क्यों करंट लगा न ये एक नंबर का करंट था ऐसे इसमें १० नंबर तक करंट लगते है फिर मैंने रौशनी को २ नंबर का बटन करके बताया रौशनी करंट से जमीं पर लौटने लगी थी और फिर मैंने कहा ३ नंबर दिखाऊ तो रौशनी बोली नहीं मैं मर ही जाउंगी ये मजाक नहीं है इसमें बहुत तेज करंट आ रहा है और मेरे प्रिवट्स पार्ट में करंट लग रहा है ये मजाक नहीं है प्लीज तो मैंने कहा हाँ यही समझा रहा हूँ जब इसकी बैटरी १०% पर आ जाएगी तो ये तुम्हे १ नंबर का कुर्रेबत देगा और जब ये ९ पर आएगी तो २ नंबर का जो तुमने अभी अभी झेला है ऐसे ही ऑफ़ बैटरी गिरेगा और झटको के नंबर बढ़ेंगे अगर तुम इन्हे झेल पाओ तो मत करना चार्ज इसमें क्या है और हाँ एक बात और इसके साथ कोई छेड़खानी करने की कोशिश मत करना ये वाटर प्रूफ है तो पानी का दर नहीं पर अगर तुमने कोई भी चीज खोलने की कोशिश की या फिर इसके साथ छेड़खानी करने की कोशिश की ये तुम्हे सीधे ५ नंबर का करंट देगा और वार्निंग भी देगा ऐसी लगातार ५ वार्निंग देगा और हर वार्निंग पर करंट का नंबर बढ़ता जायेगा और लास्ट नम्बरपर पहुंचने के बाद ये तब तक बंद नहीं होगा जब तक मैं इसे न रोकू पर हो सकता है मैंने सो रहा हूँ या काम में बिजी हो और मैं कुछ न कर पौन तो देख लो कितनी देर तक तुम इसे झेल सकते हो तो सावधान रहना इससे तो रोशनी बोली यार तुम ऐसा क्यों कर रहे हो क्यों मुझे टार्चर कर रहे हो मैंने कहा समय आने पर सब बतौंग अभी मैं चलता हूँ फिर रौशनी बोली रुक जाओ यार बस दो मिनट और मेरे पास आयी और मुझे गले लगाकर एक किश किया और बोली तुम आज बहुत अच्छे लग रहे हो मम्मी ने तुम्हे तैयार किया है न तुम पर साड़ी बहुत ही प्यारी लग रही है मैंने कहा थैंक्स मैं चलता हूँ और उसे वही छोड़ कर निकल आया .और सीधा अमित के घर पहुंचा और वह पर अमित ने मुझे देख कर चाँद की पूजा की और फिर मेरे पेअर छूकर आशीर्वाद लिया और फिर उसे मैंने खाना खिलाया और अमित का फ़ास्ट तोडा फिर हमने साथ में खाना खाया इधर मम्मी के कॉल पर कॉल ए जा रहे थे क्यों के इतना मेकअप साड़ी बन थान के मैं निकला था तो चिंता होना तो बनता था और मुझे पता था के आज वो जितना गुस्सा उसके हिसाब से कल से तो मेरा घर से निकल पाना नामुमकिन हो जायेगा इसलिए मैं अमित से बोलै सूर्य अमित ज्यादा देर रुक नहीं पाऊँगी घर वाले परेशां हो रहे है देख ही सकते हो ीनता तामझाम करके घर से निकली हूँ तो चिंता कर रहे होंगे तो चलो फिर मैं तुम्हे तुम्हारा गिफ्ट दे दूँ फिर मैं निकलू अमित बोलै ओके ठीक है अमित ने आज गोल्डन एंड पिंक मिक्स साड़ी पहनी थी उसके दोनों हाथो में महेंदी बहुत ही अच्छी रची और सबसे जरुरी बात थी के उसने सच में पूरा दिन फ़ास्ट रखा था जो उसके पिले पड़े हुए चहेरे से दिख रहा था पर पूरे दिन सरे नियम सक्सेस्स्फुल्ली पर करने की ख़ुशी भी उसके चहेरे पर थी पर अब मुझे उसकी खुशिओ को गम में बदलना था इसलिए मैंने अमित से कहा देखो जैसा के मैंने वादा किया अगर तुमने सब कुछ पर्फेक्ट्ली किया तो मैं तुम्हारा चेस्टिटी बेल्ट खोल दूंगी तो टाइम आ गया है तुम्हे इस से मुक्त करने का चलो अपनी आँखें बंद करो और फिर मैंने अमित की आँखों पर पट्टी बांध दी और उसके दोनों हाथो को पीठ के पीछे कास कर बांध दिया और क्यों के उसने साड़ी पहनी थी मुझे ज्यादा महेनत नहीं करनी पड़ी सिंपल मैंने उसके पेटीकोट को ऊपर कर दिया और निचे बैठ कर उसका चेस्टिटी बेल्ट खोल दिया वो खुलते ही अमित साड़ी में टेंट बनाने लगा था मैं खड़ा हो गया और उसके शांत होने का वेट करने लगा थोड़ी देर में अमित फाइनली शांत हुआ और वो जैसे ही शांत हुआ उसे भी मैंने नए वाले इलेक्ट्रॉनिक चेस्टिटी बेल्ट में लॉक कर दिया और फिर उसके दोनों हाथ और आँखे खोल दी और उसके गाल पर एक किश दिया और उसे भी चार्जर दिया और बस इतना ही कहा इसे चार्ज करना मत भूलना वो कुछ समझा नहीं मन तो कर रहा था अमित को भी करंट दे कर ही प्रैक्टिकल बता दूँ पर पता नहीं क्यों अमित पर मुझे दया आ रही थी या प्यार आ रहा था मैं उसे करंट नहीं दे पाया बस इतना ही बताया के ये इंस्ट्रक्शन है इसे बाद में आराम से पढ़ लेना और ये चार्जर है इससे हर रोज चार्ज कर लेना भूले बगैर और बोलै मैं घर भाग घर पहुंच कर कॉल करती हूँ तुम्हे तब सब कुछ समझती हूँ बाई लव यू ..अब मैं फटाफट स्कूटी लेकर घर पहुंचा लइते साडी जल रही थी पापा और मम्मी गेट पर मेरा ही वेट कर रहे थे पापा गुस्से से लाल हो रहे थे और मम्मी भी पापा कुछ बोलते इससे पहले मम्मी ही बोली आप शांत रही ये गुस्सा मत करिये जवान लड़की है अछका नहीं लगता आपका ऐसे गुस्सा होना और मुझसे बोली अपना मोबाइल मुझे दो और स्कूटी की चाभी भी और आज के बाद तुम्हारा घर से निकला बंद और इस बारे में कोई बहेश नहीं होगी दामाद जी को भी मिलाना हो तो घर आये २ ५ मिनट मिले और अपने घर जाये लेकिन तुम अब कही है जाओगी समझी इस बात को और ये सब मोबाइल और स्कूटी की ही दें है ये तुम्हे हमारी बाटे समझ नहीं आती है अब चुपचाप कमरे में जाओ और आज से उस कमरे से बहार कदम मत रखना समझी मैं अपने कमरे में चला गया और थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे पापा और मम्मी खड़े हो और कुछ बात कर रहे हो मैंने ध्यान से उनकी बात सुनी पापा बहुत गुस्से में मम्मी को दन्त रहे थे और बोल रहे थे आज के बाद ये इस कमरे से बहार नहीं निकलेगी समझे और कोई भी मिलने आये मन कर देना बोल देना के वो अपनी बुआ के घर गयी है एक महीने के लिए और फिर कुछ दरवाजा में टाला लगाने की आवाज आयी और पापा ने मुझे घर मेरे ही कमरे में लॉक कर दिया था अब मेरे पास न स्कूटी थी न मोबाइल मतलब न अमित मुझसे कांटेक्ट कर सकता था और न ही रौशनी पता नहीं आगे क्या होगा मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था

आज लग भाग एक महीना होने वाला था करवाचौथ गए हुए और पापा के द्वारे मुझे घर में लॉक किये हुए ऐसा लग रहा था पापा पर कोई भूत सवार था मम्मी को मुझ पर दया तो आती थी पर कुछ कर नहीं प् रही थी क्यों के पापा के ऑफिस जाने से पहले ही मम्मी लॉक को खोलकर कमरे में आती मुझे अलमारी से कपडे निकल कर देती और दुबारा लॉक लगा देती और मेरे खाना पीना और पूरे दिन के पिने लायक पानी और खाना रख देती मेरे कमरे में उसके बाद पापा जब ऑफिस जाते वो मुझे फिर से कमरे में लॉक कर देती और लॉक की के पापा को दे देती वो अपने साथ ही के ले जाते वैसे मुझे कुछ खास फर्क तो नहीं पद रहा था क्यों के अगर गेट खुला भी रहता था तो भी मैं लॉक ही महसूस करता था जब से मैं राकेश से रौशनी बना था मैं कही जा नहीं सकता आ नहीं सकता अपनी मर्जी से कपडे तक नहीं पहन सकता बस हर चीज के लिए मम्मी से परमिशन लो और पापा से डरते रहो के कही पापा को पता न चल जाये और पता नहीं क्या पर अब लाइफ ठीक थी बस एक बात का बूरा लग रहा था के मेरी बजह से बेचारी रौशनी का और बेचारे अमित का क्या हल हो रहा होगा अगर कही दोनों में से किसी ने भूल से मेरी बात को हलके में ले लिया और बैटरी चार्ज करना चूल गए तो उनका क्या हल होगा ओह सहित सोच कर ही मेरे तो पसीने छूट जा रहे थे क्यों के जिस तरह से रौशनी का रिएक्शन था करंट के बाद मैं अपने ऊपर महसूस कर सकता था आखिर थोड़े दिन मैं भी तो बॉय ही था. मेरे पास मोबाइल भी नहीं था और शायद मेरा मोइली भी अब तक तो स्विच ऑफ हो चूका होगा .वैसे तो मैं सारा दिन कमरे में बंद या तो लेता रहता या सोता रहता या कभी मन किया तो टीवी देख लेता या कुछ न कुछ पढता रहता था. नेवसपपेर से या जो भी लड़कीओ वाली मागज़ीने रौशनी ने जमा कर राखी थी .मम्मी भी बेचारी सारा दिन काम में लगी रहती उन्हें भी मेरी हालत पर दया तो आ रही थी पर बेचारी कुछ कर भी तो नहीं सकती थी वो अपना काम ख़त्म करके मेरे कमरे के बहार बैठ जाती थी और मैं कमरे के अंदर गेट के पास फिर आपस में बात करते रहते थे वो मुझसे बाटे पूछती रहती और मैं बताता रहता और फिर मैं उनसे बहुत साडी बाटे करता था मेरी रौशनी की मम्मी से बहुत अच्छी बॉन्डिंग हो गयी थी. मैंने मम्मी से पूछा एक बता बताओ क्या अब मेरी जिंदगी इसी जेल में ही कटेगी या बहार भी निकला जायेगा मुझे मानती हूँ गलती थी मेरी मुझे ऐसे बिना मोबाइल और बिना बताये इतने मेक उप और तामझाम में बहार नहीं जाना चाहिए था आप लोगो को मेरी चिंता है मुझे कुछ हो जाता तो कही उसका दर भी होगा लेकिन एक महीने से कमरे में बंद करके रखना कुछ ज्यादा नहीं लगता है आपको इतनी सजा तो और लड़कीओ को किसी लड़के के साथ भाग जाने पर भी नहीं मिलती होगी और मम्मी बोली मुँह बंद रख मैंने तेरे पापा से बात की है शायद उनका मूड ठीक रहा था तुझे चाभी मिल जाये कुछ कहे नहीं सकती हूँ और हाँ इस एक महीने में कई बार ऐसा भी हुआ के अमित बेचारा मुझसे मिलने भी आया पर क्यों के मैं तो दरवाजे के अंदर लॉक थी मम्मी के पास चाभी भी नहीं थी जो मुझे एटलीस्ट उसके सामने खोल देती वो भी पॉसिबल नहीं था इसलिए मुझे मम्मी पहले ही बोल देती गेट पर अमित है तो महेरबानी करके कोई बेबकूफी मर करना जिससे उसे कोई शक हो के तू घर में ही है और मैं गेट के पास कण लगाकर चुपचाप बंद दरवाजे से उनकी बाटे सुनने की कोशिश करता रहता था हर बार अमित आता मम्मी उसे वेलकम करती पानी पिलाती चाय पिलाती और बहुत साडी इधर उधर घर परिवार सब की बाटे करती और जब बाटे कभी मेरी और डाइवर्ट होने लगती तो मम्मी बहुत सावधानी से किसी और डायरेक्शन में मोड़ देती और बेचारा अमित कभी मेरे बारे में पूछ ही नहीं पता और अगर कभी हिम्मत करके पूछ लेता तो मम्मी बस ये कहे कर बात काट देती के रौशनी अपनी मौसी के घर गांव में गयी है एक दो दिन में आ जाएगी और मोबाइल के लिए कहे देती लाइट नहीं है न गांव में तो चार्ज नहीं होगा मोबाइल जब हमसे बात होइ तो मैं कहे दूंगी के तुम आये थे और फिर दूसरी बाटे करने लगती बेचारा अमित छह कर भी कुछ नहीं कर पता था

फाइनली शाम हुयी पापा ऑफिस से भी आ ए और किस्मत से आज उनका मूड भी अच्छा था तो मम्मी ने उनसे साफ साफ कहे दिया के चाभी दो रौशनी को बहार निकलना है तुम तो ऑफिस चले जाते हो सारा दिन मैं घर में अकेली पद जाती हूँ सजा रौशनी को दे रहे हो या मुझे और कौन से पेरेंट्स अपने बच्चे को एक एक महीने के लिए कमरे में बंद कर देते है उसने अपनी गलती मन भी ली फिर भी सब बच्चे करते है गलतिया मगर इसका ये मतलब थोड़े हुआ के बस उन्हें पुनीश ही करते रहो कभी प्यार से समझाना चाहिए न तो पापा बोले समझाना बच्चो को चाहिए ये कल शादी करके जनि की उम्र में बचपना की उम्मीद नहीं होती है किसी पैरेंट को बच्चो से पहेली और आखिरी गलती माफ़ कर रहा हूँ अगर कभी दुबारा ऐसी भूल की तो रिजल्ट बहुत बूरा होगा और अगली बार अगर ऐसे बहार घुमते दिखी तो ठीक नहीं होगा शादी करके अपने घर जाओ उसके बाद जो चाहे पहनो जब तक चाहे घूमो पर मेरे घर में नहीं समझी और अब गलती की तो उसे बंद नहीं करूँगा तुम्हे बंद कर दूंगा समझी और फिर जेब से चाभी निकल कर दी मम्मी को मम्मी ने लॉक खोल दिया फिर एक महीने के बाद हम सबने साथ मिल कर खाना खाया और पापा के सोने के बाद फाइनली मेरा मोबाइल मुझे मिला. बिना बैटरी चार्ज किये एक महीने से बंद मोबाइल को मैंने चार्जिंग पर लगाया करीब एक घंटे के बाद तो उसमे जान आयी और वो चार्ज होना शुरू हुआ और करीब १२ बजे मैंने अमित को कॉल किया और मेरे कुछ कहने से पहले ही बोलने लगा रौशनी अगर तुम्हे मुझसे कोई भी शिकायत थी तो मुझे वैसे ही कहे देती पर ऐसी सजा देने का क्या मतलब है तुमने मुझे बताया भी नहीं के इसे चार्ज न करने पर क्या होगा और चार्ज करना कैसे है और ये चीज क्या है बस लॉक करके चली गयी पता भी है मुझे कितनी परेशानी हो रहे है इसकी बजह से दिन भर तो चैन से रहे न सको और रत को भी चैन से सो नहीं सको इसकी चार्जिंग की बजह से मैंने धीमे से पुछा के रत में सोने से किसने रोका है तो आज पहेली बार अमित मुझसे गुस्से में भड़कते हुए बोलै तुम्हे पता भी ये कैसे चार्ज होता है मैंने कहा नहीं तो बोलै तो सुनो ये कोई मोबाइल नहीं है जो इसे चार्ज करके के लिए चार्जर से लगाकर टेबल पर रख दिया और बिस्तर पर सो जाओ ये मुझसे कनेक्टेड है तो जहा भी चार्जर होगा मुझे भी वही रहना पड़ेगा न और तो और इसका चार्जर पॉइंट पीछे है तो मुझे उसके पॉइंट में चार्जर लगा कर सोने के लिए अपने सरे कपडे उतर कर अपने पिछवाड़े में चार्जर लगाकर चार्जर पॉइंट के पास रख कर सोना पड़ता है और अगर कही ये फुल चार्ज हुए बगैर लीगत चली जाये या चार्जर निकल गया तो ये हलके हलके से करंट दे कर जान लेता रहेगा और तो और जैसे तैसे नींद आ भी जाये तो जैसे ही इसका १००% हुआ एक जोर का करेंट प्रिवट्स में लगता है ये बताने के लिए के चार्ज हो गया है चार्जर निकल दो वो करंट इतना ज़ोर का होता है के पूरी रत दर्द की बजह से नींद नै आती है मुझे तो लग रहा है मैं बीमार ही हो जाऊंगा अगर कुछ और दिन ऐसे ही चलता रहा तो मैंने उससे सॉरी कहा तो बोलै यार देखो मुझ पर दया करो प्लीज.मुझे चाभी दे दो उसके बदले में तुम्हे जो चाहिए मैं दे दूंगा तुम जो कहोगी मैं मानूंगा पर प्लीज मुझे इस लॉक से आजाद कर दो मैं तुम्हारे हाथ पड़ता हूँ अगर चाहो तो पेअर भी पकड़ लूंगा पर प्लीज मुझ पर दया करो मैंने कहा सॉरी यार मैं तुम्हे अभी चाभी तो नहीं दे पाऊँगी इतनी आसानी से तुम्हे तो बोलै कैसे डौगी वो बता दो मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ के के लिए तो मैंने कहा ठीक है सोचने दो कल दिन में कॉल करुँगी तब बताउंगी के क्या करना होगा चाभी के लिए तुम्हे अभी सो जाओ और पता नाहीमेरे मन में क्या आया और मैंने मोबाइल में अमित के लॉक की एप्लीकेशन खोली और उससे बात करते हुए ही ४ नंबर का करंट की बूटूँ दबा दी और अमित करंट से चीख पड़ा मैंने भोला बनते हुए पूछा क्या हुआ तो बोलै कुछ नहीं पता नहीं कैसे करंट लगा लगता है चार्ज हो गया है और चार्जर निकल ने के बाद भी उसे करंट लगते रहे तो बोलै आज इसे क्या होगा लगता है चार्ज नहीं हुआ है और चार्जर फिर से लगा लिया और बोलै अभी चार्ज नहीं है तो ये करंट क्यों मारा समझ नहीं आया मैं मन में हस्ते हुए सोच रहा था बेचारा अमित .जैसा की अमित और रौशनी दोनों ही मेरे अब फुल कण्ट्रोल में थे और ा उन्हें सताने में मुझे बहुत मजा आने लगा था मैं जब भी खली बैठी होती और मेरा मन करता मैं उन्हें करंट दे देती कभी उन्हें कोई भी टास्क दे देती और उन्हें करना पड़ता एक दिन मेरा मन रत के १ बजे आइसक्रीम खाने का हुआ मैं अमित को एक जोर का करंट का करंट दिया अगले ही उसका कॉल मुझे आया क्या हुआ क्यों परेशां कर रही हो तो मैंने रिप्लाई किया मुझे आइस क्रीम कहानी है अभी इसी समय ले कर आओ तो बोलै अरे यार आइसक्रीम तो ले आऊं पर तुम तक पहुँचाऊँगा कैसे तुम तो घर में लॉक हो तो मैंने कहा मझे नहीं पता कैसे लाओगे पर ले कर आओ तो बोलै रत के १ बजे है मिलेगी कहा तो मैंने कहा एक मिनट रुको बताती हूँ और एक ज़ोर का करंट दिया अब कुछ भी क्रॉस क्वेश्चन नहीं समझे जो कहा है वो करो फटाफट घर से बहार निकालो और आइसक्रीम ले कर आओ बेचारा पूरी रत सहर भर में घूमता रहा सुबह ४ बजे डेरी पर से खरीद कर आइस क्रीम लाया और मेरे घर में चोरी छुपे आकर मुझे आइसक्रीम खिलाई और बोलै मेरी माँ तुम पागल हो क्या ऐसी खतरनाक फरमाइश मत किया करो पता है कितनी मुश्किल से मिली है आइसक्रीम ये तो मैंने रिप्लाई की मैं कौन सा आसानी से मिलूं हूँ तुम्हे फिर मैंने कहा अब क्या जाओ तो बोलै जॉन क्या इतनी महेनत की है रत भर कोई गिफ्ट तो दो तो मैंने कहा करंट खाना है तो बोलै नहीं पर एक किश तो बनता है और वो लिए बगैर तो मैं जाने से रहा तो मैंने कहा अच्छा डैम है तो ले कर बताओ तो बोलै अच्छा चैलेंज दे रही हो अब देखो और वो मेरे पास बढ़ा मैं पीछे हटाने लगा और मैंने कहा देखो मेरे पास मत आओ वर्ण मैं आवाज लगाउंगी तो बोलै अब तुम चाहे जो करो मैं हरगिज़ भी मैंने वाला नहीं हूँ और मुझे कास कर पकड़ लिया पर वो मुझे किश नहीं कर प् रहा था क्यों के मैं बार बार अपना मुँह दूसरी साइड कर लेता और जब वो मेरा मुँह ठीक करने की कोशिश करता तो मैं हाथ छुड़ा कर उससे दूर हो जाता अमित बार बार मुझे कभी कमर से तो कभी हाथ से कभी कंधे से पकड़ तो लेता पर किश नहीं कर प् रहा था वैसे तो अमित हमेशा शांत रहता था पर आज पहेली बार वो मुझसे जबरदस्ती कर रहा था पर छह कर भी वो सफल नहीं हो प् रहा था जब उसके दिमाग में कुछ नहीं आया तो उसने मुझसे कहा देखो ये चीटिंग है तुमने मुझे इतने सरे काम करवाए इतनी सरे ऑर्डर्स मनवाये मैं सिर्फ तुम्हारी बजह से इस इलेक्ट्रिक डिवाइस में लॉक हूँ और अब उसके बदले में मैं सिर्फ तुम्हे एक किश करना चाहता हूँ तो तुम मन कर रही हो तो मैंने कहा मैंने कब मन किया है तुम किश कर नहीं प् रहे हो तो उसमे मेरी गलती थोड़े ही है तो अमित कुछ सोच कर बोलै ठीक है मेरी एक बात मानोगी तो मैंने कहा अगर मन कर दूँ तो बोलै यार इतनी बुरी तो मत बनो सिर्फ एक बात मन लो बस तो मैंने कहा ठीक है तो बोलै तुम बस ५ मिनट बिना हिले डूले स्टेचू बन कर कड़ी रहे सकती हूँ मेरे लिए तो मैंने कहा हाँ रहे सकती हूँ पर एक शर्त है इस ५ मिनट में तुम मुझे किश नहीं करोगे तो अमित कुछ सोच कर बोलै ठीक है नहींकरुँगा पर तुम बिलकुल भी नहीं हिलेगी समझी तो मैंने कहा ओके ठीक है अगर तुम मुझे किश नहीं करोगे तो और अगर चीटिंग से किश किया तो समझलो पूरा दिन चैन से एक जगह बैठ नहीं पाओगे करंट दे दे कर जीना मुश्किल कर दूंगी तो बोलै ठीक है नहीं करूँगा किश बस तो मैनेकहा ठीक है तुम्हारे ५ मिनट शुरू होते है अब और बिना हिले एक जगह कड़ी हो गया अब अमित धीमे से मेरे पास आया और मेरे पीछे खड़ा हो गया धीरे से मेरे कंधे पर अपने दोनों हाथ रखे और फिर से मोबाइल निकल कर एक फोटो क्लिक किया उसके बाद अपनी जेब से एक रुमाल निकला और मेरी आँखों पर बांध दिया फिर मैंने जो गले में दुप्पट्टा दाल रखा था उसे धीमे से निकला और मेरे दोनों हाथो को मेरी पीठ के पीछे बांधने लगा मैं अब भी बिना हिले डुले खड़ा था मैं जानना चाहता था के ये अब क्या करेगा फिर जब मेरे दोनों हाथ उसने कास कर बांध दिए उसके बाद अमित ने मेरे पैरो को भी एक दुप्पटे से बांध दिया उसके बाद मुझे उठा कर एक विंडो के पास ले गया और उसके सहारे खड़ा करके विंडो से मेरी कमर को इसतरह बांध दिया के मैं वह से भाग न सकू और एक ही जगह रहूं आँखे बंधी हुयी थी तो टाइम का तो पता नहीं चल प् रहा था के कितने मिनट हुए पर अमित ने ही जब मुझे अच्छे से बांध लिया तब बोलै अब रिलैक्स हो गए ५ मिनट मैंने खुद को रिलैक्स छोड़ा और बोलै तुमने मुझे बंधा क्यों और मेरी आँखे खोलो तो बोलै तुमने कहा था ५ मिनट में किस्स्स नहीं कर सकता हूँ पर अब तो कर सकता हूँ तो मैंने कहा नहीं ये चीटिंग है पहले मुझे खोलो तो बोलै खोल दूंगा पर किश तो कर लूँ और मेरी कमर कोअपने दोनों हाथो से पकड़ लिया उसके हाथ मेरी कमर को छू रहे थे मेरे पूरी बॉडी में अजीब सा ही कुछ हो रहा था क्या कर सकता हूँ मैं था तो आखिर एक लड़की बॉडी में ही रियेक्ट तो करेगी ही फिर वो अपने हाथ धीमे धीमे मेरी कमर से सहलाते हुए ऊपर की और लाने लगा और मेरी साँसे लम्बी होने लगी और आवाज धीमी मैं दिल और दिमाग के बिच में फसा हुआ था मेरा दिल कहे रहा था के ये कभी न रुके बस जो हो रहा है वो हो ता ही रहे और दिमाग कहे रहा था के नहीं ये गलत है मैं ये नहीं कर सकता हूँ पर अब समय निकल चूका था कुछ भी हो पाना पॉसिबल नहीं था अमित धीमे धीमे ऊपर की और बढ़ते हुए मेरे कंधे के पास पहुँच चूका था और उसके हाथ कंधे से मेरे ब्रैस्ट की तरफ बढ़ रहे थे और मुझे पता था के अब वो क्या करने वाला है मैं उसे रोकना चाहता था पर मेरी बॉडी मेरा साथ नहीं दे रहे थे और तभी अमित की आवाज आयी किश डौगी या आगे करूँ तो मैंने कुछ कहा नहीं और चुपचाप खड़ा रहा फिर अमित मेरी और झुका मेरे गलो को अपने दोनों हाथो से पकड़ा और एक लम्बा सा किश किया मेरे लिप्स पर लेकिन जैसे ही मुझे रौशनी की याद आयी मैं दर गया और मैं एक झटके से अपना मुँह उसके मुँह से अलग कर लिया अमित कुछ बोलै नहीं बस अपने आप को मेरे ऊपर ढीला छोड़ दिया उसका पूरा सरीर उसकी साँसे गरम थी थोड़ी देर बाद जब वो शांत हुआ शरीर ठंडा हुआ फिर मुझे से सॉरी बोलै और मेरे हाथ और पेअर खोले पर मेरी आँखे नहीं खोली बस इतना ही बोलै सॉरी यार प्लीज अपनी आँखे मेरे जाने के बाद खोलना मैं तुमसे नज़ारे अभी नहीं मिला पाउँगा हम बाद में बात करते है और वह से चला गया उसके जाने के बाद भी मैंने अपनी आँखे नहीं खोली और वैसे ही बिस्तर पर गिरा और सो गया जब सुबह मम्मी आयी और मुझे जगाया तो पूच ये आँख पर रुमाल क्यों बांध रखा है तो मैंने रिप्लाई किया नींद नहीं आ रही थी रत को इसलिए तो बोली कोई बात नहीं फिर मैं नहाने गया पर समझ नहीं आ रहा था के जो हो रहा था वो शै है या गलत और मैंने डिसिशन लिया के अब और नहीं ये गलत है मुझे अमित और रौशनी में से एक को चुनना ही होगा और दोनों को ये सच बताना पड़ेगा तो मैंने एक प्लान बनाया और दोनों को ही कॉल करके राकेश के घर पर मिलने को कहा हम तीनो टाइम पर पहुँच गए अमित राकेश को देख कर समझ नहीं प् रहा था के या कौन है तो मैंने दोनों ही लड़को को कहा के इससे पहले आप लोग कुछ बोले मुझेकुछ कहना है लेकिन उसके पहले आप दोनों को कुछ करना पड़ेगा बिना शर्त के समझे तो दोनों ने ही हाँ कहे दी फिर मैंने रौशनी को कहा के तुम अमित को साड़ी पहनाओ और तैयार करो दुल्हन की तरह रौशनी ने मेरी और इशारा किया क्यों?

तो मैंने कहा चुपचाप करो जो कहा है फिर रौशनी ने बिना किसी क्वेश्चन के अमित को दुल्हन की तरह तैयार किया मेकअप किया ज्वेल्लेरी पहनाई फिर मैंने रौशनी से भी कहा के जाओ और तुम भी इस गेटउप में तैयार हो कर आओ तब तक अमित के पैरो में एक घुँघरू वाली पायल पहनाई और डांस करने को कहा करीब आधे घंटा लगा रौशनी को भी तैयार होने में तब तक डांस करते करते अमित पसीने से लेथ हो चूका था तो मैंने अमित को पानी देने को कहा रौशनी को और उसकी पायल अपने पेअर में बांधने को कहा फिर अमित को एक विंडो से रस्सी से बांधने को कहा रौशनी ने अमित के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे बांध कर एक विंडो से कास कर बांध दिया फिर मैंने रौशनी को आधे घंटे तक डांस करवाया जब रौशनी भी थक गयी डांस करते हुए तब उसे भी अमित की तरह बांध दिया फिर जब दोनों की साँसे शांत हुयी तब उन दोनों से कहा अब मेरी बात को ध्यान से सुनो और फिर अमित को मैंने सब कुछ सच सच बताया के मेरे और रौशनी के बिच क्या रिलेशन है हमारे प्यार और कैसे उसके और उसके परेंट की बजह से रौशनी ने बॉडी स्वैप की और फिर क्या क्या हुआ और अमित से अबतक जो कुछ झेलना पड़ा उसके लिए सॉरी कहा अमित कुछ बोलै नहीं बस इतना ही बोलै शायद सॉरी बोलने की सबसे ज्यादा जरुरत उसे ही है क्यों के वो हमारे बिच जबरदस्ती घुश आया था और सॉरी बोलै फिर मैंने कहा कोई बात नहीं देर आये दुरस्त आये पर हम तीनो अच्छे दोस्त बन कर तो रहे ही सकते है और फिर मैंने अमित को खोला और उसे उसके लॉक से आजाद किया और फिर मैं जैसे ही रौशनी को खोलने जा रहा था ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के सामंने अँधेरा छ रहा हो और मेरे हाथ पेअर ढीले हो रहे थे और मैं अपनी जगह पर गिर गया कुछ देर बाद जब मुझे होश आया मैंने खुद को रौशनी की जगह पर साड़ी में बंधा हुआ पाया और मेरे सामने रौशनी अपनी बॉडी में जाकर है रही थी मेरे दोनों हाथ बंधे हुए थे और मैं चेस्टिटी बेल्ट में लॉक था ओह सहित मतलब के मेरे और रौशनी के बिच फिर से बॉडी स्वैप हो चूहा था और हम दोनों अपनी अपनी बॉडी में फिर से लौट आये थे मैं ख़ुशी से कूदना चाहता था पर बंधा था तो कुछ कर नहीं सकता था अमित हस्ते हुए बोलै चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ और बोलै मैं दोनों के पेरेंट्स से बात करके आप दोनों की शादी करवाऊंगा और जरुरत हुयी तो आपकी कोर्ट मररगे भी कराऊंगा और रौशनी से राखी बांध वाई पर दोनों में से कोई भी मुझे खोल नहीं रहा था फिर रौशनी बोली अब अमित राकेश को भी खोल दो और मेरे कपडे मुझे वापस मिले मैंने अपने पेंट शर्ट पहन लिए और रौशनी से डिवाइस को अनलॉक करने की चाभी मांगी पर रौशनी बोली इतनी आसानी से नहीं चाभी तो तुम्हे अब हमारे हनीमून पर ही मिलेगी और हम तीनो हसने लगे अमित ने अपना किया हुआ वडा निभाया भी हमारे परेंट को मानाने में उसने हर सम्भब कोशिश की और हमारी शादी सबकी ख़ुशी से हुयी. पर आज भी मुझ पर सारा कण्ट्रोल रौशनी का ही है वो आज भी मुझे लॉक करके रखती है पर प्यार भी बहुत करती है हम लोग अब ख़ुशी से रहते है और हमारा एक बेबी भी है जिसका नाम हमने अमित रखा है...जब तब हम लोग अपने घरो में क्रॉसड्रेसस पार्टी रखते है और जिसमे अमित और मैं साड़ी पहनते है और रौशनी शर्ट पेंट