📝 Story Preview:
यह कहानी है अरुणा और राकेश की — एक ऐसे दंपति की, जिनकी ज़िंदगी ने उन्हें सामाजिक परिभाषाओं से परे एक नए रिश्ते में बाँध दिया। जब अरुण (अब अरुणा) को सासू माँ की योजना के तहत स्त्रीत्व की ओर ढकेला गया, तो रेखा (अब राकेश) ने न केवल साथ दिया, बल्कि प्यार से उसका हाथ थामा।
स्त्री-वेशभूषा, हार्मोन, भावनात्मक बदलाव और समाज की कठोर नज़रों के बीच पनपा एक अनोखा रिश्ता — जिसमें राकेश पति बना और अरुणा एक सुंदर, भावुक पत्नी।
बेटी दीपा, एक नया जीवन और एक घर जिसमें अब कोई डर नहीं, बस हँसी, चुंबन और दो आत्माओं की सच्ची मोहब्बत थी।
अब चलते है कहानी पर
यह कहानी है अरुणा और राकेश की — एक ऐसे दंपति की, जिनकी ज़िंदगी ने उन्हें सामाजिक परिभाषाओं से परे एक नए रिश्ते में बाँध दिया। जब अरुण (अब अरुणा) को सासू माँ की योजना के तहत स्त्रीत्व की ओर ढकेला गया, तो रेखा (अब राकेश) ने न केवल साथ दिया, बल्कि प्यार से उसका हाथ थामा।
स्त्री-वेशभूषा, हार्मोन, भावनात्मक बदलाव और समाज की कठोर नज़रों के बीच पनपा एक अनोखा रिश्ता — जिसमें राकेश पति बना और अरुणा एक सुंदर, भावुक पत्नी।
बेटी दीपा, एक नया जीवन और एक घर जिसमें अब कोई डर नहीं, बस हँसी, चुंबन और दो आत्माओं की सच्ची मोहब्बत थी।
मेरा नाम अरुण है। कुछ महीनों पहले तक मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, लेकिन अचानक नौकरी चली गई। तब से घर की हालत डगमगा गई है। मेरी पत्नी रेखा एक स्कूल टीचर है, मगर उसकी कमाई इतनी नहीं कि घर की सारी जिम्मेदारियाँ उठा सके। ऊपर से कुछ कर्ज भी हैं, जिन्हें चुकाना ज़रूरी है।
हमारी शादी लव मैरिज थी, और इसी वजह से मेरे अपने घरवालों ने मुझसे रिश्ता तोड़ लिया। रेखा की तरफ से सिर्फ उसकी माँ, काव्या जी हैं — जिनके मन में मेरे लिए कभी कोई स्नेह नहीं रहा। उन्हें हमेशा लगता रहा कि मैं उनकी बेटी के काबिल नहीं हूँ। फिर भी, बेटी के खातिर वो कभी-कभार मुझसे बात कर लेती हैं।
एक दिन रेखा ने अपनी माँ से मदद मांगी — ताकि मुझे कोई नौकरी मिल सके। करीब एक महीने बाद रेखा को उनकी माँ का फ़ोन आया। दोनों माँ-बेटी काफी देर तक बातें करती रहीं, फिर रेखा मेरे पास आई।
"अरुण," उसने कहा, "एक अच्छी और एक बुरी खबर है।"
मैंने मुस्कराते हुए कहा, "पहले अच्छी खबर बता दो।"
"तुम्हें नौकरी मिल गई है," रेखा बोली।
"और बुरी खबर?" मैंने पूछा।
"नौकरी की तनख्वाह बहुत अच्छी है। मगर हाल ही में उस कंपनी में एक घटना के बाद अब वे सिर्फ महिला कर्मचारियों को ही रखते हैं। मम्मी ने बहुत मुश्किल से उन्हें मनाया, और उन्होंने हाँ की है — मगर कुछ शर्तों पर।"
"कौन-सी शर्तें?" मैंने पूछा, कुछ अनहोनी की आशंका लिए।
"ड्रेस कोड या तो साड़ी होगी या सलवार। वहाँ तुम्हें एक महिला की तरह ही पेश आना होगा — चाल-ढाल, व्यवहार, सब कुछ। बाकियों की तरह तुम्हें भी उन्हीं नियमों का पालन करना होगा।"
मैं भड़क गया। "मैं ये नौकरी नहीं कर सकता! मैं एक पुरुष हूँ। मुझसे कैसे ये उम्मीद की जा सकती है कि मैं एक औरत की तरह कपड़े पहनूं और काम करूं? मैं कुछ और समय इंतज़ार कर सकता हूँ, कोई और नौकरी मिल ही जाएगी।"
रेखा का चेहरा सख्त हो गया, उसकी आँखों में गुस्सा साफ़ दिख रहा था।
"तुम कहते हो कि नौकरी खोज लोगे?" उसने शांत लेकिन तीखे स्वर में कहा। "तुम्हारे पास एक सुनहरा मौका है — बस कुछ नियमों का पालन करना है।"
मैंने झुंझलाते हुए कहा, "मगर ये नियम महिलाओं के लिए हैं! मैं तो एक आदमी हूँ।"
रेखा चुप हो गई, मगर उसकी चुप्पी बहुत कुछ कह रही थी। हमारे सिर पर कर्ज का बोझ था, और ये नौकरी उस बोझ को हटाने का एकमात्र रास्ता थी। लेकिन मैं — मैं खुद को एक औरत की तरह तैयार करना, उसकी तरह पेश आना… ये सोच भी नहीं पा रहा था।
रेखा मुझसे पिछले कुछ दिनों से ठीक से बात नहीं कर रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन कहीं न कहीं एक गहरा दुख भी। महीने की पहली तारीखें हम दोनों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होती थीं। उधार चुकाना, किराया देना, ज़रूरी खर्च — और जेब में फूटी कौड़ी नहीं। रातों की नींद उड़ गई थी मेरी। करवटें बदलते सोचता रहा — क्या मैं एक अच्छा पति भी हूं? नौकरी चली जाने के बाद भी रेखा ने कभी मेरा अपमान नहीं किया। वो बस सहती रही, मेरे साथ रही।
एक रात मैंने फैसला कर लिया — अपने पुरुष होने के अभिमान को छोड़कर उस नौकरी को स्वीकार करूँगा।
अगली सुबह, रेखा रसोई में काम कर रही थी। मैं चुपचाप उसके पीछे गया, उसे पीछे से बाँहों में भर लिया और धीमे से कहा, “मैं वो नौकरी कर लूंगा।”
उसका चेहरा एकदम से खिल उठा, मानो बादल के पीछे से सूरज झाँक गया हो।
"अब चिंता मत करो," रेखा बोली, "सब कुछ मैं संभाल लूंगी। कोई नहीं जान पाएगा कि तुम असल में पुरुष हो। अब से मैं तुम्हें अरुना कहूँगी। और हाँ, मुझे खुशी है कि तुम्हारे बाल पहले से थोड़े लंबे हैं।”
मुझे समझ नहीं आया कि उसे ज़्यादा खुशी किस बात की थी — नौकरी मिलने की या मुझे औरत के रूप में देखने की?
शाम होते ही एक ब्यूटीशियन हमारे घर आ गई, रेखा ने पहले ही बुला रखा था। वो हमारे कमरे में आई और अपना बैग खोलने लगी। उसके बैग से तरह-तरह की चीज़ें निकलने लगीं — जो मेरे लिए एकदम अनजानी थीं।
उसने मुझे एक क्रीम दी — “इसे पूरे शरीर पर लगाइए, ये हेयर रिमूवल क्रीम है।”
मैं बाथरूम गया, पूरी बॉडी पर क्रीम लगाई और नहाकर बाहर आया।
रेखा ने तुरंत कहा, “बिस्तर पर लेट जाओ।”
ब्यूटीशियन ने नकली स्तन निकाले और मेरे सीने पर चिपका दिए। रेखा ने अपनी अलमारी से एक ब्लाउज़ निकाला।
“रेखा, मुझे अभी साड़ी पहनने की ज़रूरत नहीं है,” मैंने झिझकते हुए कहा।
“जानती हूँ,” रेखा मुस्कराई, “ये सिर्फ नाप लेने के लिए है।”
मैंने ब्लाउज़ पहना — वो थोड़ा टाइट था।
“रेखा, ये थोड़ा कस रहा है।”
वो फिर मुस्कराई, “महिलाएं ब्लाउज़ ऐसे ही पहनती हैं, ये बिल्कुल परफेक्ट है।” फिर उसने मुझे एक पेटीकोट पकड़ाया।
इसके बाद मुझे कुर्सी पर बैठाया गया। ब्यूटीशियन ने एक पियर्सिंग गन निकाली और मेरे दोनों कानों में दो-दो छेद कर दिए। उसके बाद भौंहें थ्रेड की गईं, नाखून संवारे गए, और बालों को स्टाइल दिया गया।
जैसे ही ब्यूटीशियन चली गई, मैं ब्लाउज़ और पेटीकोट उतारने लगा। लेकिन रेखा ने रोक दिया और मुझे एक नाइटी थमाई।
“पहनो इसे। महिलाओं के कपड़ों की आदत डालनी पड़ेगी ना।”
मैंने हिचकिचाते हुए वो नाइटी पहन ली।
रेखा पास आई, और मुझे एक लंबा, गहरा किस दिया — शायद अब तक का सबसे खास।
रात को टीवी देखते हुए देखा कि रेखा अलमारी व्यवस्थित कर रही थी। जब मैंने देखा कि वो भी एकदम वैसी ही नाइटी पहनकर आई है, तो थोड़ा शर्मिंदा हो गया।
वो पास आई, मेरी कमर में हाथ डाला और कान में फुसफुसाई —
“शर्माओ मत, बहुत मज़ा आने वाला है हम दोनों को…”
फिर उसने मुझे चूमना शुरू किया। धीरे-धीरे, हम एक-दूसरे में खोते चले गए।
अगली सुबह...
"अरुना… अरुना उठो," रेखा ने मुझे जगाया।
“जल्दी नहा लो। आज बहुत कुछ सीखना है तुम्हें — कल ऑफिस का पहला दिन है।”
जब मैं नहाने गया, तो आईने में अपने नए स्तनों को देखकर चौंक गया — वो एकदम असली जैसे लग रहे थे।
तौलिया लपेटकर जैसे ही बाहर आया, रेखा ने फौरन उसे हटाया और कहा, “तौलिया सीने के चारों तरफ लपेटो, अब तुम्हें अपनी छातियाँ ढंकनी होंगी। ये पहला सबक है। सोचो कि ये तुम्हारे असली स्तन हैं।”
उसने मुझे एक ब्रा थमाई — कई बार कोशिशों के बाद मैं उसे पहन पाया।
अंडरवियर के नाम पर मैंने अपनी पुरानी मर्दाना चड्डी पहन ली — मगर रेखा ने कुछ नहीं कहा।
मैंने सोचा, शायद आज भी नाइटी ही पहनने को मिलेगी — मगर रेखा ने अलमारी से एक हाफ साड़ी निकाल ली।
“रेखा… मुझे हाफ साड़ी नहीं पहननी,” मैंने धीमे स्वर में कहा...
रेखा ने मेरी ओर देखा, मुस्कराते हुए बोली,
"अरुना, तुम्हें ऑफिस में साड़ी पहनकर ही जाना होगा। इसीलिए आज से ही प्रैक्टिस शुरू करते हैं। यकीन मानो, साड़ी को संभालना बहुत मुश्किल होता है। अगर तुम हाफ साड़ी नहीं संभाल सकतीं, तो पूरी साड़ी का क्या करोगी? चलो, आज से ही शुरू करते हैं।"
कुछ ही मिनटों में रेखा ने मुझे हाफ साड़ी पहना दी। पल्लू को सावधानी से मेरे बाएँ कंधे पर पिन किया गया। मुझे लगा अब सब कुछ हो गया है, और मैं कमरे से बाहर निकलने ही वाला था कि रेखा ने एकदम से टोक दिया:
"मैडम, अभी तैयार होना खत्म नहीं हुआ है।"
मैं चुपचाप वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया। रेखा ने मेकअप किट खोली और मेरे चेहरे पर धीरे-धीरे मेकअप लगाना शुरू किया। वह मुझे सिखा भी रही थी — कैसे आईलाइनर लगाते हैं, कैसे लिपस्टिक और बिंदी का रंग मैच करते हैं।
फिर उसने ढेर सारी चूड़ियाँ निकालीं और मेरे दोनों हाथों को चूड़ियों से भर दिया। मेरे कानों में झुमके पहनाए गए और पैरों में पायल। मैं थोड़ा बेचैन हो गया था — इतनी चीज़ें पहन लीं और अब तक ये सब खत्म नहीं हुआ?
रेखा ने फिर से मेरी ओर देखा — इस बार हाथ में नकली बालों के एक्सटेंशन थे। उसने मेरे बालों में उन्हें लगाकर एक लंबी चोटी बनाई और उसमें गजरे के फूल पिन कर दिए। फिर मेरे गले में एक चैन और माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी लगाई। मैं चुपचाप सब सहता रहा।
जब मैंने आईने में खुद को देखा — तो कुछ पल के लिए सांस ही रुक गई।
वो मैं नहीं था — वो तो कोई और ही थी। एक खूबसूरत, पूरी तरह से सजी-संवरी महिला।
रेखा ने मेरा हाथ थामा और प्यार से कहा,
"हर दिन तुम्हें इसी तरह तैयार होना होगा। अगर एक भी चीज़ छूट गई — तो पूरा लुक बिगड़ जाएगा।"
उस दिन पूरा दिन रेखा ने मुझे सिखाया — पल्लू कैसे संभालते हैं, कैसे चलते हैं, कैसे बैठते हैं, और कैसे औरतों की तरह बर्ताव करते हैं। मैं सीख रहा था — धीरे-धीरे, चुपचाप।
पर असली परीक्षा तो कल थी — जब मुझे ऑफिस जाना था।
सुबह-सुबह रेखा ने मुझे जगा दिया। मैं जानता था — एक औरत को तैयार होने में वक्त लगता है, और मेरे लिए तो उससे भी ज़्यादा।
नहाने के बाद मैंने तौलिया सीने के ऊपर बाँधा — जैसे रेखा ने सिखाया था। फिर ब्रा पहनी। मैं सोच रहा था आज फिर साड़ी पहननी होगी, लेकिन रेखा ने अलमारी से सलवार-कुर्ता निकाला।
मेरे चेहरे पर थोड़ी राहत आई।
"चलो, आज सलवार है," मैंने सोचा।
मैंने सलवार-कुर्ता पहना — वो एकदम फिट था, मेरी सारी ‘नव निर्मित’ कर्व्स को दिखा रहा था। मेरी छाती की बनावट अब साफ़ नजर आ रही थी। रेखा ने धीरे से दुपट्टा उठाया और मुझे ओढ़ा दिया।
"अरुना," वह मुस्कराते हुए बोली,
"हम धीरे-धीरे आगे बढ़ेंगे। बहुत जल्द तुम खुद ही साड़ी पहनने लगोगी। और हाँ, दुपट्टा बार-बार एडजस्ट करना मत भूलना।"
रेखा ने फिर से मेरा मेकअप किया — इस बार और भी प्रोफेशनल तरीके से। मेकअप करते-करते वह मुझे टिप्स भी देती रही — "बिंदी से पहले फोरहेड क्लीन करो", "लिपस्टिक के बाद हल्का टिशू दबाओ", "ब्लश थोड़ा कम लगाना दिन में", वगैरह।
जब सब तैयार हो गया, मैंने खुद को आईने में देखा — और इस बार, मुझे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था।
आईने में जो लड़की थी, वो कहीं से भी 'अरुण' नहीं लगती थी।
"अब कोई नहीं कह सकता कि मैं मर्द हूँ..." मैंने धीरे से खुद से कहा।
रेखा तैयार हो रही थी। ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी, वो खुद को शीशे में निहार रही थी — आँखों में काजल, होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक और बालों में ढीली-सी चोटी। मैं बिस्तर पर बैठा चुपचाप उसे देख रहा था, पर मेरा ध्यान कहीं और था। मेरे मन में एक ही बात घूम रही थी — "ऑफिस में लोग कैसे रिएक्ट करेंगे?"
क्या वो मुझे पहचान पाएंगे कि मैं असल में मर्द हूँ? क्या मेरा मज़ाक उड़ाया जाएगा? क्या मुझे निकाल दिया जाएगा?
रेखा ने तैयार होकर मेरी ओर देखा, मुस्कराई, और बोली,
“चलो नाश्ता करते हैं, फिर निकलना है।”
हम दोनों ने साथ बैठकर नाश्ता किया — शायद पहली बार मैं एक पत्नी की तरह महसूस कर रहा था। मेरा कुर्ता जेबवाला नहीं था, इसलिए रेखा ने अपनी पुरानी गुलाबी हैंडबैग मुझे थमाई।
“इसमें सब रख लो — रूमाल, लिपस्टिक, आईडी... सब।”
मैंने उसकी चप्पलें पहनीं — हल्की सी हील वाली — और खुद को शीशे में देखा। बहुत अजीब लग रहा था — मन में डर, शर्म, और कहीं गहराई में थोड़ी सी स्वीकार्यता भी।
रेखा ने स्कूटी स्टार्ट की और बोली,
“आओ, बैठो।”
मैंने पीछे बैठने के लिए अपना पाँव स्कूटी के दोनों ओर फैलाया ही था कि रेखा ने तुरंत टोक दिया,
“ऐसे नहीं अरुना, औरतों की तरह साइड में बैठो।”
मैं थोड़ा झिझका, लेकिन चुपचाप उसका कहा मान लिया। क्यों किया, पता नहीं। शायद क्योंकि मैं सचमुच अरुना बनना सीख रहा था।
ऑफिस के सामने पहुँचते ही रेखा ने मुझे शुभकामनाएँ दीं और मुस्करा कर विदा किया।
मैंने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे ऑफिस के अंदर कदम रखा।
सामने रिसेप्शन पर बैठी एक महिला ने मेरी ओर देखा और मुस्कराकर बोली,
"हैलो मैम, कैसे मदद करूँ?"
मैं थोड़ा हिचका, फिर धीमे से कहा,
"मैं अरुना हूँ... नई कर्मचारी।"
वो कुछ पल मुझे घूरती रही — फिर उसके चेहरे पर हल्की हैरानी की लहर दौड़ गई। शायद वो अंदाज़ा नहीं लगा पाई थी कि मैं एक पुरुष हूँ।
“हाय, मैं अंजलि हूँ,” उसने कहा।
“सच कहूँ तो आप एकदम असली महिला लग रही हैं।”
मैंने बस मुस्कराकर “हाय” कहा और नजरें झुका लीं।
फिर मेरी मुलाकात मेरी मैनेजर, उषा मैम से हुई। उन्होंने भी मुझे देखकर एक पल के लिए ठहरकर देखा — जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रही हों — लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। दिन भर ऑफिस में सबने मुझे पूरी इज्ज़त दी। किसी ने कोई उलटा-पुलटा सवाल नहीं किया। शायद रेखा ने पहले से सब समझा दिया था।
शाम को ऑफिस के बाहर कुछ महिलाएँ अपने पतियों का इंतज़ार कर रही थीं। मैं भी स्कूटी का इंतजार कर रही थी — अब मैं “मैं” नहीं रही थी, मैं "अरुना" थी।
जैसे ही रेखा आई, मैं स्कूटी पर पीछे बैठ गई। उन महिलाओं ने मेरी ओर देख कर मुस्करा कर "हाय" कहा।
रेखा मुस्कराकर बोली,
“लगता है सब बहुत अच्छे लोग हैं।”
मैंने सिर हिलाते हुए कहा,
“हाँ, बहुत अच्छे। किसी ने कुछ बुरा नहीं सोचा।”
हम मुस्कराते हुए घर लौट रहे थे, जब सामने से कव्या जी, यानी रेखा की माँ आ गईं। उनका चेहरा देखकर मेरा चेहरा ज़र्द पड़ गया। उस शातिर मुस्कराहट को मैं अच्छे से जानता था — वो कभी भी कुछ भी कह सकती थीं।
रेखा उन्हें देखकर बहुत खुश हो गई।
“मम्मा! आप? इतनी जल्दी! और ये बैग्स?”
कव्या मुस्कराई,
“सोचा तुम दोनों साड़ियाँ और गहने पहन ही रही हो — तो अपना कुछ सामान भी ले आऊँ, काम आ जाएगा।”
रेखा बैग्स देखने में लग गई, और इसी बीच कव्या मेरी ओर बढ़ीं। उनका चेहरा शिकार की ओर बढ़ते शिकारी जैसा था। मैं तुरंत पीछे हट गया। उन्होंने मेरे हाथ पकड़कर उस पर सोने की मोटी चूड़ियाँ चढ़ानी शुरू कीं।
मैंने झट से हाथ पीछे खींच लिया।
रेखा ने तुरंत डाँटते हुए कहा,
"अब क्या नखरे हैं? जब से चूड़ियाँ पहन रही हो तब तो कुछ नहीं बोला। और मत भूलो, ये नौकरी मम्मी ने दिलवाई है। अब उन्हें चूड़ियाँ पहनाने दो!"
जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
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