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यह ब्लॉग पूरी तरह काल्पनिक है। किसी से समानता संयोग होगी। बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयाँ ((जैसे स्तन वर्धक या हार्मोन परिवर्तन)न लें - यह जानलेवा हो सकता है।— अनीता (ब्लॉग एडमिन)

Disciplined Desires: एक मुरगा की फैंटेसी

📝 Story Preview:

📝 Story Preview:

📘 Title: Disciplined Desires: एक मुरगा की फैंटेसी

✍️ Genre: Fantasy, Fetish Drama, Psychological Thriller

📚 Length Target: ~Approx. 25,000+ words


भूमिका

यह कहानी एक ऐसे युवक की है जो समाज में सम्मानित और अनुशासित बनने का सपना देखता है, लेकिन उसके भीतर एक छिपी हुई फैंटेसी उसे बार-बार पीछे खींचती है। अनुशासन और वासना की लड़ाई में उसका मन, शरीर और आत्मा बुरी तरह उलझ जाती है। जब उसकी फैंटेसी हकीकत से टकराती है, तो वह एक ऐसे खेल में फँस जाता है जहाँ उसकी इच्छा ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाती है।


[Note: कहानी की पूरी लंबाई ~25,000 शब्दों से ज़्यादा होगी और इसे 10 से 12 अध्यायों में बांटा जाएगा।]

Chapter 1: The Trigger


रोहित, 26 साल का एक सामान्य सा युवक, लेकिन भीतर से जटिल और उलझा हुआ। पढ़ाई में औसत, पर सपने ऊँचे। सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। और उस दिन, जब बैंक परीक्षा का रिजल्ट आया, वह एकदम स्तब्ध रह गया – उसका चयन हो गया था।

मोबाइल की स्क्रीन पर चमकता हुआ वह एक संदेश – "Congratulations, You are selected." – जैसे उसकी पूरी दुनिया बदल गया। खुशी के मारे उसका दिल धड़कता रहा। उसने तुरंत अपने माता-पिता को खबर दी, और मिठाई लेने निकल पड़ा।

भीड़भाड़ वाले उस बाज़ार में, जहाँ सबकुछ रोज़ जैसा ही था, एक चेहरा उसकी निगाहों से टकराया – साक्षी।

वो साक्षी जिसे उसने 8 साल से नहीं देखा था। स्कूल की सबसे समझदार और तीखी लड़की, जिसकी आवाज़ में तेज़ी और आँखों में गहराई थी। वो अब एक कॉर्पोरेट ऑफिस में काम कर रही थी। पर चेहरे पर वही मासूम मुस्कान थी।

साक्षी: "अरे रोहित! तू? इतने सालों बाद!"

रोहित: (हैरान होकर) "साक्षी! तू... बिल्कुल नहीं बदली।"

दोनों ने एक-दूसरे से हालचाल पूछा, बातें की, और नंबर एक्सचेंज किए। वो एक संयोग था, लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह नियति थी।

बातचीत का सिलसिला

अगले कुछ हफ्तों में, रोज़ बातें होने लगीं। व्हाट्सएप चैट्स से लेकर वीडियो कॉल्स तक, दोनों करीब आते गए। कभी स्कूल की यादें, कभी करियर की बातें, और कभी-कभी हल्की मस्ती।

एक रात की बात है, जब रोहित थोड़ा मूड में था, उसने मज़ाक में कहा:

रोहित: "यार, तेरे जैसी टीचर होती तो मैं कभी फेल न होता!"

साक्षी: "हाहा! मैं तो बहुत स्ट्रिक्ट होती। हर गलती पे पनिशमेंट देती।"

रोहित: "ओह तो मुरगा बनवाती?"

साक्षी: "बिल्कुल! और अगर ज्यादा गलती, तो क्लास के सामने!"

रोहित की साँसें जैसे थम गईं। उसने हँसते हुए बात को टाल दिया, लेकिन अंदर से कुछ जाग गया था।

एक दबी हुई फैंटेसी

रोहित के अंदर एक रहस्य था — उसे मुरगा पनिशमेंट से अजीब सी मानसिक संतुष्टि मिलती थी। बचपन में स्कूल की वो सजा, जो सबके लिए शर्म की बात थी, रोहित के लिए एक रहस्यात्मक आकर्षण बन गई थी।

अब जब साक्षी से ये बातचीत हुई, वो आग फिर से जल गई।

अगले दिन उसने जानबूझकर एक लाइन फिर दोहराई:

रोहित: "सुन, अगर मैं पढ़ाई में ढीला पड़ा तो तू पनिशमेंट दे देना।"

साक्षी (हँसते हुए): "दे दूँगी! तुझे तो मुरगा बनाकर वीडियो कॉल पर खड़ा कर दूँगी।"

रोहित (हँसते हुए): "ना बाबा! वो मत करना, मैं शर्म से मर जाऊँगा।"

लेकिन अंदर ही अंदर... उसे वही चाहिए था।

पहली पनिशमेंट

कुछ दिन बाद, जब रोहित ने उसे बताया कि आज पढ़ाई नहीं हुई:

साक्षी: "पढ़ाई नहीं की? चलो फिर! मुरगा बनो अभी वीडियो कॉल पर।"

रोहित: "हाहा तू भी न!"

साक्षी: "सीरियस हूँ! चलो जल्दी!"

रोहित का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वो डर, शर्म, उत्तेजना — सब कुछ मिला-जुला। लेकिन उसने वीडियो कॉल ऑन किया और धीरे-धीरे स्क्रीन के सामने मुरगा बन गया।


साक्षी की हँसी गूंज गई:

साक्षी: "ओ माय गॉड! तूने सच में कर लिया? तू पागल है!"

रोहित ने मुस्कराते हुए कहा:

"तूने कहा था, और मैं डिसिप्लिन में रहना चाहता हूँ।"

अंदर की खामोशी

वो रात रोहित ने सो नहीं पाया। वो बार-बार वही पल दोहराता रहा – वो शर्म, वो आदेश, वो झुकी हुई हालत। वो कोई आम मस्ती नहीं थी। वो एक असली एहसास था — उसे पनिशमेंट में तृप्ति मिलती थी। लेकिन वो डरता था — क्या ये सही है? क्या वो बीमार है? या बस... अलग है?

अगले दिन उसने फिर से वही किया – पढ़ाई नहीं की, और बहाना बना लिया।

रोहित: "आज फिर डिस्ट्रैक्ट हो गया यार..."

साक्षी: "तो फिर तैयार हो? मुरगा नंबर 2?"

रोहित (मुस्कुराकर): "Always ready, ma'am."

Chapter 2: Contract of Control

रोहित की पनिशमेंट वाली फैंटेसी अब साक्षी के सामने धीरे-धीरे खुलती जा रही थी। उसने अब तक सिर्फ हल्के-फुल्के बहानों से दो बार मुरगा पनिशमेंट ली थी, लेकिन उसका मन इससे कहीं आगे जाना चाहता था। वह चाहता था कि ये सिलसिला मज़ाक से आगे बढ़े — एक गंभीर अनुशासनिक व्यवस्था में बदले।

उस दिन उसने कुछ ऐसा किया जो पहले कभी नहीं किया था। उसने साक्षी को एक मेल भेजी — एक फॉर्मल "डिसिप्लिन कॉन्ट्रैक्ट"। साथ ही व्हाट्सएप पर मैसेज किया:

"साक्षी, अगर तुम्हें समय मिले तो मेरी मेल ज़रूर देखना। ये थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन मैं बहुत सीरियस हूँ। प्लीज़ पढ़ना।"

Discipline Contract

अनुबंध: मैं, रोहित शर्मा, अपने स्वेच्छा से यह अनुबंध करता हूँ कि मेरी पढ़ाई और अनुशासन को बनाए रखने हेतु साक्षी द्वारा निर्धारित किसी भी प्रकार की मानसिक या शारीरिक पनिशमेंट को स्वीकार करूँगा। पनिशमेंट में शामिल हो सकती हैं:

  1. मुरगा पोज़िशन में समय बिताना

  2. सिट-अप्स

  3. नी-डाउन पोज़िशन

किसी विशेष नियम की पालना (समय पर उठना, स्टडी रिपोर्ट भेजना आदि)

अनुबंध का उद्देश्य केवल मेरी पढ़ाई और अनुशासन सुधारना है। इसका दुरुपयोग नहीं किया जाएगा।

हस्ताक्षर:

रोहित शर्मादिनांक: (xx-xx-20xx)

साक्षी की प्रतिक्रिया

जब साक्षी ने मेल पढ़ी, तो वह कुछ मिनटों तक चुप रही। उसके चेहरे पर कई भाव आए – हँसी, अचंभा, चिंता और फिर एक हल्की-सी मुस्कान।


साक्षी: (मैसेज में) "ये तुमने सीरियसली लिखा है? क्या तुम ठीक हो?"

रोहित: "हाँ, पूरी तरह ठीक हूँ। बस पढ़ाई में बहुत लूज हो रहा हूँ और मुझे लगता है कि तुम्हारा डर... मेरा स्ट्रक्चर सेट कर सकता है।"

कुछ देर बाद साक्षी ने लिखा:

"ठीक है। मैं यह एक्सेप्ट कर रही हूँ। लेकिन याद रखना – अब ये मज़ाक नहीं होगा।"

Rule Number One

साक्षी ने नियम तय किए:

  1. हर सुबह 7:30 बजे तक स्टडी रिपोर्ट भेजनी होगी।

  2. हर शाम 9 बजे तक एक कॉल रिपोर्ट (क्या पढ़ा, कितना पढ़ा)।

  3. नियम टूटने पर तुरंत पनिशमेंट।

  4. पनिशमेंट लाइव वीडियो कॉल पर होगी।

पहले दिन ही रोहित देर से उठा। स्टडी रिपोर्ट नहीं भेजी। रात 9 बजे:

साक्षी: "Report कहाँ है?"

रोहित: "Sorry, overslept..."

साक्षी: "तो अब मुरगा बनो। अभी। कॉल ऑन करो।"

एक नई शुरुआत

रोहित ने सिर झुकाकर कॉल ऑन किया। अबकी बार उसकी मुरगा पोज़िशन पहले से ज़्यादा परफेक्ट थी। हाथों से कान पकड़े हुए, घुटने मुड़े हुए, पीठ झुकी हुई।

साक्षी: "10 मिनट तक यही रहो। अगर हिले, तो टाइम डबल कर दूँगी।"

रोहित के माथे पर पसीना आ गया।

हर मिनट भारी लग रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर था एक अजीब-सा संतोष। शायद उसे अब वही मिल रहा था जो वह वर्षों से ढूँढ़ रहा था — एक ऐसा कंट्रोल जो उसे तोड़कर बनाए।

10 मिनट बाद...

साक्षी: "ठीक है, खड़े हो जाओ। लेकिन याद रखना – कल दोबारा गलती हुई तो माफ नहीं करूँगी।"

रूटीन सेट होता है

अगले कुछ दिनों में रोहित ने नियम मानने की कोशिश की। लेकिन इंसान वही करता है जिसकी उसे लत हो। वह बार-बार लेट हो जाता, रिपोर्ट स्किप कर देता — और हर बार उसकी सजा होती:

  • कभी 50 सिट-अप्स

  • कभी 15 मिनट नी-डाउन

  • कभी मुरगा बनकर राउंड लगाना कमरे में

लेकिन अब साक्षी भी समझ रही थी — रोहित को सिर्फ पढ़ाई का अनुशासन नहीं चाहिए, उसे पनिशमेंट का खेल चाहिए।

और शायद... अब साक्षी भी इस खेल में दिलचस्पी लेने लगी थी। उसकी भाषा बदलने लगी थी। अब वह कहती:

"आज मैं तेरे लिए नई पनिशमेंट सोचूँगी। तैयार रहियो।"

जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
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