हेल्लो निशांत?”
“यस, दिस इस निशांत हियर. हु इस स्पीकिंग?”
“अरे निशांत!! मैं चेतना बोल रही हूँ यार!”
“चेतना? कौन चेतना?”
“ओह सॉरी! तू तो मुझे इस नाम से जानता नहीं. यार मैं तेरी रूममेट चेतन.”
“चेतन! अबे साले! तुझे २ साल बाद मेरी याद आई है. कहाँ था तू इतने समय से? और मैंने सुना है कि तूने अपना जेंडर चेंज कर लिया है”
किसी अच्छे दोस्त की तरह निशांत की आवाज़ में भी एक उत्साह था अपने दोस्त से सालों बाद बात करने वाला. उसके उत्साह को सुनकर मेरा भी डर कुछ कम हो गया था अपने पुराने दोस्त से बात करने का. आखिर मैं बदल जो गयी थी.
“हाँ तूने सही सुना है यार निशांत. मैंने जेंडर बदल लिया है. इसलिए तुझे मुझसे कहना है तो साले नहीं साली बोल.”, मैं हँस दी.
“ओह सॉरी. ठीक है मैं तुझे साली बोलूँगा. यार जेंडर के साथ तो तेरी आवाज़ भी बदल गयी है.”, निशांत बोला.
मेरे बारे में इतनी बड़ी बात जानने के बाद भी निशांत मुझसे इतनी नार्मल तरह से बात कर रहा था. यह सुनकर मैं खुश भी थी और थोड़ी भावुक भी. मेरा तो ख़ुशी से गला भर आ रहा था. पर अपनी भावनाओ को संभालते हुए मैं उससे आगे बात करने लगी.
“यार आवाज़ तो बदलनी पड़ेगी न. अब हॉट लड़की जो बन गयी हूँ! तो आवाज़ भी वैसी होनी चाहिए”, मैं उसे तंग करने लगी.
“बात तो तेरी सही है. वैसे यार तू US में रहती कहाँ है? मैं एक हफ्ते पहले ही US आया हूँ. मेरी कंपनी ने आखिर मुझे यहाँ भेज ही दिया.”
“जिस शहर में तू है… वहीँ मैं भी रहती हूँ. तू बता कल सैटरडे मोर्निंग को फ्री है क्या? अपनी मुंबई इंडियन टीम का मैच है. साथ देखेंगे बियर के साथ”, मैं बोली.
“क्या बात कर रही है? तू यहीं है! फिर तो मैं ज़रूर आऊँगा. साथ मैच देखने में मज़ा आएगा पुराने दिनों की तरह. वैसे सिर्फ बियर से काम नहीं चलेगा हाँ. US आया हूँ तो व्हिस्की भी पीकर जाऊँगा महँगी वाली.”
“ठीक है. बिलकुल पुराने दिनों की तरह ही मिलेंगे. पक्का”, मैं बोली पर क्या अब मेरे बदलाव के बाद पुराने दिनों की तरह मिलना संभव था?
“चेतन… एक बात बता. सॉरी… चेतना, ये तो बता की तुझे मेरा फ़ोन नंबर कैसे मिला? ये तो मैंने ४ दिन पहले ही लिया है.”, निशांत ने पूछा.
“अरे वो हमारी बैचमेट रश्मि थी न. उसने बताया”
“रश्मि? वो नकचढ़ी लड़की. उसको कैसे पता?”, निशांत ने पूछा. मैं जानती थी कि वो रश्मि को पसंद क्यों नहीं करता था.
“अरे यार इतनी भी बुरी नहीं है वो. उसको संजय ने तेरे बारे में बताया था. और वो जानती थी कि तू और मैं कॉलेज में रूममेट थे, इसलिए उसने संजय से नंबर लेकर मुझे दे दी.”
“देख तू लड़की बन गयी है तो उसकी तरफदारी मत कर ज्यादा. तुझे पता है न कि कॉलेज में कैसे भाव खाती थी वो. और ये साला संजय भी न.. उसको क्या पड़ी थी जो रश्मि को मेरे बारे में बता दिया.”
“अरे अच्छा हुआ न बताया. वरना मैं तुझसे बात कैसे कर पाती? अच्छा सुन… अभी मेरी मीटिंग है. मैं तुझे अपना एड्रेस भेज दूँगी sms से. तू कल सुबह ९ बजे तक आ जाना पक्का. बाय!”
“बाय.. चेतना! वैसे सुन…. मुझे तेरा नाम अच्छा लगा. मैं कल तुझसे मिलने के लिए बेसब्र हूँ. सी यू सून!”, निशांत ने हंसकर कहा.
फ़ोन रखते ही न जाने क्यों मैं शरमाई सी मुस्कुराने लगी. निशांत तो बस मेरा अच्छा दोस्त था. उससे बात करके कितना अच्छा लगा मुझे मैं बता नहीं सकती. जितने भी मुझे पहले से जानने वाले लोग है, वो मुझसे इतनी सहजता के साथ आज बात नहीं कर पाते. सभी के लिए मुझे मेरे नए रूप में देखना मुश्किल था… और निशांत… पता नहीं कल जब वो आएगा तो कैसे रियेक्ट करेगा. उसने तो मुझे कभी लड़की के रूप में देखा तक नहीं था.
उस रात मैं करवटें बदलते सोचती रही मुस्कुराती रही कि निशांत से मिलकर ऐसा होगा, वैसा होगा, हम पुराने दिनों की तरह मौज मस्ती करेंगे बिलकुल जिगरी दोस्तों की तरह. आखिर मेरा जिगरी दोस्त तो था वो. फिर भी २ साल पहले जब मैंने अपना जेंडर चेंज करना शुरू किया था तो मैंने उसे कुछ नहीं बताया था. डर लगता था कि दोस्ती न टूट जाए. यदि वो मुझे समझ न सका तो. पर फिर भी हमेशा से उससे मिलकर सब साफ़ करने की इच्छा थी जो अब पूरी होने वाली थी. आज रात मेरी आँखों में नींद न थी बस सपने थे एक दोस्त के साथ खुशनुमा समय बिताने के.
अगली सुबह मैं जल्दी उठकर खाना बनाने में लग गयी ताकि जब निशांत आये तो दोपहर का खाना तैयार रहे. वैसे भी इंडिया से आये हुए लोगो के लिए भारतीय घर के खाने की कीमत ही कुछ और होती है. खाना बनाने के बाद मैं सोचने लगी कि आखिर कौनसे कपडे पहनू. मेरे डेली वियर के कपडे तो ड्रेस और स्कर्ट वगेरह टाइप के वेस्टर्न कपडे ही है. मैं निशांत के सामने ज्यादा सेक्सी कुछ नहीं पहनना चाहती थी. एक तो मुझे लड़की की रूप में पहली बार देखने वाला था वो, ऊपर से ज्यादा सेक्सी कुछ पहन ली तो उसको शॉक ही लग जायेगा. और फिर मैं उसको जानती भी तो थी… यदि मैंने कोई ड्रेस पहन ली तो ड्रेस में मेरा क्लीवेज देखकर ही पागल हो जाएगा वो! उसकी दोस्त होने के नाते जानती थी मैं कि वो बूब्स के दीवाना है. इसलिए सलवार सूट भी नहीं पहन सकती थी क्योंकि मेरे सभी सूट में फिगर कुछ ज्यादा ही निखरता था.
इसलिए मैंने तय किया कि मैं कोई साड़ी पहनूंगी. वो भी ऐसी जो सेक्सी कम और शालीन ज्यादा लगे. जैसे सिल्क साड़ी… वैसे भी कितना समय हो गया है मुझे साड़ी पहने. औरत बनने के पहले तो साड़ी मेरी पहली चॉइस होती थी. लेकिन US में काम करना हो तो साड़ी पहनकर ऑफिस नहीं जा सकती थी. और फिर घर से बाहर साड़ी पहनो तो लोगो को लगता है कि कोई भारतीय त्यौहार आने वाला होगा और विदेशी औरतें रोककर पूछने लगती है साड़ी के बारे में. तो चलो आज साड़ी ही पहनी जाए और फिर मैं अपने कलेक्शन में साड़ी ढूँढने लगी. आखिर में मैंने एक सॉफ्ट सिल्क साड़ी पसंद की जिसके साथ मैचिंग सिल्क ब्लाउज भी था. अब इससे ज्यादा शालीन औरत कैसे बना जा सकता था ट्रेडिशनल सिल्क साड़ी के अलावा? पर मन ही मन मैं ये भी जानती थी कि साड़ी में सेक्सी न लग पाना लगभग असंभव था. पर इससे ज्यादा और क्या कोशिश करती मैं. साड़ी पहनकर मैं लगभग तैयार थी और बस हाथो में चूड़ियां ही पहन रही थी कि तभी दरवाज़े की घंटी बजी. निशांत ही होगा, मैंने सोचा और आईने में देखकर अपने आँचल को ठीक करके एक आखिरी बार देखा कि कहीं मेरा ब्लाउज खुला तो नहीं दिख रहा. समय भी कितनी तेज़ी से बदल गया था … इसके पहले कभी निशांत के सामने जाने के लिए मुझे यूँ सोचना न पड़ता था. फिर भी मैं इस वक़्त बेहद खुश थी निशांत से मिलने के लिए और मैं दौड़ी दौड़ी दरवाज़े तक चली आई.
और दरवाज़ा खोलते ही अपने दोस्त निशांत को देखते ही ख़ुशी के मारे मैं उसके सीने से लग उससे लिपट गयी. मारे ख़ुशी के मैं उसे छोड़ना ही नहीं चाह रही थी और उसने मुझे दूर भी नहीं किया. और फिर जब मैंने उसे जी भर कर गले लगा लिया तो मैं ही खुद अलग होकर उसकी बांहों को पकड़ कर बोली, “तो निशांत जी… हमारी मुलाक़ात हो ही गयी.”
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निशांत के लिए मैंने आज एक सिल्क साड़ी पहनी थी.
पर निशांत के चेहरे से तो जैसे होश उड़े हुए थे… जैसे उसने कोई भुत देख लिया हूँ. उसे ऐसा देखकर मेरे चेहरे से भी ख़ुशी चली गयी. निशांत भी आखिर दुसरे लोगो की तरह निकला.
“कम ऑन निशांत! तू भी अब ऐसे ऑकवर्ड बिहेव करेगा… मैंने तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं की थी. सोची थी कि तू मेरा अच्छा दोस्त है… कम से कम तू तो मुझे ऐसे नहीं देखेगा कि मैं ऐसे कैसे बदल गयी हूँ.”, मैं दुखी होकर पलटने लगी.
पर तभी उसने मेरी बांह पकड़कर मुझे रोका और बोला, “क्या यार… पागल हो गयी है क्या तू?”
“छोड़ दे मेरा हाथ. पागल ही तो हूँ जिसने लड़का होते हुए भी लड़की बनना तय किया.”, मैंने झुंझलाकर कहा.
“पगली. तुझे पता है न कि मैं २४ साल का सॉफ्टवेर इंजिनियर हूँ! आज तक किसी लड़की से गले लगना तो दूर मैंने किसी लड़की से हाथ भी मुश्किल से मिलाया है. और तू दरवाज़ा खोलते ही मुझसे ऐसे लिपट पड़ी. अब हक्का बक्का तो रह जाऊँगा न ऐसा कुछ हो तो!”, और वो हँसने लगा. और मैं भी हंसकर उसकी ओर फिर पलट गयी.
“वैसे सच कहूं तो जैसे सोचा था उससे कहीं ज्यादा अच्छा लगा एक लड़की को गले लगाकर. उसके लिए थैंक यू!”, निशांत बोला.
“अच्छा अच्छा अब बातें मत बना. अन्दर आजा. और प्रॉमिस कर मुझसे वैसे ही बर्ताव करेगा जैसे पहले मेरे दोस्त होते हुए करता था. वैसे मैच शुरू होने वाला है.. तू टीवी ऑन कर मैं बियर लेकर आती हूँ.” मैंने उसके सीने पर प्यार से अपने हाथ से वार करते हुए कहा.
“हाय! तू तो मेरा दिल चुरा लेगी चेतना.”, निशांत ने नाटक करते हुए कहा और मेरे पीछे पीछे अन्दर आ गया. मुझे पता नहीं था कि वो मेरे पीछे मेरे पल्लू को पकडे अन्दर चला आ रहा है. मैं फ्रिज की ओर बढ़ने लगी तो मेरा पल्लू उसके हाथ में होने की वजह से खिंचाने लगा.
मैंने पलट कर देखा तो वो हँस रहा था. “सॉरी यार.. मेरा बरसो से सपना था कि किसी लड़की की साड़ी का पल्लू खींचू.”
“तेरे नाटक बंद हो गए हो तो मैं बियर लेकर आऊँ?”, मैं मुस्कुराकर बोली. मैं तो हमेशा से जानती थी कि निशांत हंसमुख था, थोडा नटखट था पर दिल का बहुत अच्छा भी था. उसकी शरारतो में कभी किसी के लिए कोई बुरे विचार नहीं होते थे. मैं जब बियर निकाल रही थी तब तक उसने टीवी चालू कर दिया और मुझे आवाज़ देकर बोला, “चेतना.. तू सीरियसली चाहती है कि हम पुराने दोस्तों की तरह रहे?”
“हाँ. क्यों?”, मैंने किचन से ही कहा.
“तो ठीक है. तुझे एक बात बताना था. पता है इस कमरे में एक बहुत हॉट लड़की है. यार कसम से उसकी ऐस बड़ी सेक्सी है! और ब्लाउज में दिखती उसकी पीठ … बाय गॉड.. कमाल की है!”
“मारूंगी तुझे अभी यहीं से”, मैंने गुस्से से पलट कर उसकी ओर देखा पर मेरे चेहरे की मुस्कान में वो गुस्सा कहाँ दिखने वाला था. मुझे पता था साड़ी में सेक्सी नहीं लग पाना लगभग असंभव था. मुझे ध्यान ही नहीं रहा था कि मैं डीप बैक वाला ब्लाउज पहन रही हूँ. मैंने अपने ब्लाउज को पल्लू से ढंक लिया इससे पहले की निशांत की नज़र मेरी ब्रा पर पड़ती. ये लड़का न जाने और क्या क्या कह जाता.
“यार तू ही बोली थी पुराने दोस्तों की तरह बातें करते है. अब चेतन और मैं तो ऐसे ही बातें करते थे. अब तू लड़की बन गयी है तो ज्यादा सेंटी मत हो.”
मैंने तभी मज़ाक में उसके ऊपर एक एप्पल पकड़ कर फेंका. “अरे मारेगी क्या मुझे?”
“हाँ. तुझे पहले ही बोली थी कि मारूंगी तुझे. अब ज़रा सरक और मुझे बैठने दे.”, मैंने उसके हाथो में बियर पकडाई और उसके बगल में बैठ गयी. सच कहूं तो निशांत की बातों में मुझे मज़ा भी आ रहा था. मेरा पुराना दोस्त ही था आज भी वो… वैसे ही तो बातें करता था वो.
वैसे तो निशांत के साथ बैठकर मैंने कितने ही बार मैच देखे होंगे कॉलेज में, पर साड़ी पहनकर ये पहली बार था. हम दोनों लोग तो वही थे बस मेरा तन बदल गया था. क्या तन बदलने से दोस्तों में कुछ बदल जाता है? मैं नहीं चाहती थी कि हम दोनों में कुछ बदले.
हम दोनों ने ही सोफे के सामने रखे टेबल पर पैर सीधे कर रख दिए और मैं अपने पल्लू को एक ओर करते हुए बियर पीने लगी. पर निशांत की नज़र कहीं और थी. मुझे एहसास नहीं था कि पैर टेबल पर रखते हुए मेरी साड़ी थोड़ी ऊपर उठ गयी थी और मेरी गोरी चिकनी टांगो में मेरी पायल दिखने लगी थी.
“चेतना… यार तेरे पैर कितने सुन्दर है. पायल अच्छी लग रही है.”, निशांत ने मेरे पैरो को देख कर कहा. जैसे ही मुझे एहसास हुआ मैंने झट से अपनी साड़ी को निचे कर अपने पैरो को छुपाया. और उसकी ओर गुस्से से देखा. “अरे मुझ पर क्यों गुस्सा कर रही है. अब तू सुन्दर है तो सुन्दर है. वैसे तेरी अदा और गुस्सा तो और सुन्दर है.”
“देख निशांत. तू ऐसे ही नाटक करेगा या फिर मुझे मैच भी देखने देगा.”, मैं बोली.
“देख यार… तू US वाली है तेरे लिए लडको के साथ गेम देखना नार्मल होगा. मैं तो अभी अभी US आया हूँ. पहली बार लड़की के साथ मैच देख रहा हूँ. मेरी भी फीलिंग्स को समझ यार.”
ऑफ़ ओह.. इस लड़के को कैसे समझाऊँ मैं? मैं मन ही मन सोच रही थी. पर फिर उससे लगकर सोफे पर टिककर मैं टीवी पर मैच देखने लगी. और उसने मेरे कंधे पर अपना हाथ रख लिया तो मैं भी उसके कंधे पर सर टिकाकर उसके साथ मैच देखने लगी. एक दोस्त होने के नाते इसमें मुझे कुछ अजीब नहीं लगा. शायद उसे भी न लगा हो. मैं निशांत से बहुत बातें करना चाहती थी. पर उसके पहले हम दोनों को थोडा नार्मल होने में समय लगेगा.
उसके साथ अभी कुछ पल चैन के बीते ही थे कि उसने अपने हाथ मेरे कंधो से उठाकर मेरी बांहों पर ले आया और फिर मेरी बांहों पर मेरी ब्लाउज की आस्तीन पर फेरने लगा. “अब इसे क्या मसखरी सूझ रही है?”, मैं सोचने लगी. और फिर उसने मेरी बांह को दबाते हुए कहा, “यार तू बड़ी सॉफ्ट सॉफ्ट है.”
“हाँ लड़कियों की बाँहें सॉफ्ट ही होती है. वैसे तू भी किसी लड़की से सॉफ्ट नहीं है. देख २-३ साल में कैसा गोलू-मोलू हो गया है. तू भी ब्लाउज पहन ले न तो तू भी सेक्सी लगेगा.”, मैं भी उसकी बांह पकड़ कर मसखरी करने लगी.
“चुप कर तू.. कुछ भी बोलती रहती है. मैं खाते पीते घर का लड़का हूँ. थोडा बहुत फैट तो होता ही है. अच्छे घर के लडको की निशानी है यह.”
“आय हाय… गोलू मोलू को मेरी बात बुरी लग गयी.”, मैं उसे और छेड़ने लगी. जब से वो आया है वो मुझे तंग कर रहा है, अब मेरी बारी थी.
हम दोनों एक दुसरे की तरफ कुछ देर तक देखते रहते. और फिर उसने मुस्कुराते हुए एक बार फिर मुझे मेरी बांहों से पकड़ा और अपने करीब खिंच लिया. “अच्छा चल अब ज़रा मैच भी देख ले या तू मुझे यूँ ही परेशान करेगी?”, निशांत ने कहा.
“अच्छा तो मैं तुझे परेशान कर रही हूँ? जब से आया है नाक में दम करके रखा है तूने!”, मैं भी शिकायती लहजे में उसके करीब आ गयी और उसके सीने पर सर रख कर टीवी देखने लगी.
जिस तरह से मैं साड़ी पहनकर सजी हुई थी और उसके सीने पर सर रख कर बैठी थी, कोई भी हमें देखता तो ज़रूर सोचता कि हम दोनों पति-पत्नी है. पर हम दोनों के मन में ऐसा कोई विचार नहीं था. जब कोई औरत किसी आदमी के साथ सुरक्षित महसूस करती है, उसे एक आदमी को गले लगाने में कोई संकोच नहीं होता. ऐसा ही कुछ मुझे लग रहा था. मैं तो सिर्फ अपने दोस्त के साथ सटकर बैठी हुई थी. और निशांत के मन में भी ऐसा वैसे कुछ नहीं रहा होगा ऐसा मुझे यकीन था. वो तो सिर्फ एक दोस्त की तरह बर्ताव कर रहा था जो मुझसे सालो बाद मिल रहा था. और वो वोही कर रहा था जो एक अच्छा दोस्त दुसरे दोस्त के साथ करता है… मसखरी और शैतानी. और शायद हमें शान्ति से बैठे हुए कुछ पल ही बीते थे कि उसे फिर एक मसखरी सूझी.
वो अब भी मेरी बांहों पर अपना एक हाथ फेर रहा था. पर अब उसका हाथ मेरी बांहों से निचे आते हुए मेरी कमर तक आ गया था. और फिर मेरी साड़ी को सरकाते हुए अन्दर डालते हुए मेरी कमर को छूने लगा. मैं जानती थी कि ये लड़का अब ज़रूर कोई नयी शैतानी करने वाला है. अपनी उँगलियों से मेरी कमर में धीरे धीरे छूते हुए वो थोड़ी गुदगुदी करने लगा पर मैंने सोचा कि चलो इसे अनदेखा करती हूँ. पर फिर देखते ही देखते उसके हाथ ऊपर उठने लगे और मेरे ब्लाउज पर आ गए. और एक जवान लड़का लड़की के ब्लाउज में हाथ डालकर क्या करता है? वो मेरे ब्लाउज पर से मेरे स्तनों को हौले हौले दबाने लगा पर मैंने उससे कुछ नहीं कहा. देखती हूँ कितना आगे बढती है इसकी ये मसखरी, यही सोच रही थी मैं. और फिर कुछ देर मेरे नर्म स्तनों को दबाने के बाद वो अपनी उँगलियों को मेरे निप्पल वाले एरिया के ऊपर गोल गोल घुमाने लगा. वो ये सब कुछ ऐसे कर रहा था जैसे कोई बड़ी बात न हो. तो मैंने सोचा कि अब मैं भी ज़रा निशांत के साथ मसखरी करती हूँ. जब जब वो मेरे निप्पल को पकड़ने की कोशिश करता मैं आँखें बंद कर गहरी सांसें लेने लगती जैसे मेरे जिस्म में आग लग रही हो. पर निशांत पर जैसे कुछ फर्क ही न पड़ा हो. वो अपनी हरकत करता रहा. तो आखिर में मैंने आन्हें भरनी शुरू की और उसके चेहरे को अपने हाथो में लेकर अपने होंठो के पास लाकर उससे बोली, “उफ़ जानेमन… कब से ये मेरा बदन एक आदमी के लिए तड़प रहा है. अब और न तडपाओ मुझे… मुझे सीने से लगाकर मेरे होंठ को चूम क्यों नहीं लेते तुम निशांत?” और मैं अपने होंठ उसके होंठो के करीब लाने लगी.
मुझे इतने पास देखते ही निशांत ने मुझे तुरंत धकेला और बोला, “चेतना!! ये क्या कर रही है यार तू?”
“अच्छा और जो तू कर रहा था?”, मैं हँसते हुए बोली.
“अरे ऐसा क्या कर रहा था मैं. तू भूल गयी क्या जब हम दोस्त थे हम सब साथ बैठकर टीवी देखते थे तो किसी को भी कहीं पर भी हाथ लगाया करते थे उन्हें तंग करने के लिए. कॉलेज में तो ये सब करते थे न हम सभी दोस्त?”, निशांत बोला.
“हाँ हाँ. तू बोल तो ऐसे रहा जैसे हम सब दोस्त एक दुसरे का लं....dddd......ड हिलाया करते थे.”, मैं भी हँसते हुए बोली.
“छि .. छि.. कैसी बातें कर रही है तू चेतना.”, निशांत बोला, “आज तो मेरी इज्ज़त ही खतरे में आ गयी थी. तू कुछ कर बैठती मुझे तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहता.”, निशांत का ड्रामा चलता रहा और अपने सीने पर दोनों हाथो को मोड़कर अपने आपको ऐसे छुपाने लगा जैसे सचमुच मैं उसके साथ कुछ करने वाली थी.
“चल ठीक है ठीक है.. अब ज्यादा ड्रामा मत कर. और तेरी जानकारी के लिए बता देती हूँ लड़कियों के बूब्स पब्लिक प्रॉपर्टी नहीं होते है कि उन्हें जब चाहे दबा लो. अब चल मेरे लिए जगह बना..”, मैं उससे बोली और उसके सीने पर से उसके हाथ हटाकर फिर उसके सीने पर सर रखकर टीवी देखने लगी. वो भी मुस्कुरा दिया. शायद एक गर्व भरी मुस्कान थी उसकी. उसे ख़ुशी थी कि मैं उसके साथ सहज थी. मेरे लिए भी ये पहली बार था जब कोई पुराने समय का मेरा दोस्त मेरे साथ इतनी आसानी से बात कर रहा था. वरना बाकी सब तो मुझे देखते तो जैसे उन्हें कोई सांप सूंघ जाता था. लोग काफी जजमेंटल होते है पर निशांत ऐसा नहीं था.
“अच्छा चैतु… एक बात पूछूं?”, निशांत बोला.
“चैतु? तूने मेरा निकनेम भी रख दिया. चल ठीक है पूछ ले.”, मैंने कहा. मैंने बियर का एक घूंट लेते हुए कहा.
“ये बता तेरा ब्रा का साइज़ क्या है?”
लडको का ब्रा के साथ जो फैसीनेशन होता है न … वो सब कुछ ब्रा के बारे में जानना चाहते है. खैर मैं क्या कहूं, मुझे खुद ब्रा बहुत पसंद रही है हमेशा से. मैंने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और बोली, “गेस कर तू खुद ही.” मैंने आँखों से ऐसा इशारा किया जैसे वो पहले से मेरा साइज़ जानता होगा.
“नों वे!”, उसने मेरा इशारा समझ कर बेहद उत्साह में कहा.
“हाँ.”, मैं बोली.
“तेरा साइज़ ३६C है! तू जानती थी न कि वो मेरा फेवरेट साइज़ है! क्या तूने मेरे लिए ये साइज़ कराया?”, वो बोला.
“चल हट पागल. कुछ भी बोलता रहता है. जैसे तू ही मेरे लिए सब कुछ हो. ये सब हॉर्मोन और शरीर पर डिपेंड करता है. और वैसे मेरा साइज़ अभी भी बढ़ रहा है… शायद ३६DD तक तो बढेगा ही. इसलिए तो ये ब्रा और ब्लाउज भी थोडा टाइट लगने लगा है.”, मैंने उससे बोली.
सच में मेरी ब्रा और ब्लाउज टाइट होने लगे थे और मुझे समय समय पर उसे एडजस्ट करना पड़ता था. इसलिए मौका देख कर मैं अपनी बैक में ब्लाउज के निचे से ऊँगली डालकर ब्रा स्ट्राप को थोडा एडजस्ट करने लगी और फिर अपने हाथ की एक बियर बोतल को साइड रखकर दोनों हाथ से साड़ी के अन्दर से हाथ डालते हुए अपनी ब्रा के दोनों स्ट्रैप्स को पकड़ कर बूब्स को थोडा हिलाते उन्हें ब्रा कप और ब्लाउज में एडजस्ट करने लगी. ऐसा करते हुए मैं तो अपने बूब्स को देख रही थी और निशांत… वो तो आश्चर्य में मुंह खोले मुझे ऐसा करते देख रहा था.
“चैतु… wow! यार बड़ी सेक्सी लग रही है तू ऐसा करते हुए. एक बार फिर कर न.”, वो मुझसे बोला.
“निशु!”, मैंने उसे बड़ी बड़ी आँखें दिखाते हुए बोली.
“हाय… पहली बार किसी लड़की ने मुझे निशु कहा है. तू तो मेरे दिल को एक एक करके घायल कर रही है.”
निशु की हरकत देखते हुए मैं भी हँसने लगी. उसे निशु कहना मुझे अच्छा लगा और वो जब मुझे चैतु या चेतना कहता, तो मुझे भी अच्छा लग रहा था.
“सुन यार… अब प्लीज़ मेरे बूब्स के अलावा कुछ बातें कर ले. देख न यहाँ मैच में इतने विकेट इतने जल्दी गिर गए है. अपनी टीम को बचाना है या नहीं?”, मैं बोली.
“हाँ सही कह रही है तू. सॉरी यार.”, निशांत बोला.
“सॉरी किस लिए?”
“अपनी टीम पर ध्यान नहीं देने के लिए. और किस लिए? वरना तुझे क्यों सॉरी बोलने लगा मैं. एक तो तू ही थी जो मेरी इज्ज़त पर हाथ डाल रही थी.”
“प्लीज़ यार अब वो मज़ाक बंद कर. इट्स नोट फनी”, मैं बोली.
उसके बाद शायद कुछ पल और शान्ति से बीते होंगे और उधर मैच में मुंबई इंडियन टीम के विकेट गिरते ही चले जा रहे थे. निशांत का मैच देखने से इंटरेस्ट कम होता जा रहा था.
“चेतना.. एक बात सच सच बताएगी?”, निशांत ने मुझसे पूछा.
“हाँ.”
“तू किसी लड़के के साथ डेट पर गयी है?”
“नहीं.”, मैं बोली.
“मगर क्यों? तू तो इतनी हॉट लड़की है.”, वो बोला.
आमतौर पर किसी भी ट्रांसजेंडर औरत के लिए आदमी से डेट करने में कई परेशानी और सवाल आते है. इसलिए उनके लिए इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं होता है. पर मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं था. मेरे कारण अलग थे.
“निशांत… मैंने जेंडर चेंज किया है. टीम नहीं बदली है.”, मैं बोली.
“मतलब?”
“मतलब तू समझ ले.”, मैंने मुस्कुरा कर बोली.
“मतलब तू लेस्बियन है!! यार तू तो एक एक करके माईंड ब्लोविंग बातें बता रही है. मैं तो सोच कर ही पागल हो रहा हूँ. तू खुद इतनी हॉट लड़की है और साथ में एक और हॉट लड़की. उम्म्म…”
“बस कर तू. अच्छा तू बता तूने किसी लड़की को डेट किया है?”, मैं बोली.
“अब तू लड़की बनकर लडकियां पटा रही है तो तू मेरे जले पर नमक छिडकेगी? यदि किसी लड़की को डेट किया होता तो तुझे दरवाज़े पर गले लगा कर मैं वो पत्थर की मूर्ति की तरह जम जाता क्या?”
“अरे यार… थोडा रुक जा. तुझे भी अच्छी लड़की मिलेगी. वैसे थोडा गोलू मोलू हो गया है तू पर लड़कियों को हलके गोलू मोलू लड़के क्यूट लगते है.”, मैं उसका हाथ पकड़कर बोली.
“रहने दे यार… सभी लडकियां यही बोलती है कि तुझे भी अच्छी लड़की मिलेगी.”
“अच्छा… कितनी लड़कियों ने कहा है तुझसे ये?”
“एक… पर इतनी बातें भी तो अब तक एक से ही हुई है.”, निशांत मेरी ही बात कर रहा था.
न जाने क्यों उसकी ये बात सुनकर मैं उसकी आँखों में देखती रह गई. आखिर निशांत दुनिया का पहला इंसान था जिसने मुझे लड़की के रूप में एक्सेप्ट करने में एक मिनट भी नहीं लगाया था. मैं शुक्रगुजार थी उसकी. मैं उसे पकड़कर शुक्रिया कहने के लिए गले से लगाना चाहती थी. पर फिर निशांत कोई और मसखरी करने लगता. वो बुरा नहीं था पर उसे एक औरत की भावुकता की समझ नहीं थी. मैं केवल उसका हाथ अपने हाथो में थामी रही.
कुछ देर तक यूँ ही एक दुसरे को देखने के बाद, निशांत सोफे पर से उठ खड़ा हुआ और बोला, “यार ये मैच अब बहुत बोरिंग हो गया है. तूने अब तक अपना घर तक नहीं दिखाई है मुझे.”
इससे पहले की मैं कुछ कहती निशांत उठकर मेरे बेडरूम की ओर चला गया. अब पता नहीं वहां वो क्या करतूत करने वाला था इसलिए मैं भी उसके पीछे अपनी साड़ी संभालते दौड़ पड़ी. आज मुझे साड़ी नहीं पहनना चाहिए था! मैं मन ही मन सोचने लगी.
“वाह चेतना… तेरा बेडरूम तो बहुत सुन्दर है. कितना साफ़ सजा हुआ है. जब तू मेरे साथ रहती थी तब तो तुझसे अपने बिस्तर पर चादर तक ठीक ढंग से लगाना नहीं होता था. और अब देखो…”, निशांत ने कहा.
मैं उसकी बात सुनकर खुश होती पर वो अब मेरी अलमारी की ओर बढ़ने लगा था. और उसने मेरी अलमारी भी खोल ली “लो जी… अब तो कपडे भी इतने सलीके से रखती हो तुम. मेरे साथ तो तेरे कपड़ो का बस ढेर रहता था एक कोने में. तू मेरे साथ ऐसे साफ़ नहीं रह सकती थी क्या? कितना अच्छा होता तू मेरे बिस्तर और कपड़ो को भी सजा कर रखती. एक लड़की के मेरे साथ रहने का ज़रा भी फायदा नहीं मिला मुझे.” वो शिकायत करने लगा. पर जब मैं उसके साथ थी, तब लड़की नहीं थी न…. लडको की तरह रहना मेरी मजबूरी थी.
“यार… एक से एक सेक्सी ड्रेस है तेरे पास तो. कमाल लगती होगी इनको पहनकर तो तू.”, निशांत तेज़ी से मेरी अलमारी देख रहा था. मैं उसको रोकना चाहती थी पर उसके पीछे दौड़ते हुए मेरा पैर मेरी साड़ी पर पड़ गया था और मेरी प्लेट्स बिखर गयी थी. ऐसे में निशांत मुझे अपनी साड़ी ठीक करते देखे, इससे अच्छा था कि वो मेरी अलमारी में मेरे कपडे ही देख ले. पर इस लड़के का कोई भरोसा नहीं था कि वो कब क्या कह दे.
आखिर में जो मेरा डर था वही हुआ. उसने अलमारी में मेरे उस ड्रावर को खोला जिसमे मेरी ब्रा और पेंटीयां रखी हुई थी. और उन्हें देखते ही जैसे उसकी आँखें चमक उठी.
“wow… ये तो खज़ाना हाथ लग गया मेरे. इतनी सारी सेक्सी ब्रा! चेतना तेरी चॉइस तो सेक्सी है! हम्म… ये लेसी ब्रा… ज़रूर तू इसको अपनी गर्लफ्रेंड के लिए पहनती होगी न.”, उसने हाथ में एक ब्रा उठाते हुए कहा.
“निशांत… रहने दे न मेरी ब्रा को”
“अरे ऐसे कैसे रहने दू. लाइफ में पहली बार चांस मिला. मैं बस देख ही तो रहा हूँ. अरे ये कैसी ब्रा है? इसमें तो स्ट्रेप भी नहीं है. इसको पहनती कैसे है?”
“वो स्ट्रेपलेस ड्रेस के साथ पहनने के काम आती है. तू उसे वापस रखता है या नहीं…”, मैं अब भी अपनी साड़ी ठीक ही कर रही थी.
“ठीक है ठीक है.. ये लड़कियों के न बड़े नाटक होते है. ओह ये क्या है… इतनी छोटी छोटी पेंटी!”
हे भगवान! मैं तो अब अपना माथा ही पिट चुकी थी.
“यार चेतना … तू ज्यादा सेंटी मत हो. ऐसा तो है नहीं कि तूने मेरे कच्छे नहीं देखे थे कॉलेज में. कमरे में ही तो सूखाता था मैं. अब तेरे लड़कियों वाले कच्छे देख लूँगा तो क्या बिगड़ जाएगा.”
“कम से कम मेरी पेंटी को कच्छे तो मत बोल”, मैं मन ही मन सोचने लगी.
पर तब तक उसकी नज़र कहीं और पड़ चुकी थी. अलमारी में एक ओर मेरी २-३ बेबीडॉल टंगी हुई थी. उसने उसमे से एक को हाथ में पकड़ कर कहा, “चैतु… तू तो बड़ी चीज़ है हाँ. ये पहन कर दिखा न.”
अब तक मेरी साड़ी की प्लेट मैं ठीक कर चुकी थी. मैं निशांत के पास जाकर उसके हाथ से बेबीडॉल छीन कर वापस रखते हुए बोली, “तू निकल मेरी अलमारी से बाहर अभी.”
“ठीक है. एक शर्त है. तूने जो अभी ब्रा पहनी है… वो दिखा दे मुझे.”, वो मेरे बेहद करीब आकर मेरे बूब्स की ओर इशारा करते हुए बोला. मैं उसे बड़ी बड़ी आँखों से घुर कर देखा तो वो पीछे होते हुए बोला, “अच्छा मैडम. मत दिखा. कितने नखरे है तेरे. तेरी जगह यदि मैं लड़की बना होता न तो एक दोस्त की खातिर ख़ुशी से ब्रा दिखाता. ब्रा क्या मैं तो ये बेबीडॉल भी पहन कर दिखाता”
“रहने दे तू. कुछ पता भी है तुझे इनके बारे में?”, मैं झूठ मुठ के गुस्से से बोली.
“पता है मुझे तुझसे एक शिकायत है. तेरे पास अलमारी में इतने सेक्सी कपडे है. और मैं तेरे पास आया तो तूने ये आंटी वाली साड़ी पहन रखी है. कम से कम साड़ी तो थोड़ी फैशनेबल पहन लेती.”
“क्यों मैं तुझे अच्छी नहीं लग रही साड़ी में?”, मैंने मुस्कुरा कर पूछा.
“अच्छी तो लग रही है. पर इससे भी ज्यादा अच्छी लगेगी यदि तू मेरे लिए इन साड़ियों में से एक पहन ले. … ऐ चेतना… सुन न यार… तू इनमे से एक साड़ी पहन न.”, निशांत मेरी मॉडर्न साड़ियों की तरफ इशारा करते हुए बोला.
“क्यों मैं तेरी पत्नी हूँ या तेरी गर्लफ्रेंड हूँ? जो तेरे कहने पर साड़ी बदलूंगी?”, मैं बोली.
“तू गर्लफ्रेंड या पत्नी न सही. पर मेरी गर्लफ्रेंड से कम भी नहीं है.”, वो बोला.
“वो कैसे?”
“देख… पूरी दुनिया में एक ही लड़की है जिसने मुझे सिर्फ कच्छा पहने देखा है. एक ही लड़की है तू जो मेरे बगल में कई बार सोयी है… उसमे कई बार तो मैं शर्ट भी नहीं पहनता था. इससे ज्यादा तो मेरे सपने में भी कोई लड़की मेरे लिए कुछ नहीं करती”, वो बोला.
उसकी बात सुनकर मैं हँस दी. निशांत न मुझे इस वक़्त एक औरत की तरह ट्रीट कर रहा था बल्कि अपनी पिछली यादों में भी मुझे एक लड़का नहीं बल्कि एक लड़की बनाकर ट्रीट कर रहा था.
“ठीक है. तू इतनी रिक्वेस्ट कर रहा है तो दोस्ती की खातिर मैं साड़ी चेंज कर लेती हूँ. अच्छा तू ही बता कौनसी साड़ी पहनू.. वरना फिर बोलेगा कि मैंने दूसरी आंटी वाली साड़ी पहन ली.”, मैं उसकी नजरो से नज़रे मिलाकर बोली.
मैंने बस हाँ क्या कहा… उसने झट से एक साड़ी निकाली अलमारी से. वो साड़ी मैंने एक महीने पहले ही खरीदी थी. जारजट की साड़ी थी वो.. जिसके साथ एक हाल्टर नैक वाला ब्लाउज था जिसकी बैक बहुत डीप थी.
मैंने उसके हाथ से साड़ी ली और बोली कि अच्छा मैं अभी बदल कर आती हूँ. तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया. “कहीं जाने की क्या ज़रुरत है. तू पहले की तरह मेरे सामने यहाँ कपडे क्यों नहीं बदल सकती?”
शायद इस बात के लिए मुझे उसे मना कर देना चाहिए था. पर मैं ही तो उसके पीछे पड़ी थी कि हमें पहले की तरह दोस्त बनकर रहना है. मैंने कहा, “ठीक है पर तू बिस्तर पर बैठ कर उधर पलट कर देख. मुझे मुड़कर मत देखना वरना मैं बाहर चली जाऊंगी”
“अरे उधर देखूँगा तो मुझे तेरी ब्रा कैसे दिखेगी?”, वो मेरी बांहों को पकड़ कर बोला.
“चल हट. एक पत्नी भी अपने पति से मुंह मोड़ने बोलती है कपडे बदलते वक़्त.”, मैं उसे प्यार से धक्का देते हुए बोली. क्या मैं उसकी पत्नी की तरह व्यवहार कर रही थी? शायद हाँ. वो मुस्कुराकर बिस्तर में पलट कर बैठ गया. पर उसका भरोसा नहीं कर सकती थी मैं. इसलिए मैं भी उसकी विपरीत दिशा में पलट कर ब्लाउज उतारने लगी. मेरे क्लीवेज और बूब्स को ब्रा में देख कर वो उतावला न हो जाए कहीं.
जैसे ही मैं ब्लाउज को उतारकर साइड में रखा मुझे अंदेशा हो गया था कि वो मुझे देख रहा है. अभी परेशानी ये थी कि मेरी पहनी हुई ब्रा का रंग मुझे जो दूसरा ब्लाउज पहनना था उसके साथ मेल नहीं खाता था. तो मुझे ब्रा बदलनी होगी. मैंने अपनी ड्रावर से एक मैचिंग ब्रा निकाली और पहनी हुई ब्रा का हुक खोलने लगी. मैं निशांत से मुड़कर कर रही थी ये सब ताकि वो मेरे बूब्स न देख सके. एक औरत इतना तो शर्माएगी ही न? पर ब्रा खोलते ही मुझे बहुत शर्म आने लगी. किसी तरह अपनी बांहों से अपने स्तनों को मैं छिपाते हुए मैं दूसरी ब्रा पहनने लगी. मुझे यकीन है कि निशांत को मेरे स्तनों की थोड़ी तो झलक दिख ही गयी होगी. पता नहीं क्या सोच रहा होगा वो? और फिर मैंने झट से ब्लाउज पहनकर हुक लगाये और अपनी साड़ी उतार ली. अब मैं ब्लाउज और पेटीकोट में थी. और जब मैं पलट कर नया मैचिंग पेटीकोट उठायी तो देखी कि निशांत मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहा है. मैंने तुरंत पेटीकोट से अपने सीने को ढँक लिया.
“मैंने तुझे पलटने से मना की थी न. मैं जा रही हूँ यहाँ से”, मैंने गुस्से में कहा.
“यार.. प्लीज़ मत जा. अभी तो तू पेटीकोट बदलेगी तब तो असली मज़ा आएगा.”
“निशांत!”, मैंने उसे फिर डराया तो वो चुप बैठ गया पर पीछे नहीं मुड़ा.
“तो तू मुझे पेटीकोट बदलते देखना चाहता है.”, मैंने पेटीकोट के हुक खोलते हुए थोड़े सेक्सी अंदाज़ में बोली. मैं भी उसे थोडा छेड़ना चाहती थी. और उसने चुपचाप हाँ में सर हिला दिया.
मैं मुस्कुराई और अपने दुसरे पेटीकोट को अपने सर पर से पहनकर निचे उतारी और उसको ऊपर पहनकर अन्दर ही अन्दर पुराना पेटीकोट उतार ली. मुझे ऐसा करते देख निशांत बोला, “अरे ये तो धोखा है!”
“क्यों मैंने तेरे सामने पेटीकोट बदला या नहीं”, मैं हँस रही थी. पता नहीं क्या बात थी पर निशांत से मुझे कोई डर नहीं लग रहा था. वो कुछ मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा ऐसा मुझे विश्वास था. और फिर मैं निश्चिन्त होकर साड़ी पहनने लगी. और वो मुझे ऐसा करते निहारते रहा. न जाने कैसी ख़ुशी थी वो जब मुझे कोई ऐसे देख रहा था. उसे साड़ी पहनते हुए मैं खुबसूरत लग रही थी. यही बात मुझे ख़ुशी भी दे रही थी. और फिर जैसे ही मैंने अपने पल्लू को अपने ब्लाउज पे पिन किया, वो मेरे पीछे से मेरे करीब आ गया. उसने मुझे बांहों से पकड़ा और मेरे पल्लू को मेरे सर पर रखते हुए बोला, “तुम बहुत खुबसूरत लड़की हो चेतना. सच कह रहा हूँ तुम्हारी जैसी खुबसूरत लड़की मैंने कभी नहीं देखा.”
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निशांत के कहने पर मैं एक हाल्टर नैक ब्लाउज के साथ जारजट साड़ी बदल ली थी.
उसकी बात सुनकर मेरे साथ भी वही हुआ जो किसी भी लड़की के साथ होता. अपनी तारीफ़ सुनकर ख़ुशी के मारे मेरी शर्म से नज़रे झुक गयी. संभव है कि शर्म से मेरा चेहरा भी लाल हो गया हो. पर मन ही मन ये भी सोच रही थी मैं कि कहीं ये सब करना निशांत को कोई गलत सन्देश न दे.
“निशु… तुझे भूख लगी हो तो खाना लगाऊं?”, मैंने उससे पूछा.
“अरे नेकी और पूछ पूछ. बड़ी भूख लगी है यार. तूने तो अब तक मुझे चिप्स तक नहीं खिलाई है. घर आये दोस्त के साथ ऐसे कोई करता है भला.”
“ठीक है मैं खाना गर्म करके टेबल पर लगाती हूँ. तू तब तक फ्रिज से एक बियर निकाल कर पि ले.”, मैं उसकी ओर देखते हुए बोली. और उसने ख़ुशी से हामी भर दी.
अब मैं किचन में आ गयी थी और किसी गृहिणी की तरह अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में लपेट कर खाना स्टोव पर गर्म कर रही थी. थोड़ी देर बाद मेरी पीठ पर निशांत की सांसें महसूस होने लगी. वो मेरे पीछे आ गया था पर मैं उसे अनदेखा कर रही थी. और फिर उसने मेरी कमर को अपने हाथो से लपेट लिया.
“अब क्या हुआ निशांत?”, मैं मुस्कुराते हुए बोली. शायद मुझे गुस्सा करना चाहिए था पर न जाने क्यों मुझे उसका स्पर्श मेरी खुली कमर पर अच्छा लग रहा था.
“कुछ नहीं बस प्रैक्टिस कर रहा हूँ.”
“कैसी प्रैक्टिस?”
“यही कि जब मेरी पत्नी होगी तो उसको कमर से कैसे पकडूँगा. और तेरी भी प्रैक्टिस हो रही है.”
मैं सब्जी को गर्म करते करते सब्जी को झुक कर देखने लगी तो मेरे कुल्हे निशांत के तन से लग गए थे. फिर भी किसी तरह मैंने उससे पूछा, “मेरी कौनसी प्रैक्टिस हो रही है?”
“जब तेरी शादी होगी एक दिन तो तेरा पति भी तो तुझे इस तरह से पकड़ेगा. तो तुझे भी प्रैक्टिस होनी चाहिए.”
उसकी बात सुनकर मैं उसकी बांहों में ही पलटकर बोली, “निशांत… मैं लेस्बियन हूँ! मेरा पति नहीं पत्नी होगी.”
इस वक़्त हम दोनों बेहद करीब थे. मेरे स्तन निशांत के सीने से लगकर दब रहे थे. उसने मेरी आँखों में देखा… “पति हो या पत्नी… पर तेरी जैसी खुबसूरत लड़की को तो कोई भी पकड़ना चाहेगा.”
“बहुत बातें करने लगा है तू. मुझे यकीन नहीं होता कि ऐसी लाइन के बाद भी तेरे पास गर्लफ्रेंड नहीं होगी.”, मैं उससे खुद को छुडाते हुए पलट कर फिर सब्जी देखने लगी. और वो भी पीछे होकर टेबल पर बैठ गया. क्या मेरे दिल में निशांत के लिए कुछ भावनाएं उमड़ रही थी. संभव ही नहीं था. वो मेरा दोस्त था… और मुझे लडकियां ही पसंद थी. मेरे मन में जो भी चल रहा था मैं उसे अनदेखा कर खाना गर्म करके टेबल पर लेकर आई. और फिर हम दोनों ने बैठ कर खाना खाया. मैंने पनीर और बिरयानी बनायीं थी जो निशांत को बेहद पसंद आई. हम दोनों खाते खाते बहुत देर तक बातें करते रहे. अपने काम के बारे में. मैंने उसे अब भी अपने जेंडर चेंज के बारे में कुछ नहीं बताया और उसने भी नहीं पूछा. बस नार्मल बातें करके ही अच्छा लग रहा था.
“चेतना.. खाना बहुत अच्छा था. एक हफ्ते बाद घर का अच्छा खाना खाया है पेट भर के. आह अब तो खाने के बाद नींद आती है. मैं तो अब थोड़ी देर सोऊंगा.”, वो उबासी लेते हुए बोला.
“हाँ मुझे भी नींद आ रही है. मैं भी सोती हूँ.”, मैं बोली.
और फिर मेरे देखते ही देखते निशांत उठकर मेरे बेडरूम में जाकर मेरे बिस्तर पे लेट गया. उसने मुझसे पूछा तक नहीं! निशांत भी न बस दुसरे बैचलर लडको की तरह ही था. मैंने उसे जाकर ओढने के लिए चादर दी और उससे कहा, “तू यहाँ आराम से सो. मैं बाहर सोफे पर सोती हूँ. उसमे एक बेड है जो बाहर आता है.”
मैं पलट कर कमरे से जा ही रही थी कि मुझे मेरे पल्लू में कुछ खिंचाव महसूस हुआ. निशांत मेरी साड़ी का पल्लू खिंच रहा था. “कहाँ जा रही है चेतना यार? तू भूल गयी कॉलेज में हम ८-१० लड़के बियर पीकर २ बिस्तर जोड़कर एक साथ सो जाते थे. अब तो यहाँ इतना बड़ा डबल बेड है. तू भी सो जा बगल में कहाँ सोफे बेड खोलती रहेगी.”
“नहीं निशांत. मुझे बाहर सोने में कोई प्रॉब्लम नहीं है.”
“यार कितनी बदल गयी है तू भी न.”, निशांत की आवाज़ में एक उदासी थी.
सुबह से आने के बाद निशांत ने पहली बार अपने दोस्त के बदलने पर उदासी दिखाया था. मैं उसे ऐसे उदास नहीं करना चाहती थी. “क्या यार निशांत. तू भी न लड़कियों से कम नहीं है नाटक करने में. ठीक है मैं यही सो जाती हूँ.”, मैं अपने पल्लू को संभालते हुए उसकी बगल में बैठकर बोली. मेरी बात सुनकर वो थोडा सा मुस्कुरा दिया. उसकी मुस्कान देखकर मुझे भी ख़ुशी मिली.
फिर अपने पैरो को उठाकर मैंने बिस्तर पर रखा.. और उन्हें साड़ी से ढंककर पल्लू को एक ओर कर निशांत की ओर पीठ दिखाकर सोने लगी.
कहते है कि कॉलेज में हुई दोस्ती सबसे ख़ास होती है. कॉलेज के अच्छे दोस्त सालो बाद भी मिले, चाहे उनमे कभी बात न हुई हो इन सालो में और कितने भी बदलाव हो जाए, दो दोस्तों को मिलकर दोस्त बनने में ज़रा भी समय नहीं लगता. सब कुछ पहले की तरह हो जाता है. मेरे लिए तो वैसा ही था. निशांत मेरे लिए ज़रा भी नहीं बदला था… और आज भी वैसा ही था.
पर निशांत के लिए? उसका दोस्त चेतन तो कितना बदल गया था. आज जब वो अपने दोस्त चेतन की ओर देख रहा था तो वहां चेतन की जगह एक साड़ी में लिपटी हुई एक औरत थी जो उसे मुंह मोड़कर सोयी हुई थी. एक दूरी थी दोनों के बीच. निशांत न जाने उस औरत को देखकर क्या सोच रहा था? क्या वो उसमे अपने दोस्त चेतन को ढूंढ रहा था? या उस औरत की डीप बैक ब्लाउज में नग्न पीठ उसे दूसरी तरह से उकसा रही थी? क्या उसे एक औरत दिखाई दे रही थी? मुझे पता नहीं था कि निशांत क्या सोच रहा था.
मेरी आँखें बंद थी जब निशांत ने मेरे पीछे से मेरी कमर पर हाथ रखा. वो मेरे करीब आ रहा था. कुछ देर उसका हाथ मेरी कमर पर ही रहा और हम दोनों आँखें बंद किये रहे. पर फिर उसका हाथ उठकर मेरे ब्लाउज की ओर बढ़ने लगा और फिर… उसने आज एक बार फिर मेरे स्तनों को छूकर दबाना शुरू कर दिया.
शायद निशांत एक बार फिर शरारत करना चाह रहा था. पर एक औरत के साथ वो ऐसे नहीं कर सकता. मैं कुछ देर तक बर्दाश्त करती रही कि शायद वो रुक जाएगा. पर जब वो रुका नहीं तो मैं गुस्से से उठ बैठी… “बस कर न यार निशांत. तू मेरी इज्ज़त नहीं कर सकता? एक औरत हूँ मैं… एक औरत! तेरी नजरो में तो मैं एक विचित्र सेक्स ऑब्जेक्ट हो गयी हूँ न जिसे तू जब चाहे कहीं भी छू ले. तू मेरी एक औरत के रूप में इज्ज़त नहीं कर सकता तो छोड़ दे ये दोस्ती का नाटक. दूसरो की तरह तू भी मुझे भला बुरा कहकर मेरी ज़िन्दगी से दूर चला जा. पर ऐसे मुझे एक सेक्सी चीज़ की तरह तो यूज़ मत कर.”, मैं भावुक हो कर रो पड़ी थी.
“मैं तुझे सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह ट्रीट कर रहा हूँ चेतना? और तूने मुझे कैसे ट्रीट किया याद है तुझे? हम कॉलेज में बेस्ट फ्रेंड थे! ४ साल के रूममेट. तेरे US आने के बाद भी हम लोग हर दुसरे दिन बात करते थे. और २ साल पहले एक दिन तू गायब हो गयी. न फ़ोन पर न फेसबुक पर न ईमेल पर. मुझे सबसे अच्छा दोस्त कहती थी और कभी बताई तक नहीं कि तू चेतन से चेतना बनने जा रही है. पता है कैसे मुझे तेरे बारे में पता चला? १.५ साल पहले हमारे कॉलेज के हाई सोसाइटी के जो लड़के थे … जिनका हम मिलकर मज़ाक उड़ाते थे… उन्होंने मुझसे कहा. वो मुझ पर हँस रहे थे कि कैसे मुझे पता नहीं था कि मेरा बेस्ट फ्रेंड लड़की बन रहा है. पता है कैसी कैसी गन्दी बातें करते थे वो? कहते थे कि चेतन का मैं पहला बॉयफ्रेंड था. शायद चेतन कमरे में मुझे बिना शर्ट के देखकर एक्साइट होकर मास्टरबेट करता रहा होगा. मुझसे पूछते थे कि मैं कभी चेतन के साथ सेक्स किया था क्या? मुझे इतने सालो में ज़रा भी आईडिया नहीं था कि तू एक दिन ऐसे लड़की बन जायेगी. तो क्या और कैसे जवाब देता उन सभी को. सबके लिए हँसी का टॉपिक बन गया था मैं. तेरे बारे में जो बाते करते थे वो अलग. तूने अपने सबसे अच्छे दोस्त को अपने जेंडर चेंज के बारे में नहीं बताया… और बताया तो उन लडको को जो तेरी ज़रा भी इज्ज़त नहीं करते. और आज तू मुझसे दोस्ती के बारे में बोल रही है? आज अचानक से इस रूप में मिल रही है… और मुझे पता तक नहीं कि ये कैसे कब की तूने? मेरा यूज़ तो तूने की है चेतना. और यूज़ करके तूने २ साल पहले मुझे अपनी ज़िन्दगी से बाहर फेंक दी थी. अब क्यों बुलाई है मुझे?”
निशांत की बातों में दुःख भी था, और दर्द भी. इस वक़्त तो मैं खुद बिलख रही थी. मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा, “सच कह रही हूँ निशांत मैंने कॉलेज में किसी लड़के को इस बारे में नहीं बताया था. मैंने तो सबसे संपर्क तोड़ लिया था क्योंकि कोई मेरी बात समझ नहीं सकता था. इसलिए मैंने तुझे भी नहीं बताया. मुझे पता नहीं उन लडको को मेरे बारे में कैसे पता चला. मेरे बारे में तो सिर्फ रश्मि जानती थी. मेरा यकीन कर निशांत. ऐसा एक दिन भी नहीं था जब मैंने सोचा नहीं था कि तुझे फ़ोन कर सब बताऊँ. पर मुझे पता नहीं था कि तू कैसे रियेक्ट करेगा. तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त था. यदि तू मुझसे दोस्ती तोड़ देता तो क्या करती मैं? तुझसे बिना बात किये कम से कम मेरी यादों में तो तू हमेशा मेरा बेस्ट फ्रेंड रहा न. तू बता क्या मैं गलत कर रही थी? जब रश्मि ने मुझे बताया कि तू US आया है तब भी तुझसे दूर रहना चाहती थी मैं पर मुझसे रहा नहीं गया और तुझे फ़ोन कर दिया… बस यही गलती हो गयी मुझसे.”, और मैं निशांत से दूर होकर रोने लगी.
हम दोनों को अब एहसास हो चूका था कि यह सब हम दोनों के बीच बात न करने की वजह से हुई ग़लतफ़हमी थी पर मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. तब निशांत ने मुझे अपने पास खिंचा और अपनी बांहों में ले लिया. मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उसने मेरे आंसू पोंछे. और कुछ देर बाद मेरी सिसकियाँ थोड़ी कम हुई तो उसने मुझसे कहा, “मुझे यकीन नहीं होता”
“क्या यकीन नहीं होता?”, मैं अब भी उसके सीने से लगी हुई थी.
“अब तक फिल्मो में देखा था कि रोती हुई लड़की को गले लगा लो तो वो चुप हो जाती है. मुझे लगता था कि ऐसा सब फिल्मो में ही होता है.. पर ऐसा तो सच में होता है!”, और वो हँसने लगा.
मैं भी हँसने लगी और उसके सीने पर झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए मुक्के से प्यार भरा वार करके उससे शर्माते हुए पलट गयी.
“लो तू तो शर्मा गयी. ऐसा भी फिल्मो में होता था! फिल्में कितनी सच्ची होती है. मुझे तो और फिल्में देखनी चाहिए”, निशांत की मसखरी एक बार फिर शुरू हो गयी थी.
मैं मुस्कुरा कर उसकी ओर पलटी और बोली, “यार तू हंसाता भी है रुलाता भी है. पर सच बोल रही हूँ… अभी भी मुझे नींद आ रही है. क्या हम दोनों कुछ देर सो जाए?” उसने भी हाँ कहा.
और हम दोनों अगल बगल सो गए. मैं निशांत के कंधे पर सर रखकर उसकी ओर पीठ करके सोयी थी और उसका हाथ मेरी कमर पर था. वो पीछे से मुझसे बिलकुल चिपक कर सोया हुआ था… पर इस बार मेरी मर्ज़ी से मैं ही उसके पास गयी थी. मुझे उसकी बांहों में सुरक्षित लग रहा था. वो मेरा दोस्त था. मुझे उससे कोई डर नहीं था. हमारी दोस्ती एक बार फिर बढ़ रही थी. पर क्या ये दोस्ती से आगे भी बढ़ने वाली थी? इसका जवाब न मेरे पास था.. और न निशांत के पास…