📝 Story Preview:
यह कहानी एक नवविवाहित दंपती, अनीता और किसना की है। किसना अपनी पत्नी से उम्मीद करता है कि वह हर समय गहने पहनकर घर के काम करे, यह जाने बिना कि यह कितना असहज और थकाऊ हो सकता है। जब अनीता अपनी तकलीफ बताती है, तो किसना उसकी भावनाओं को हल्के में लेता है।
तब अनीता उसे एक दिन के लिए अपनी भूमिका में डालती है — गहने, साड़ी, गृहकार्य, सब कुछ। शुरुआत में यह किसना के लिए सिर्फ एक मज़ाक लगता है, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता है, वह उस मानसिक और शारीरिक थकावट को महसूस करता है जिससे अनीता रोज़ गुजरती है।
इस अनुभव से किसना की सोच बदलती है। वह अनीता की स्थिति को बेहतर समझने लगता है। कहानी मज़ाक और हल्के-फुल्के हास्य से शुरू होकर एक गहरे सामाजिक संदेश तक पहुंचती है — "सच्चा साथी वही होता है जो आपकी जगह पर खड़ा होकर आपके अनुभव को महसूस कर सके।"
जैसे हर महिला को गहनों से प्यार होता है, वैसे ही हर प्यार में कुछ सीमाएँ भी होती हैं।
अनिता और किसना की शादी को अभी छह महीने ही हुए थे। दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन सोच में थोड़े अलग थे।
किसना को अनिता की चूड़ियों, पायल और झुमकों की छन-छन बहुत पसंद थी। उसे वो आवाजें सुकून देती थीं। धीरे-धीरे वो चाहने लगा कि अनिता पूरे दिन गहनों में ही सजी रहे — यहाँ तक कि घर के काम करते समय भी।
शुरू में अनिता ने कोशिश की, लेकिन भारी गहनों में झाड़ू-पोछा, बर्तन और रसोई का काम करना बहुत मुश्किल था। उसने किसना से कहा, "देखो, ये सब पहनकर काम करना आसान नहीं होता। थक जाती हूँ।"
पर किसना ने बात को हल्के में लिया और मुस्कराते हुए बोला, "अरे, इसमें क्या मुश्किल है! मुझे तो तुम्हारे गहनों की आवाज बहुत अच्छी लगती है। तुम्हें आदत डालनी चाहिए।"
अनिता ने गंभीर होकर जवाब दिया, "अगर तुम्हें लगता है कि ये इतना आसान है, तो एक दिन खुद पहनकर देख लो — मेरी साड़ी, गहने सब कुछ। और साथ में घर का काम भी कर लेना। फिर समझ आएगा।"
किसना हँस पड़ा, "मैं क्यों करूँ ये सब? मैं जानता हूँ कि ये सब आसान है।"
"तो साबित करो," अनिता बोली, "अगर तुमने एक दिन ये सब किया, तभी मैं फिर से पूरे दिन गहने पहनने के बारे में सोचूँगी। वरना मैं कुछ दिन के लिए मायके चली जाऊँगी।"
अब किसना के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। वो जानता था कि अगर अनिता मायके गई, तो उसकी सास उसे पसंद नहीं करती थीं, और बात बिगड़ सकती थी। उसने गहरी साँस ली और कहा, "ठीक है, मैं हार मानता हूँ। जो तुम्हें सही लगे, कर लो।"
अनिता के लिए यह एक अच्छी खबर थी। उसने मुस्कराते हुए कहा, "अच्छा है कि दो दिन बाद रविवार है — छुट्टी का दिन। उसी दिन तुम ये अनुभव कर सकते हो।"
किसना थोड़ा घबरा गया। उसने पूछा, "लेकिन... अगर पड़ोसी या कोई मेहमान आ गया तो?"
अनिता ने पहले से ही योजना बना रखी थी। बोली, "उसकी चिंता मत करो। मैं मुख्य दरवाज़े को ताले से बंद कर दूँगी और हम पिछले दरवाज़े से अंदर आएँगे। सबको लगेगा कि हम कहीं बाहर गए हैं।"
किसना को यह सब ठीक नहीं लग रहा था, लेकिन अब बात उसके मुँह से निकल चुकी थी — और अनिता ने इसे गंभीरता से ले लिया था।
शनिवार की शाम को अनिता ने अगले दिन की सारी तैयारियाँ शुरू कर दीं — कपड़े, गहने, मेकअप... सब कुछ एक-एक करके सजा कर रख दिया। उसकी आँखों में थोड़ा सा मज़ाक, थोड़ा सा बदला और बहुत सा प्यार छुपा हुआ था।
किसना पूरे समय बेचैन रहा। वो जानता था कि रविवार को क्या होने वाला है। अनिता बार-बार उसकी टांग खींचती, हँसती और कहती, “देखना, बहुत सुंदर लगोगे!”
किसना बस मुस्कराकर टाल देता, लेकिन अंदर से वह सोच रहा था, “मैंने किस मुसीबत को बुला लिया है…”
शनिवार की रात थी। अनिता ने जैसे एक योजना तैयार कर ली हो — हर छोटी से छोटी बात का ध्यान रखा था।
रात को अनिता ने किसना से कहा, “कल तुम मेरी जगह बनने वाले हो। तो शुरुआत आज से ही होगी।”
किसना थोड़ा चौंका, “अब क्या करना है?”
अनिता मुस्कराई और बोली, “सबसे पहले… शरीर के सारे बाल साफ़ करने होंगे। एक महिला की तरह दिखना है तो तैयारी भी पूरी होनी चाहिए।”
किसना ने कुछ देर तक बहस करने की कोशिश की, लेकिन समझ गया कि बात यहाँ रुकने वाली नहीं है। आखिरकार, उसने हार मान ली और चुपचाप शेव कर लिया।
इसके बाद अनिता ने एक नया सेट निकाला — एक हल्का गुलाबी रंग का नाज़ुक ब्रा और पैंटी।
किसना ने थोड़ी नाराज़गी जताई, “ये सब पहनना ज़रूरी है क्या?”
अनिता ने सिर हिलाया, “बिलकुल। अगर साड़ी पहननी है, तो उसके नीचे क्या होता है, वो भी पहनना पड़ेगा। वरना मज़ा नहीं आएगा।”
थोड़ी नोकझोंक के बाद, अनिता ने ज़बरदस्ती ब्रा पहना दी और पैंटी भी उसके पास रख दी। किसना ने झिझकते हुए उसे पहन लिया। जब उसने कपास से भरी हुई ब्रा पहनी, तो उसे कुछ अजीब सा एहसास हुआ — एक नया अनुभव।
इसके बाद अनिता ने उसे एक मुलायम सी नाइटी दी और कहा, “अब इसी में सोना है। सुबह बड़ी होने वाली है।”
किसना रात भर खुद से लड़ता रहा, लेकिन थोड़ी देर बाद थककर सो गया — नाइटी और ब्रा-पैंटी में।
नहाने के बाद किसना चुपचाप पैंटी पहनकर बाहर आया और थोड़ी झिझकते हुए अनिता से बोला,
"ये ब्रा का हुक तो तुम ही लगाओगी… मुझे समझ नहीं आ रहा।"
अनिता उसकी हालत देखकर हँस पड़ी, "वाह! अभी तो शुरुआत है मिसेज़ किसना, हिम्मत मत हारो!"
उसने हँसी दबाते हुए ब्रा का हुक बांध दिया।
फिर उसने अलमारी से एक सादी, सफेद कॉटन की साड़ी निकाली और दिखाते हुए कहा,
"तैयार हो जाओ, यही पहननी है।"
किसना ने एक बार फिर आखिरी कोशिश की, “अनिता… अब तो बस करो, ये सब ज़रूरी है क्या?”
लेकिन अनिता ने मुस्कराकर सिर हिलाया, “बहुत ज़रूरी है। आज तुम्हें समझना है कि एक औरत की ज़िंदगी कितनी आसान नहीं होती।”
तभी अनिता ने एक शरारत की सोची। उसने ब्रा के कप्स में पानी भरे गुब्बारे रख दिए और ब्रा को थोड़ा और कस कर बांध दिया।
"अब असली वजन महसूस होगा," उसने चुटकी लेते हुए कहा।
जब अनिता ने उसे ब्लाउज़ पहनाया और पीछे की डोरी कसकर बांधी, तो किसना ने वाकई महसूस किया कि सीने पर कुछ भारी है — कुछ असहज, कुछ नया।
फिर आया पेटीकोट पहनने का नंबर।
"हाथ ऊपर करो," अनिता ने आदेश दिया।
किसना ने जैसे-तैसे हाथ उठाए और उसने पेटीकोट पहनाया। कमर पर कसकर बाँधते हुए अनिता बोली,
"थोड़ा कस कर बाँधना ज़रूरी है वरना साड़ी खिसक जाएगी।"
किसना ने हल्का विरोध जताया, “कमर टूट जाएगी यार… बहुत टाइट है।”
"शिकायतें बंद करो," अनिता ने मुस्कराकर कहा।
जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
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