Crossdressing story नक्षत्रों की रेखा

📝 Story Preview:

कहानी का नाम: "नक्षत्रों की रेखा"

मुख्य पात्र:

  • नीरज चौधरी: एक सुलझा हुआ और जिम्मेदार युवक, जो अपने परिवार से बेहद जुड़ा है।

  • निकीता चौधरी: नीरज की पत्नी, आत्मनिर्भर, समझदार और भावनात्मक रूप से मजबूत महिला।

  • राजवर्धन चौधरी: नीरज के पिता, एक अनुशासनप्रिय ग्रामीण पुरुष।

  • गीता देवी: नीरज की माँ, धार्मिक प्रवृत्ति की महिला जो ज्योतिष में विश्वास रखती हैं।

  • प्रियंका: नीरज की बहन, जो आधुनिक सोच रखती है।

  • सोनिया: निकिता की बहन, तेज़-तर्रार और खुले विचारों वाली लड़की।

  • पंडित रघुनाथ शास्त्री: एक रहस्यमय और गूढ़ ज्योतिषाचार्य, जो परिवार की किस्मत की दिशा बदलता है।

प्रस्तावना:

नीरज और निकिता की शादी एक प्रेम विवाह थी, जिसे दोनों परिवारों ने खुशी से स्वीकार किया। शादी के बाद वे दोनों कुछ महीने बहुत खुशहाल जीवन जीते रहे। लेकिन किस्मत ने उन्हें एक कठिन मोड़ पर ला खड़ा किया।

अध्याय 1: मेहंदी की शाम


दिनांक: वैशाख माह की पंचमी

स्थान: चौधरी परिवार, जयपुर

घटनास्थल: नीरज और निकिता की मेहंदी की रस्म


पूरा चौधरी निवास आज जैसे रौशनी से नहा गया था। मुख्य दरवाज़े पर गेंदे के फूलों की तोरण लटकी थी, और आंगन में रंग-बिरंगी झालरों की लड़ी हर कोने में सजी थी। पीले और हरे रंग के रेशमी पर्दों से मंडप को सजाया गया था, जिसमें हल्की हवा से उठती खुशबू में केवड़े और चंदन का सौम्य मेल था।

नीरज चौधरी, जो पेशे से एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर था, आज अपने जीवन के सबसे खास दिन की शुरुआत कर रहा था। उसके चेहरे पर वो मासूम सी मुस्कान थी जो न केवल आने वाले जीवन की खुशी का प्रतीक थी, बल्कि एक नए रिश्ते की ज़िम्मेदारी की गहराई भी बयाँ कर रही थी।





नीरज का घर – महेंदी की रौनक

चौधरी परिवार का आंगन आज छोटे से समारोह स्थल में बदल चुका था। उसकी माँ, गीता देवी, पीले बनारसी साड़ी में सजी, मेहमानों का स्वागत कर रही थीं। उनके पीछे, बहन प्रियंका नीरज की सहेलियों और लड़कियों के बीच ठहाके लगाती घूम रही थी।

नीरज हल्दी रंग के कुर्ते में, अपने दोस्तों के बीच बैठा था, और हाथों में मेहंदी लग रही थी। मेहंदीवाली ने उसकी हथेली पर बड़े प्यार से "N" लिखा – निकिता का पहला अक्षर।

"भैया, अब तो हर काम में भाभी की छाप रहेगी!" – प्रियंका ने चुटकी ली।

नीरज मुस्कुराया, "रहेगी क्यों नहीं, अब उन्हीं का नाम तो जीवन बन रहा है।"

राजवर्धन चौधरी, नीरज के पिता, हल्की मुस्कान के साथ सब देख रहे थे। वे कठोर अनुशासन वाले व्यक्ति थे, पर आज उनकी आँखों में नरमी की एक अलग ही चमक थी।

निकिता का घर – उत्सव का रंग

दूसरी ओर, निकिता का घर – जो शहर के दूसरे छोर पर था – उतना ही भव्य रूप में सजा हुआ था। अनिता, निकिता की माँ, अपनी बेटी को सजाने में व्यस्त थीं। उनके चेहरे पर गर्व और भावुकता दोनों एक साथ थे।

निकिता गुलाबी रंग के लहंगे में सजी, शीशे के सामने बैठी थी। उसकी सहेलियाँ उसे चिढ़ा रही थीं।

"दीदी, देखना जीजाजी जब ये मेहंदी देखेंगे तो फिदा हो जाएंगे!" – सोनिया, निकिता की छोटी बहन ने कहा।

निकिता ने शरमाकर अपनी हथेली पर नज़र डाली, जहाँ मेहंदीवाली ने बारीकी से "D" उकेरा था – नीरज का पहला अक्षर।

अमन और कोमल – निकिता के भाई और भाभी – गेस्ट्स का ध्यान रख रहे थे। अनिता और सुनील, निकिता के पिता, घर की तैयारी और रस्मों में लगे थे।

डांडिया की ताल पर लड़कियाँ नाच रही थीं, और माहौल में ढोलक की थाप पर गाए जा रहे लोकगीत गूंज रहे थे:

"मेहंदी रचावे वाली बाई... सजन की सूरत हाथ में लाए..."

 नीरज और निकिता – दोनों ही अपने-अपने घर में बैठे – दिल ही दिल में बस एक ही बात सोच रहे थे:

"अब बस मिलना है, और एक नया संसार शुरू करना है – साथ में।"

अध्याय 2: बारात प्रस्थान


सुबह की हल्की धूप अब सुनहरी किरणों में बदल चुकी थी, और चौधरी निवास की हर दीवार, हर दरवाज़ा जैसे खुद आज नीरज की बारात का स्वागत करने के लिए मुस्कुरा रहा था। मोहल्ले में हलचल थी, ढोल वालों की थाप दूर से आती सुनाई दे रही थी, और महिलाएं अपने घरों की छतों से बारात की तैयारियां देख रही थीं।

दूल्हे का गेटअप

नीरज आज पूरी तरह शाही अंदाज़ में सजा था। उसने सुनहरे ज़रीदार शेरवानी पहन रखी थी, जिसके साथ लाल रंग की चुनरी और राजस्थानी साफ़ा उसके व्यक्तित्व को और रॉयल बना रहे थे। माथे पर कलीग की हल्की बिंदी और मोतियों की सेहरा, जिससे उसकी आंखें बस हल्का सा झांकती थीं – एकदम राजकुमारों जैसी छवि।

"भैया, आप तो पूरी तरह फिल्मी दूल्हा लग रहे हो!" – प्रियंका हँसते हुए बोली, खुद पीच रंग की लेहरिया साड़ी में तैयार, आंखों में काजल और होठों पर प्यारी सी मुस्कान।

नीरज ने उसे हंसकर देखा, "कम से कम आज तो तारीफ़ कर दी तूने।"
 "आज नहीं करूँगी तो कब करूँगी, कल तो भाभी की हो जाओगे!" – प्रियंका ने आँख मारी।

गीता देवी आज बेहद भावुक थीं। उन्होंने पीली बनारसी साड़ी पहनी थी, सिंदूर थोड़ा और गाढ़ा लगाया और माथे पर बड़ा सा लाल बिंदी चमक रही थी। उन्होंने नीरज की सेहरा सीधी की, फिर उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर बोलीं:

"बेटा, आज तुझे विदा कर रही हूँ एक नई दुनिया में, लेकिन तेरी माँ हमेशा तेरे साथ है। बस एक बात याद रखना – औरत का दिल जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं है... निकिता का साथ देना, उसी के सुख-दुख को अपना समझना।"

नीरज ने उनकी गोद में सिर रख दिया, जैसे बचपन की वो रातें याद आ गई हों जब बुखार में माँ लोरी सुनाती थीं।

राजवर्धन चौधरी, हल्की क्रीम रंग की जरीदार बंदगला पहने हुए, हमेशा की तरह गंभीर दिख रहे थे। वे चुपचाप बारात की व्यवस्थाओं पर नज़र रख रहे थे – घोड़ी के साज-सज्जा से लेकर मिठाइयों के थाल तक।

लेकिन जब नीरज उनके पास आया और प्रणाम किया, तो उन्होंने सिर पर हाथ रखते हुए धीमे स्वर में कहा:

"तू अब किसी और का बेटा भी बन रहा है – लेकिन मेरी परवरिश पर भरोसा रख, तू हर भूमिका अच्छे से निभाएगा।"

राजवर्धन का यह स्वीकार एक पिता की तरफ़ से वो स्नेह था जो शब्दों से नहीं, भावनाओं से समझा जाता है।

घर में और भी चहल-पहल थी। रिश्तेदार, मित्र, और मोहल्ले के लोग – सब दूल्हे को देखने आ रहे थे। ढोल की थाप तेज़ हो रही थी, और गली के नुक्कड़ से बारातियों के लिए घोड़ी भी सजकर आ गई थी।

लड़कियां गा रही थीं:

"आज मोरे लाल की चढ़ी है बारात, सजे हैं घोड़े, बजे हैं बाजे..."

प्रियंका ने नीरज के जूते छिपाने की योजना बना ली थी और दो सहेलियों के साथ मुस्कुराते हुए फुसफुसा रही थी।
 "जूतों के लिए आज हजारों नहीं तो शादी अधूरी!" – उसने शरारत से कहा।

धीरे-धीरे, नीरज को घोड़ी पर चढ़ाया गया। ढोल, नगाड़े, शहनाई की धुन – सब एक साथ वातावरण में घुल गए। घोड़ी पर बैठा नीरज हाथ हिला रहा था, चेहरे पर गर्व, लेकिन भीतर एक गहराई – क्योंकि ये सिर्फ एक बारात नहीं, एक नई जिम्मेदारी का आरंभ था।

पीछे खड़ी गीता देवी ने आँचल से आँखें पोंछीं, और खुद को सँभालते हुए बोलीं:
 "अब मेरा नीरज नहीं, किसी का जीवनसाथी जा रहा है।"

प्रियंका ने गालों पर हल्दी का टीका लगाया और बोली,
 "चलो भैया, अब भाभी के घर चलो – तुम्हारी नई दुनिया इंतज़ार कर रही है।"

अध्याय 3: दुल्हन के घर की चहक

स्थान: अग्रवाल निवास, जयपुर
 समय: बारात के आने से कुछ घंटे पहले

सुबह से ही निकिता के घर में रौनक ऐसी थी मानो हर कोना कोई त्योहार मना रहा हो। द्वार पर आम्र-पल्लव और गेंदे की लड़ियाँ लटकी थीं, और रंगोली की सुंदर आकृति ने प्रवेशद्वार को जैसे स्वर्ग का रास्ता बना दिया था। हवनकुंड की गंध, चंदन की अगरबत्तियाँ और हल्की शहनाई की धुन ने घर के हर व्यक्ति को एक सजीव उत्सव में ढाल दिया था।

दुल्हन की तैयारी और कमरा

निकिता का कमरा आज फूलों से महक रहा था। कमरे की दीवारों पर हल्के गुलाबी पर्दे लहराते थे और खिड़की के पास रखा गुलदान गुलाब और रजनीगंधा से भरा था। ड्रेसिंग टेबल पर रखा मेकअप किट, झिलमिलाते कंगन, झुमके, और एक लाल जोड़ा — हर चीज़ एक नई शुरुआत की प्रतीक्षा में थी।

निकिता आज लाल रंग का भारी कढ़ाई वाला लहंगा पहन रही थी, जिसमें सुनहरे ज़री का जाल और छोटे मिररवर्क का काम था। गोटा किनारी की चुनरी को पल्लू की तरह सिर पर टिकाया गया। उसके गले में रानीहार, माथे पर टीका, हाथों में चूड़ा, और पायलों की रुनझुन उसकी हर हलचल को संगीत में बदल रही थी।

ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी निकिता अपने चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए, आईने में खुद को देख रही थी — पर उसके मन की नजरें कहीं और थीं... नीरज की ओर।

कमरे में उसकी सहेलियाँ — काव्या, निधि और सिमरन — तंग कर-करके निकिता को हँसा रही थीं।

काव्या: "निकिता, आज के बाद तू हमसे दूर हो जाएगी… चल आखिरी बार सिंगल फ्रेंड की तरह गपशप कर लें!"
 निधि: "देख लेना, पहली रात को जीजाजी से पूछना, 'खाना खाया?' वरना भूख से पहले प्यार नहीं होगा!"
 सिमरन: "और ये घूंघट के पीछे से देखने वाला क्लासिक पल, उसे मिस मत करना!"

तीनों ने मिलकर उसकी चुनरी ठीक की, और साथ ही लहंगे की चेन बंद करते हुए गुदगुदी कर दी।

निकिता हँसते हुए बोली:
 "तुम लोग पागल हो… पर सच कहूँ, तुम्हारे बिना मेरा बचपन अधूरा होता।"

सोनिया, निकिता की छोटी बहन, आज गुलाबी और नारंगी लहंगे में एकदम चंचल परी लग रही थी। बालों में गजरा, हाथों में मेहंदी और होठों पर वो मुस्कान — जो सिर्फ शादी के घर की छोटी बहन के पास होती है।

वो इधर-उधर दौड़ती रही — कभी मिठाइयाँ जमा करती, कभी फोटोग्राफर को सही एंगल समझाती।
 "दीदी को ऐसे कैप्चर करना कि एकदम स्वर्ग से उतरी रानी लगें!" – उसने निर्देश दिया।

कोमल भाभी, शांति से सब व्यवस्था सँभाल रही थीं — कभी हलवाई को देखतीं, कभी पंडित जी की ज़रूरत पूछतीं।

अनिता जी, हरे और सुनहरे काम वाली कांजीवरम साड़ी में, खुद पर संयम रखे बैठी थीं, पर उनकी आँखें बार-बार नम हो जाती थीं। वे हर छोटी-बड़ी बात खुद देख रहीं थीं — कहीं फूलों का झांझर ढीला न हो, कहीं लाइट बंद न हो जाए।

निकिता के पास आकर वो धीरे से बैठीं, और उसकी हथेली पकड़कर बोलीं:
 "तू मेरी बेटी ही नहीं, मेरी सबसे प्यारी सहेली थी… और आज तू किसी की अर्धांगिनी बनने जा रही है।"

निकिता ने माँ का हाथ थाम लिया — "आप हमेशा मेरी माँ ही नहीं, मेरी ताकत रहोगी, मम्मी।"

सुनील जी, सफेद शेरवानी में आज बेहद सजीले लग रहे थे। वे अपनी भावनाएं चेहरे पर कम ही लाते थे, पर आज जब उन्होंने पहली बार तैयार बेटी को देखा, तो कुछ क्षण के लिए सब भूलकर बस निहारते रह गए।"मेरी गुड़िया अब रानी बन गई..." – इतना कहकर उन्होंने खुद को दूसरी ओर मोड़ लिया, ताकि कोई उनकी आँखों की नमी न देखे।

अब सब तैयार थे। निकिता का कमरा फूलों और इंतजार से भरा था। घड़ी की सुईयाँ बारात की ओर दौड़ रही थीं, और दिल की धड़कनें नीरज की।

सहेलियाँ गा रहीं थीं:

"चली साजन के संग दुल्हनिया, सजधज के... सजधज के..."

निकिता ने खिड़की से बाहर झाँका — किसी को नहीं देखा, पर हवा से आती ढोल की थाप ने उसे बता दिया:
 "वो आ रहे हैं..."

अध्याय 4: बारात का स्वागत, जयमाला और विदाई के रंग

शाम के लगभग सात बज रहे थे। आसमान नीला था, पर बारात की रौशनी ने जैसे चाँद को भी मात दे दी थी। नीरज की बारात अब अग्रवाल निवास के गेट पर आ पहुँची थी, और ढोल-नगाड़ों की थाप पर पूरा मोहल्ला थिरक रहा था।


बारात का स्वागत

निकिता के घर के बाहर रंग-बिरंगे झालर, लाइट्स और फूलों से स्वागत द्वार सजा था। जैसे ही नीरज घोड़ी से उतरा, सामने खड़ी सोनिया और उसकी सहेलियाँ मुस्कुराकर आगे आईं। सबके हाथों में आरती की थालियाँ थीं और आँखों में शरारत।

सोनिया (हँसते हुए): “जीजाजी, घोड़ी से उतरने के बाद अब ससुराल की पहली परीक्षा है — आरती बिना नहीं एंट्री!”

नीरज (मुस्कुराते हुए): “आरती तो करवाओ, पर साथ में चाय और समोसे भी दे दो, बहुत थक गया हूँ!”

सोनिया: “अभी तो सिर पर सेहरा है, बातों में कितना दम है — देखते हैं, रात को कितनी हिम्मत बचती है!”

चारों तरफ़ हँसी का फव्वारा छूटा, और नीरज को आरती के बाद अंदर प्रवेश मिला।

जयमाला: पहली मुलाकात की झलक

मंडप के पास बने रंगीन स्टेज पर नीरज और निकिता आमने-सामने खड़े थे। पहली बार दोनों की आँखें खुलकर मिलीं — शरमाई हुई निगाहें, मुस्कराते चेहरों से ज़्यादा कह रही थीं।

निकिता ने धीरे-से जयमाला उठाई, और नीरज की ओर बढ़ी। सोनिया और सहेलियाँ पीछे से बोलीं:

“ऊँचाई बढ़ाओ जीजा जी की! दुल्हन को मेहनत करनी चाहिए!”

नीरज थोड़ा झुका, और निकिता ने धीरे से माला पहनाई।

अब बारी नीरज की थी — उसने माला उठाई, लेकिन तभी पीछे से सोनिया बोली:

“रुको-रुको! इतनी जल्दी भी क्या है? थोड़ी negotiation होनी चाहिए!”

नीरज: “Negotiation बाद में, अभी तो दिल दे बैठा हूँ!”

हँसी के साथ माला पहनाई गई, और पूरा मंडप तालियों से गूँज उठा। जयमाला के बाद फोटोशूट, सेल्फियाँ और बूमरैंग्स का सिलसिला शुरू हो गया।

जूता चुराई: सालीयों का दंगल

शादी की रस्मों के बीच जैसे ही नीरज मंडप में बैठा, सोनिया ने इशारा किया — दो सहेलियाँ तुरंत उसके जूते उठाकर भागीं।

नीरज: “अरे! ये क्या है! Security कहाँ है?”

सोनिया: “जूते हमारे पास हैं, जीजा जी। अब मिलेंगे दस हज़ार में!”

नीरज: “तुम लोग तो मुझसे पहले ही लूट की प्लानिंग करके बैठी थीं!”

कोमल भाभी (हँसते हुए): “नीरज भैया, बिटिया वाले घर में आया है, कुछ तो खोना पड़ेगा।”

बहुत मोलभाव के बाद 2100 रुपये में जूते वापस मिले — और नीरज को ये पहली बार समझ आया कि शादी सिर्फ एक बंधन नहीं, एक पूरी Negotiation है!

विदाई: मुस्कान और आँसू का संगम

शादी की सारी रस्में पूरी हो चुकी थीं। अब वो क्षण आया, जिसका इंतजार किसी को नहीं होता — विदाई

निकिता, लाल चुनरी में सिर झुकाए, पापा का हाथ थामे खड़ी थी। माँ की आँखें भर आई थीं, सोनिया अब शांत थी, और नीरज… उसकी आँखों में जिम्मेदारी की एक नई गहराई थी।

सुनील जी: "बिटिया, अब तेरा घर वो नहीं जहां तू पली, वो है जहां तू बसी… लेकिन तू जब भी थक जाए, तेरे लिए ये दरवाज़ा हमेशा खुला रहेगा।"

निकिता ने रोते हुए अपने घर की दहलीज़ पर माथा टेका। नीरज ने उसका हाथ थामा, और दोनों गाड़ी की ओर बढ़े।

अंतिम दृश्य

गाड़ी चली, पीछे छूटते घर को निकिता देखती रही — और सोनिया छत से चिल्लाई:

“जीजा जी! अब बहन हमारी है, पर सज़ा आपकी!”

नीरज ने मुस्कुराकर हाथ हिलाया — एक नई ज़िंदगी, नए रिश्ते और नई ज़िम्मेदारियों की शुरुआत हो चुकी थी।

भाग 1: बहू का गृहप्रवेश

संध्या हो चली थी। चौधरी परिवार के आँगन में हर दीवार आज रोशनी से जगमगा रही थी। घर के दरवाज़े पर आम्रपल्लव, माणिक रंग की बंदनवार और लाल-पीले फूलों की लड़ी बंधी थी। नीरज की माँ गीता देवी थाली में कुमकुम, अक्षत और जल लेकर खड़ी थीं — तैयार थीं अपने घर की नई लक्ष्मी के स्वागत को।

जैसे ही गाड़ी आँगन में पहुँची, सभी रिश्तेदारों के चेहरों पर मुस्कान और आँखों में जिज्ञासा थी।

गीता देवी (मुस्कुराते हुए):
 "आओ बहू, इस घर में अब तुम्हारा ही उजाला है।"

निकिता ने धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए। सर पर लाल चुनरी, आँखों में झिझक, और हाथों में थाली — एक-एक कदम जैसे एक नए संसार की ओर बढ़ रहा था।

चावल से भरी कलश को उसने हल्के से पाँव से गिराया, और उसके बाद अपने गीले पगों से घर में प्रवेश किया। उसके पदचिन्ह अब घर के आँगन में रच चुके थे — जैसे देवी माँ ने स्वयं पधार ली हों।

भाग 2: ननद और भाभी की तकरार

जैसे ही गृहप्रवेश की रस्में पूरी हुईं, प्रियंका, नीरज की बहन, तेज़ी से आगे आई और बोली:

प्रियंका (मुस्कुराकर):
 "भाभी जी, ये तो बताइए, हमारे भाई को पाना कैसा लग रहा है?"

निकिता (हँसते हुए):
 "जैसा हर लड़की को एक अच्छे लड़के से मिलकर लगता है… थोड़ा भाग्य, थोड़ा डर, और बहुत सारा प्यार!"

कोमल भाभी:
 "नीरज तो सीधा है, पर हमारी सास जी थोड़ी फिल्मी हैं। सुबह साढ़े चार बजे की चाय की तैयारी अभी से शुरू कर लो!"

सब हँस पड़े। माहौल एकदम हल्का-फुल्का और अपनापन भरा था। घर की औरतों ने मिलकर हलवा-पूरी बनाई, और सबसे मिलवाया गया। हर कोना अब निकिता का था — नए रिश्तों की हल्की उलझनें, पर उनमें मिठास की चाशनी लिपटी थी।

भाग 3: सुहागरात — झिझक और नरम स्पर्श की शुरुआत

कमरा फूलों से सजा था — छत से झूलते गुलाब, बिस्तर पर फैली रजनीगंधा की पंखुड़ियाँ और खिड़की से आती चंद्रमा की चाँदनी — जैसे हर चीज़ इस रात को खास बनाने पर तुली हो।

नीरज कमरे में दाख़िल हुआ — सफेद कुरता-पायजामा में, थोड़ी घबराहट, थोड़ी उत्सुकता।
निकिता पहले से कमरे में थी, घूंघट डाले चुपचाप बैठी।

दोनों के बीच कुछ पल की खामोशी थी — पर वो बोझिल नहीं थी, बस बहुत कुछ कहती थी।

नीरज (धीरे से):
 "कैसी हो?"

निकिता:
 "ठीक… थोड़ी थकी हूँ, पर दिल हल्का है।"

नीरज ने धीरे-धीरे उसका घूंघट उठाया। पहली बार वो उसे इतने पास से देख रहा था — और निकिता की आँखों में आज शरारत नहीं, सच्चाई झलक रही थी।

नीरज:
 "मैं जानता हूँ, ये रिश्ता नया है… और तुम्हें मुझसे बहुत उम्मीदें होंगी… पर मैं चाहूँगा हम दोस्त बनें, जीवन साथी से पहले।"

निकिता (मुस्कुरा कर):
 "तो फिर दोस्ती के पहले नियम क्या होंगे?"

नीरज:
 "ईमानदारी… और बिना झिझक बात करना।"

धीरे-धीरे दोनों पास आए। कोई जल्दबाज़ी नहीं थी। बस एक सहज आलिंगन, जिसमें सुरक्षा थी… अपनापन था।

निकिता ने सिर नीरज के कंधे पर रखा, और वो रात धीरे-धीरे सपनों में घुलती गई — किसी कविता की तरह।

निकिता नीरज के कंधे पर सर रखे हुए थी 

फिर धीमे से नीरज की छाती पर हाथ फेरते हुए बोली तुम्हे मेरा घर और घर वाले कैसे लगे

मेरी सहेलिओ और छुटकी ने ज्यादा सताया तो नहीं 

तुम उनकी किसी भी बात से प्लीज नाराज मत होना 

उनकी आदत है हसी मजाक करने की


नीरज ने हलके से जबाब दिया नहीं बिलकुल भी नहीं 

उलटे मुझे तो बहुत मजा आया और यही तो पल होते है 

जो शादी को यादगार बनाते है उनके बिना तो शादी 

बिलकुल बोरिंग हो जाएगी 


तभी निकिता ने ऐसे रियेक्ट किया जैसे उस कुछ याद आया हो 

और तुरंत अपना हाथ नीरज की छाती से हटाकर बिस्तरत से 

कड़ी हो गयी और फिर बोली मेरी नालायक सहेलिओ ने तुम्हारे 

लिए कुछ गिफ्ट भेजे है क्यों न हम पहले उन्हें देखे 


मेरी सहेलिओ ने जरूर कुछ न  कुछ सरप्राइज प्लान किया होगा 

हमारे लिए 


इसके पहले नीरज कुछ भी रियेक्ट करता निकिता बिस्तरत से उठी 

और अपना बैग उठा कर ले आयी जिसमे बहुत सरे गिफ्ट रखे थे 

निकिता बोली तुम्हारे दोस्तों ने भी तुम्हे गिफ्ट दिए होंगे क्या तुम उन्हें नहीं खोलना चाहोगे

नीरज बोला मैं अपने कमीने दोस्तों को अच्छे से जनता हूँ वो जो देंगे वो तुम्हे 

ज्यादा पसंद नहीं आएगा  इसलिए पहले तुम्हारी सहेलिओ के गिफ्ट देखते है 

फिर मेरे कमीनो के गिफ्ट देखेंगे


निकिता बोली लेकिन ये तो बहुत सरे है तुम्हे मेरी है करनी पड़ेगी गिफ्ट को खोलने में 

अगर मैं अकेले सरे गिफ्ट ओपन करुँगी तो पूरी रत इसी में काट जाएगी 

उम्मदी है तुम अपनी पहली रात को इस में नहीं काटना चाहोगे


अब नीरज क्या ही बोलता के वो तो बस जल्दी से निकिता के साथ 

सुहागरात का मजा लेना चाहता था 


निकिता ने अपना पहला गिफ्ट ओपन किया उसी की किसी सहेली का गिफ्ट था

उसमे एक लेटर लिखा था डिअर जीजाजी मैंने जब से आप को देखा है आपके प्यार में 

पागल हो चुकी हूँ आप की क्यूट स्माइल ने मेरा दिल चुरा लिया है अगर आप कभी भी 

अपनी इस बीबी जो मेरी सहेली है उससे परेशां हो और उसे छोड़कर किसी ऑप्शन की तलाश में हो 

तो मैं बिलकुल रेडी हूँ वैसे आपके लिए एक छोटा सा गिफ्ट भेज रही हूँ जो मैंने बहुत दिल से पसंद किया है 

प्लीज इसे मेरा दिल समझ कर अपने दिल के पास रखना उस लेटर में से बहुत ही अच्छी सी खुशबु आ रही थी

आगे लिखा था प्लीज इसे फेक मत देना एक बार उपयोग जरूर करना आपकी

मदद के लिए गिफ्ट के साथ एक फोटो भी है जो आपकी मदद करेगा इस गिफ्ट को कैसे 

उपयोग करना है बताने के लिए  आपकी प्यारी साली विथ लव और फिर ३ दिल जो पिंक 

पेन से बने थे 


जड़ नीरज ये चिट्ठी पढ़ रहा था उसे अपने आप पर गुमान हो रहा था और वो निकिता को जैसे 

चिढ़ा रहा था के देखो कैसे वो उसकी सहेलिओ में फेमस है और उसे कितना प्यार करती है निकिता की

सहेलियां , तभी निकिता बोली अगर तुम्हारा लव लेटर पूरा हो गया हो तो गिफ्ट खोले मैंने भी तो देखु आखिर मेरी 

कौन सी कामिनी दोस्त तुम पर मर मिटी है जो उसका जब मैं वापस जॉन तो अपने हाथो से गला दबा सकूँ 


नीरज मुस्कुराते हुए बोला मुझे किसी के जलने की बू आ रही है 

तो निकिता बोली मुझे कोई जलन नहीं है बस समझ नहीं आ रहा 

के मेरी काईन सी सहेली इतनी ज्यादा मर मिटी है तुम पर और 

ऐसा क्या गिफ्ट भेजा है मैं भी तो देखूं


नीरज अपनी बीबी को चिढ़ाते हुए धीमे धीमे गिफ्ट बॉक्स पर लगे टेप को निकाल रहा था

और जब गिफ्ट पैक पूरा खुला नीरज और निकिता दोनों सरप्राइज हो गए क्यों के

गिफ्ट रेप में हेयर बेंड का पैकेट था और एक फोटो जिसमे नीरज की फोटो एडिट करके 

उसके लम्बे बालो को दोनों तरफ का पार्टीशन करके दो चोटिया बनी थी जो फोल्ड करके 

उसके कानो के पास रबर बंद से बंधे हुए थे 

नीरज ये फोटो देख कर निकिता की हसी निकल गयी और बोली

अरे आपकी पहेली लवर तो आपके बालो से प्यार करती थी वैसे

मुझे ये रिश्ता मंजरू है और बोली नीरज जी आपकी सहेली तो 

आपको प्यारी सी दो चोटियों में देखना चाहती है और इस लिए 

उसने आपको ये रबर बेंड का पैकेट भेजा है क्या करना है 

फेक दूँ और सस बेचारी ने इतने प्यार से भेजे गिफ को एक्सेप्ट करना है 


मैं तो कहूँगी के एक्सेप्ट ही कर लो शादी की पहली रात किसी का दिल नहीं तोड़ना 

चाहिए और फिर नीरज कुछ भी कहता उसके पहले ही निकिता ने नीरज के 

खूबसूरत लब्मे बालो को दो पार्ट में डिवाइड कर के उसकी दो खूबसूरत लम्बी

छोटी बना दी और उनमे रबर से सिक्योर कर दिया 


फिर चोटियों को फोल्ड करके उसके कान के पास सिक्योर कर दिया 


और फिर निकिता ने नीरज के गालो पर एक प्यारा सा किश दिया और बोली 

मेरी जान को किसी की नजर न लगे बहुत क्यूट लग रहे हो वैसे तुम्हारे बाल सच में

बहुत अच्छे और हेअल्थी है ऐसी बाल तो लड़कियों को भी नहीं मिलते भगवन बहुत 

नाइंसाफी करते है कई बार 


नीरज क्या बोलता बस हस्ता रहा और बोला ये तो बस कॉलेज में पढाई का प्रेशर ज्यादा था 

तो कुछ महीने कटवा नहीं पाया और जब थोड़े बड़े हो गए तो बहन और माँ ने कहा के मेरे चेहरे पर लम्बे बाल 

अच्छे लग रहे है तो इन्हे न कटवाऊं फिर वो मेरे सर में तेल मालिश कर देते तो मुझे कोई दिक्कत भी नहीं हो 

रही थी  इसलिए मैंने भी कटवाया नहीं पर लगता है अब कटवाना पड़ेगा अगर मेरी प्यारी बीबी

को पसंद न होतो मैं कल ही कटवा लूंगा 


निकिता बोली सच कहूं तो तुम लम्बे बालो में एक दम राजकुमार जैसे लगते हो 

प्लीज कुछ दिन मत कटवाओ बाद में चाहे तो कटवा देना अगर तुमने अभी 

कटवा लिया तो सब बोलेंगे के मैंने ही जिद करके ऐसा किया है और मेरे बिना 

गलती के ही तुम्हारी भाभी बहन और माँ मुझ पर शक करेंगे के बेटे को आते ही 

अपने काबू में कर लिया और हमारे तेरे नाम के सलमान खान को गजनी का आमिर खान

 बना दिया 

निकिता की बात सुनकर नीरज भी मंद मंद  हसने लगा ठीक है जब तक तुम ना कहो तब तक

मैं अपने बाल नहीं कटवायूंगा पर तुम्हें भी मेरा ख्याल रखना होगा मेरे बालों में रोज मालिश करनी होगी

और सर दबाना होगा 


निकिता हंसते हुए बोली  की अगर तुम शर्तें रखोगे तो मेरी भी एक शर्त है बालों में मालिश करने के बाद जो हेयर स्टाइल में बनाऊंगी वह तुम्हें चुपचाप बनवाना पड़ेगा और अगर तुमने जरा भी आना खाने कीतो तुम्हेंअपने लंबे बालों कोकटवाना होगा


नीरज कुछ देर सोचने के बाद बोला जो आ गया बीवी जी 

और फिर दोनों हंसने लगे


उसके बाद निकिता ने दूसरा पैकेट उठायाउसमें भी एक चिट्ठी थी जो शायद निकिता के लिए थी

नीरज काफी एक्साइटेड हो गया क्योंकि उसे पता था निकिता की सहेलियां जरूर कुछ प्लान कर रही है

और वह जानना चाहता था कि उसमें निकिता के लिए क्या था 


जब निकिता ने पैकेट खोलाउसमें बहुत ही शॉर्ट ट्रांसपेरेंट बेबी डॉल ड्रेस थी ड्रेस को देखकर निकिता ना नीरज की ओर देखा और नीरज ने निकिता की ओर और दोनों ने जैसे आंखों ही आंखों में कुछ कहा निकिता ने ना में   इसारा  किया और नीरज ने हां में

फिर नीरज अपनी छोटी पर हाथ घुमाते हुए बोलाअगर तुम अपनी सहेली की ड्रेस नहीं पहनोगी तो मैं अपनी चोटिया भी खोल रहा हूं

निकिता शर्माते हो बोलि पर ये  बहुत ज्यादा शॉर्ट ड्रेस है इसमें तो कुछ भी छुपेगा ही नहीं


नीरज बोला  यह हमारे हनीमून की ड्रेस है और हनीमून पर कुछ भी कहां छुपाया जाता है

नीरज आगे बोला हनीमून पर तो मैंने सुना है की पति अपनी पत्नियों के सारे तिल तक गिन लेते हैं किसकी बॉडी पर कहां पर क्या-क्या निशान हैऔर यह ड्रेस मेरी मदद करेगी तुम्हारी सहेलियों सच में ग्रेट है जिन्हें मेरा पूरा ख्याल रखा है

मुझे तो लगता है वह तुम्हारी कम मेरी ज्यादा सहेली हैजो मेरी हर चीज का ख्याल रख रही है वरना मैं तो शर्म से कभी तुम्हे ये  ड्रेस पहनने के बारे में बोल भी ना पता

निकिता बोली तुम कुछ ज्यादा ही मेरी सहेलियों की तारीफ तरफदारी नहीं कर रहे  हो ठीक है मैं जाती हूं चेंज करके आते हो लेकिन ध्यान रखना मेरी सहेलियों बहुत कमीनी हैतुम्हारे लिए भी जरूर कुछ ना कुछ सरप्राइज रखा होगा और उसे समय तुम नाटक नहीं करोगे नीरज भी कॉन्फिडेंस से  बोला  हां मुझे मंजूर है

कमरा अब भी फूलों की ख़ुशबू और चंदन की  इत्र से महक रहा था। खिड़की से आती चाँदनी ने फर्श पर दूधिया रोशनी बिछा दी थी। 

तभी बाथरूम का दरवाज़ा धीमे से खुला।

हल्के भाप से ढका दृश्य जैसे किसी चित्रकार ने चाँदनी से रचा हो। निकिता, रेशमी काले बेबी डॉल नाइटी में सामने आई — उसकी  दूध सी त्वचा पर रेशम की काली परछाई किसी कविता की तरह फिसलती जा रही थी। उसके खुले बालों की नमी अब भी उसके कंधों से टपक रही थी।

नीरज का मुँह थोड़ी देर के लिए खुला का खुला रह गया। ये वही निकिता थी — जो दिन में खिलखिलाती, सहेलियों संग हँसती थी, और अब रात में, चाँदनी की तरह उसकी आँखों के सामने सजी थी।

निकिता (धीरे से मुस्कुराकर):
 "इतना देखोगे तो कहीं चाँद भी शर्म से छुप जाएगा।"

नीरज (धीमी आवाज़ में):
 "तुम्हें देखूँ भी नहीं… तो इस रात का क्या फ़ायदा?"

निकिता धीरे-धीरे चलती हुई पलंग के पास आई, और नीरज के ठीक सामने बैठ गई। उसकी आँखों में संकोच भी था, पर उस संकोच में जो अपनापन और विश्वास था, उसने नीरज के दिल को छू लिया।

नीरज:
सच कहूँ तो डर रहा हूँ — कि तुम्हें कहीं कम महसूस न करवा दूँ।"

निकिता (हल्के से नीरज का हाथ पकड़ते हुए):
 "रिश्ते में कोई ‘पूरा’ या ‘कम’ नहीं होता नीरज। आज बस एक नई शुरुआत है — जो हमारी है, सिर्फ़ हमारी।"

कमरे में कोई शोर नहीं था — सिवाय उनके धड़कते दिलों के।

 हँसी-मज़ाक का माहौल बना ही हुआ था कि एक सुंदर सिल्वर बॉक्स नीरज के हाथ लगा।

डिब्बा हल्का था, लेकिन जैसे ही उसने ढक्कन उठाया — दोनों की आँखें ठहर गईं।

डिब्बे में एक खूबसूरत गुलाबी लिफ़ाफ़ा था, और उस पर गहरे गुलाबी रंग की लिपस्टिक से बने होंठों का निशान था। लिफाफे पर लिखा था:

"सिर्फ़ नीरज जी के लिए…"

दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।

निकिता (हल्का सा चुटकी लेते हुए):
 "क्या बात है, नीरज जी… आपके लिए सीक्रेट फैन से खत?"

नीरज ने संकोच से लिफाफा खोला। भीतर लिखा था:


**"नीरज जी,
शब्दों में आपकी ख़ूबसूरती को बयां करना मुमकिन नहीं।
आपको देखकर बस एक ही ख्याल आता है —
अगर आज आप इतने गुलाब से खिले हो, तो बचपन में कितने मासूम और प्यारे लगते होंगे।
मैं तो बस कल्पना ही कर सकती हूँ…
एक छोटा सा तोहफ़ा भेजा है —
प्लीज़ मना मत करिएगा।
बस एक बार मेरा तोहफ़ा पहन लीजिए…
मेरा जीवन सफल हो जाएगा।

– आपको दिल से चाहने वाली, आपकी ‘एक चाहत’"**

नीरज और निकिता दोनों कुछ पल के लिए चुप हो गए।

धीरे से नीरज ने डिब्बे में देखा… उसमें neatly fold की हुई एक लड़कियों की स्कूल यूनिफॉर्म थी — सफ़ेद शर्ट, नेवी ब्लू स्कर्ट, और एक छोटी सी टाई, जैसे किसी लड़की के स्कूल ड्रेसिंग सेट में होती है।

निकिता की आँखें फैल गईं।

निकिता (हँसते हुए):
 "ये तो… क्या? किसी को मज़ाक सूझा है क्या? या कोई वाकई सीरियस है?"

नीरज (कुछ परेशान होकर):
 "ये अजीब है… ऐसा कोई क्यों भेजेगा?"

दोनों के चेहरों पर अब भी हल्की मुस्कान थी, लेकिन उस हँसी में एक उलझन भी थी।

निकिता (धीरे से):
 "कहीं… ये कोई पुरानी पहचान तो नहीं? या कोई जो… तुम्हें जानती हो — तुमसे कुछ कहना चाहती हो?"

कमरे में एक अजीब-सी खामोशी थी…
शादी के तोहफ़ों के बीच एक ऐसा उपहार जिसने नीरज और निकिता दोनों को कुछ पल के लिए उलझा दिया था।

नीरज हाथ में उस स्कूल यूनिफॉर्म को लिए खड़ा था, और निकिता उसके पास बैठी थी, आँखों में शरारत की चमक के साथ।

निकिता (हँसते हुए बोली):
 "अब इसमें मेरी तो कोई गलती नहीं है… अगर तुम्हारे चाहने वाले तुम्हें लड़की बनाना चाहते हैं तो? देखो ना, कोई तुम्हें हेयरबैंड भेज रहा है, कोई अब स्कूल ड्रेस! मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि इसका करना क्या है। तुम्हें क्या लगता है?"

नीरज मुस्कराते हुए, पर हल्की झिझक के साथ बोला:
"करना क्या है… इसे पैक करके रख दो। जब तुम अपने घर जाओगी तो इसे अपने साथ ले जाना, शायद किसी ने गलती से भेजा हो…"

निकिता (बात काटते हुए, हौले से हँसकर):
 "गलती से भेजा है? नीरज जी, जिस तरह से उस खत पर लिपस्टिक का निशान बना था… और जो लाइनें लिखी थीं – ‘बस एक बार मेरा तोहफ़ा पहन लीजिए, मेरा जीवन सफल हो जाएगा’ — लगता तो नहीं कि गलती थी।"

नीरज खामोश रहा।

निकिता आगे बोली (थोड़े शरारती और थोड़े गंभीर लहजे में):
 "कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये जानबूझकर दी गई हो… कोई दिल से चाहता हो कि तुम इसे पहनो?"

फिर वो मुस्करा कर बोली,
"वैसे, अगर मेरी मानी जाए तो… तुम पर तो ये ड्रेस बहुत ही अच्छी लगेगी। वैसे भी तुम्हारी नाक-नक्श बड़ी नाजुक हैं।"

नीरज ने हँसते हुए उसे देखा — उसकी मुस्कान में संकोच था, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्का सा डर भी।

निकिता (हाथ पकड़ते हुए):
 "नीरज, मैं तुम्हें चिढ़ा रही हूँ… पर सच में, अगर कभी तुम्हें लगे कि तुम किसी और रूप में ज़्यादा सहज हो, तो बताना। मैं तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ाऊँगी… मैं तुम्हारा साथ दूँगी।"

नीरज ने उसकी ओर देखा। कमरे का माहौल अचानक थोड़ी गंभीरता से भर गया। वो जानता था, निकिता मज़ाक कर रही थी… लेकिन उसके शब्दों में कोई गहराई भी छुपी थी।

नीरज (धीरे से बोला):
 "नहीं निकिता… मैं जैसा हूँ, वैसा ही ठीक हूँ। शायद ये कोई मज़ाक है, या कोई पुरानी बात… लेकिन मैं तुम्हें लेकर बहुत खुश हूँ।"

निकिता ने मुस्कराकर उसकी हथेली थाम ली।

वह स्कूल यूनिफॉर्म, वह पत्र, और वह लिपस्टिक का निशान — यह सब नीरज के मन को विचलित कर रहे थे।

निकिता, नीरज के पास बैठी, मुस्कराते हुए लेकिन गंभीर स्वर में बोली —
"नीरज… मैंने तुम्हारे  कहने पर बेबी डॉल पहन लिया … इस तरह की छोटी ड्रेस मैंने कभी नहीं पहनी थी, लेकिन तुम्हारे लिए, तुम्हारे बात को बड़ा करने के लिए… मैंने वो भी पहन ली।"

नीरज उसकी आँखों में झाँकता रहा। वह जानता था कि निकिता मज़ाक नहीं कर रही है।

निकिता ने हल्के से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा:
 "तो क्या तुम भी… सिर्फ मेरे लिए… वो स्कूल ड्रेस एक बार पहन सकते हो? देखो, ये कपड़ा ही तो है, न तुम्हारी मर्दानगी पर सवाल है, न मेरी चाहत पर। पर ये पल… ये यादें… कभी दोहराई नहीं जा सकेंगी।"

नीरज झिझका, उसके होंठ थरथराए, पर कुछ नहीं बोला।
निकिता ने फिर मुस्कराकर कहा:
 "मैं जानती हूँ… ये आसान नहीं है। पर सिर्फ एक बार, मेरे लिए। हम दोनों के बीच ये एक सुंदर सी स्मृति बन जाए।"

वो उठी, और नीरज का हाथ थामकर उसे बाथरूम की ओर ले गई। नीरज कुछ कहने ही वाला था कि उसने बाथरूम का दरवाज़ा खोलकर उसे अंदर कर दिया।

थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक दी।
निकिता ने मुस्कराकर कहा:
 "ये देखो… ये ड्रेस से मैचिंग ब्रा और पैंटी हैं… मैं अपने लिए लायी थी , लेकिन अब… ये तुम्हारे उस यूनिफॉर्म से मैच कर रही है।इसलिए दे रही हूँ रिक्वेस्ट मैं बाद में कर दूंगी इन्हे बी पहन कर ही बाहर आना "

नीरज ने चुपचाप पैकेट ले लिया।

बाथरूम के आईने के सामने नीरज खड़ा था।
उसका चेहरा भावशून्य था। हाथ काँप रहे थे।
ड्रेस उसके सामने लटक रही थी — स्कूल की लड़की की यूनिफॉर्म — सफेद शर्ट, नीली स्कर्ट, और बालों में बाँधने के लिए दो रिबन।

नीरज जानता था कि ये सिर्फ मज़ाक था।

थोड़ी देर के लिए नीरज भी बड़ा नर्वस था फिर उसने अपने आप को समझाया कि यह सिर्फ एक मजाक है और यह हमारी सुहागरात को हसीन बनाने के लिए है तो ज्यादा सोचना नहीं है जस्ट फन की तरह से लेना है और उसने अपने कपड़े उतारने शुरू किया और उसके बाद एक-एक करके जो निकिता ने उसे कपड़े दिए थे उन्हें पहनना शुरू किया

सबसे पहले नीरज ने पैंटी को पहना जैसे नॉर्मल अंडरवियर पहना जाता है उसके ऊपर स्कर्ट को और स्कर्ट के हुक को लगाया उसके बाद बारी थी ब्रा की जिसमें थोड़ा सा स्ट्रगल हुआ पर नीरज ने मैनेज कर लिया

और उसके बाद शर्ट को पहना और सबसे लास्ट में जो रिबन थे उन रिबन को निकिता के बने दो चोटी जो उसके कान के पास फोल्ड करके रबड़ लगा दिया  था उनके ऊपर ही बस बांधना था तो उसे भी आसानी से नीरज ने बांध लिया बाथरूम से बाहर निकलने से पहले नीरज ने एक बार खुद को आईने में देखा नीरज को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी छोटी सी स्कर्ट पहने स्कूल ड्रेस में बालों में दो चोटी किए हुए नीरज पता नहीं क्यों खुद को देखकर एक्साइटेड हो गया

बाथरूम की हल्की पीली रोशनी में नीरज अपने सामने खड़ा था। उसने वो ड्रेस पहन ली थी—स्कूल की ड्रेस, जो किसी ने भेजी थी, अज्ञात नाम से, लेकिन बड़े भावुक शब्दों के साथ।आईने के सामने खड़े होकर उसने खुद को देखा — हल्की नीली स्कर्ट, सफेद शर्ट, दो चोटी और रिबन… और उसकी अपनी आँखें — जो अब भी हैरान थीं।

"ये मैं हूँ?" उसने खुद से फुसफुसाकर पूछा।

वो इस बात पर हँसना चाहता था। खुद को मूर्ख समझना चाहता था। पर दिल… दिल चुप नहीं था। वो कह रहा था — "कुछ तो है... खाश इस ड्रेस में 

नीरज आईने के सामने खड़े होकर जब खुद से बातें कर रहा थाऔर अपने विचारों में खोया हुआ था तभी उसे तनक सुनाई दिया और वह अपने सपनों की दुनिया से बाहर आ गया क्योंकि दरवाजे के बाहर बाथरूम के बाहर निकिता दरवाजाठोक रही थीनिकिता की आवाज आईक्या हुआ नीरज जी खुद कोई देखते रहोगे बाहर भी आओगे और हमें भी अपना दीदार कर आओगे सुहागरात आज बाथरूम में मनाने का इरादा है

नीरज तुरंत घबराकर दरवाजा की और भाग और जल्दी से उसने दरवाजा खोलानिकिता ने जब नीरज को देखा उसकी आंखें फटी की फटी रह गईनीरज बहुत ही खूबसूरत लग रहा थाउसकी छोटी उसके चेहरे के रंग से मैच का रही थी और यह ड्रेस बिल्कुल उसके नाम की थी वह इस ड्रेस में बिल्कुलएक नई-नई जवान लड़की की तरह खूबसूरत लग रहा था टिकट हंसना चाहते थे पर उसे पता था अगर वह हंसने की तो नीरज को बुरा लग सकता है इसलिए उसने अपने हंसी पर कंट्रोल कियानीरज का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर लेकर आई और जब नीरज अपनी स्कर्ट को व्यवस्थित कर कर फोल्ड कर बिस्तर पर बैठ रहा था तभी निकिता ने नीरजके गालों परएक कंट्रोल्ड एक छोटा सा किस कियालेकिन नीरज के लिए ओके जैसे करंट का झटका था जैसे उसने एक नंगी तार पकड़ ली थी उसके रोम रोम में पिछली से कौन गई थी बहुत ज्यादा एक्साइटेड हो गया थाऔर वह एक्साइटमेंट उसकी छोटी सी स्कर्ट के अंदरनिकिता की पैंटी में से साफ नजर आ रही थी जिसे बहुत मुश्किल से नीरज छुपा पा रहा था 

नीरज निकिता दोनों ही बहुत ज्यादा एक्साइटेड हो गए थेऐसा नहीं था कि आग एक तरफ से लगी थी आग  दोनों तरफ थी अगर नीरज की  एक्साइटमेंट उसकी  छोटी सी स्कर्ट और निकिता के पेटी से दिख रही थी तो निकिता की एक्साइटमेंट भी  उस शॉर्ट बेबी डॉल  ड्रेस के अंदर से उसकी  गीली  पेटी में से साफ दिखाई दे रही थी दोनों के लिए पल थोड़ा सा असहज  था पर बहुत रोमांटिक भी था

निकिता धीरे से उसके पास आई और मुस्कराते हुए बोली,
"अब जब ड्रेस पहन ही ली है, तो इसे पूरा क्यों न किया जाए?"

नीरज ने मुड़कर देखा—आँखों में थोड़ा संकोच, थोड़ा उत्साह।

"तुम्हारा मतलब?"

"मेकअप…" निकिता ने कहा और नीरज का हाथ पकड़कर उसे धीरे से आईने के सामने स्टूल पर बैठा दिया।
"आज… बस एक बार… खुद को उस नज़र से देखो… जैसे एक लड़की दुनिया को देखती है ।"

पर इसके लिए तुम्हे क्लेन सेव करना पड़ेगा 

और फिर नीरज का सेविंग बॉक्स ले कर आयी और उसके फेस पर जेल लगाकर रेजर से धीमे धीमे नीरज के फेस के सरे हेयर्स को क्लीन कर दिया 

क्लीन सेव होने के बाद निकिता ने नीरज के फैक को फेसवाश से क्लीन किया उसके बाद 

निकिता ने अपना छोटा मेकअप बॉक्स निकाला—एक चमचमाता गुलाबी डब्बा जिसमें उसके पसंदीदा रंग थे।

सबसे पहले उसने नीरज के चेहरे को नर्म रूई से साफ़ किया।
 हथेली की गर्माहट और रूई की नरमी से नीरज को हल्की सी झुरझुरी महसूस हुई।

"अब आंखें बंद करो," निकिता ने धीमे से कहा।

नीरज ने आंखें मूंद लीं।

निकिता ने सबसे पहले फाउंडेशन लिया और अपनी अंगुलियों से बड़े प्यार से उसे नीरज के चेहरे पर फैलाया।
"तुम्हारी स्किन तो मुझसे भी सॉफ्ट है," वो हँसते हुए बोली।

फिर आई कंसीलर की बारी। उसने नीरज की आंखों के नीचे और माथे पर हल्का टच दिया।
"बस थोड़ी सी थकान छुपा देते हैं… ताकि सिर्फ खूबसूरती दिखे," उसने मुस्कुराते हुए कहा।

फिर आई ब्यूटी ब्लेंडर—जिससे उसने सब कुछ एकसार कर दिया। नीरज को महसूस हो रहा था जैसे कोई उसे धीरे-धीरे सजा रहा हो, नहीं… समझ रहा हो।

अब ब्लश की बारी थी। हल्के गुलाबी रंग को गालों पर लगाते हुए निकिता ने उसकी आंखों में देखा—

"तुम blush कर रहे हो… या ये ब्लश का कमाल है?"

नीरज ने झेंपते हुए नज़रें झुका लीं।

फिर आई आंखों की बारी

निकिता ने बड़े प्यार से काजल की डंडी उठाई और धीरे से नीरज की आंखों के किनारों पर उसे चलाया।

"अपनी आंखों को देखो नीरज… इनसे तो कोई भी डूब जाए…"

आईलाइनर लगाते हुए उसकी उंगलियां कभी नीरज के गालों को छूतीं, कभी उसकी पलकों को संभालतीं। हर स्पर्श में एक अपनापन था, एक गहराई।

फिर लैश कर्लरथोड़ी सी मस्कारा, और एक हल्का गोल्डन आईशैडो

और अंत में…
लिपस्टिक।

निकिता ने एक चमकदार रोज़ शेड निकाला—धीरे से नीरज की ठुड्डी उठाई और बोली,
"बस हल्के से होठों को खोलो… अब इसे न नकारना…"

धीरे-धीरे उसने लिपस्टिक लगाई—हर स्ट्रोक के साथ मानो कोई नया भाव अंकित हो रहा हो।

जब नीरज ने आईना देखा… तो सामने एक नया ही चेहरा था।

कमरे में धीमी सी लैवेंडर सुगंध फैली हुई थी। पर्दों से छनती हल्की रौशनी नीरज के चेहरे को छू रही थी। वह सामने आईने में खुद को देख रहा था — स्कूल गर्ल की ड्रेस में, हल्का सा झिलमिलाता मेकअप और बालो में दो चोटियां । उसके होंठों पर गुलाबी ग्लॉस था, पलकें मस्कारा से लहराई हुई थीं। निकिता ने बड़ी बारीकी से उसका मेकअप किया था — जैसे किसी कलाकार ने अपने कैनवस पर ब्रश चलाया हो।

निकिता पीछे से आई, उसके कंधों पर धीरे से हाथ रखा, और मुस्कराई, “बस अब एक आख़िरी टच बाकी है…”

नीरज ने थोड़ी हैरानी से पूछा, “क्या?”

निकिता ने मुस्कराते हुए बेड साइड से एक सॉफ्ट वेल्वेट का छोटा ज्वेलरी बॉक्स उठाया। उसे खोलते ही उसमें से चमकते हुए ज़ेवर दिखने लगे — मोतियों की एक नाज़ुक चोकर, झिलमिलाते कंगन, एक महीन सी पायल, और सबसे ऊपर एक जोड़ी छोटे, दिल के आकार की बालियाँ।

“पहले ये…” निकिता ने चोकर निकाला और नीरज की गर्दन के चारों ओर धीरे-धीरे बांधा। उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के गर्दन पर घूमीं, जिससे नीरज को एक सिहरन सी महसूस हुई। चोकर की सफ़ेद मोती और गुलाबी पत्थर उस पर किसी परी सी शोभा दे रहे थे।

फिर उसने कंगन उसकी कलाई में पहनाए — चूड़ियों की खनक जैसे कमरे में नयी रूमानी ध्वनि भर गई हो।

“अब आंखें बंद करो,” निकिता ने धीरे से कहा।

नीरज ने आंखें बंद कीं, मगर कुछ घबराहट के साथ।

थोड़ी देर बाद, निकिता की सांसें उसकी गर्दन के पास महसूस हुईं। फिर एक हल्की सी चुभन… और एक मीठी सिहरन।

नीरज की आंखें खुलीं — और वो हैरान रह गया।

“तुमने… कान छेद दिए?” उसकी आवाज़ धीमी लेकिन हैरान थी।

निकिता ने प्यार से उसकी ठुड्डी ऊपर की और कहा, “बस थोड़ा सा सरप्राइज… ताकि तुम पूरी लगो।”

उसके कानों में अब वही दिल के आकार की बालियाँ झूल रही थीं। हल्के गुलाबी रंग में, एक छोटे से मोती के साथ। बेहद नाज़ुक और सुंदर।

नीरज आईने में खुद को देखता रहा। उसकी साँसे तेज़ थीं, मगर आंखों में चमक थी — कुछ नया महसूस करने की, कुछ गहराई से जुड़ने की।

निकिता ने फिर धीरे से उसका हाथ पकड़ा और कहा, “अब चलो, पायल और बची चीज़ें पहनाते हैं… आज की शाम सिर्फ तुम्हारे और मेरे लिए है।”

नीरज ने मुस्कुराते हुए हामी भरी।

निकिता ने उसे बिठाया, और बहुत ध्यान से उसके पैरों में पायल पहनाई — चांदी की, हल्की सी घंटियों वाली। उनके खनकते ही कमरे में एक और मधुर स्वर भर गया।

 नीरज के हर स्पर्श, हर ज्वेलरी का टुकड़ा, निकिता के प्यार से भरा हुआ था।

कमरे में अब सिर्फ़ नर्म रोशनी बची थी, खिड़की से आती हल्की हवा नीरज की स्कर्ट को थामे झूल रही थी। स्कूल गर्ल यूनिफ़ॉर्म में मेकअप और ज्वेलरी के साथ नीरज एकदम अलग लग रहा था — शर्मीला, लेकिन अंदर ही अंदर थोड़ी ख़ुश भी। वहीं, निकिता बेबी डॉल ड्रेस में उसके पास बैठी थी, उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी।

“सोचो नीरज,” निकिता ने धीरे से मुस्कराते हुए कहा, “हमारा हनीमून होगा… और उसमें दो लड़कियाँ होंगी। तो… सुहागरात कैसे मनेगी?”

नीरज ने भौंहें चढ़ाकर हैरानी जताई, “हाह! क्या मतलब? मतलब हम दोनों ही लड़की बनें तो... कौन करेगा पहल?”

निकिता ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा, “एक मिनट रुकना…”

और वो उठकर, अपनी डॉल-सी ड्रेस के फंदे खोलती हुई, धीरे-धीरे बाथरूम की तरफ़ चली गई। जाते-जाते उसने दरवाज़े के पास रुककर एक नज़ाकत भरी अदा में कहा, “तैयार रहना... तुम्हारी ज़िंदगी बदलने वाली है।”

नीरज हक्का-बक्का रह गया। “अब क्या करने वाली है ये?” उसने खुद से कहा, लेकिन अंदर कहीं दिल तेज़ धड़कने लगा था।

कुछ मिनट बाद… बाथरूम का दरवाज़ा खुला।

और वहाँ खड़ी थी निकिता… लेकिन अब वो ‘निकितादेवी’ नहीं… बल्कि एक स्टाइलिश, हैंडसम दूल्हे की तरह नज़र आ रही थी। उसने नीरज के ही शादी वाले शेरवानी को पहना था — कंधे पर जरीदार दुपट्टा, माथे पर सेहरा सा बाँध रखा था और चाल में एक शरारती अकड़ थी।

नीरज की आँखें चौड़ी हो गईं। “तुमने… मेरे कपड़े पहन लिए?” उसकी आवाज़ में हँसी और झिझक दोनों थी।

“अब तू मेरी दुल्हन है,” निकिता ने मज़ाकिया लेकिन गहरे सुर में कहा। फिर वो धीरे-धीरे उसकी तरफ़ बढ़ी, हर क़दम पर उसके चेहरे पर शरारत और प्यार दोनों गहराते गए।

नीरज हँसते हुए पीछे हटता गया, “अरे नहीं, ये सब क्या है!”

निकिता ने धीरे से उसकी कलाई पकड़ी, और उसे पास खींच लिया। “दुल्हन को ऐसे शरमाना शोभा देता है, दीपिका रानी,” उसने चिढ़ाते हुए कहा।

“दीपिका?! ओहो… अब नाम भी बदल दिया मेरा?” नीरज ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।

निकिता ने उसकी मांग में सिंदूर जैसा सा लाल टिंट लगाने के लिए लिपस्टिक उठाई और बहुत कोमलता से उसकी मांग भर दी।

“अब बोलो,” निकिता फुसफुसाई, “तुम मेरी बीवी, और मैं तुम्हारा पति… अब सुहागरात कौन मनाएगा?”

नीरज ने थोड़ा सा शर्माते हुए नीचे देखा, लेकिन फिर उसकी आँखों में एक चमक आ गई। “अगर तुम पति हो, तो सुहागरात की ज़िम्मेदारी भी तुम्हारी है।”

“तो हुक्म मानो मेरी रानी,” निकिता ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींचा।

“क्या हुक्म है सरकार?” नीरज ने धीरे से पूछा।

“बस इतना कि आज की रात... तुम सिर्फ़ मेरी हो।”

हँसी, हल्की छेड़खानी और धीरे-धीरे गहराता एहसास — दोनों की पहचानें उस पल में ग़ुम हो गईं। एक ने अपने दिल से नया रूप स्वीकार किया, और दूसरे ने उस रूप से प्यार करना सीखा।

कमरे में अब दो लोग नहीं थे — एक प्यार था, जो हर रूप में सुंदर था।

नीरज बिस्तर पर बैठा था — स्कर्ट की लेयरें उसके पैरों के पास फैल गई थीं, उसके हाथों में चूड़ियाँ खनक रही थीं। और अब... उसके सिर पर हल्का सा घूँघट भी आ चुका था।

निकिता, जो अभी कुछ देर पहले ‘दूल्हा’ बन गई थी, उसके सामने खड़ी थी — आँखों में वही शरारती चमक।

“बैठो...” उसने धीमे सुर में कहा।

नीरज थोड़ी झिझक और बहुत सी उत्सुकता के साथ बिस्तर पर बैठ गया। निकिता ने फिर धीरे से उसकी ठोड़ी को ऊपर किया, और अपनी उंगलियों से घूँघट का कोना थाम लिया।

धीरे-धीरे जैसे ही घूँघट उठा… नीरज की बड़ी-बड़ी आँखें हल्की शर्म से झुक गईं। पर उसमें कहीं एक चमक थी — खुद को किसी और की नज़रों से पहली बार इस तरह देखे जाने की।

“कमाल की लग रही हो मेरी रानी...” निकिता ने फुसफुसाते हुए कहा।

नीरज मुस्कुराया — थोड़ा झेंप कर, थोड़ा संकोच से। तभी निकिता ने धीरे से अपनी टांगें मोड़ीं और उसके सामने बैठ गई।

“नयी दुल्हनें क्या करती हैं, याद है?” निकिता ने उसकी ओर इशारा किया।

नीरज कुछ समझते हुए शर्माते हुए नीचे झुका और धीरे से उसके पैर छू लिए — अपने नाज़ुक हाथों से, बिल्कुल किसी संस्कारी बहू की तरह। उसकी चूड़ियाँ टकराईं, और पायल की खनक उस ख़ामोशी में एक खास मिठास भर गई।

और तभी, नीरज ने शरारती अंदाज़ में कहा,
“पर एक बात तो रह गई…”

“क्या?” निकिता ने चौंक कर पूछा।

“मुँह दिखाई!” नीरज ने आँखें मटकाते हुए कहा, “जब दूल्हा दुल्हन का घूँघट उठाता है, तो उसे तोहफा देता है। अब तुमने मेरा घूँघट उठाया है... तो अब मुझे गिफ्ट दो!”

निकिता की आँखों में हल्की सी हैरानी आई… फिर मुस्कुराहट फैली।

“अच्छा... तो गिफ्ट चाहिए?”

“हाँ!” नीरज ने बच्चे जैसी मासूमियत से कहा।

निकिता उठी, और बिस्तर के किनारे से कुछ उठाया।

एक छोटा सा ब्लैक बॉक्स था… बिल्कुल किसी गहने के डिब्बे जैसा। नीरज ने उत्साह से उसकी तरफ़ देखा… “क्या है इसमें?”

निकिता ने बॉक्स खोला।

और उसमें... एक जोड़ी सिल्वर हैंडकफ़्स थी।

जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है — पासवर्ड डालिए और जानिए आगे क्या हुआ! 🔓


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