यह ब्लॉग पूरी तरह काल्पनिक है। किसी से समानता संयोग होगी। बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयाँ ((जैसे स्तन वर्धक या हार्मोन परिवर्तन)न लें - यह जानलेवा हो सकता है।— अनीता (ब्लॉग एडमिन)
यह कहानी एक ऐसे युवक की है जो समाज में सम्मानित और अनुशासित बनने का सपना देखता है, लेकिन उसके भीतर एक छिपी हुई फैंटेसी उसे बार-बार पीछे खींचती है। अनुशासन और वासना की लड़ाई में उसका मन, शरीर और आत्मा बुरी तरह उलझ जाती है। जब उसकी फैंटेसी हकीकत से टकराती है, तो वह एक ऐसे खेल में फँस जाता है जहाँ उसकी इच्छा ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाती है।
[Note: कहानी की पूरी लंबाई ~25,000 शब्दों से ज़्यादा होगी और इसे 10 से 12 अध्यायों में बांटा जाएगा।]
Chapter 1: The Trigger
रोहित, 26 साल का एक सामान्य सा युवक, लेकिन भीतर से जटिल और उलझा हुआ। पढ़ाई में औसत, पर सपने ऊँचे। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। और उस दिन, जब बैंक परीक्षा का रिजल्ट आया, वह एकदम स्तब्ध रह गया – उसका चयन हो गया था।
मोबाइल की स्क्रीन पर चमकता हुआ वह एक संदेश – "Congratulations, You are selected." – जैसे उसकी पूरी दुनिया बदल गया। खुशी के मारे उसका दिल धड़कता रहा। उसने तुरंत अपने माता-पिता को खबर दी, और मिठाई लेने निकल पड़ा।
भीड़भाड़ वाले उस बाज़ार में, जहाँ सबकुछ रोज़ जैसा ही था, एक चेहरा उसकी निगाहों से टकराया – साक्षी।
वो साक्षी जिसे उसने 8 साल से नहीं देखा था। स्कूल की सबसे समझदार और तीखी लड़की, जिसकी आवाज़ में तेज़ी और आँखों में गहराई थी। वो अब एक कॉर्पोरेट ऑफिस में काम कर रही थी। पर चेहरे पर वही मासूम मुस्कान थी।
साक्षी: "अरे रोहित! तू? इतने सालों बाद!"
रोहित: (हैरान होकर) "साक्षी! तू... बिल्कुल नहीं बदली।"
दोनों ने एक-दूसरे से हालचाल पूछा, बातें की, और नंबर एक्सचेंज किए। वो एक संयोग था, लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह नियति थी।
बातचीत का सिलसिला
अगले कुछ हफ्तों में, रोज़ बातें होने लगीं। व्हाट्सएप चैट्स से लेकर वीडियो कॉल्स तक, दोनों करीब आते गए। कभी स्कूल की यादें, कभी करियर की बातें, और कभी-कभी हल्की मस्ती।
एक रात की बात है, जब रोहित थोड़ा मूड में था, उसने मज़ाक में कहा:
रोहित: "यार, तेरे जैसी टीचर होती तो मैं कभी फेल न होता!"
साक्षी: "हाहा! मैं तो बहुत स्ट्रिक्ट होती। हर गलती पे पनिशमेंट देती।"
रोहित: "ओह तो मुरगा बनवाती?"
साक्षी: "बिल्कुल! और अगर ज्यादा गलती, तो क्लास के सामने!"
रोहित की साँसें जैसे थम गईं। उसने हँसते हुए बात को टाल दिया, लेकिन अंदर से कुछ जाग गया था।
एक दबी हुई फैंटेसी
रोहित के अंदर एक रहस्य था — उसे मुरगा पनिशमेंट से अजीब सी मानसिक संतुष्टि मिलती थी। बचपन में स्कूल की वो सजा, जो सबके लिए शर्म की बात थी, रोहित के लिए एक रहस्यात्मक आकर्षण बन गई थी।
अब जब साक्षी से ये बातचीत हुई, वो आग फिर से जल गई।
अगले दिन उसने जानबूझकर एक लाइन फिर दोहराई:
रोहित: "सुन, अगर मैं पढ़ाई में ढीला पड़ा तो तू पनिशमेंट दे देना।"
साक्षी (हँसते हुए): "दे दूँगी! तुझे तो मुरगा बनाकर वीडियो कॉल पर खड़ा कर दूँगी।"
रोहित (हँसते हुए): "ना बाबा! वो मत करना, मैं शर्म से मर जाऊँगा।"
लेकिन अंदर ही अंदर... उसे वही चाहिए था।
पहली पनिशमेंट
कुछ दिन बाद, जब रोहित ने उसे बताया कि आज पढ़ाई नहीं हुई:
साक्षी: "पढ़ाई नहीं की? चलो फिर! मुरगा बनो अभी वीडियो कॉल पर।"
रोहित: "हाहा तू भी न!"
साक्षी: "सीरियस हूँ! चलो जल्दी!"
रोहित का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वो डर, शर्म, उत्तेजना — सब कुछ मिला-जुला। लेकिन उसने वीडियो कॉल ऑन किया और धीरे-धीरे स्क्रीन के सामने मुरगा बन गया।
साक्षी की हँसी गूंज गई:
साक्षी: "ओ माय गॉड! तूने सच में कर लिया? तू पागल है!"
रोहित ने मुस्कराते हुए कहा:
"तूने कहा था, और मैं डिसिप्लिन में रहना चाहता हूँ।"
अंदर की खामोशी
वो रात रोहित ने सो नहीं पाया। वो बार-बार वही पल दोहराता रहा – वो शर्म, वो आदेश, वो झुकी हुई हालत। वो कोई आम मस्ती नहीं थी। वो एक असली एहसास था — उसे पनिशमेंट में तृप्ति मिलती थी। लेकिन वो डरता था — क्या ये सही है? क्या वो बीमार है? या बस... अलग है?
अगले दिन उसने फिर से वही किया – पढ़ाई नहीं की, और बहाना बना लिया।
रोहित: "आज फिर डिस्ट्रैक्ट हो गया यार..."
साक्षी: "तो फिर तैयार हो? मुरगा नंबर 2?"
रोहित (मुस्कुराकर): "Always ready, ma'am."
Chapter 2: Contract of Control
रोहित की पनिशमेंट वाली फैंटेसी अब साक्षी के सामने धीरे-धीरे खुलती जा रही थी। उसने अब तक सिर्फ हल्के-फुल्के बहानों से दो बार मुरगा पनिशमेंट ली थी, लेकिन उसका मन इससे कहीं आगे जाना चाहता था। वह चाहता था कि ये सिलसिला मज़ाक से आगे बढ़े — एक गंभीर अनुशासनिक व्यवस्था में बदले।
उस दिन उसने कुछ ऐसा किया जो पहले कभी नहीं किया था। उसने साक्षी को एक मेल भेजी — एक फॉर्मल "डिसिप्लिन कॉन्ट्रैक्ट"। साथ ही व्हाट्सएप पर मैसेज किया:
"साक्षी, अगर तुम्हें समय मिले तो मेरी मेल ज़रूर देखना। ये थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन मैं बहुत सीरियस हूँ। प्लीज़ पढ़ना।"
Discipline Contract
अनुबंध: मैं, रोहित शर्मा, अपने स्वेच्छा से यह अनुबंध करता हूँ कि मेरी पढ़ाई और अनुशासन को बनाए रखने हेतु साक्षी द्वारा निर्धारित किसी भी प्रकार की मानसिक या शारीरिक पनिशमेंट को स्वीकार करूँगा। पनिशमेंट में शामिल हो सकती हैं:
मुरगा पोज़िशन में समय बिताना
सिट-अप्स
नी-डाउन पोज़िशन
किसी विशेष नियम की पालना (समय पर उठना, स्टडी रिपोर्ट भेजना आदि)
अनुबंध का उद्देश्य केवल मेरी पढ़ाई और अनुशासन सुधारना है। इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा।
हस्ताक्षर:
रोहित शर्मादिनांक: (xx-xx-20xx)
साक्षी की प्रतिक्रिया
जब साक्षी ने मेल पढ़ी, तो वह कुछ मिनटों तक चुप रही। उसके चेहरे पर कई भाव आए – हँसी, अचंभा, चिंता और फिर एक हल्की-सी मुस्कान।
रोहित: "हाँ, पूरी तरह ठीक हूँ। बस पढ़ाई में बहुत लूज हो रहा हूँ और मुझे लगता है कि तुम्हारा डर... मेरा स्ट्रक्चर सेट कर सकता है।"
कुछ देर बाद साक्षी ने लिखा:
"ठीक है। मैं यह एक्सेप्ट कर रही हूँ। लेकिन याद रखना – अब ये मज़ाक नहीं होगा।"
Rule Number One
साक्षी ने नियम तय किए:
हर सुबह 7:30 बजे तक स्टडी रिपोर्ट भेजनी होगी।
हर शाम 9 बजे तक एक कॉल रिपोर्ट (क्या पढ़ा, कितना पढ़ा)।
नियम टूटने पर तुरंत पनिशमेंट।
पनिशमेंट लाइव वीडियो कॉल पर होगी।
पहले दिन ही रोहित देर से उठा। स्टडी रिपोर्ट नहीं भेजी। रात 9 बजे:
साक्षी: "Report कहाँ है?"
रोहित: "Sorry, overslept..."
साक्षी: "तो अब मुरगा बनो। अभी। कॉल ऑन करो।"
एक नई शुरुआत
रोहित ने सिर झुकाकर कॉल ऑन किया। अबकी बार उसकी मुरगा पोज़िशन पहले से ज़्यादा परफेक्ट थी। हाथों से कान पकड़े हुए, घुटने मुड़े हुए, पीठ झुकी हुई।
साक्षी: "10 मिनट तक यही रहो। अगर हिले, तो टाइम डबल कर दूँगी।"
रोहित के माथे पर पसीना आ गया।
हर मिनट भारी लग रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर था एक अजीब-सा संतोष। शायद उसे अब वही मिल रहा था जो वह वर्षों से ढूँढ़ रहा था — एक ऐसा कंट्रोल जो उसे तोड़कर बनाए।
10 मिनट बाद...
साक्षी: "ठीक है, खड़े हो जाओ। लेकिन याद रखना – कल दोबारा गलती हुई तो माफ नहीं करूँगी।"
रूटीन सेट होता है
अगले कुछ दिनों में रोहित ने नियम मानने की कोशिश की। लेकिन इंसान वही करता है जिसकी उसे लत हो। वह बार-बार लेट हो जाता, रिपोर्ट स्किप कर देता — और हर बार उसकी सजा होती:
कभी 50 सिट-अप्स
कभी 15 मिनट नी-डाउन
कभी मुरगा बनकर राउंड लगाना कमरे में
लेकिन अब साक्षी भी समझ रही थी — रोहित को सिर्फ पढ़ाई का अनुशासन नहीं चाहिए, उसे पनिशमेंट का खेल चाहिए।
और शायद... अब साक्षी भी इस खेल में दिलचस्पी लेने लगी थी। उसकी भाषा बदलने लगी थी। अब वह कहती:
"आज मैं तेरे लिए नई पनिशमेंट सोचूँगी। तैयार रहियो।"
जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
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Chapter 3: Mistress in Making
अब अनुशासन का खेल सिर्फ रोहित की इच्छा नहीं रहा, साक्षी भी अब उस खेल में उतर चुकी थी — एक नियंत्रक के रूप में। वह अब सिर्फ एक दोस्त नहीं थी, अब वो एक Mistress बनती जा रही थी — ठंडी नज़रों से आदेश देने वाली, सख्त आवाज़ में नियम तय करने वाली, और हर अवज्ञा पर दंड देने वाली।
कठोर शुरुआत
एक रविवार की सुबह:
साक्षी: (संदेश में) "आज तुझे पूरा टाइम मिलेगा पढ़ाई के लिए, तो रिपोर्ट में कोई बहाना मत देना। नहीं तो आज की पनिशमेंट बहुत खास होगी।"
रोहित: (दिल की धड़कनें तेज़) "ओके, I'll try my best."
लेकिन शाम 9 बजे...
साक्षी: "रिपोर्ट?"
रोहित: "बस 2 घंटे ही पढ़ पाया… थोड़ा सिरदर्द था।"
साक्षी: "कह दिया था न — बहाना नहीं चलेगा! कैमरा ऑन करो अभी।"
रोहित ने कॉल ऑन किया। उसके चेहरे पर शर्म और हल्की सी मुस्कान थी। साक्षी की आँखों में अब एक अलग चमक थी – वो ताक़त और अधिकार की।
साक्षी: "आज की पनिशमेंट — मुरगा पोज़िशन में 10 राउंड पूरे कमरे में घूमना। और हर राउंड के बाद 'मैं अनुशासनहीन हूँ' बोलना।"
रोहित को झटका लगा। ये अब सिर्फ फैंटेसी नहीं थी, ये पसीना, थकान और आज्ञा का पालन था।
रोहित: "ठीक है, शुरू करता हूँ।"
हर राउंड के बाद वह थके हुए स्वर में कहता:
"मैं अनुशासनहीन हूँ..."
साक्षी उसे गौर से देख रही थी, जैसे उसकी हर थकावट, हर झिझक को तोल रही हो।
चरित्र में बदलाव
अब साक्षी ने अपने रोल को पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। उसने खुद को ट्रेन किया — इंटरनेट पर डोमिनेशन, डिसिप्लिन टेक्निक्स, वॉयस कमांड्स के बारे में पढ़ा।
एक दिन उसने रोहित से कहा:
"अब से मैं सिर्फ दोस्त नहीं, तुम्हारी डिसिप्लिन मास्टर हूँ। तुम्हें हर नियम मानना पड़ेगा। और हर सजा तुम पूरी गंभीरता से लोगे। वरना हमारी दोस्ती यहीं खत्म।"
रोहित कुछ बोल न सका, बस सिर हिलाया। वो डर रहा था, लेकिन उत्साहित भी। यही तो वो चाहता था — कोई जो उसकी फैंटेसी को भी कंट्रोल करे।
नियम कड़े होते हैं
अब हर दिन का शेड्यूल बंध चुका था:
सुबह 6:30 बजे – वॉयस कॉल अलार्म साक्षी की आवाज़ में
7:00 बजे – स्टडी टास्क भेजा जाता
12:00 बजे – वीडियो चेक-इन कॉल
शाम 5:00 बजे – मॉक टेस्ट या स्टडी Q&A
रात 9:00 बजे – अनुशासन समीक्षा और रिपोर्ट
रोज़ नियम तोड़ने पर अलग-अलग पनिशमेंट होती:
मुरगा बनकर वॉल फेस करना 15 मिनट
मोबाइल दूर रखकर फर्श पर बैठकर पढ़ाई
सिट-अप्स 100 गिनकर करना
लेकिन अब रोहित की बॉडी थक रही थी, दिमाग भ्रमित हो रहा था, और आत्मा संतुष्ट हो रही थी। साक्षी का यह रूप, उसकी डोमिनेशन, उसके अंदर की कमजोरी को दबा रही थी — और वह उसे स्वीकार कर रहा था।
ख़ुद को खोना या पाना?
एक रात रोहित ने लिखा:
"साक्षी, कभी-कभी लगता है कि मैं ये सब सिर्फ तुम्हारी डांट सुनने के लिए करता हूँ... तुम्हारी हर आज्ञा मानने के लिए... क्या मैं नॉर्मल हूँ?"
कुछ मिनट बाद साक्षी ने जवाब दिया:
"तू वही है जो बनने की हिम्मत रखता है। दुनिया डरती है, तू स्वीकार करता है। अब सवाल मत कर — नियम फॉलो कर और अपना बेस्ट दे। मैं हूँ पीछे तेरे, सख्ती से।"
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Chapter 4: The Game Turns Dark
साक्षी और रोहित के बीच का खेल अब एक गंभीर स्वरूप ले चुका था। जहाँ कभी हल्के मज़ाक और रोमांच के लिए रोहित पनिशमेंट लेता था, अब वह अपनी इच्छा से परे एक ऐसे चक्रव्यूह में फँस चुका था जिसमें उसकी भावनाएं, शरीर और आत्मा हर दिन जकड़ती जा रही थीं।
पनिशमेंट से थकान, लेकिन चाहत बरकरार
अब तक रोहित को लगने लगा था कि वह इस सिस्टम का कैदी बन चुका है। सुबह की वॉयस कॉल्स, दिन भर की रिपोर्टिंग, और रात को चुपचाप आज्ञा पालन। कभी घुटनों के बल नी-डाउन, कभी 100 सिट-अप्स, और कभी लगातार 15 मिनट मुरगा पोज़िशन में बैठे रहना। उसके पैरों में दर्द अब स्थायी हो गया था।
लेकिन जो चीज़ सबसे ज्यादा उसे अंदर से तोड़ रही थी, वह थी — साक्षी की बदलती भावनाएँ।
अब उसकी आवाज़ में कोई ममता नहीं बची थी। आदेश अब आदेश की तरह आते थे, न कि किसी अपने की चिंता की तरह।
साक्षी की नई साइड
एक रात की बात है। रोहित ने जानबूझकर टास्क स्किप किया ताकि उसे पनिशमेंट मिले। लेकिन इस बार साक्षी की प्रतिक्रिया अलग थी।
साक्षी: "तुम समझते क्या हो अपने आपको? अब ये सब तुम्हारे मन की चीज़ नहीं। अब ये मेरी दुनिया है, और इसमें तुम्हारा कोई वजूद नहीं अगर तुम नियम नहीं मानोगे।"
रोहित: (डरते हुए) "सॉरी साक्षी... मुझसे गलती हो गई।"
साक्षी: "गलती नहीं, ये तेरी आदत है। और अब मैं वो आदत तोड़ूँगी — चाहे जैसे भी हो। तैयार हो?"
रोहित: "क्या मतलब?"
साक्षी: "आज की पनिशमेंट — वीडियो कॉल ऑन करो और मुँह में चुप्पी रूमाल डालकर मुरगा बनो — पूरी रात के लिए।"
रोहित: "पूरी... रात?"
साक्षी: "एक मिनट की भी हरकत की तो अगले दिन दिनभर मुँह बंद कर रखोगे — किसी से बात नहीं करोगे। मेरी कसम।"
सहना या सबकुछ खोना
उस रात रोहित चुपचाप कमरे की दीवार के सामने मुरगा बना रहा। घुटनों में कंपन, पीठ में ऐंठन और दिमाग में गूंजते हुए शब्द: "अब ये मेरी दुनिया है।"
सुबह जब अलार्म बजा, उसने जैसे खुद को ज़िंदा पाया।
लेकिन अब उसकी आँखों में कुछ टूट चुका था।
मन की विद्रोह की पहली चिंगारी
दिन में, ऑफिसियल ग्रुप में साक्षी ने रोहित को टैग करके कहा:
"तू कुछ कर नहीं रहा पढ़ाई में। तुझे सिर्फ पनिशमेंट चाहिए। शर्म कर थोड़ी।"
ये पहली बार था जब उसने पब्लिकली कुछ कहा था। रोहित की साँसें थम गईं। उसने देखा कि दो और दोस्तों ने उस पर हँसते हुए इमोजी भेजे।
उसने तुरंत साक्षी को मैसेज किया:
**"तूने ऐसा क्यों किया? क्या अब तुझे वाकई मुझसे घृणा हो गई है?"
साक्षी: "नफ़रत नहीं... कंट्रोल चाहिए अब। और मैं देखना चाहती हूँ कि तू कितना झुक सकता है।"
एक नई फैंटेसी या भावनात्मक गिरावट?
उस रात रोहित ने खुद से पूछा — क्या ये अब भी मेरी फैंटेसी है? या मैं खुद को धीरे-धीरे मार रहा हूँ?
लेकिन अगली सुबह उसने फिर रिपोर्ट स्किप कर दी — शायद अनजाने में वह फिर वही दर्द, वही डांट, वही हुक्म चाहता था।
पर अब साक्षी और भी अंधेरे में जा चुकी थी।
साक्षी: "अब से हर गलती पर कैमरे के सामने अपने गाल पर थप्पड़ मारना होगा — तब तक, जब तक मैं न कहूँ 'बस'।"
रोहित: (घबराकर) "ये... ये तो गलत है... ये मैं नहीं कर सकता।"
साक्षी: "तो फिर खेल छोड़ दो। हट जाओ मेरी दुनिया से। भूल जाओ इस अनुबंध को। पर अगर रुकोगे — तो नियम सिर्फ मेरे होंगे।"
Chapter 5: The Breaking Point
जिस खेल को रोहित ने अपनी मर्ज़ी से शुरू किया था, अब वही खेल उसकी आत्मा को तोड़ने पर आमादा था। जहाँ पहले वह दर्द को अपनी फैंटेसी समझकर सहता था, अब वह दर्द उसकी पहचान को निगल रहा था। वह चाहकर भी इस चक्र से बाहर नहीं निकल पा रहा था, और शायद अब वो खुद भी नहीं चाहता था।
भीतर की टूटन
साक्षी के आदेश अब हिंसा की ओर बढ़ रहे थे। वह चाहती थी कि रोहित भावनात्मक रूप से पूरी तरह उसके अधीन हो जाए। लेकिन रोहित का शरीर अब उसका साथ नहीं दे रहा था। मानसिक थकान, लगातार तनाव और नींद की कमी ने उसके चेहरे पर वीरानी बसा दी थी।
एक सुबह आईना देखते हुए उसने खुद से पूछा:
"मैं कौन हूँ अब? क्या मैं वही इंसान हूँ जो कभी बैंक परीक्षा पास कर के खुश हुआ था? या वो जो अब अपने ही डर और दर्द की भूख में जी रहा है?"
फैंटेसी और हकीकत की रेखा धुंधली होती है
उस दिन शाम को कॉल पर साक्षी का आदेश था:
**"आज से हर दिन तुझे मुझसे 'सुपीरियर' कहकर संबोधित करना होगा। बिना मेरी इजाजत के बोलना मना है। और अगर कोई गलती हुई, तो सजा तगड़ी होगी।"
रोहित: (धीरे स्वर में) "जी... सुपीरियर।"
साक्षी मुस्कराई नहीं। उसकी आँखें सिर्फ नियंत्रण खोज रही थीं। अब ये खेल उसकी भी असुरक्षा और मानसिक गहराइयों का विस्तार बन चुका था।
धमकी या सच?
एक रात, जब रोहित बहुत थका हुआ था और स्टडी रिपोर्ट नहीं भेज पाया, साक्षी का मैसेज आया:
"एक आख़िरी चेतावनी – अगली बार अगर नियम तोड़ा, तो मैं तुम्हारे पेरेंट्स को तुम्हारी असलियत बता दूँगी। स्क्रीनशॉट्स के साथ। सोच लो।"
रोहित का दिल काँप गया। उसकी पूरी दुनिया उसके सामने बिखरती नज़र आई। उसने फोन एक ओर फेंका और ज़मीन पर बैठ गया, पसीने से तरबतर।
वह रोने लगा। वह रो रहा था अपने खोते आत्मसम्मान, खोते रिश्ते और उस इंसान के लिए जिसे वह अब पहचान नहीं पा रहा था।
आत्मनिरीक्षण की रात
वह रात उसने बिना बात किए बिता दी। साक्षी के किसी मैसेज का जवाब नहीं दिया। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया, लाइट बंद कर दी, और घंटों छत ताकता रहा।
उसे याद आया जब वह पहली बार बैंक परीक्षा की तैयारी कर रहा था, उसकी माँ उसके लिए सुबह उठकर चाय बनाती थी, और कहती थी — "बेटा, तुझे सफल होना है, किसी का गुलाम नहीं बनना।"
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। पहली बार उसे शर्म महसूस हुई। लेकिन उसके भीतर एक और आवाज़ आई — "तेरे पास अब भी समय है, उठ और इस खेल से बाहर निकल।"
पहला इनकार
अगली सुबह साक्षी ने वीडियो कॉल किया:
साक्षी: "आज सुबह के 50 सिट-अप्स भेजने थे। कहाँ है?"
रोहित: (धीरे से) "नहीं कर पाया।"
साक्षी: "तो अब — मुरगा बनो और 'मैं एक विफल गुलाम हूँ' बोलते जाओ।"
रोहित: (शांत स्वर में) "नहीं... आज नहीं।"
साक्षी: "क्या मतलब?"
रोहित: "मतलब... अब मैं इस गेम को छोड़ रहा हूँ। बहुत हो चुका। मैं खुद को मारते हुए जी नहीं सकता।"
कुछ पल की चुप्पी...
साक्षी: "ठीक है... जैसे चाहो। लेकिन याद रखना – एक बार निकले, तो वापस मत आना।"
रोहित: "मैं वापसी के लिए नहीं, खुद को बचाने के लिए निकला हूँ।"
Chapter 6: Rebirth or Regret
रोहित अब उस मोड़ पर खड़ा था जहाँ से या तो वापसी थी — एक नई शुरुआत, या फिर गिरावट — आत्म-नाश की ओर बढ़ता हुआ अंधकार। उसने खुद से वादा तो किया था कि अब इस गेम में नहीं लौटेगा, लेकिन वादा निभाना आसान नहीं था।
भूत की छाया
शुरुआती कुछ दिन बहुत अजीब थे।
फोन से दूर रहना, साक्षी के बिना जागना, बिना किसी आदेश के जीना — सब कुछ बहुत खाली लगने लगा। रोहित ने कोशिश की कि खुद को पढ़ाई में लगाए, लेकिन उसका मन बार-बार पीछे खिंचता।
कभी-कभी वह फोन उठाकर साक्षी का चैट विंडो खोलता और फिर बंद कर देता।
“क्या मैं फिर से वही इंसान बन सकता हूँ जो कभी था?”
परिवर्तन की शुरुआत
एक सुबह, उसने तय किया कि अब सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होगा।
वह पास की लाइब्रेरी गया, नए नोट्स बनाए, एक टाइमटेबल प्रिंट करवाया और अपनी दीवार पर चिपका दिया।
वह रोज़ सुबह खुद को आईने में देखकर कहता:
“मैं किसी का गुलाम नहीं हूँ। मैं अनुशासन खुद से कर सकता हूँ।”
धीरे-धीरे, रोहित ने योग करना शुरू किया। उसके चेहरे पर एक नई चमक आई। दिनभर का शेड्यूल उसने मोबाइल ऐप्स के बजाय हाथ से लिखे डायरी में रिकॉर्ड करना शुरू किया।
साक्षी की वापसी?
लगभग 20 दिन बीत गए थे।
एक शाम, व्हाट्सएप पर साक्षी का मैसेज आया:
"क्या तू अब भी मुझसे डरता है?"
रोहित के चेहरे पर एक मुस्कान आई।
"नहीं। अब नहीं। अब मैं खुद से डरता हूँ, अगर फिर से गिर गया तो।"
कुछ पल बाद:
साक्षी: "मैंने तुझसे माफ़ी नहीं माँगी कभी... शायद मुझे भी खेल की लत लग गई थी।"
रोहित: "मुझे माफ़ी की ज़रूरत नहीं। मुझे अब सच्चाई चाहिए।"
नई सीमाएँ, नई शुरुआत
दोनों ने वीडियो कॉल की। इस बार रोहित मुरगा नहीं बना था, और साक्षी ने आदेश नहीं दिया।
साक्षी: "अगर मैं फिर कहूँ — कि मैं चाहती हूँ तू फिर से डोमिनेशन एक्सपीरियंस करे — पर मेरी शर्तों पर नहीं, तेरी रजामंदी से — तब?"
रोहित: "तब मैं सोचूँगा, क्या मेरा मन तैयार है या नहीं। अब हर फैसला मेरा होगा।"
स्वतंत्रता का स्वाद
अब रोहित पढ़ रहा था, काम कर रहा था, अपने भविष्य की सोच रहा था। उसकी आँखों में दर्द की जगह आत्मविश्वास था। वो अब भी फैंटेसी को नकारता नहीं था — लेकिन अब उसे अपने जीवन पर हावी नहीं होने देता।
उसने जाना कि कंट्रोल केवल फैंटेसी तक सीमित होना चाहिए, ज़िन्दगी में नहीं।
Chapter 7: The Last Choice
बीते हफ्तों में रोहित ने खुद को दोबारा खोजा था। उसके भीतर की स्थिरता धीरे-धीरे लौट रही थी। लेकिन ज़िंदगी में कुछ अधूरे अध्याय ऐसे होते हैं जो बंद होकर भी वापस खुलने का रास्ता खोज ही लेते हैं।
एक शाम, रोहित को एक मेल आया — साक्षी की ओर से। मेल में बस एक लाइन लिखी थी:
"कल शाम 7 बजे एक आखिरी मीटिंग — जगह वही, जहाँ ये खेल शुरू हुआ था। सिर्फ आना है। कोई जवाब नहीं चाहिए।"
रोहित का दिल धड़क उठा। क्या यह एक फंदा था? या एक आखिरी अध्याय?
पुरानी जगह, नया अनुभव
अगली शाम रोहित पहुँचा — वही कॉफी शॉप, जहाँ पहली बार साक्षी ने उसे "अनुशासन सिखाने" का वादा किया था।
साक्षी पहले से वहाँ बैठी थी। उसका चेहरा शांत था, आँखों में वो तेज़ नहीं था जो कभी रोहित को हुक्म देता था।
साक्षी: "मैं जानती हूँ कि तू बहुत कुछ सह चुका है। और मैं भी अब समझ चुकी हूँ — कि फैंटेसी और असलियत के बीच दीवारें क्यों होती हैं।"
रोहित: "तो ये मीटिंग किसलिए?"
साक्षी: "एक प्रस्ताव। और एक विदाई। दोनों।"
प्रस्ताव: एक नया अनुबंध
साक्षी ने अपने बैग से एक दस्तावेज़ निकाला — एक असली अनुबंध। उसमें साफ लिखा था:
दोनों पार्टियाँ इस खेल में रज़ामंदी से शामिल होंगी।
कोई भी मानसिक या सामाजिक हानि की स्थिति में खेल तुरंत रोका जा सकता है।
कोई भी पनिशमेंट कैमरा पर नहीं होगी। केवल कल्पना और शब्दों की सीमाओं में।
अगर एक भी नियम टूटा, तो अनुबंध समाप्त।
साक्षी: "ये आखिरी मौका है, रोहित। इस बार मैं Mistress नहीं, सिर्फ एक साथी हूँ — जो तेरे जैसे किसी को समझ चुकी है।"
रोहित: "और अगर मैं मना कर दूँ तो?"
साक्षी: "तो हम दोनों इस अध्याय को बंद कर देंगे — बिना किसी शिकायत के।"
चुप्पी और विचार
रोहित चुप रहा। कॉफी ठंडी हो गई थी। बाहर रात उतर चुकी थी, लेकिन उसके भीतर अब भी उजाला और अँधेरा दोनों जूझ रहे थे।
वह अनुबंध को घूरते हुए सोचता रहा:
“क्या मैं दोबारा खुद को उस गहराई में जाने दूँ जहाँ से निकलने में महीनों लगे थे?”
“या इस बार मैं उस खेल को अपने नियमों से खेल सकता हूँ?”
फैसला
10 मिनट बाद, रोहित ने कलम उठाई और अनुबंध पर दस्तखत कर दिए। लेकिन उसने नीचे एक लाइन और जोड़ी:
“अगर किसी भी दिन मेरा आत्मसम्मान इस खेल में खोया — तो ये अनुबंध उसी पल समाप्त समझा जाए।”
साक्षी ने सिर झुकाकर कहा:
“मैं स्वीकार करती हूँ।”
एक नई शुरुआत, नई सीमाओं के साथ
अब वो खेल वही था, लेकिन नियंत्रण, सहमति और सम्मान की सीमा के भीतर।
अब न कोई आदेश बिना अनुमति आता था, न कोई मुरगा पनिशमेंट बिना चेतावनी।
और शायद पहली बार, रोहित को लगा कि उसकी फैंटेसी अब उसे खा नहीं रही — बल्कि वह खुद उसे संभाल रहा है।
Chapter 8: Beyond Control
अब खेल की सीमाएं तय थीं, अनुबंध मौजूद था, और रोहित की आत्मा पहले से कहीं अधिक मजबूत। लेकिन हर इंसानी रिश्ता एक तयशुदा अनुबंध से नहीं चलता — वहाँ भावना, आकांक्षा और नियंत्रण के परे भी एक गहराई होती है जो शब्दों और शर्तों से परे होती है।
इस अध्याय में, फैंटेसी और वास्तविक रिश्ते की सीमाएं एक-दूसरे से टकराती हैं। और दोनों को तय करना होता है कि क्या यह संबंध अब भी एक खेल है… या एक नया रिश्ता?
शुरुआत में उत्साह, फिर असमंजस
शुरुआती कुछ हफ्तों में दोनों एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते रहे। रोहित अब भी "प्ले" करता था — अनुशासन तोड़ता था, सजा लेता था, लेकिन अब सब कुछ एक कोरियोग्राफ किए गए एक्ट की तरह होता। कोई दर्द नहीं, कोई भावनात्मक टूटन नहीं।
लेकिन जितना सुरक्षित यह खेल अब बन गया था, उतना ही खोखला भी।
एक शाम, मुरगा बने हुए रोहित ने कहा:
"तू अब सख्त नहीं रही, साक्षी। तू अब बस स्क्रिप्ट पढ़ रही है।"
साक्षी (शांत स्वर में): "और तू? तू अब फील नहीं करता, बस रोल निभाता है।"
दोनों चुप हो गए। उन्हें समझ आने लगा कि शायद अनुबंध ने जो संरक्षा दी थी, उसने उनके बीच की ईमानदारी छीन ली थी।
खेल से परे, रिश्ता?
साक्षी ने कुछ दिनों के लिए ब्रेक लेने का सुझाव दिया।
वे मिले नहीं, कॉल नहीं किया। लेकिन चैट पर किताबों, जीवन, सपनों की बातें करते रहे। रोहित ने पहली बार साक्षी से पूछा:
**"तेरे भीतर क्या चल रहा होता है जब तू मुझे कंट्रोल करती है? सिर्फ पावर की भूख या कुछ और?"
साक्षी ने जवाब दिया:
"कभी लगता था कि मैं तुझसे ऊपर हूँ, लेकिन अब लगता है कि मैं बस तेरे बराबर बैठना चाहती थी। तुझे समझना चाहती थी — अपनी भाषा में।"
एक अजीब शाम
दोनों एक दिन फिर मिले — बिना किसी स्क्रिप्ट के।
कॉफी पीते हुए साक्षी ने रोहित की आँखों में देखा:
"तुझे फिर से कंट्रोल करना चाहती हूँ, लेकिन इस बार… बिना खेल, बिना आदेश… सिर्फ इस यकीन के साथ कि तू खुद को मेरे सामने खोल सका।"
रोहित मुस्कराया:
**"और मैं चाहता हूँ कि कोई मुझे अनुशासित करे, लेकिन अब बिना दया के नहीं — बल्कि समझ के साथ।"
खेल बदल चुका था
उस रात, रोहित ने खुद मुरगा बनने का प्रस्ताव रखा — साक्षी ने मना नहीं किया, लेकिन सजा देने की बजाय, वह उसके पास बैठ गई।
साक्षी: "बस कुछ पल यूँ ही रह, खुद को सज़ा देने की जगह खुद को महसूस करने के लिए।"
और पहली बार, रोहित को कोई पनिशमेंट नहीं मिली। केवल स्पर्श, मौन और समझ।
Chapter 9: Submission or Salvation
जब फैंटेसी आत्मा की गहराई तक पहुँचती है, तब वह केवल शारीरिक खेल नहीं रहती — वह एक आदत बन जाती है, एक हिस्सा, जो व्यक्ति की पहचान से जुड़ जाता है। लेकिन वही फैंटेसी अगर नियंत्रण खो दे, तो वह आत्मा को निगल भी सकती है।
रोहित अब खुद को बेहतर समझ चुका था, लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसकी मुक्ति, या उसकी सबसे गहरी कैद — दोनों रास्ते साक्षी से होकर ही गुज़रते हैं।
वापसी का न्यौता
एक रविवार को साक्षी ने अचानक कॉल किया:
"क्या आज तू फुर्सत में है? मैं चाहती हूँ कि तू मेरे पास आकर एक अंतिम अभ्यास करे।"
रोहित कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे स्वर में बोला:
"यह अभ्यास एक खेल है या एक परीक्षा?"
साक्षी: "शायद दोनों। और शायद इससे आगे हम तय कर पाएँगे कि ये रिश्ता क्या बन चुका है।"
शब्दों की सीमा पार
रोहित पहुँचा। कमरे में सन्नाटा था। साक्षी ने ना कोई आदेश दिया, ना कोई स्क्रिप्ट सामने रखी। बस एक खाली कमरे में एक स्टूल रखा था।
साक्षी: "बैठ जा। अपनी आँखें बंद कर। ये पनिशमेंट नहीं — परीक्षण है।"
उसने रोहित से पूछा:
**"अगर मैं तुझसे कहूँ कि हमेशा के लिए मेरे अधीन हो जा — तो क्या तू राज़ी होगा?"
रोहित: "अगर अधीनता में सम्मान हो, तो शायद हाँ। लेकिन अगर मैं सिर्फ एक खिलौना बनकर रहूँ — तो नहीं।"
निर्णय की घड़ी
साक्षी उसके पास आई। उसने अपने हाथ से रोहित के चेहरे को छुआ, लेकिन इस बार वो छुअन हुक्म की नहीं — करुणा की थी।
साक्षी: "मैं तुझसे अब मुरगा नहीं बनवाना चाहती। मैं चाहती हूँ तू खुद तय करे कि तुझे किस रूप में जीना है — फैंटेसी के अधीन, या उससे ऊपर उठकर।"
रोहित खड़ा हुआ। उसकी आँखों में आत्मविश्वास था। उसने धीरे से सिर झुकाकर कहा:
**"मैं तुझसे मुक्ति चाहता हूँ — लेकिन न तुझसे दूर होकर, न गुलाम बनकर। मैं चाहता हूँ कि हम दोनों एक नए अध्याय की ओर बढ़ें — बराबरी के साथ।"
अंत नहीं, अगला चरण
उस शाम उन्होंने कोई पनिशमेंट नहीं की, कोई खेल नहीं खेला। बस एक-दूसरे के पास बैठकर चाय पी।
साक्षी ने कहा:
**"शायद यही हमारी फैंटेसी की सबसे परिपक्व परिणति है — जब हम उसे खेलने के बजाय समझने लगते हैं।"
और रोहित ने पहली बार जाना — वह सिर्फ एक फैंटेसी नहीं था। वह एक व्यक्ति था, जिसे अब खुद से प्यार करना आ गया था।
Chapter 10: Resolution
ज़िंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि अक्सर यह नहीं होती कि हम कौन बने — बल्कि यह कि हम अपने अतीत को कितनी गरिमा से स्वीकार कर पाए।
फैंटेसी, नियंत्रण और प्रयोग के उस सफ़र में जहाँ रोहित और साक्षी ने एक-दूसरे को पहचाना, अब एक मोड़ आ चुका था जहाँ उन्हें तय करना था — क्या इस कहानी का अंत यहीं है, या अब कहानी असल मायनों में शुरू हो रही है?
वास्तविकता की सुबह
पिछली रात की चुप्पी के बाद, अगली सुबह दोनों पार्क में मिले। न कोई भूमिका, न कोई प्ले। केवल असल ज़िंदगी। रोहित टीशर्ट और ट्रैकपैंट में था। साक्षी भी सामान्य कपड़ों में, बिना किसी “Mistress Aura” के।
साक्षी: “कैसा लग रहा है अब?”
रोहित: “शांत… और थोड़ी खालीपन जैसी। लेकिन शायद यही ज़रूरी था।”
साक्षी: “खालीपन में ही हम खुद को भरने की जगह बनाते हैं।”
रिश्ते का पुनर्परिभाषा
दोनों एक बेंच पर बैठे। पास ही एक बच्चा साइकल चला रहा था, गिरता, उठता, फिर चलता। साक्षी ने इशारा करते हुए कहा:
“देख, वो बच्चा गिर रहा है, लेकिन हर बार हँसते हुए उठ रहा है। हमें भी ऐसा ही करना है।”
रोहित: “हमारा रिश्ता अब किस रूप में है?”
साक्षी (हँसते हुए): “शायद दोस्ती, शायद कुछ गहराई — लेकिन अब बिना मुखौटों के।”
छोटे प्रयोग, बड़ी समझ
हफ्तों बाद, दोनों ने तय किया कि अगर कोई खेल करेंगे भी, तो वो कभी नियमित नहीं होगा। फैंटेसी अब सिर्फ रोल-प्ले तक सीमित थी — कभी-कभी, स्वेच्छा से, लेकिन बिना किसी मानसिक बंधन के।
रोहित ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की, और धीरे-धीरे इंटरव्यू की तैयारी में जुट गया। इस बार उसे सच में अनुशासन समझ में आने लगा — न कि सजा के डर से, बल्कि अपनी जिम्मेदारी के कारण।
अंतिम परीक्षण
एक शाम साक्षी ने रोहित को कहा:
“आज तू मुरगा नहीं बनेगा। आज तू वो बनेगा जो तू बनना चाहता है — आत्मनिर्भर, आत्मसम्मानी। और मैं बस एक दोस्त की तरह तेरे साथ चलूँगी।”
रोहित की आँखों में नमी थी, लेकिन चेहरा दृढ़ था।
“शायद अब मेरी फैंटेसी पूरी हो गई है — क्योंकि अब मैं खुद को सज़ा देने की जगह, खुद को संवारना चाहता हूँ।”
नया अध्याय शुरू
कहानी वहीं खत्म नहीं हुई। रोहित का इंटरव्यू हुआ — और इस बार उसने आत्मविश्वास के साथ उत्तर दिए।
चंद महीनों में, उसका चयन हो गया।
साक्षी ने उसे बधाई दी — लेकिन इस बार बिना किसी आदेश, बिना किसी भूमिकाओं के। सिर्फ एक मुस्कान और एक गले मिलना।
साक्षी: “Congratulations, Officer Rohit.”
रोहित (हँसते हुए): “अब कोई मुझे मुरगा नहीं बना सकता।”
साक्षी (शरारती अंदाज़ में): “अभी मत बोल… कभी-कभी बीवी बनने की फैंटेसी भी आती है!”
और दोनों हँसते हुए शाम की चाय में डूब गए — इस बार बिना किसी डर या खेल के। सिर्फ जीवन के साथ।
Final Chapter: Full Circle
कई महीने बीत चुके थे। रोहित अब एक अधिकारी था, व्यस्त दिनचर्या, कागज़ी काम और समाज की नजरों में सम्मान। लेकिन भीतर कहीं, कुछ शांत नहीं था।
वह साक्षी से नियमित संपर्क में था, लेकिन अब उनके बीच न तो वो रोल-प्ले था, न वो भावनात्मक विस्फोट। सब कुछ स्थिर था... शायद ज़रूरत से ज़्यादा।
पुरानी फाइल, नई चिंगारी
एक दिन रोहित अपनी पुरानी नोटबुक देख रहा था — वही जिसमें उसने अनुशासन का रूटीन बनाया था, और नीचे कोने में लिखा था:
"यदि नियम टूटा, तो सज़ा निश्चित।"
उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई। लेकिन साथ ही आँखें थोड़ी नम भी हो गईं। क्या वह आज भी वही था? या अब सिर्फ समाज के साँचे में ढल गया था?
साक्षी की चिट्ठी
उसी शाम एक कुरियर आया — साक्षी का लिखा एक पत्र:
"प्रिय रोहित,
शायद तूने सोचा होगा कि सब कुछ अब खत्म हो चुका है, लेकिन मैं चाहती हूँ कि तू एक बार फिर सोच।
क्या जीवन अनुशासन और सम्मान से परे भी कुछ है?
मैं तुझसे एक बार फिर मिलना चाहती हूँ — इस बार एक गेम नहीं, एक सच्चे भाव के साथ।
शुक्रवार शाम, वही पुराना कॉफी हाउस।
— साक्षी"
कॉफी हाउस में टकराहट
शाम ढलते-ढलते रोहित वहाँ पहुँचा। साक्षी पहले से वहाँ थी। इस बार उसकी मुस्कान में न खेल था, न रहस्य — बस एक सादगी।
साक्षी: “क्या तू अब भी अपनी फैंटेसी को याद करता है?”
रोहित (संकोच से): “कभी-कभी… लेकिन अब वो ज़रूरत नहीं रही।”
साक्षी: “तो क्या होगा अगर मैं आज कहूँ — मुरगा बन, लेकिन इस बार मेरे लिए नहीं, खुद के लिए?”
रोहित कुछ पल सोचता रहा। फिर कहा:
“नहीं, अब मैं मुरगा नहीं बनूँगा… लेकिन मैं आज खुद को तेरे सामने पूरी तरह खोल दूँगा — डर के बिना।”
पूर्णता की अनुभूति
उस रात दोनों ने लंबी बातें कीं — रिश्तों की, इच्छाओं की, सीमाओं की। और पहली बार दोनों को समझ आया कि उनकी कहानी का अंत पहले से तय नहीं था।
फैंटेसी ने उन्हें जोड़ा था, लेकिन समझ ने उन्हें मजबूत किया।
साक्षी ने रोहित का हाथ थामते हुए कहा:
“अब मुझे तुझे नियंत्रित नहीं करना, मुझे तुझे अपनाना है।”
रोहित: “और मुझे तुझसे डर नहीं, तुझ पर भरोसा चाहिए।”
वृत्त पूर्ण हुआ
कहानी वहीं समाप्त नहीं हुई। उन्होंने अपने जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत की — अब बिना अनुबंध, बिना खेल के।
वे अब भी कभी-कभी रोल-प्ले करते थे, लेकिन वह अब सिर्फ मनोरंजन था, असली रिश्ता नहीं। असली रिश्ता था — खुलापन, विश्वास और समानता।
The End
"Disciplined Desires" अब एक फैंटेसी नहीं — बल्कि आत्म-स्वीकृति की यात्रा थी। और यह अंत नहीं, एक जीवन भर की शुरुआत थी।
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Such a great and different story.
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