📝 Story Preview:
Bondage की ख्वाहिश, Amit की कैद"
– एक इमोशनल ट्रांसफॉर्मेशन की डार्क फैंटेसी
अमित — एक साधारण, संवेदनशील पुरुष, जिसकी ज़िन्दगी तलाक की तल्ख़ सच्चाइयों में बिखर चुकी थी। रिश्तों से भरोसा उठ चुका था और जीने की वजहें धुंधली हो चली थीं।
लेकिन एक रात, एक बार में, उसकी मुलाकात होती है रोशनी से — एक रहस्यमयी, आत्मविश्वास से भरी और सम्मोहक महिला, जिसकी आँखों में खेल था और मुस्कान में आग।
रोशनी उसे अपने घर ले जाती है… लेकिन यह कोई आम दावत नहीं थी।
यह थी एक मानसिक और शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन की शुरुआत — जहां प्यार की परिभाषा नियंत्रण से गुजरती है, और समर्पण किसी सुंदर बंधन में बंधने को तैयार होता है।
🔗 बॉन्डेज फैंटेसी और रोलप्ले की सीमाओं को चुनौती देती एक अनोखी यात्रा
💔 दिल टूटे अमित की आत्मा का धीरे-धीरे पुनर्निर्माण
🔥 हर अध्याय में बढ़ती नज़दीकियां, बदलती सीमाएं, और एक कशमकश — इश्क़ और अधीनता के बीच
थोड़ा पास आकर धीरे से बोली —
"मैं तुम्हें वो सारी खुशियाँ दे सकती हूँ, जिनके तुम हकदार हो… और शायद वो भी, जिनके बारे में तुमने कभी सोचा तक नहीं होगा।"
"पर…" उसने रुक कर मेरी आँखों में झाँका —
"उसके लिए तुम्हें अपनी मर्ज़ी खुद बतानी होगी।
अगर तुम सिर्फ बीयर पीने आए हो, तो हम सिर्फ बीयर पिएंगे, बातें करेंगे, और सुबह होने से पहले मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊँगी।
लेकिन अगर तुम मेरी बाहों में सुकून तलाशने आए हो… तो हमें थोड़ी तैयारी करनी होगी।"
मैंने बीयर का घूंट लिया, गला सूख रहा था…
और फिर रोशनी की आँखों में देखते हुए कहा —
"मैं तुम्हारे साथ सिर्फ ये रात नहीं… पूरी ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ।
तुम सिर्फ खूबसूरत नहीं… बेहद खास हो।
अगर तुम कहो, तो मैं तुम्हारे लिए सब कुछ छोड़ सकता हूँ।
तुम्हें खोने से बेहतर है… मैं तुम्हारा बन जाऊँ।
अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे घर का नौकर बन जाऊँ।
अगर तुम कहो, तो तुम्हारा कुत्ता भी बनने को तैयार हूँ…
बस… मुझसे दूर मत जाना, रोशनी।
कभी मत।"
कुछ पलों की खामोशी के बाद रोशनी का चेहरा नरम हो गया…
उसने बीयर का कैन नीचे रखा…
मेरे पास आई… और बस एक बात बोली —
"तब आज की रात सिर्फ मेरी होगी… और तुम्हारी भी।"
रोशनी हँस पड़ी।
"अरे अमित... ये क्या कह रहे हो!"
फिर उसने मुस्कराते हुए कहा,
"अच्छा... तो अगर तुम वाकई मेरे घर का कुत्ता बनना चाहते हो, तो एक बार भौंक के दिखाओ!"
मैं थोड़ा झेंप गया… लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान और आँखों की शरारत ने कुछ ऐसा असर किया कि मैं बिना सोचे ही "भौं-भौं" कर उठा।
क्या अमित इस अनजान खेल का हिस्सा बनकर अपनी खोई हुई पहचान पाएगा?
या रोशनी की रहस्यमयी दुनिया उसे एक ऐसे मोड़ पर ले जाएगी जहाँ से वापसी असंभव है?
यह कोई आम प्रेम कथा नहीं है — यह है एक गहराई से भरी psychological erotic journey, जहाँ हर कदम पर एक नई कशिश है, हर मोड़ पर एक रहस्य।
🛑 नोट:
इस कहानी में दिखाए गए भाव, स्थितियाँ और रिश्ते बालिग पाठकों के लिए हैं। यह एक फिक्शनल दुनिया है जहाँ पात्र अपनी मर्ज़ी, सीमाओं और चाहतों के साथ भावनाओं को एक्सप्लोर करते हैं।
मैं अमित हूँ। आज वो दिन भी आ गया, जिसका डर मैं सालों से अपने मन के किसी कोने में छुपाए बैठा था। कोर्ट की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मेरे पैर लड़खड़ा रहे थे, जैसे वो भी जानते हों कि आज के बाद सब कुछ बदल जाएगा। जज साहब ने जैसे ही तलाक के कागजों पर मुहर लगाई, मेरी सांसें एक पल के लिए थम सी गईं।
वैसे तो मेरी शादी कब की खत्म हो चुकी थी, ये तो बस एक औपचारिकता भर थी। फिर भी... जब वकील ने कागज मेरी तरफ बढ़ाए, तो मेरी उंगलियाँ कांप उठीं। कल तक जिस शख्स के नाम से मेरी पहचान जुड़ी थी, आज वो सिर्फ कानूनी कागजों में दर्ज एक नोटिस बनकर रह गया था।
बार का दृश्य:
शाम के 6 बजे थे। मैं अपनी धुली हुई नीली जीन्स और मैरून कलर की हाफ स्लीव शर्ट पहने, अपने छोटे से बैग के साथ 'मूनलाइट पब' के भारी लकड़ी के दरवाजे के सामने खड़ा था। बार का बाहरी हिस्सा ईंटों से बना था, जिस पर नीली लाइट्स टिमटिमा रही थीं। अंदर से हल्का जैज़ संगीत सुनाई दे रहा था, जो दरवाजा खुलते ही गर्म हवा के झोंके की तरह मेरे कानों से टकराया।
अंदर का माहौल गर्मजोशी से भरा था। बाईं तरफ कुछ कॉलेज स्टूडेंट्स अपने रंग-बिरंगे कपड़ों में - एक लड़की फीरोजी टॉप और रिप्ड जीन्स में, उसका दोस्त ब्लैक लेदर जैकेट पहने - मस्ती में झूम रहे थे। दाईं तरफ एक मिडिल-एज्ड कपल ब्राउन वुडेन टेबल पर बैठा था, शायद उनकी वर्षगांठ थी। महिला ने गुलाबी सूट पहना था, उसके हाथ में वाइन का गिलास चमक रहा था।
मैं बार काउंटर की तरफ बढ़ा। बारटेंडर - लाल चेकर्ड शर्ट और डेनिम एप्रन पहने - ने पूछा, "सर, क्या लेंगे?" मेरी आवाज़ थोड़ी कांपी, "व्हिस्की, नीट।" ग्लास की ठंडक मेरी हथेली को चुभ रही थी, जैसे मेरे अंदर का सन्नाटा।
अकेलापन भीड़ में:
मैं कोने वाली टेबल पर बैठ गया, जहाँ नीली मद्धिम लाइट मेरे चेहरे के उदास हिस्सों पर गहरी छाया डाल रही थी। मेरे सामने रखा ग्लास धीरे-धीरे खाली हो रहा था, पर दिल का बोझ हल्का होने का नाम नहीं ले रहा था।
आसपास के लोगों की हँसी, ग्लास के टकराने की आवाज़, डीजे का बजता हुआ गाना - "तुम ही हो... अब तुम ही हो..." - सब कुछ मेरे लिए एक धुंधला सा शोर बनकर रह गया था। मेरी आँखों के आगे पुराने पल तैर रहे थे - उसकी हंसी, हमारा पहला घर, उस रात की लड़ाई जब सब टूट गया...
तभी अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे कंधे को हल्का सा छुआ। मैंने सिर उठाया। सामने खड़ी थी एक लड़की - लाल रंग की ड्रेस, हाथ में वाइन का गिलास, और आँखों में एक अजीब सी चमक। उसने पूछा, "यह सीट खाली है?"
मैं घबरा गया और अपने ख्यालों की दुनिया से अचानक बाहर आया। बार का तेज़ संगीत अब भी कानों में गूंज रहा था, लेकिन मेरा ध्यान अब सिर्फ उस शख्स पर था जिसने मेरे कंधे पर हाथ रखा था।
वो एक खूबसूरत लड़की थी—उम्र ज़्यादा नहीं, शायद 30 के आसपास। उसने मुझे सवालिया निगाहों से देखा, फिर अपना रूमाल मेरी तरफ बढ़ाते हुए मेरे सामने वाली सीट पर बैठ गई। उसकी मुस्कान में एक अजीब सी गर्मजोशी थी, जैसे कोई पुराना दोस्त मिला हो।
"हाय, मेरा नाम रोशनी है," उसने कहा, आवाज़ में नर्मी। "आप मुझे परेशान लग रहे थे... शायद रो भी रहे थे? मैं खुद से रहा नहीं गई, इसलिए आ गई। आप अकेले ही आए हैं, न?"
उसकी बातों में कोई दखलअंदाजी नहीं थी, बस एक सहज पूछताछ। मैंने उसे गौर से देखा—लाइट पिंक लिपस्टिक, स्लीक ब्लाउज और फिट जीन्स, गले में पतला-सा गोल्डन नेकलेस, कानों में छोटे-छोटे डायमंड स्टड्स। उसके बाल खुले थे, जो बार-बार उसकी आँखों पर आ जाते, और वह उन्हें बार-बार हटाती। उसकी स्मार्टवॉच पर चमकती स्क्रीन से लग रहा था कि वह किसी प्रोफेशनल दुनिया से ताल्लुक रखती है।
"अरे, प्लीज़, आप बैठिए," मैंने कहा, अपने आँसू पोंछते हुए। "मुझे कोई परेशानी नहीं है। मेरा नाम अमित है।"
हमने दोनों ने बीयर ऑर्डर की और कुछ स्नैक्स भी। जब वेटर ने ड्रिंक्स रखे, तो रोशनी ने अपने बालों को पीछे खींचकर एक स्कार्फ से पोनीटेल बना ली। अब उसके चेहरे के एक्सप्रेशन और भी क्लियर दिख रहे थे—उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वह भी किसी दर्द को समझती हो।
"तुम परेशान क्यों थे?" उसने पूछा, अपनी बीयर का घूंट लेते हुए। "अगर बात करना चाहो, तो मैं सुनने के लिए तैयार हूँ। दुख बाँटने से हल्का हो जाता है... और मैं एक अच्छी श्रोता हूँ।"
मैंने उसकी आँखों में देखा—वहाँ कोई जल्दी नहीं थी, कोई झूठी हमदर्दी नहीं। सिर्फ एक इंसान था, जो सच में जानना चाहता था।
मैंने साँस ली और शुरू किया—अपनी टूटी शादी के बारे में, उन रातों के बारे में जब मैं अकेले सोफे पर सोया करता था, उन लम्हों के बारे में जब प्यार धीरे-धीरे खत्म हो गया। जैसे-जैसे मैं बोलता गया, रोशनी की आँखें भी नम होती गईं। उसने एक बार भी मेरी बात काटने की कोशिश नहीं की—बस सुनती रही, कभी हाँ बोलकर, कभी मुस्कुराकर।
जब मेरी कहानी खत्म हुई, तो हम दोनों की बीयर के गिलास खाली हो चुके थे। मैंने बिल पे करने की पेशकश की, लेकिन रोशनी ने इनकार कर दिया।
"नहीं, हम दोनों अपना-अपना बिल अलग-अलग पे करेंगे," उसने कहा, थोड़ी अड़ियलता के साथ। "मैं आजकल इस नियम पर चलती हूँ।"
बार बंद होने का समय हो चुका था। लाइट्स धीरे-धीरे ब्राइट होने लगी थीं, और स्टाफ टेबल्स साफ करने लगा था। पर हमारी बातें अभी भी खत्म नहीं हुई थीं।
"तुम्हारी फ्लाइट कब है?" मैंने पूछा, याद करते हुए कि उसने बताया था कि वह एयर होस्टेस है।
"कल सुबह," उसने कहा। "पर तुम्हारा दुख सुनकर मुझे लगा कि शायद हम थोड़ा और वक्त बिता सकते हैं। अगर तुम चाहो तो...?"
उसकी आँखों में एक सवाल था। मैंने हाँ में सिर हिलाया।
थोड़ी ही देर में हम दोनों ऐसे घुल-मिल गए थे, जैसे सालों के दोस्त हों। शायद यही होता है जब दो टूटे हुए दिल एक-दूसरे की आँखों में अपना ही दर्द ढूँढ लेते हैं। रोशनी ने अपने पसंद-नापसंद के किस्से सुनाए—वो कैसे समुद्र के किनारे खड़े होकर सूरजास्त देखना पसंद करती है, कैसे उसे गुलाबी रंग से चिढ़ है, कैसे उसकी माँ का खत्म न होने वाला दबाव उसे हमेशा परेशान करता रहता है। और मैंने बताया कि कैसे मुझे बारिश की बूंदों की आवाज़ सुनकर शांति मिलती है, कैसे मैं अपनी एकांत की दुनिया में किताबों के साथ खो जाता हूँ।
हमने जीवन के सबसे खुशनुमा पल भी शेयर किए, और वो क्षण भी जब सब कुछ टूटकर बिखर गया था। मैं हैरान था—कैसे एक अजनबी इतनी जल्दी मेरे दिल के इतने करीब आ गई? शायद इसलिए क्योंकि वह भी उसी तरह के दर्द से गुज़री थी, जिस तरह मैं गुज़र रहा था।
बार से बाहर:
आखिरकार, बार के लाइट्स पूरी तरह से जल उठे, और स्टाफ ने इशारा किया कि अब बंद होने का वक्त हो चुका है। हमने अपना-अपना बिल अलग-अलग पे किया—रोशनी ने अपना कार्ड निकाला, मैंने नकद दिया। बाहर निकलते ही ठंडी हवा ने हमें झकझोर दिया। सड़क पर अब बस कुछ लेट-नाइट टैक्सियाँ और दूर कहीं किसी पार्टी से लौटते हुए लोगों की आवाज़ें थीं।
हमने एक-दूसरे को गुडबाय कहा। कोई नंबर एक्सचेंज नहीं हुआ, कोई सोशल मीडिया रिक्वेस्ट नहीं भेजी गई। शायद हम दोनों जानते थे कि यह मुलाकात सिर्फ एक पल के लिए थी—एक सुकून भरी रात, जिसे हम कल के सूरज के साथ भूल जाना चाहते थे।
अकेले चलते हुए:
मैं पैदल ही अपने घर की तरफ चल पड़ा। रात की खामोशी में मेरे कदमों की आवाज़ गूंज रही थी। दिल में वही पुराना खालीपन लौट आया था, मानो भगवान ने एक पल के लिए मुझे खुशी का स्वाद चखाया हो, और फिर छीन लिया हो।
रोशनी की मुस्कान, उसकी आँखों में चमक, उसके हाथों का हल्का स्पर्श—सब कुछ अब एक धुंधली सी याद बनकर रह गया था। क्या वह सच में थी, या सिर्फ मेरे दर्द की एक कल्पना?
मैंने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला। अंदर का सन्नाटा मुझे फिर से अपनी गिरफ्त में लेने को तैयार था। पर आज, इस खालीपन में भी एक अजीब सी शांति थी। शायद इसलिए क्योंकि आज मैं अकेला नहीं था—कम से कम कुछ घंटों के लिए, किसी ने मुझे सुना था, समझा था।
मैंने खिड़की से बाहर देखा। रात का आकाश साफ था, तारे टिमटिमा रहे थे। कहीं दूर, शायद रोशनी भी उन्हीं तारों को देख रही होगी। और फिर मैंने मुस्कुराया—क्योंकि कभी-कभी, कुछ लोग हमेशा के लिए नहीं, बस एक पल के लिए होते हैं... पर वो पल जिंदगी भर याद रहता है।
मैं चीखना चाहता था, चिल्लाना चाहता था, सड़क पर गिरकर रोना चाहता था—पर मैं अभी भी वहाँ खड़ा था, जैसे मेरी आवाज़ मेरे ही गले में दब गई हो। मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे, पर मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। तभी...
एक काली एसयूवी मेरे पास आकर रुकी। उसकी शीशे की खिड़की धीरे-धीरे नीचे उतरी, लेकिन अंदर अंधेरा था—कुछ दिख नहीं रहा था। फिर एक जानी-पहचानी आवाज़ आई—
"अमित?"
वो रोशनी थी।
"तुम्हें कहीं छोड़ दूँ?" उसने पूछा, आवाज़ में एक अजीब सी गर्माहट।
मैंने हिचकिचाते हुए कहा, "नहीं... मैं यहीं पास में रहता हूँ।"
"चलो, मैं छोड़ देती हूँ," वह बोली, और फिर हँसते हुए जोड़ा, "या फिर... साथ में कुछ देर और बीयर पी लेते हैं?"
मैंने सोचा—मेरे पड़ोसी बहुत शंकालु हैं। अगर किसी ने मुझे किसी लड़की के साथ देख लिया, तो कल सुबह तक पूरी सोसाइटी में खबर फैल जाएगी।
"मेरे यहाँ तो नहीं चल सकते... पड़ोसी बहुत गॉसिप करते हैं," मैंने कहा।
रोशनी ने अपने बालों को पीछे हटाते हुए मुस्कुराई, "तो फिर... चलो मेरे घर चलते हैं। वहाँ किसी को कोई परेशानी नहीं होगी।"
और फिर, बिना एक पल सोचे—जैसे भाग्य ने मुझे दूसरा मौका दिया हो—मैंने दरवाज़ा खोला और गाड़ी में बैठ गया।
गाड़ी के अंदर:
जैसे ही मैं बैठा, रोशनी ने गाड़ी को सेंटर लॉक कर लिया। अंदर की लाइट्स नीली-हल्की थीं, और गाड़ी में उसके पर्फ्यूम की खुशबू फैली हुई थी—वो हल्की सी वेनिला और जैसमिन की मिली-जुली खुशबू।
वह मुड़ी और मेरी तरफ देखा, उसकी आँखों में एक गंभीरता थी।
"अमित... एक रिक्वेस्ट है," उसने धीरे से कहा। "अगर तुम बुरा न मानो तो..."
मेरा दिल धड़क रहा था। क्या वो कुछ ऐसा कहने वाली है जो मैं सोच रहा हूँ?
"हाँ, बोलो," मैंने कहा, आवाज़ थोड़ी काँपती हुई। "मैं वादा करता हूँ, बुरा नहीं मानूँगा।"
रोशनी ने गहरी साँस ली, और फिर बोली—
रोशनी की अजीब सी रिक्वेस्ट सुनकर मैं थोड़ा ठिठका, फिर मुस्कुरा दिया। "तुम सच में बहुत सारे सीरियल देखती हो, है न?" मैंने हंसते हुए कहा।
उसने गंभीरता से सिर हिलाया, "पर अबकी बार मैं ज़िंदगी में थ्रिल चाहती हूँ। तुम्हारे हाथ बांधने दो ना, प्लीज? वादा करती हूँ, कोई हरकत नहीं करूँगी!"
मैंने अपनी पीठ पीछे हाथ कर दिए। "ठीक है, लेकिन शर्त ये है कि तुम भी कोई साइको किलर न निकलो," मैंने मजाक किया।
रोशनी ने अपने बैग से एक सॉफ्ट, सिल्की स्कार्फ निकाला—वही जिससे उसने बार में अपने बाल बाँधे थे। उसने मेरी कलाइयों को पीछे की तरफ कसकर बाँध दिया। स्कार्फ का मुलायम स्पर्श और उसकी उंगलियों का हल्का दबाव... एक अजीब सी रोमांचक ऊर्जा मेरे शरीर में दौड़ गई।
ये फैंटेसी तो मैं सालों से अपनी बीवी के साथ जीना चाहता था... पर वो हमेशा टाल देती थी।
"अमित..." रोशनी ने धीरे से कहा, "एक लास्ट रिक्वेस्ट। क्या मैं तुम्हारी आँखें भी बाँध सकती हूँ? प्लीज... मैं अकेली लड़की हूँ, तुम समझ सकते हो ना?"
उसकी आवाज़ में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे वो किसी डर और एक्साइटमेंट के बीच झूल रही हो। मैंने सिर हिलाया। "ठीक है... बाँध दो।"
उसने दूसरा स्कार्फ निकाला—ये हल्के गुलाबी रंग का था, जिस पर छोटे-छोटे फूलों का प्रिंट था। धीरे-धीरे उसने मेरी आँखों के ऊपर से बाँध दिया। अँधेरा छा गया।
"तुम्हें डर तो नहीं लग रहा?" उसने पूछा, आवाज़ थोड़ी काँपती हुई।
मैंने मुस्कुराने की कोशिश की। "नहीं... बस इतना ज़रूर लग रहा है कि तुम मुझे कहीं ले जा रही हो।"
"हाँ... एक सरप्राइज है," उसने कहा, और फिर गाड़ी का इंजन स्टार्ट किया।
मैंने बस हाँ में सिर हिला दिया।
उसने बिना कुछ कहे अपने बालों में बंधा हुआ स्कार्फ खोला और धीरे-धीरे मेरी आँखों पर बांध दिया। अब मेरी दुनिया में सिर्फ अंधेरा था... लेकिन एक अजीब-सा सुकून उस अंधेरे में भी छिपा था।
जब वो मेरे करीब झुकी और मेरी आँखों पर वो स्कार्फ बांध रही थी, उसके खुले बाल मेरे चेहरे को छूते जा रहे थे। उन बालों से आती हल्की-सी खुशबू — शायद उसके शैम्पू की — एक शांत, मीठी मादकता लिए हुए थी। मेरा दिल धड़क रहा था, और सांसें उस खुशबू में उलझती जा रही थीं।
जो पल मैंने कभी अपनी बीवी के साथ जीने की कल्पना की थी, और जो अब तलाक की बातों में दब कर रह गया था... वही एहसास आज बिना कहे, बिना मांगे, मेरे सामने था।
मैं कहीं खो गया था... और गाड़ी अपनी रफ्तार से चल रही थी।
अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे रोशनी का हाथ मेरी जांघ को छू गया हो।
मेरा शरीर झनझना उठा... मेरा प्राइवेट पार्ट तनाव में था, लेकिन मन में एक झिझक भी थी... एक संकोच, एक उलझन।
"शायद गियर बदलते हुए हाथ लग गया हो," मैंने मन ही मन सोचा और खुद को संयमित किया।
रोशनी बातों में मग्न थी —
"अमित, एक बात पूछूं? ये बाल क्यों बढ़ा रखे हैं तुमने?"
मैंने हल्की-सी हँसी के साथ जवाब दिया,
"पिछले कुछ महीनों से तलाक और कोर्ट-कचहरी में इतना उलझा रहा... अपने लिए वक़्त ही नहीं मिला। बस, बढ़ते गए।"
"पर तुम पर बहुत अच्छे लगते हैं लंबे बाल,"
उसने बड़े सहज स्वर में कहा, "तो फिर दाढ़ी क्यों नहीं रखी?"
"थी दाढ़ी... पर आज बाहर आना था तो सोचा, क्लीन शेव कर लूं। घर पर ही कर ली।"
हमारी बातों का सिलसिला यूँ ही चलता रहा। वो पूछती जाती और मैं जवाब देता गया।
गाड़ी कहाँ जा रही थी, ये अब मुझे नहीं पता था।
मैंने खुद को बस उस सफ़र के हवाले कर दिया था...
अचानक गाड़ी एक जगह आकर रुक गई।
रोशनी ने धीरे से मेरा हाथ थामा और कहा, "आओ, अब अंदर चलो।"
वो मुझे सहारा देकर एक कमरे में ले गई — शायद उसका घर था।
दरवाज़ा बंद हुआ, तो उसने धीरे से कहा —
"अमित... एक आख़िरी सवाल।"
रोशनी किचन से दो बीयर लेकर लौटी।
उसकी चाल में एक सहज आत्मविश्वास था, और आँखों में… कुछ सवाल।
उसने बीयर मुझे थमाई और मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा कर बोली —
"क्या तुम मेरे घर सिर्फ बीयर पीने आए हो, या कुछ और भी चल रहा है तुम्हारे दिमाग में?"
मैं कुछ नहीं बोला… शायद बोल ही नहीं पाया।
उसने मेरी चुप्पी को पढ़ लिया।
"देखो, अमित," उसने कहा, "मुझे पता है कि अगले दो दिन छुट्टियाँ हैं… तुम्हारी भी, और मेरी भी।
और सबसे बड़ी बात — घर में कोई नहीं है।
हम कुछ भी कर सकते हैं।"
वो थोड़ा पास आकर धीरे से बोली —
"मैं तुम्हें वो सारी खुशियाँ दे सकती हूँ, जिनके तुम हकदार हो… और शायद वो भी, जिनके बारे में तुमने कभी सोचा तक नहीं होगा।"
"पर…" उसने रुक कर मेरी आँखों में झाँका —
"उसके लिए तुम्हें अपनी मर्ज़ी खुद बतानी होगी।
अगर तुम सिर्फ बीयर पीने आए हो, तो हम सिर्फ बीयर पिएंगे, बातें करेंगे, और सुबह होने से पहले मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊँगी।
लेकिन अगर तुम मेरी बाहों में सुकून तलाशने आए हो… तो हमें थोड़ी तैयारी करनी होगी।"
मैंने बीयर का घूंट लिया, गला सूख रहा था…
और फिर रोशनी की आँखों में देखते हुए कहा —
"मैं तुम्हारे साथ सिर्फ ये रात नहीं… पूरी ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ।
तुम सिर्फ खूबसूरत नहीं… बेहद खास हो।
अगर तुम कहो, तो मैं तुम्हारे लिए सब कुछ छोड़ सकता हूँ।
तुम्हें खोने से बेहतर है… मैं तुम्हारा बन जाऊँ।
अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हारे घर का नौकर बन जाऊँ।
अगर तुम कहो, तो तुम्हारा कुत्ता भी बनने को तैयार हूँ…
बस… मुझसे दूर मत जाना, रोशनी।
कभी मत।"
कुछ पलों की खामोशी के बाद रोशनी का चेहरा नरम हो गया…
उसने बीयर का कैन नीचे रखा…
मेरे पास आई… और बस एक बात बोली —
"तब आज की रात सिर्फ मेरी होगी… और तुम्हारी भी।"
रोशनी हँस पड़ी।
"अरे अमित... ये क्या कह रहे हो!"
फिर उसने मुस्कराते हुए कहा,
"अच्छा... तो अगर तुम वाकई मेरे घर का कुत्ता बनना चाहते हो, तो एक बार भौंक के दिखाओ!"
मैं थोड़ा झेंप गया… लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान और आँखों की शरारत ने कुछ ऐसा असर किया कि मैं बिना सोचे ही "भौं-भौं" कर उठा।
वो ठहाका मार कर हँसी।
"ओह मेरी जान! तुम तो बहुत स्वीट हो,"
उसने कहा और प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए बोली,
"ठीक है, अब मैं तुम्हारे हाथ खोल रही हूँ… पर आँखें मत खोलना।"
मैंने सिर हिलाया — हाँ में।
अंदर से मन किया… एक झलक देख लूं…
पर कहीं कुछ बेवकूफी हो गई, तो जो कुछ भी सुंदर और सच्चा था, वो हमेशा के लिए टूट सकता था।
मैंने खुद को रोक लिया।
उसने मेरे हाथों की गिरहें खोल दीं।
अब हम आराम से सोफे पर बैठ गए…
बीयर के कैन फिर से खुले।
उसने मुझसे मेरी सारी फैंटेसी के बारे में पूछा —
और अपनी कुछ दिल की बातें भी साझा कीं।
शब्दों में कोई झिझक नहीं थी, पर इरादों में बहुत गहराई थी।
तभी वो मेरी ओर झुकी,
बीयर की मस्ती में नहीं — भरोसे की नज़दीकी में।
"अमित… अब वक़्त आ गया है असली मजे का।
बातों का वक्त खत्म…
अब वक्त है, उन ख्वाहिशों को महसूस करने का
जो सिर्फ सोच में थीं… अब एहसास में होंगी।"
चलो अपने सारे कपड़े उतार कर बिलकुल नंगे खड़े हो जाओ अगर कोई भी चालाकी की या मेरा मूड बिगड़ने की कोशिश की तो में तुम्हे नंगा ही घर से बाहर भागा दूंगी, मैने जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगा खड़ा हो आया में नंगा खड़ा था और मेरा वो भी खड़ा हो गया, अब रोशनी ने मेरे कपड़े उठाए और एक अलमारी में लॉक कर दिए और फिर मुझे एक धक्का दिया और में बिस्तर पर गिर गया फिर रोशनी ने मेरे हाथो को बिस्तर के कोनो से बांध रही थी पहले एक हाथ बांध दिया फिर दूसरा हाथ बांध दिया बिस्तर के दोनो तरफ हेडबोड से , उसके बाद उसने अपनी उंगलियां मेरे ही पर घुमाई और मेरे निप्पल पर जाकर रुक गई और मेरे निप्पल पर अपने नाखून को हल्का सा दबाया , और मैने ताने हुए पत्थर जैसे हथियार को भी अपने दूसरे हाथ से उस पर अपने नाखून सहलाए,
फिर रोशनी ने अपनी पेटीकोट के नीचे से काले साटन पैंटी को नीचे खींच लिया। रोशनी ने अपनी पैंटी को मेरे सिर के ऊपर रख दि ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पैंटी का गीला स्थान मेरी नाक के ऊपर आए । इसके बाद रोशनी एक काले रेशम के स्कार्फ में कई गांठें इस तरह बांधती है के उसकी पैंटी मेरे मुंह में गहराई तक धकेल सके जिससे मेरा मुंह कसकर बंद जो जाए। रोशनी बोली तुम्हे शांत रहना चाहिए। क्या तुम्हे मेरी खुशबू पसंद आई? अमित ने हां में सिर हिलाया, "अच्छा, तुम्हे बहुत बदबू आ रही होगी", कहकर हसने लगी। फिर उसने एक पैर को पकड़ लिया और उसे बिस्तर के नीचे रेलिंग से बांध दिया। दूसरे पैर को पकड़कर उसे भी बांध दिया।
जो आपने अभी पढ़ा, वो तो बस शुरुआत थी — कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा अभी बाकी है!
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